- आदिवासी शब्द का अर्थ ‘आदिकाल से रहने वाले लोग‘ है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत् भारत के राष्ट्रपति द्वारा जनजातियों को अधिसूचित किया जाता है।
- झारखंड में मान्यता प्राप्त जनजातियो की संख्या – 32
- आदिम जनजाति – 08
- अनुसूचित जनजाति – 24
- सांस्कृतिक आधार पर झारखण्ड की जनजातियों का वर्गीकरण ललित प्रसाद विद्यार्थी ने किया है।
- 1872 की पहली जनगणना में 18 जनजातियों को सूचीबद्ध किया गया था
- कोरा जनजाति को 1931 की जनगणना में शामिल किया गया
- झारखण्ड में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजातियाँ
- झारखण्ड में जनजाति का आगमन
- जार्ज ग्रियर्सन (भाषा वैज्ञानिक) ने झारखण्ड की जनजातियों को दो समूहों में विभाजित किया है।
- ऑस्ट्रिक
- द्रविड़
- झारखंड की भाषाओं एवं बोलियों को तीन वर्गों में बांटा जाता है
- (a) भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भाषा परिवार
- हिन्दी, खोरठा, पंचपरगनिया, करमाली. नागपुरी आदि।
- (b) द्रविड़ (द्रविडियन) भाषा परिवार
- कुडुख (उराँव), माल्तो (सौरिया पहाड़िया व माल पहाड़िया) आदि।
- (c) मुण्डा (आस्ट्रिक/आस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा परिवार
- मुण्डा, संथाली, मुण्डारी, हो, खड़िया आदि।
- (a) भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भाषा परिवार
- झारखण्ड में जनजातियों की कुल संख्या (2011 की जनगणना के अनुसार)
- 86,45,042 (राज्य की कुल जनसंख्या का 26.2% )
- झारखण्ड में आदिम जनजातियों की कुल संख्या – 1,92,425 (0.72%)
- जनजातियों में गोत्र के अन्य नाम
- गोत्र को किली, कुंदा, पारी आदि नामों से जाना जाता है।
- प्रत्येक गोत्र का एक प्रतीक/गोत्रचिह्न होता है, जिसे टोटम कहा जाता है।
- पहाड़िया जनजाति में गोत्र की व्यवस्था नहीं पायी जाती है।
- विवाह पूर्व सगाई की रस्म केवल बंजारा जनजाति में ही प्रचलित है।
- जनजातियों में वैवाहिक रस्म-रिवाज में सिंदूर लगाने की प्रथा है।
- केवल खोंड जनजाति में जयमाला की प्रथा प्रचलित है।
- जनजातियों के पुजारी को – पाहन, देउरी, नाये आदि कहा जाता है।
- झारखण्ड की जनजातियों में सामान्यतः बाल विवाह की प्रथा नहीं पायी जाती है।
झारखण्ड की जनजातियों में प्रचलित प्रमुख विवाह प्रकार
1. क्रय विवाह
- वर पक्ष के द्वारा वधु के माता-पिता/अभिभावक को धन दिया जाता है।
- संथाल जनजाति में इस विवाह को ‘सादाई बापला‘ कहा जाता है।
- खड़िया जनजाति में ‘असली विवाह’ कहा जाता है।
- बिरहोर जनजाति में ‘सदर बापला‘ कहा जाता है।
- मुण्डा जनजाति में इस विवाह के दौरान दिए जाने वाले वधु मूल्य को ‘कुरी गोनोंग‘ कहते हैं।
2. सेवा विवाह
- वर द्वारा विवाह से पूर्व अपने सास-ससुर की सेवा की जाती है।
- संथाल जनजाति में ‘जावाय बापला‘ कहा जाता है।
- बिरहोर जनजाति में ‘किरींग जवाई बापला‘ कहा जाता है।
3. विनिमय विवाह
- इस विवाह को गोलट विवाह या अदला-बदली विवाह भी कहा जाता है।
- एक परिवार के लड़के तथा लड़की का विवाह दूसरे परिवार की लड़की तथा लड़के के साथ की जाती है।
- संथाल जनजाति में ‘गोलाइटी बापला‘ कहा जाता है।
- बिरहोर जनजाति में ‘गोलहट बापला‘ कहा जाता है।
4. हठ विवाह
- लड़की जबरदस्ती अपने होने वाले पति के घर में आकर रहती है।
- हो जनजाति में इस विवाह को ‘अनादर विवाह‘ कहा जाता है।
- बिरहोर जनजाति में ‘बोलो बापला‘ कहा जाता है।
5. हरण विवाह
- किसी लड़के द्वारा एक लड़की का अपहरण करके विवाह
- सौरिया पहाड़िया में इस विवाह का प्रचलन सर्वाधिक है।
6. सह-पलायन विवाह
- माता-पिता की अनुमति के बिना एक लड़का व लड़की भाग कर विवाह
7. विधवा विवाह
- विधवा लड़की का विवाह किया जाता है।
- झारखण्ड की जनजातियों में पायी जाने वाली कुछ प्रमुख संस्थाएँ
- जनजातीय समाज प्रायः मांसाहारी होते हैं।
- अपवाद – ताना भगत तथा साफाहोड़ (सिंगबोंगा के प्रति निष्ठा रखने वाले) समूहों को छोड़कर
- जनजातियों का प्राचीन धर्म – सरना (प्रकृति पूजा)
- जनजातियों के पर्व-त्योहार सामान्यतः कृषि एवं प्रकृति से संबद्ध होते हैं।
- हाट – वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री का स्थान
झारखण्ड की जनजातियाँ
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8 आदिम जनजाति |
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NOTE :
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सिंधी भाषा मुण्डा भाषा परिवार से संबंधित भाषा है।
सदान
- झारखण्ड के गैर-जनजातीय मूल निवासि
- भाषा – खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया, करमाली आदि
सरना
- झारखण्ड का मूल धर्म – सरना धर्म
- आदिवासियों के पूजा स्थल – सरना स्थल या जाहेर थान
- सरना स्थल में साल वृक्षों के झुंड होते हैं।
- आदिवासियों का प्रमुख देवता – बोंगा