2. गरांगिआ
गरागिआ अना गअ गितकार, सामाज सुधारक, बेसनब मतकर परचारक आर राजकुमार हेकल। एखराके कुड़मालि भासा साहितेक जुग बाखरांइ भकति बेराक कबिक पांइते राखल गेल आहेइक। एखराके गरांगिआ किमबा गउरांग सिंगअ कहथिक । मेनतुक, एकर आसल नाम गउर सिंग हेकलेइक । एखरा बेसनब मत कर भकति धाराक कबि 1 हेकल । एखराक जनम एखनेक बांगाल राइजेक झालदा थानाक भितर बाघमुडिक राज-परिबारे हेल रहल। एखराक जनम
एखरा छुटुक बेरा लिहिं बेसनब मतके मानअइआ हेकल, तेंइ छुटुक बेरा लिहिं एखरा साधु बाबाक बात-चिते परभाबित हेइ गेल आर रसे रसे साधुक बातें एकर मनके डलाइते रहइतेलेइक । जेसे – जेसे एकर उमअइर बाढ़े तेसे एंइ बेसनब मत कर धारक बनतेइ लागल, तेसे गेलाइ । एबार एंड एहे गित – बाजनाइ माताइ गेलाइ । एहे देखि एकर बापे एकर बिहा देइ देलेइक । सेइ बेरांइ एक राज- परिबारेक नाता दसर राज- परिबारेक संगे रहबेइ कर तेलेइक । एहे रकम एकर सादु बिनंद सिंग हेल । एबार सिललि आना-जाना छाड़ेक आधेक हेउए लागल । एहउ तअ कुड़मालि गितेक रसिक रहलाइए । एकर टाने आरअ गरागिआउ टानाइ लागल। एक गित रचअइआ, तअ दसर सुर देउअइआ । तेंइ गरांगिआइ बेजांइ गित गाइ गाइ निजेक परजाके सुख-दुखे रिझाइतेलेइक ।
दुइअ एखरा चेतइनअ माहापरभुक किसनअ पेरेमे माताल रहल। तखन उ बेरांइ एखरा एक सुरे किसनअ भकतिक गित कुड़मालि माहान छलकाइ लागला । एखरानि किसनक पेरेम लिला, रास लिलाक बाखान ‘ पालाबंदि’ छंदे चिसे लागला । संगे संगे कलंख भजन, दसमदसा, दुति संबाद, दधि संबाद, बांसि पाड़ा आरअ नाना रकमेक गित रचना करे लागल |
खालि एतनाइ नाइ, एखराक गितें दरसन आर रहइस करअ धारा पाउआइक । एखरा खालि कुड़मालि भासाइ निहिं जानइ तेलथिन आरअ बांगला, मुंडारि, हिंदि माहानुहु माहिर रहलथिन । एंइ कुड़मालि कबिक संगे संगे बाजांदार आर नाचइआउ हेकल । एकर झुमइर गितेक बिसइ राधा किसनक लिला कर बाखान करा हेकेइक । एखनेक झुमरिआंइ एखराके झुमरिक कबि आर झुमरिक आग डहरुआ मानिके चलथिन । झुमरिक सुर एखरा करेइ बानाअल हेकेइक। इटा एखनउ बेबाहारिक रुपे मानतेइ आहात एकर खातिर एके कुड़मालि भासा साहितें भकति बेराक कबिक ठाइन देल आहेइक
गरांगिआक काइबेक चिनहाप
‘आदि झुमर संगित’ पथि टाइ एखराक रचल 71 गअ गितके ठाइन देल आहेइक । एहे पथि टा सुकरित पेरेस | राचिले उखड़न हेल रहलेइक । तअ ‘झुमर कथा’ झुमर गिति संगरअ माहान 18 गअ कबिता उखड़न हेल आहेइक, जेटा बांगला नाटक. कम पंसचिम बांगाल सरकार दिगेले निखरन हेल आहेइक ।
गरांगिआ कर रचल किछु गित / कबिता :
गित -1
रितु बसंत भेल, मरअ पिआ काहां गेल
कइसे राखब दिलअ धरि गउ
नाहिं आलाइ साम बंसि धारि ।
निम फुलल जइसे, नाना फुल मधु मासे
फुले फरे झबरल डारि गउ।
नाहिं आलाइ साम बसि धारि ।
कुसुम झंझकार बने, कउइलि कुहुके बने
भरमर गुंजरे मधु हेरि गउ
नाहिं आलाइ साम बसि धारि ।
धिरज मंगल गाइ, धरि गरांगिआ पाइ
कहे राधा सखिके निहारि गउ
नाहिं आलाइ साम बंसि धारि ।
गित – 2
कनक कंपक बने, सिरि राधा पड़ल मने
पेरेमेक उठल लहर रे
पराने गजब बिरहक ताप आर सहाइ नाइ रे।
सभे लके कहत हरि, उ भाइ तरे बिनइ करि
आनि दे मर परानेक सुंदरि रे ।
जदि ना मिलाइ पारि, घेचांइ लागाब छुरि
बिसअ खाइ मरि रे ।
हे जिबअनेक किना बा काम, करब हामे देस तेआग
गरांगिआ भाभि मन भारि रे ।
गित – 3
नब पलबे जेहे, साजि आउअल सेहे,
राधा कुंड तिरे ।
हरकि बेसल जादु बरे हउ -1
अरन बरन आंखि, बउप मलिन देखि,
राधा कुंड तिरे ।
पारि कन जगते अंतरे हउ – 2
बिंदा देखि नअकाले, आइ ताहां पाइ,
राधा कुंड तिरे ।
चंपा कर माला करि करे हउ – 3
पेरेमे चउ दिसे चाइ, पुलिकत भेल राइ,
राधा कुंड तिरे ।
गरांगिआक हेल जरा जरि हउ – 4
गित – 4
पहंचलाइ मधुपुर, हांक पारे खरि खरि,
सउब नउ जुबक जगत गअ परासि,
दहि ले मथुरा बासि – 1
सउभे मिलि दहि लेला, आधा आधि दाम देला,
मथुरा नगरे डाकत, सउभे बसि – 2
आनह लाइहअ पेरेमेक दधि, आउआ तहरा लेबे जदि
खाइते बेजांइ मिठा, मने हेबेहे खुसि – 3 राजा हेइ
नरअ निति, बिचार न करेइ जदि,
गउरांगिआ भाभेइ हिन, धरमे बिनासि – 4
गित – 5
पाइले सुना घर, खाइले दुधेक सर
अउ बाछा जादुमनि !
एसन कुबुदिक तर गेल नाहिं ।
सुनिके माइएक बानि, पाराल निल मनि
अउ बाछा जादुमनि !
कि दउसे ठेलि देले दुध पानि ।
धरले ना धरा जाइ, गरांगिआ सिंगे गाइ
अउ बाछा जादुमनि ।
पेछुइ दउड़ाइ आनल नंदरानि ।
गित 6
काहे हउ मुरलि, डाक राधा कहे
अहे कुल ना राखले मर हउ नटबर
कुल ना राखले मर
राधा राधा कहे, परमउद घटाले
कुल कहे सर हउ नटबर
गरांगिआक परमाद, पुरात मनेक साध
रसिक नागर मर हउ नटबर ।
गित 7
सामे अचेतन देखि, धांइ आल विधुमुखि,
बाहिआं धरि उठाल कांखे ।
आहा मरि मरि ! मुख चाहे कहे – 1
दुइअ अंग परसि चेतन पाल चिते । छी
सामेक सरिर रेंउआ रेंउआ कांपे।
आहा मरि मरि ! मुख चाहे कहे – 2
नागअरे पाल परान, मने करे अनुमान,
आइले नागरि सुफलेर चले ।
आहा मरि मरि ! मुख चाहे कहे – 3
मिलल दहार चिढ़ अंग हेल पुलकित,
गरागिआ पड़े परभुक गड़े,
आहा मरि मरि ! मुख चाहे कहे – 4