• वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र में सुधार
  • प्रमुख सुधार (1991 के बाद):
    • बैंकिंग क्षेत्र में निजीकरण और प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन
    • NPAs (Non-Performing Assets) को कम करने हेतु सुधार
    • बेसल मानकों को अपनाना
    • RTGS, NEFT, IMPS जैसे डिजिटल माध्यमों का प्रसार
    • बैंकों में Core Banking Solutions (CBS) और FinTech का प्रवेश
    • बैंक बोर्ड ब्यूरो की स्थापना (2016)
    • इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड – 2016 (IBC)

  • ग्रामीण बैंकिंग पर आर्थिक सुधारों का प्रभाव
क्षेत्रसकारात्मक प्रभावनकारात्मक प्रभाव
साख (Loan) उपलब्धताअधिक बैंक शाखाओं का विस्तारलाभ आधारित बैंकिंग से दूरस्थ क्षेत्रों की उपेक्षा
तकनीकी सुलभताATM, मोबाइल बैंकिंगडिजिटल साक्षरता की कमी
स्वरोजगार में वृद्धिSHG, Microfinance से मददऋण वसूली में कठिनाई

  •  स्वयं सहायता समूह (SHGs)
  • विशेषताएँ:
    • ग्रामीण गरीब महिलाओं द्वारा संचालित छोटे समूह
    • आंतरिक बचत व ऋण की प्रणाली
    • बैंक लिंकेज कार्यक्रम (NABARD द्वारा)
  • योगदान:
    • महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता
    • सामाजिक सशक्तिकरण
    • ग्राम स्तर पर वित्तीय पहुंच

  •  सूक्ष्म वित्त (Microfinance)
    • बहुत ही छोटे कर्ज (₹10,000–₹50,000)
    • स्वरोजगार, पशुपालन, कुटीर उद्योग हेतु मदद
    • MFIs (Micro Finance Institutions) द्वारा संचालित
    • SHG-Bank Linkage Model प्रमुख है

  • NABARD (National Bank for Agriculture and Rural Development)
  • भूमिका:
    • ग्रामीण विकास का प्रमुख संस्थान (स्थापना: 1982)
    • SHG, RRB, Cooperative Banks को वित्तीय सहायता
    • RIDF (Rural Infrastructure Development Fund) का प्रबंधन
    • डिजिटल ग्राम बैंकिंग को बढ़ावा

  •  क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs)
  • उद्देश्य:
    • ग्रामीण क्षेत्रों को बैंकिंग सेवा से जोड़ना
    • किसानों, मजदूरों, कारीगरों को ऋण प्रदान करना
  • विशेषताएँ:
    • स्थापना: 1975, नाबार्ड की निगरानी में
    • केंद्र, राज्य और प्रायोजक बैंक द्वारा संयुक्त स्वामित्व
    • समेकन (merger) के माध्यम से संख्या घटाई गई

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (Scheduled Commercial Banks)
  • RBI के अधीन सूचीबद्ध बैंक
  • ग्रामीण शाखाएं खोलने का निर्देश
  • Priority Sector Lending (PSL) के तहत कृषि, SHG, MSME को ऋण देना अनिवार्य

  • ग्रामीण सहकारी बैंक
  • विशेषताएँ:
    • दो-स्तरीय या तीन-स्तरीय संरचना (PACS, DCCB, SCB)
    • ग्रामीण किसानों के लिए अल्पकालिक साख
    • राज्य सरकार के अधीन कार्य
  • समस्याएँ:
    • प्रबंधन में राजनीति, भ्रष्टाचार
    • पुनर्पूंजीकरण (Recapitalization) की आवश्यकता

  • वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) अर्थ: सभी वर्गों तक औपचारिक वित्तीय सेवा पहुंचाना – बैंकिंग, बीमा, पेंशन, क्रेडिट आदि
    • पहल:
    • जनधन योजना, भीम ऐप, PM किसान योजना
    • PM स्वनिधि योजना, UPI, डिजिटल ग्राम

  • प्रभाव (Impact Summary):
पहललाभचुनौतियाँ
SHGमहिलाओं का सशक्तिकरणवित्तीय शिक्षा की कमी
NABARDसंरचनागत सुधारसीमित संसाधन
RRBग्रामीण बैंकिंग विस्तारआर्थिक दबाव व विलय
Microfinanceस्वरोजगार, लघु कर्जऊँचे ब्याज दर, कर्ज जाल
वित्तीय समावेशनबैंकिंग पहुँच, डिजिटलीकरणडिजिटल अंतर, कम डिजिटल साक्षरता

  • निष्कर्ष:
    • “समावेशी विकास के लिए वित्तीय समावेशन आवश्यक है।”
  • ग्रामीण बैंकिंग के क्षेत्र में सुधारों से:
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायित्व,
    • महिलाओं को आर्थिक भागीदारी,
    • और कमजोर वर्गों को वित्तीय सशक्तिकरण प्राप्त हुआ।
  • परंतु सतत विकास हेतु, प्रशिक्षण, जागरूकता और नीति सुधार की निरंतर आवश्यकता है।
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