विद्युत् धारा (Current electricity) : किसी चालक में आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं।
धारा निम्न विभव ( low potential) से उच्च विभव (high potential) की ओर प्रवाहित होती है, किन्तु परम्परा के अनुसार हम यह मानते हैं कि धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है ।
अर्थात् धनात्मक आवेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत्-धारा की दिशा मानी जाती है ।
परिमाण एवं दिशा दोनों होने के बावजूद विद्युत्-धारा एकअदिश राशि है, क्योंकि यह जोड़ के त्रिभुज नियम का पालन नहीं करती है ।
प्रायः ठोस चालकों में विद्युत् प्रवाह इलेक्ट्रॉनों द्वारा और द्रवों में आयन तथा इलेक्ट्रॉन दोनों से ही होता है । अर्द्धचालकों में विद्युत् प्रवाह इलेक्ट्रॉन तथा होल (Hole) द्वारा होता है ।
यदि किसी परिपथ में धारा का प्रवाह सदैव एक ही दिशा में होता रहता है, तो हम इसे दिष्ट धारा (Direct Current – DC) कहते हैं
यदि धारा का प्रवाह एकांतर क्रम में समानान्तर रूप से आगे और पीछे होता हो, तो ऐसी धारा प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current- AC) कहलाती है।
विद्युत् धारा का मात्रक : एम्पीयर (Ampere – A )
यदि किसी चालक तार में 1 एम्पियर (A) की विद्युत् धारा प्रवाहित हो रही है, तो इसका अर्थ है कि उस तार में प्रति सेकण्ड 6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन एक सिरे से प्रविष्ट होते हैं तथा इतने ही इलेक्ट्रॉन प्रति सेकण्ड दूसरे सिरे से बाहर निकल जाते हैं ।
विद्युत् परिपथ में धारा का लगातार प्रवाह प्राप्त करने के लिए विद्युत् वाहक बल (electro motive force-e.m.f.) की आवश्यकता होती है, इसे विद्युत् सेल (Cell) या जनित्र (Generator) द्वारा प्राप्त किया जाता है ।