बिहार में सिंचाई व्यवस्था

बिहार में जल प्रबंधन और सिंचाई 

  • बिहार के शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 96 प्रतिशत भाग सिंचित है । 
  • बिहार के उन सभी भागों में जहाँ औसत सालाना वर्षा 1200 मिली मीटर से कम है, सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है । उत्तरी बिहार की पूरे वर्ष प्रवाहित होने वाली नदियों के क्षेत्र में सिंचाई के लिए आवश्यक जल हमेशा उपलब्ध रहता है । लेकिन बिहार के दक्षिणी मैदान को, अपेक्षाकृत कम तथा साल के अधिकांश महीनों में लगभग सूखी रहने वाली नदियों के कारण, सिंचाई की अधिक जरूरत है । 
  •  बिहार के 28 जिले बाढ़ पीड़ित हैं । यह सभी जिले मुख्य तौर पर गंगा के उत्तरी मैदान में पड़ते हैं।
  • शेष बिहार के 3-4 जिलों के कुछ हिस्से साल-दो साल पर सूखे से पीड़ित हो जाते हैं; जैसे – औरंगाबाद, गया, नवादा इत्यादि । 

बिहार में सिंचाई 

  • ‘भारत-2016’ के अनुसार बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 35.36 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 28.73 लाख हेक्टेयर वृहत् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं द्वारा तथा 6.63 लाख हेक्टेयर लघु सिंचाई योजनाओं द्वारा सींची जा सकती है। 
  • बिहार में नहर, तालाब, नलकूप और कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है। सिंचाई के साधनों में नहर और नलकूपों का महत्वपूर्ण स्थान है । कुओं और तालाबों से अल्प क्षेत्र ही सिंचित किया जाता है । 
  • बिहार राज्य में नहरें सिंचाई का मुख्य साधन हैं। यहाँ की कुल सिंचित भूमि का लगभग 37 प्रतिशत से अधिक भाग नहरों से सींचा जाता है।

सिंचाई क्षमता सृजन संबंधी प्रमुख योजनाएँ 

  • जमानिया पम्प नहर योजना 
  • कचनामा वीयर योजना
  • मोर वीयर योजना 
  • सोलहंडा वीयर योजना 
  • दुर्गावती जलाशय योजना 
  • दरधा नदी पर लवाइच रामपुर गाँव के समीप बराज निर्माण 
  • बिहार में सिंचाई का सर्वप्रमुख साधन नहरें हैं, जो सदा प्रवाही नदियों के क्षेत्रों में, जहाँ जमीन की ढाल मंद है, विशेष रूप से प्रयोग में लायी जाती है । जिन क्षेत्रों में मौसमी नदियाँ प्रवाहित होती हैं, वहाँ बरसाती नहर का निर्माण कर सिंचाई की जाती है । 
  • सिंचाई का दूसरा साधन कुआँ है । 
  • बिहार में विद्युत् चालित पंप का सर्वप्रथम उपयोग 1945-46 में डेहरी – सासाराम क्षेत्र में किया गया था। पुनः 1946 में बिहारशरीफ तथा बिहटा के इलाके में विद्युत् चालित पंपों से सिंचाई आरंभ की गयी। 
  • बिहार में दो प्रकार की नहरें हैं :
    • 1. नित्यवाही या सदावाही नहरें और
    • 2. अनित्यवाही नहरें ।
  • नित्यवाही या सदावाही नहरें 
    • ये वे नहरें हैं जो वर्षपर्यंत जल से परिपूर्ण रहती हैं । 
    • इन नहरों का उद्गम या तो सततवाहिनी नदियों से अथवा बाँधों पर निर्मित कृत्रिम जलाशयों से होता है। उत्तरी बिहार की अधिकांश नहरें इसी प्रकार की हैं । 
  • अनित्यवाही नहरें 
    •  ये मौसमी नहरें हैं जो सीधी नदियों से निकाली गयी हैं। वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ के अतिरिक्त जल से ये नहरें प्रवाहित होती हैं । 
    • बिहार में अनित्यवाही नहरों की अपेक्षा नित्यवाही नहरें अधिक उपयोगी हैं, क्योंकि जब सिंचाई की आवश्यकता महसूस होती है इनके जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है। ऐसी नहरें परिवहन की दृष्टि से भी उपयोगी हैं। 
  • बिहार की कुछ सिंचित भूमि का 73 प्रतिशत दक्षिणी मैदान में तथा लगभग 24 प्रतिशत उत्तरी मैदान में नहरों द्वारा सिंचित होता है । 
  • पूर्वी सोन नहर – सोन नदी 
  • पश्चिमी सोन नहर – सोन नदी 
  • त्रिवेणी नहर – गंडक नदी 
  • कमला नहर – कमला नदी 
  • पूर्वी कोसी नहर – कोसी नदी 
  • पश्चिमी कोसी नहर – कोसी नदी 
  • तिरहुत नहर – गंडक नदी 
  • तेऊर नहर – गंडक नदी 
  • सकरी नदी – सकरी नदी 
  • बदुआ जलाशय 
    • इसकी स्थापना सन् 1965 में बदुआ नदी पर हुई । यह भागलपुर जिले में स्थित है । 
  • चन्दन जलाशय 
    • इसकी स्थापना सन् 1972 में चन्दन नदी पर हुई । यह भागलपुर जिले में स्थित है । दुर्गावती जलाशय 
    • 20 अगस्त 1975 को योजना आयोग ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी। जून 1976 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम ने 25.3 करोड़ की इस योजना का शिलान्यास किया था । 
    • 627 वर्ग किमी जल ग्रहण क्षेत्र की इस योजना के बांध की ऊँचाई 46.3 मीटर व लंबाई 1615.40 मीटर है। नहरों की लंबाई 102 किमी है। इससे 33,467 हेक्टेयर जमीन को पानी मिलेगा । 
    • वर्तमान में परियोजना की कुल लागत 1 हजार 64.20 करोड़ रुपये है। 
    • रोहतास और कैमूर जिले के लिए अति महत्वाकांक्षी दुर्गावती जलाशय परियोजना का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने 15 अक्टूबर 2014 को किया । 
    • दुर्गावती नदी पर स्थापित इस परियोजना से दोनों जिलों को 386 गांवों को सिंचाई का पानी मिलेगा । 
    • इसकी जल भंडारण क्षमता 287.7 करोड़ क्यूबिक मीटर ( घन मीटर ) है ।  इसके दायीं नहर ( रोहतास की ओर ) की लंबाई 22.60 किमी तथा बायीं नहर ( कैमूर की ओर) की लंबाई 34.08 किलोमीटर है । 
  • तालाब 
    • बिहार में सिंचाई के लिए तालाब का उपयोग लगभग सभी जिलों में किया जाता है । 
    • प्राचीन समय से ही गड्ढेनुमा प्राकृतिक धरातल तथा कृत्रिम तालाब या पोखर को खोदकर जल एकत्रित कर बिहार में सिंचाई की जाती रही है । 
    • उत्तर बिहार के मैदान में तालाब द्वारा सिंचित जिलों में गोपालगंज जिला का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । 
  • कुआँ 
    • बिहार प्राचीन समय से कुआँ द्वारा सिंचाई करता रहा है । यहाँ के मैदानी भाग की मुलायम मिट्टी वाली भूमि में कुओं की खुदाई आसानी से हो जाती है । 
    • गंगा के मैदान में भूमिगत जल का स्तर भी पर्याप्त ऊँचा है । यहाँ कई स्थानों पर केवल 7 फीट (लगभग) की गहराई तक जमीन को खोदने पर ही पानी का स्रोत निकल आता है | बिहार में कच्चे तथा पक्के दोनों प्रकार के कुओं से सिंचाई की जाती है । नलकूपों को छोड़कर कुआँ से की जाने वाली सिंचाई में लट्ठाकुंडी या रहट का प्रयोग किया जाता है । संपूर्ण बिहार में कुआँ से सर्वाधिक सिंचाई सारण, सीवान तथा गोपालगंज जिलों में की जाती है, हालाँकि बिहार के अन्य जिलों में भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है । 
  • नलकूप 
    • बिहार में नलकूप 15 से 100 मीटर तक या इससे भी अधिक गहरे होते हैं।