बिहार के लोक नाट्य एवं लोक नृत्य
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  • विदेशिया 
    • विदेशिया भोजपुर क्षेत्र का अत्यन्त लोकप्रिय लोक नाट्य है । इस लोक नाट्य में ‘लौंडा नाच’ के साथ-साथ आल्हा, बारहमासा, पूरबी, नटुआ, पंवड़िया आदि का पुट (योग) होता है । इस नाटक का आरम्भ मंगलाचरण से होता है तथा महिला पात्रों की भूमिका पुरुष कलाकारों द्वारा निभाई जाती है । 
  • जट-जटिन 
  • जट-जटिन बिहार का एक अत्यन्त प्रचलित लोक नाट्य है । यह लोक नाट्य प्रतिवर्ष सावन से कार्तिक माह के पूर्णिमा के आस-पास तक अविवाहित लड़कियों द्वारा अभिनीत होता है ।
  • इस लोक नाट्य के माध्यम से जट-जटिन के वैवाहिक जीवन का प्रदर्शन किया जाता है ।
  • डोमकच 
    • डोमकच बिहार का एक अत्यन्त घरेलू एवं निजी लोक – नाट्य है । 
    • यह लोक नाट्य घर-आँगन में ही बारात जाने के बाद व अन्य विशेष अवसरों पर विवाहित महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । 
    • इस लोक नाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत हास- परिहास, अश्लील हाव-भाव तथा संवाद को प्रदर्शित किया जाता है । 
  • सामा चकेवा 
    • सामा-चकेवा बिहार में प्रतिवर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक आयोजित किया जाता है । यह भाई-बहन से संबंधित लोक नाट्य व पर्व है | 
    •  इस लोक नाट्य के अन्तर्गत पात्र तो मिट्टी द्वारा निर्मित सामा चकेवा को बनाया जाता है, किंतु अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है । इसके अन्तर्गत सामूहिक गीतों के माध्यम से प्रश्नोत्तर शैली में विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है । 
  • किरतनिया 
    • किरतनिया बिहार का एक भक्तिपूर्ण लोक नाट्य है । इस लोक नाट्य के अन्तर्गत भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति गीतों के माध्यम से किया जाता है । 
  • भकुली वंका 
    • इस लोक नाट्य के अन्तर्गत भी जट-जटिन नृत्य किया जाता है । 
    • यह प्रतिवर्ष सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किया जाता है। 

बिहार के प्रमुख लोक नृत्य

  • कटघोड़बा नृत्य 
    • इस नृत्य में लकड़ी तथा बाँस की खपच्चियों द्वारा निर्मित सुसज्जित घोड़े को नर्तक अपने कमर में बाँध लेता है तथा आकर्षक वेषभूषा बनाकर नृत्य करता है। देहाती क्षेत्रों में यह नृत्य आज भी लोकप्रिय है । 
    • यह बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में भी प्रचलित है। इस नृत्य में लोक संस्कृति का दर्शन होता है । 
  • जोगीड़ा नृत्य 
    • जोगीड़ा नृत्य होली के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। 
    • इसमें एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाते हुए सभी लोग जोगीड़ा गाते और नृत्य करते हैं । > इस नृत्य में मौज-मस्ती की प्रधानता होती है । यह नृत्य बिहार में काफी प्रचलित है । 
  • लौंडा नृत्य 
    • लौंडा नृत्य विवाह एवं अन्य मांगलिक अवसरों पर लड़के द्वारा लड़की का स्वांग बनाकर किया जाता है । यह नृत्य बिहार में मुख्य रूप से भोजपुर क्षेत्र में प्रचलित है । 
    • इस नृत्य का सर्वाधिक प्रचलन विवाह के अवसर पर तथा विशेष कर बारातों में है । 
  • पंवड़िया नृत्य 
    • पंवड़िया नृत्य जन्म आदि के अवसर पर पुरुषों अथवा किन्नरों द्वारा किया जाता है। 
    • इस नृत्य में पुरुष नर्तक घाघरा चोली पहनकर ढोल-मजीरा बजाते हैं और लोक गीत गाते हैं तथा नृत्य करते हैं । 
  • धोबिया नृत्य 
    • धोबिया नृत्य बिहार के भोजपुर क्षेत्र के धोबी समाज में प्रचलित है। इस नृत्य को मुख्यतः विवाह व अन्य मांगलिक अवसरों पर सामूहिक रूप से प्रस्तुत किया जाता है । 
    • इस नृत्य को प्रस्तुत करते हुए नर्तक शृंगार रस के गीत भी गाते हैं । 
  • करिया झूमर नृत्य 
    • करिया झूमर महिला प्रधान लोक नृत्य है, जो मिथिला क्षेत्र में काफी प्रचलित है। 
    • इस नृत्य में लड़कियाँ अपनी सहेलियों के साथ हाथ में हाथ डालकर घूमती हुई गाती और नृत्य करती हैं । 
  • झरनी नृत्य 
    •  मुहर्रम के अवसर पर नर्तकों अथवा ताजिया के साथ चलने वाले हसन व हुसैन के जंगियों द्वारा झरनी नृत्य किया जाता है । इस नृत्य में नर्तक शोक गीत गाते हैं और अपने अभिनय द्वारा शोकाभिव्यक्ति भी करते हैं । 
  • विद्यापति नृत्य 
    • विद्यापति नृत्य में मिथिला के महान कवि विद्यापति के पदों को गाया जाता एवं नृत्य किया जाता है । यह एक सामूहिक नृत्य है, जो बिहार के पूर्णिया जिले तथा आस-पास के क्षेत्रों में विशेष प्रचलित है । 
  • खोलड़िन नृत्य 
    • खोलड़िन नृत्य वेश्याओं अथवा व्यावसायिक महिलाओं द्वारा शुभ अवसरों पर आमंत्रित अतिथियों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किया जाता है । 
    • खोलड़िन नृत्य को बिहार में सामंतवादी व्यवस्था की देन माना जाता है । 
  • झिझिया नृत्य 
    • झिझिया नृत्य राजा चित्रसेन एवं उनकी रानी के प्रेम-प्रसंगों पर आधारित है । 
    • यह नृत्य सिर्फ महिलाओं के द्वारा किया जाता है । इस नृत्य में ग्रामीण महिलाएँ अपनी सखी- सहेलियों के साथ एक घेरा बना लेती हैं। घेरा के बीच में एक महिला जो मुख्य नर्तकी की भूमिका निभाती है, वह सिर पर घड़ा लेकर नृत्य करती है ।