झारखंड : भौगोलिक स्थिति
- 12 DEC 1911 – बिहार को बंगाल से अलग करने की दिल्ली दरबार में घोसना
- 22 MARCH 1912 – बिहार को बंगाल से अलग करने की अधिसूचना जारी
- 22 MARCH – बिहार का स्थापना दिवस
- 1 अप्रैल, 1912 को बिहार ने बंगाल से अलग प्रान्त के रूप में कार्य शुरू किया
- 1 अप्रैल, 1936 में बिहार से पृथक् हो उड़ीसा राज्य बना
- सन् 1948 में बिहार में सरायकेला, खरसावाँ को सम्मिलित किया गया।
- सन् 1953 में पुनर्गठन आयोग ने बिहार के 5,573 कि.मी. भू-भाग को बंगाल में मिला दिया।
- 15 नवंबर 2000 – झारखंड का गठन बिहार के 45.80% भूभाग(18 जिलों) को अलग करके
- छोटानागपुर पठार का सबसे ऊँचा स्थान – पाट (Pat) कहलाता है
- झारखण्ड की सबसे ऊंची चोटी – पारसनाथ,1365 m(4478 फीट) ( सम्मेद शिखर)
- झारखण्ड की दूसरी सबसे ऊंची चोटी – सरूअत ,गुलपुलनाथ(3819 फीट) ,गढ़वा
- झारखण्ड राज्य की जलवायु – उष्णकटिबंधीय मानसूनी
- राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों शाखाओं द्वारा वर्षा होती है।
- झारखण्ड के कुल भू-भाग पर वन % – 29.62% (IFSR -2019 के अनुसार)
- भारत की प्रथम बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना – दामोदर नदी घाटी परियोजना
- बिहार राज्य की सीमा को झारखण्ड के दस जिले स्पर्श करते हैं।
- पश्चिम बंगाल की सीमा को झारखण्ड के दस जिले स्पर्श करते हैं।
- उड़ीसा की सीमा को झारखण्ड के 4 जिले स्पर्श करते हैं।
- छत्तीसगढ़ की सीमा को झारखण्ड के 4 जिले स्पर्श करते हैं।
- उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा को स्पर्श करने वाला राज्य का एकमात्र जिला – गढ़वा
- तीन राज्यों की सीमा को स्पर्श करनेवाला झारखण्ड का एकमात्र जिला – गढ़वा
- गढ़वा जिला की सीमा से उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा बिहार से लगी हुई है।
- झारखण्ड के स्थलबद्ध (Landlocked) जिलो की संख्या – 2
- खूटी
- लोहरदगा
- स्थलबद्ध का अर्थ – जो किसी अन्य राज्य की सीमा को स्पर्श नहीं करते हैं।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला – प० सिंहभूम (7224 वर्ग किमी.)
- क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा जिला – रामगढ़,(1341 वर्ग किमी.)
झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना
1. आर्कियनकालीन चट्टानें
- झारखण्ड की चट्टानी संरचनाओं में यह सर्वप्रमुख है जिसका विस्तार झारखण्ड के 90% भू-भाग पर है। प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधनों का भंडार होने के कारण ये आर्थिक दृष्टि से झारखण्ड की सर्वप्रमुख चट्टानें हैं।
- इन चट्टानों में आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित तीनों प्रकार की चट्टानें मौजूद हैं तथा छोटानागपुर पठार की आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित चट्टानों का संबंध इसी काल की चट्टानों से है।
- इन चट्टानों का विस्तार झारखण्ड के सिंहभूम, सरायकेला, सिमडेगा तथा दक्षिण पूर्वी झारखण्ड के क्षेत्रों में है।
- इन चट्टानों को आर्कियन क्रम व धारवाड़ क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- झारखण्ड आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार राज्य के 85% भूभाग पर आग्नेय व रूपांतरित चट्टानों का विस्तार है।
आर्कियन क्रम
- ये गर्म व तरल लावा के जमाव से निर्मित ग्रेनाइट चट्टान हैं, जो जीवाश्म रहित हैं।
- इनमें रूपांतरण के पश्चात ये चट्टानें नीस व सिस्ट में परिवर्तित हो गयी हैं।
धारवाड़ क्रम
- ये चट्टानें भी जीवाश्म रहित हैं।
- झारखण्ड में इनका मूल विस्तार कोल्हान क्षेत्र में होने के कारण इसे कोल्हान क्रम की चट्टान भी कहा जाता है।
- इन चट्टानों में लौह-अयस्क की प्रचुर उपलब्धता के कारण इन्हें ‘लौह-अयस्क की श्रृंखला’ (Iron-Ore Series) कहा जाता है।
- झारखण्ड में इन चट्टानों का विस्तार पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां जिले में हुआ है।
- इन चट्टानों में धात्विक खनिजों की उपलब्धता है जिसमें लोहा, तांबा, बॉक्साइट, निकेल, सोना, मैंगनीज, चाँदी आदि प्रमुख हैं।
2. विन्ध्यन क्रम की चट्टानें
- विन्ध्यन क्रम की चट्टानें झारखण्ड के उत्तर-पश्चिमी भाग में सोन नदी क्षेत्र (विशेष रूप से गढ़वा) में पायी जाती हैं।
- ये चट्टानें मूलतः रोहतास पठार का दक्षिणी हिस्सा है।
- ये चट्टानें बलुआ पत्थर एवं चुना पत्थर से युक्त परतदार चट्टानें हैं।
3. गोंडवाना क्रम की चट्टानें
- इन चट्टानों में प्रचुर मात्रा में कोयला के भंडार के साथ ही बलुआ पत्थर की परत भी पायी जाती है।
- झारखण्ड के प्रमुख कोयला निक्षेपों का निर्माण इसी चट्टान से हुआ है।
- इन चट्टानों का विस्तार गिरिडीह, राजमहल की पहाड़ियों तथा उत्तरी कोयल नदी की घाटी क्षेत्रों में है।
4. सिनोजोइक क्रम
- इस काल में हिमालय के उत्थान के दौरान इसका प्रभाव छोटानागपुर पठारी क्षेत्र पर भी पड़ा।
- हिमालय के उत्थान व उसके प्रभाव को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसका विवरण निम्नवत है
पहला उत्थान
- हिमालय के प्रथम उत्थान का संबंध मायोसीन काल से है।
- इस दौरान छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में भूगर्भिक हलचलों के परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र का उत्थान हुआ।
- इस उत्थान के परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र राँची-हजारीबाग पठार से लगभग 1000 फीट ऊपर उठ गया।
दूसरा उत्थान
- इस उत्थान का संबंध अंतिम प्लायोसीन काल से है।
- इस दौरान भी छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में भूगर्भिक हलचल हुयी।
- इस दौरान राँची-हजारीबाग पठार का लगभग 1000 फीट उत्थान हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र लगभग 2000 फीट ऊपर उठ गया।
तीसरा उत्थान
- इस उत्थान का संबंध प्लीस्टोसीन काल से है।
- इस दौरान भी छोटानागपुर पठारी क्षेत्र मैं भूगर्भिक हलचल हुयी। ,
- इस दौरान राँची-हजारीबाग पठार का लगभग 2000 फीट उत्थान हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र लगभग 3000-3600 फीट ऊपर उठ गया।
उपरोक्त तीनों उत्थानों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में विभिन्न नदियों का उद्भव हुआ। कालांतर में इन नदियों के द्वारा किए गए अपरदन के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के धरातलीय स्वरूप की ऊँचाई में कमी आयी।
इन अपरदनों के पश्चात् इस क्षेत्र की वर्तमान ऊँचाई इस प्रकार है
- पाट क्षेत्र – 900 से 1100 मीटर
- राँची पठार – 600 मीटर से कम
- निम्न छोटानागपुर का पठार – 300 मीटर से अधिक
4. राजमहल ट्रैप तथा दक्कन लावा की चट्टानें
- जुरासिक युग में लावा के बहाव से राजमहल ट्रैप का निर्माण हुआ है जबकि दरारों में लावा के प्रवाह से दक्कन लावा का निर्माण हआ है।
- चट्टानों के अपक्षयन के परिणामस्वरूप लैटेराइट एवं बॉक्साइट का निर्माण हुआ है।
- राजमहल ट्रैप का मूल विस्तार झारखण्ड के उत्तर-पूर्वी भाग में (साहेबगंज के पूर्वोत्तर भाग व पाकुड़ के पूर्वी भाग में) है। इसके अलावा यह झारखण्ड के पाट क्षेत्र (पलामू, गढ़वा, गुमला तथा लोहरदगा) में भी विस्तारित है।
5. नवीनतम जलोढ़ निक्षेप
- नदियों के अपरदन व निक्षेपण के परिणामस्वरूप इसका निर्माण हुआ है, जो वर्तमान में भी जारी है।
- झारखण्ड के राजमहल के पूर्वी क्षेत्रों, सोन नदी घाटी तथा स्वर्णरेखा नदी की निचली घाटी के क्षेत्रों में नदियों के जलोंढों के निक्षेपण से इस संरचना का निर्माण हुआ है।
- इनके द्वारा मैदानी क्षेत्र में निक्षेपण के परिणामस्वरूप कई स्थानों पर ग्रेनाइट के उच्च भूभाग का निर्माण हो गया है, जिसे मॉनेडनॉक कहते हैं।
राज्य की अधिकांश चट्टानों का विस्तार पूर्व-पश्चिम दिशा मे है। झारखण्ड में धारवाड़ क्रम की चट्टानों का विकास कोल्हान पहाड़ी क्षेत्र में हुआ है। इन चट्टानों को ‘लौह अयस्क की श्रृंखला’ भी कहा जाता है।
भौतिक विभाग (Physical Division)
- छोटानागपुर पठार
- भारत के प्रायद्वीपीय पठार का उत्तर-पूर्वी भाग है।
- विस्तार – उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा छत्तीसगढ़ राज्य की सीमाओं तक
- औसत ऊँचाई – 700 मीटर
- निर्माण – लावा के जमाव से
इस पठार के चार भाग हैं, जो इस प्रकार हैं
- पाट का पठार
- राँची का पठार
- निचला छोटानागपुर पठार
- राजमहल उच्चभूमि और अपरदित मैदानी भू-भाग
झारखण्ड में भूमिगत जल की मात्रा अत्यंत कम होने का कारण
- आर्कियनकालीन चट्टानों की अधिकता,
- मृदा की छिद्रता में कमी
- पठारी ढाल के कारण जल के अंतः स्पंदन की दर कम
छोटानागपुर का पठार
- राँची का पठार, हजारीबाग का पठार, कोडरमा का पठार, बोनाई का पठार और क्योंझर का पठार इत्यादि प्रसिद्ध पठार हैं।
1. पाट क्षेत्र (पश्चिमी पठार)
- पाट का अर्थ – समतल जमीन
- झारखंड का सबसे पश्चिमी एवं सबसे ऊँचाई वाला भाग पाट प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
- पाट के पठार में नेतरहाट और बागड़ आदि क्षेत्र हैं
- विस्तार – राँची के उत्तर पश्चिमी हिस्से से लेकर पलामू जिले के दक्षिणी हिस्से तक
- पलामू, गढ़वा, लोहरदगा तथा उत्तरी गुमला
- आकृति – त्रिभुजाकार
- औसत ऊँचाई – 900 मीटर (2500-3000 फीट)
- पाट ऊपरी भाग – टांड़
- पाट निचला भाग – दोन
- नेतरहाट सबसे ऊँचा क्षेत्र है, जिसकी ऊँचाई 3514 फीट (1071 मीटर) है।
झारखण्ड के तीन सबसे ऊँचे पाट हैं।
- नेतरहाट पाट (1,180 मी./3,871 फीट)
- गणेशपुर पाट (1,171 मी)
- जनीरा पाट (1,142 मी )
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पाट क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ/मैदान
- सानु एव सारऊ पहाड़ी
- बारवे का मैदान
राँची तथा हजारीबाग का पठार
- पाट प्रदेश के पूर्व में (औसत ऊँचाई 2000 फीट) दो पठार पाए जाते हैं
(क) राँची का पठार
(ख) हजारीबाग का पठार
- दोनों पठार दामोदर घाटी द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं।
राँची का पठार
- राँची का पठार झारखण्ड का सबसे बड़ा पठारी भाग है।
- ऊँचाई – 600 मीटर (1970 फीट)
हजारीबाग का पठार
(a) ऊपरी हजारीबाग का पठार
- विस्तार – हजारीबाग
- ऊँचाई – 600 मीटर (1970 फीट)
(b) निचला हजारीबाग का पठार/बाहरी छोटानागपुर का पठार
- यह अत्यंत कठोर पाइरोक्सी ग्रेनाइट से निर्मित है।
- विस्तार – हजारीबाग
- ऊँचाई – 450 मीटर (1476 फीट)
- इसे बाह्य पठार भी कहा जाता है।
- झारखण्ड में सबसे कम ऊँचाई वाला पठारी क्षेत्र है।
- इस क्षेत्र में पारसनाथ की पहाड़ी स्थित है।
राजमहल की पहाड़ियाँ
- विस्तार – संथाल परगना में (दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़ एवं साहेबगंज)
- ऊँचाई – 500-1000 फीट/ 150-300 मीटर
- लावा से निर्मित क्षेत्र है।
- टोंगरी – नुकीली पहाड़ियों का स्थानीय नाम
- डोंगरी – गुम्बदनुमा पहाड़ियों का स्थानीय नाम
- इसके दक्षिण में अजय नदी घाटी मौजूद है।
चाईबासा का मैदान
- यह उत्तर में दालमा, पूरब में ढालभूम, पश्चिम में सारंडा पश्चिमोत्तर में पोरहाट की पहाड़ी और दक्षिण में कोल्हान श्रेणी से घिरा है।
- ऊँचाई – लगभग 500 फीट