योजनागत रणनीति: पंचवर्षीय योजनाएँ, योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद

स्वतंत्रता के पश्चात, भारत के सामने सर्वाधिक महत्वपूर्ण चुनौती एक पिछड़ी, निर्धन और कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था का सर्वांगीण विकास करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक केंद्रीकृत और व्यवस्थित ढांचे की आवश्यकता थी, जिसके फलस्वरूप पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई। इस व्यवस्था के प्रमुख स्तंभ योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद (राविपा) थे।

पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य एवं रणनीति

पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य देश के संसाधनों का इष्टतम उपयोग करते हुए तीव्र और संतुलित आर्थिक विकास प्राप्त करना था।

मुख्य उद्देश्य:

  1. विकास दर में वृद्धि: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर को बढ़ाना।
  2. आत्मनिर्भरता: विशेष रूप से खाद्यान्न और औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करना।
  3. रोजगार सृजन: बढ़ती जनसंख्या के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना।
  4. सामाजिक न्याय एवं गरीबी उन्मूलन: आर्थिक विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों, विशेषकर गरीब और वंचित तबकों तक पहुँचाना।
  5. औद्योगीकरण: भारी उद्योगों और आधारभूत ढाँचे का विकास करना।
  6. कृषि विकास: हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना।

प्रमुख रणनीतियाँ:

  • हैरोड-डोमर मॉडल: प्रारंभिक योजनाओं में पूंजी निर्माण और बचत पर जोर देने के लिए इस मॉडल को अपनाया गया।
  • सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व (Nehru-Mahalanobis Model): द्वितीय योजना से भारी उद्योगों और आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख भूमिका दी गई।
  • आयात प्रतिस्थापन: घरेलू उद्योगों के संरक्षण के लिए आयात पर प्रतिबंध और उच्च सीमा शुल्क लगाए गए।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था: सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों के सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया गया।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने पर बल दिया गया।

योजना आयोग: संरचना, भूमिका एवं कार्य

मार्च 1950 में गठित योजना आयोग (Planning Commission) एक अतामीय (non-constitutional) और गैर- statutory निकाय था, जिसका गठन Cabinet Resolution के through किया गया था। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते थे।

भूमिका एवं कार्य:

  • राष्ट्रीय योजना का निर्माण: देश के संसाधनों और आवश्यकताओं का आकलन कर पंचवर्षीय योजनाओं का खाका तैयार करना।
  • संसाधनों का आवंटन: योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का आवंटन करना।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निर्देश: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSUs) के लिए निवेश और उत्पादन के लक्ष्य निर्धारित करना।
  • योजना की प्रगति का मूल्यांकन: योजना अवधि के दौरान निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की निगरानी और मध्यावधि मूल्यांकन करना।
  • विदेशी सहायता का समन्वय: विकास परियोजनाओं के लिए विदेशी सहायता और निवेश को协调 करना।
  • सलाहकार की भूमिका: आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देना।

राष्ट्रीय विकास परिषद (राविपा): भूमिका एवं कार्य

राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC – National Development Council) की स्थापना 6 अगस्त, 1952 को योजना आयोग की सिफारिशों पर की गई थी। यह एक संवैधानिक निकाय नहीं था, बल्कि इसे एक ‘सुपर कैबिनेट’ के रूप में देखा जाता था।

संरचना:

  • परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • इसके सदस्यों में केंद्रीय मंत्रिमंडल के सभी सदस्य, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक/मुख्यमंत्री शामिल होते हैं।

भूमिका एवं कार्य:

  • योजनाओं पर अंतिम मुहर: योजना आयोग द्वारा तैयार की गई पंचवर्षीय योजनाओं पर विचार-विमर्श और उन्हें अंतिम रूप से स्वीकृति प्रदान करना।
  • केंद्र-राज्य समन्वय: राष्ट्रीय योजना के निर्माण और क्रियान्वयन में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करना। यह इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य था।
  • राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विचार: आर्थिक विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों और नीतियों पर विचार-विमर्श करना।
  • योजना की प्रगति की समीक्षा: योजना के क्रियान्वयन की समीक्षा करना और आवश्यक सुझाव देना।
  • राष्ट्रीय विकास के लिए नीतिगत ढाँचा तय करना: दीर्घकालिक विकास रणनीति तैयार करने में मार्गदर्शन प्रदान करना।

निष्कर्ष: एक युग का अंत

पंचवर्षीय योजनाओं, योजना आयोग और राविपा ने independent India के economic development में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके माध्यम से देश में आधारभूत ढाँचे, भारी उद्योगों और वैज्ञानिक शिक्षा की नींव रखी गई तथा खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई।

हालाँकि, 1991 के economic reforms और globalization के बाद इस केंद्रीकृत नियोजन model की आवश्यकता और प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। अंततः, 2014 में योजना आयोग को भंग करके उसके स्थान पर निति आयोग (NITI Aayog) की स्थापना की गई, जो एक think tank और सहयोगी federalism को बढ़ावा देने वाले body के रूप में कार्य करता है। इसी प्रकार, राविपा का स्थान भी Governing Council of NITI Aayog ने ले लिया है, जो एक अधिक सहयोगात्मक और बाजार-अनुकूल दृष्टिकोण को दर्शाता है।

JPSC MAINS PAPER 5/Chapter – 22