Gravitation

गुरुत्वाकर्षण(Gravitation)

 

केप्लर के नियम (Kepler’s Law)

  • केप्लर ने सूर्य के चारों ओर गति करने वाले ग्रहों के लिये तीन नियम दिये 

प्रथम नियमः कक्षाओं का नियम (Law of Orbits) 

  • सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा (Elliptical Orbit) में परिक्रमण करते हैं तथा कक्षाओं के एक फोकस पर सूर्य स्थित होता है।

द्वितीय नियमः क्षेत्रफलीय चाल का नियम (Law of Areal Speed)

  • किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समय में समान क्षेत्रफल तय करती है अर्थात् ग्रह की क्षेत्रफलीय चाल (Areal Speed) नियत रहती है।
  • केप्लर का द्वितीय नियम ‘कोणीय संवेग संरक्षण नियम’ पर आधारित है। 

 

तृतीय नियमः परिक्रमण कालों का नियम (Law of Periods)

  • किसी भी ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल का वर्ग ग्रह की दीर्घवृत्ताकार कक्षा के अर्द्ध दीर्घ अक्ष (Semi Major Axis) के तृतीय घात के समानुपाती होता है।

T2   α  r3

  • जो ग्रह सूर्य से जितनी अधिक दूरी पर होगा, उसका परिक्रमण काल उतना ही अधिक होगा। अतः जो सूर्य के जितना समीप होगा, उसका परिक्रमण काल उतना ही कम होगा।

 

गुरुत्व केंद्र (Center of Gravity) 

  • center of gravity is the place in a system or body where the entire weight of the object acts and all sides are in balance. 
  •  गुरुत्व केंद्र वह बिंदु है, जहाँ से वस्तु का संपूर्ण भार कार्य करता है अर्थात् इस बिंदु पर ठीक इतने ही परिमाण का बल ऊपर की ओर लगाएं तो वह वस्तु संतुलन की अवस्था में रहेगी। 
  • किसी वस्तु के गुरुत्वीय केंद्र के परितः कुल गुरुत्वीय बल आघूर्ण शून्य होता है।(The total moment of gravity about an object’s center of gravity is zero.)
  •  कोई भी वस्तु तब तक स्थिर रहती है जब तक गुरुत्व केंद्र से जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा उसके तल से होकर गुजरती है। इसका एक अच्छा उदाहरण पीसा की झुकी हुई मीनार है। अभी तक इसके न गिरने का कारण इसके गुरुत्व केंद्र से होकर जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा का मीनार के तल के अंदर होना है। मीनार के और अधिक झुकने पर गुरुत्व केंद्र से होकर जाने वाली रेखा मीनार के तल के बाहर हो जाएगी और तब यह गिर पड़ेगी। 

 

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Newton’s Law of Gravitation)

  • सर्वप्रथम न्यूटन ने 1686 में यह बताया कि ब्रह्मांड में स्थित प्रत्येक पिंड दूसरे पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है। 
  • दो पिंडों के बीच स्थित आकर्षण बल की इसी विशेषता का अनुकरण करती हुई पृथ्वी किसी पिंड या वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है जिसे गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) कहते हैं। 
  • हालाँकि प्राचीन भारत के गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने न्यूटन से पूर्व ही बता दिया था कि सभी वस्तुएँ पृथ्वी की ओर गुरुत्वाकर्षित होती हैं। परंतु न्यूटन ने गणितीय विधि से गुरुत्वाकर्षण के नियम को सिद्ध किया।
  • न्यूटन के अनुसार, “किन्हीं दो कणों के बीच लगने वाला आकर्षण बल, उन कणों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

  • उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि यदि पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वास्तविक स्थिति से दोगुनी होती तो सूर्य द्वारा पृथ्वी पर लगाया गया गुरुत्वाकर्षण बल वर्तमान का चौथा भाग होता। 

सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Gravitational Constant)

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार

  • गुरुत्वाकर्षण नियतांक उस आकर्षण बल के बराबर होता है, जो एक-दूसरे से एकांक दूरी पर रखे एकांक द्रव्यमान वाले दो कणों के बीच कार्य करता है।

 

पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण (Acceleration due to Gravity of Earth)

  • यदि कोई वस्तु मुक्त रूप से पृथ्वी की ओर गिर रही हो तो वस्तु के वेग में 1 सेकेंड में होने वाली वृद्धि पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण (g) कहलाती है। 
  • माना कि पृथ्वी का द्रव्यमान Me तथा पृथ्वी की त्रिज्या Re हो तथा एक वस्तु जिसका द्रव्यमान m है, पृथ्वी तल से कुछ ऊँचाई पर स्थित है तो 

पृथ्वी द्वारा वस्तु पर लगाया गया आकर्षण बल

     

  • उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि गुरुत्वीय त्वरण का मान किसी वस्तु के भार पर निर्भर नहीं करता है। 
  • अतः यदि समान ऊँचाई से अलग-अलग भार के पिंड गिराए जाएंगे तो वे समान त्वरण से नीचे गिरने के कारण एक साथ पृथ्वी पर पहुँचेंगे (वायुमंडल का घर्षण नगण्य मानते हुए)। 
  • वायु की उपस्थिति में भारी पिंड पृथ्वी पर पहले पहुँचेगा। 
  • यदि लकड़ी, लोहे व मोम के समान आकार के टुकड़ों को समान ऊँचाई से पृथ्वी पर गिराया जाता है तो आदर्श परिस्थितियों में सभी टुकड़े एक साथ पृथ्वी की सतह पर पहुँचेंगे क्योंकि सभी पर एक समान गुरुत्वीय त्वरण कार्य करता है। 
  • बॉल पेन गुरुत्वीय बल के सिद्धांत पर काम करता है। बॉल पेन में अपेक्षाकृत अधिक श्यानता वाली अर्थात् गाढ़ी स्याही भरी होती है। यह स्याही एक छोटे से बॉल (गेंद) के द्वारा धीरे-धीरे छोड़ी जाती है। जब लिखने के लिये पेन को कागज़ पर घुमाया जाता है तब यह बॉल कागज़ के घर्षण से घूमती है तथा गुरुत्वीय बल के कारण स्याही बॉल से होती हुई कागज़ पर आ जाती है। 
  • पृथ्वी के गुरुत्वीय बल के प्रभाव में वस्तुओं की गति 
  • चक्कर लगा रहे अंतरिक्ष यान से यदि एक सेब छोड़ा जाता है तो वह अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण के अभाव में, अंतरिक्ष यान के साथ-साथ उसी गति से गतिमान रहेगा। 
  • पैराशूट धीरे-धीरे नीचे आता है जबकि ऊँचाई से फेंका गया पत्थर तेजी से गिरता है. क्योंकि पैराशट के पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण उस पर लगने वाला वायु का प्रतिरोध अधिक होता है जबकि पत्थर के पृष्ठ का क्षेत्रफल कम होने के कारण वह अधिक तेजी से नीचे गिरता है।

द्रव्यमान (Mass)

  • किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप होता है। 
  • अतः किसी वस्तु का जड़त्व उतना ही होगा, जितना उसका द्रव्यमान।
  • वस्तु का द्रव्यमान स्थिर रहता है तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं बदलता, वस्तु चाहे पृथ्वी पर हो या चंद्रमा पर या बाह्य अंतरिक्ष में।

भार (Weight)

  • किसी वस्तु का भार वह बल है जिससे यह पृथ्वी की ओर आकर्षित होती है।
  • पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण g है, अतः आकर्षण बल F= mg होगा। इसे W से निरूपित करते हैं। 
    • अतः W = Mg
  • भार का SI मात्रक वही है, जो बल का है अर्थात् न्यूटन
  • भार उर्ध्वाधर दिशा में नीचे की ओर लगता है। इसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं। स्पष्ट है कि वस्तु का भार उसके द्रव्यमान तथा गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भर करता है, अन्य किसी राशि पर नहीं।

किसी वस्तु का चंद्रमा पर भार 

  • चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार वह बल है, जिससे चंद्रमा उस वस्तु को आकर्षित करता है। 
  • चंद्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी से कम है। इस कारण चंद्रमा वस्तुओं पर कम आकर्षण बल लगाता है। 
  • चंद्रमा का गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी की तुलना में 1/6 है। अतः पृथ्वी पर किसी वस्तु का भार जितना होगा, चंद्रमा पर उसका 1/6 होगा। 

पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण के मान में परिवर्तन 

  • g का प्रामाणिक मान 9.8 मीटर/सेकेंड2 होता है। यह मान समुद्र तल तथा 45° अक्षांश पर होता है। 
  • g के मान में कुछ परिवर्तन होते रहते हैं, जो निम्नलिखित हैं
  • पृथ्वी तल पर g का मान भूमध्य रेखा पर सबसे कम तथा ध्रुवों पर सबसे अधिक होता है। 

इसके दो कारण होते हैं

1. पृथ्वी की आकृति (Shape of Earth): 

  • पृथ्वी पूरी तरह से गोल नहीं है, ध्रुवों पर यह कुछ चपटी है। भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की त्रिज्या ध्रुवों की त्रिज्या से लगभग 21 किलोमीटर अधिक है। 
  • चूंकि g पृथ्वी की त्रिज्या के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। 
  • अतः स्पष्ट है कि Re (पृथ्वी की त्रिज्या) का मान जैसे-जैसे कम होता जाता है (भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर) गुरुत्वीय त्वरण का मान बढ़ता जाता है।

 2. पृथ्वी का अपने अक्ष के परितः  घूमना 

  • हमें ज्ञात है कि पृथ्वी अपने अक्ष के परितः(about the axis) घूम रही है। अतः पृथ्वी तल पर स्थित प्रत्येक वस्तु वृत्तीय पथ पर घूम रही है। 
  • यदि पृथ्वी कोणीय वेग से घूम रही हो तो g के मान में परिवर्तन 

g’ = g-Re2cos2                                 

        

  • जहाँ पृथ्वी के केंद्र पर विषुवत रेखा और पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदु(p) व पृथ्वी के केंद्र(o) को मिलाने वाली रेखा के मध्य कोण है। 
  • स्पष्ट है कि g’ <g अर्थात् पृथ्वी के घूर्णन के कारण g के मान में कमी आती है। 
  • (a) भूमध्य रेखा परः भूमध्य रेखा पर g का मान न्यूनतम होता है। 
  • (b) ध्रुवों परः अतः ध्रुवों पर g का मान अधिकतम होता है।
  • यदि. पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमना बंद कर दे ( = 0) तो ध्रुवों के अतिरिक्त प्रत्येक स्थान पर g के मान में वृद्धि हो जाएगी और यह वृद्धि विषुवत् रेखा पर सर्वाधिक तथा ध्रुवों की ओर कम होती जाएगी। 
  • यदि पृथ्वी अपने अक्ष के परितः और तेज़ी से घूमना प्रारंभ कर दे (पृथ्वी का कोणीय वेग बढ़ जाए) तो g का मान घट जाएगा। 
  • यदि पृथ्वी वर्तमान से 17 गुना अधिक तेज़ी से घूमने लग जाए तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य प्रतीत होने लगेगा। 

 

  • पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर g का मान घटता है 
  •  माना m द्रव्यमान के पिंड को पृथ्वी से h ऊँचाई ऊपर उठाया जाता है। पृथ्वी का द्रव्यमान Me तथा त्रिज्या Re है तो h ऊँचाई पर गुरुत्वीय त्वरण g’ का मान g से कम होगा। 
  • पृथ्वी की त्रिज्या के बराबर (लगभग 6400 किमी) ऊँचाई पर स्थित किसी पिंड के लिये g का मान पृथ्वी तल पर g के मान का एक-चौथाई होगा। 

 

  • पृथ्वी तल से नीचे जाने पर g का मान घटता है
  • माना m द्रव्यमान का एक पिंड पृथ्वी तल से h दूरी नीचे की ओर स्थित है। अतः पृथ्वी के केंद्र O से यह दूरी (Re – h) होगी। यहाँ पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी तल पर g के मान से कम होगा।
  • यदि विशेष परिस्थितियों में गुरुत्व बल या गुरुत्वीय त्वरण g शून्य महसूस होने लगे, जैसे गुरुत्वाकर्षण के अधीन मुक्त रूप से गिरने पर या लिफ्ट की डोरी टूट जाने पर गिरती हुई लिफ्ट में, उस समय वस्तु का भार भी शून्य महसूस होगा अर्थात् वस्तु भारहीनता की अवस्था में होगी। 

 

  • लिफ्ट में किसी वस्तु का आभासी भार (Apparent Weight of any Body in Lift) 
  • हम यह जानते हैं कि अपने जिस भार का अनुभव हम करते हैं वह एक प्रतिक्रिया बल है जो हमारे ऊपर आरोपित होता है। 
  • लिफ्ट में गति के दौरान भार में जो अभासी परिवर्तन होता है वह इसी प्रतिक्रिया बल में परिवर्तन की वजह से होता है।

  • यदि लिफ्ट a त्वरण से ऊपर की ओर जाती है तो किसी वस्तु का आभासी भार अपने वास्तविक भार से अधिक प्रतीत होगा, क्योंकि प्रतिक्रिया बल बढ़ जाएगा।

w’ = m(g + a) 

  • यदि लिफ्ट a त्वरण से नीचे की ओर जाती है तो किसी वस्तु का आभासी भार अपने वास्तविक भार से कम प्रतीत होगा।

w’ = m(g-a) 

  • जब लिफ्ट एक समान वेग (शून्य त्वरण) से ऊपर या नीचे जाए तो वस्तु को अपना आभासी भार अपने वास्तविक भार के समान ही प्रतीत होगा। 
  • यदि नीचे आते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए या कोई वस्तु मुक्त त्वरण (Free Fall) से गति करे तो वस्तु को अपना आभासी भार शून्य प्रतीत होगा, क्योंकि प्रतिक्रिया का बल शून्य हो जाएगा। 
  • यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट g से अधिक त्वरण से गति करे तो (लिफ्ट में बैठे व्यक्ति पर) आभासी बल ऊपर की ओर लगेगा और व्यक्ति लिफ्ट की छत पर जा लगेगा।

 

उपग्रह (Satellite): 

  • वे आकाशीय पिंड, जो ग्रहों के चारों ओर परिक्रमण करते हैं, उपग्रह कहलाते हैं। भू-उपग्रह
  • भू-उपग्रह वे पिंड हैं, जो पृथ्वी के परितः परिक्रमण करते हैं। 
  • इनकी गतियाँ ग्रहों की सूर्य के परितः गतियों के बहुत समान होती हैं। अतः केपलर के ग्रहीय गति नियम इन पर भी समान रूप से लागू होते हैं। इन उपग्रहों की पृथ्वी के परितः कक्षाएँ वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार होती हैं।
  • पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर रहा कृत्रिम उपग्रह इसलिये पृथ्वी पर नीचे नहीं गिरता क्योंकि पृथ्वी का आकर्षण बल कृत्रिम उपग्रह की गति के लिये आवश्यक त्वरण प्रदान करता है। 
  • विदित है कि पृथ्वी के  चारों ओर परिक्रमा करते हुए कृत्रिम उपग्रह पर दो प्रकार के बल कार्य करते हैं। एक है- केंद्रीय बल या गुरुत्वाकर्षण बल तथा दूसरा है प्रक्षोभ बल जिसके अंतर्गत वायुमंडली कर्षण, पृथ्वी की गोलाई में त्रुटि, चंद्र एवं सौर के गुरुत्वाकर्षण, खिंचाव, सौर विकिरण, दाब आदि से उत्पन्न बल आते, हैं। 
  • पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है, जिसकी कक्षा लगभग वृत्ताकार है। विभिन्न वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी अनप्रयोगों के लिये मानव निर्मित भू-उपग्रहों को कक्षाओं में प्रमोचित किया गया है। 
  • मानव निर्मित भू-उपग्रह कक्षाओं की स्थिति के अनुसार मुख्यतः दो प्रकार के हैं

भू-तुल्यकालिक उपग्रह (Geosynchronous Satellite)

  • यदि किसी कृत्रिम उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई इतनी हो कि उसका परिक्रमण काल, पृथ्वी की अक्षीय गति के आवर्तकाल (24 घंटा ) के बराबर हो तो ऐसे उपग्रह को ‘भू-तुल्यकालिक उपग्रह’ कहते हैं।
  • भ-तुल्यकालिक उपग्रह को जब पृथ्वी की विषुवत् रेखा के तल में स्थापित किया जाता है तो यह पृथ्वी के किसी बिंदु से स्थिर प्रतीत होता है। ऐसे उपग्रह को ‘भू-स्थिर’ (Geostationary Satellite) कहते हैं।
  • भू-तुल्यकालिक उपग्रह और भू-स्थिर उपग्रह में अंतर यह है कि भू-स्थिर को पृथ्वी की विषुवत् रेखा के तल में, जबकि भू-तुल्यकालिक को किसी अन्य तल में समान ऊँचाई पर स्थापित किया जाता है। 
  • भू-तुल्यकालिक उपग्रह पृथ्वी के किसी बिंदु से किसी नियत समय पर नियत स्थान पर दिखाई पड़ते हैं, जबकि भू-स्थिर उपग्रह पृथ्वी से स्थिर प्रतीत होंगे। 
  • भू-तुल्यकालिक एवं भू-स्थिर कक्षाओं की ऊँचाई लगभग 35,786 कि.मी. होती है। 
  • भारत द्वारा प्रक्षेपित IRNSS (Indian Regional Navigation Satellite System) के 7 उपग्रहों में से 3 भू-स्थिर (IRNSS-1C, 1F, 1G) तथा 4 भू-तुल्यकालिक (IRNSS-1A, 1B, 1D, 1E) हैं।

 

  • भू-तुल्यकालिक उपग्रहों के उपयोग 
  • एक निश्चित आवृत्ति से अधिक आवृत्ति की विद्युत चुंबकीय तरंगें पृथ्वी के आयनमंडल से परावर्तित नहीं होतीं। दूरदर्शन प्रसारण एवं अन्य प्रकार के संचारों में उपयोग होने वाली तरंगों की आवृत्तियाँ अत्यधिक उच्च होती हैं। अतः इन्हें प्रसारण केंद्रों के ऊपर स्थापित तुल्यकालिक उपग्रहों द्वारा पृथ्वी के बड़े क्षेत्र पर प्रसारित किया जाता है। भारत का इनसेट (INSAT) उपग्रह समूह ऐसा ही तुल्यकाली उपग्रह समूह है। 
  • मौसम पूर्वानुमान प्रणाली, नेविगेशन इत्यादि में

 

ध्रुवीय उपग्रह (Polar Satellite)

ध्रुवीय उपग्रहों का प्रयोग

  •  ध्रुवीय उपग्रहों का प्रयोग विषुवतीय एवं ध्रुवीय क्षेत्रों के सर्वेक्षण में सुदूर-संवेदन (Remote Sensing) मौसम विज्ञान, पर्यावरणीय अध्ययनों इत्यादि में किया जाता है।

 

उपग्रहों में भारहीनता (Weightlessness in Satellites)

  • किसी वस्तु के भार का अनुभव वस्तु के संपर्क तल की प्रतिक्रिया के कारण होता है। यदि हम ज़मीन पर खड़े हैं तो हम अपने भार का अनुभव अपने पैरों पर पृथ्वी तल की प्रतिक्रिया (पृथ्वी के गुरुत्व बल के फलस्वरूप) के कारण करते हैं। यदि यह प्रतिक्रिया शून्य हो जाए तो. हमें अपना भार शून्य प्रतीत होगा तथा यह भारहीनता की अवस्था कहलाएगी। 
  • उपग्रह के अंदर प्रत्येक वस्तु भारहीनता की स्थिति में होती है क्योंकि उपग्रह की सतह द्वारा अंतरिक्ष यात्री पर लगाई गई प्रतिक्रिया शून्य होती है। 
  • अंतरिक्ष में गुरुत्व का अभाव होने के कारण ही अंतरिक्ष यात्री निर्वात में सीधे खड़े नहीं रह सकते हैं। 
  • अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा जल के गिलास को टेढ़ा करके नहीं पीया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करते ही गिलास का जल बूंदों के रूप में अंतरिक्ष में तैरने लगेगा। 
  • अंतरिक्ष यात्रियों का भोजन एक ट्यूब में पेस्ट की भाँति भर दिया जाता  है। ट्यूब को सीधे मुँह में दबाकर भोजन ग्रहण कर लिया जाता है।

 

पलायन वेग (Escape Velocity)

  • किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंकने पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण यह पृथ्वी पर वापस लौट आती है। 
  • यदि वेग को बढ़ाते जाएँ तो अंत में एक ऐसा वेग आता है, जिससे फेंकने पर वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर निकल जाती है और पृथ्वी पर वापस नहीं लौटती है।
  • वह न्यूनतम वेग जिससे किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंकने पर वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाती है तथा पृथ्वी पर कभी लौटकर नहीं आती, ‘पलायन वेगकहलाता है।
  • पलायन वेग पिंड के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। 
  • पृथ्वी के लिये पलायन वेग का मान 11.2 किमी./सेकंड है अर्थात् पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 किमी./सेकंड या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापस नहीं आएगी। 
  • नोटः कुछ स्रोतों में ‘पलायन वेग’ के स्थान पर ‘पलायन चाल‘ भी लिखा मिलता है।

 

चंद्रमा पर वायुमंडल की अनुपस्थिति 

  • चंद्रमा की त्रिज्या (लगभग 1.74 x 106 मीटर) तथा चंद्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण (पृथ्वी का लगभग = 16 ) दोनों के ही मान कम हैं। अतः चंद्रमा पर पलायन चाल का मान मात्र 2.38 किमी/सेकेंड ही है। 
  • गैसों के अणुओं का औसत वेग इससे अधिक होने के कारण चंद्रमा पर गैसों के अणु ठहर नहीं पाते हैं। अतः चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं पाया जाता है।