पाचन तंत्र (Digestive System)

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पाचन तंत्र (Digestive System)

मनुष्य के पाचन तंत्र में सम्मिलित अंगों को दो मुख्य भागों में बाँटा गया है 

  • A. आहार नाल  (alimentary canal)
  • B. सहायक पाचक ग्रंथियाँ (auxiliary digestive glands)

 

आहार नाल (Alimentary Canal or Gastrointestinal Tract) 

  • यह एक लंबी व सतत् नलिका है जो मुख (Mouth) से गुदा (Anus) तक फैली हुई होती है। 
  • मनुष्य की आहार नाल लगभग 30 फीट लंबी होता है जो निम्नलिखित भागों में बँटी रहती है
    • (a) मुखगुहा (Oral Cavity or Buccal Cavity)
    • (b) ग्रसनी (Pharynx)
    • (c) ग्रासनली (Oesophagus)
    • (d) अमाशय (Stomach)
    • (e) आँत  (Intestine) (छोटी आँत एवं बड़ी आँत) 

मुखगुहा (Oral Cavity or Buccal Cavity) 

  • मुखगुहा आहार नाल का पहला भाग है। मुखगुहा में जीभ तथा दाँत होते हैं। 
  • स्वाद का अनुभव करने के लिये जीभ की ऊपरी सतह पर स्वाद कलिकाएँ (Taste Buds) पाई जाती हैं जो मीठा, खट्टा, नमकीन व कड़वे स्वाद का अनुभव करवाती हैं। 

मम्प्स/गलसुआ (Mumps): 

  • यह पैरामिक्सो (Paramyxo) वायरस द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी है, जिसमें पैरोटिड ग्रंथि में सूजन, जलन व दर्द होने लगता है। 

 

मुखगुहा में पाचन (Digestion in Mouth Cavity)

  • पाचन का प्रारंभ मुखगुहा से ही हो जाता है जहाँ भोजन को ‘लार’ (Saliva) की सहायता से मथा जाता है। 
  • मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती हैं। 
  • सभी लार ग्रंथियाँ लार स्रावित करती हैं जिनमें 99 प्रतिशत जल तथा 1 प्रतिशत एंजाइम होता है। 
  • लाार में मुख्यतः दो प्रकार के पाचक एंजाइम्स- टायलिन (Ptylin) व लाइसोजाइम (Lysozyme) पाए जाते हैं।
  • मेंढक और व्हेल मछली में लार-ग्रंथियाँ नहीं पाई जाती हैं। 
  • लार में ‘टायलिन’ नामक एंजाइम उपस्थित होता है जो भोजन के स्टार्च को डाइसैकराइड माल्टोस में तोड़ देता है। 
  • लार में उपस्थित लाइसोजाइम व थायोसायनेट आयन भोजन के साथ आए हुए सूक्ष्म जीवों व जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। 
  • भोजन में उपस्थित लगभग 30 प्रतिशत मंड (Starch) का पाचन मुखगुहा में ही हो जाता है।

 

दाँत (Teeth) 

  • मनुष्य ‘विषमदंती’ (Heterodont) होता है, अर्थात् मनुष्य में 4 प्रकार के दाँत पाए जाते हैं, 
    • कृतक (Incisor) 
    • रदनक (Canine) 
    • अग्रचवर्णक (Premolar) 
    • चवर्णक (Molar) 
  • कृतक (Incisor) सबसे आगे के दाँत हैं जिनका कार्य भोजन को काटना होता है। 
  •  रदनक (Canine) नुकीले दाँत होते हैं जिनका कार्य भोजन को फाड़ना होता है। 
  • अग्रचवर्णक (Premolar) तथा चवर्णक (Molar) को ‘गाल दंत’ (Cheek Teeth) कहा जाता है जिनका कार्य भोजन को पीसना होता है। 
  •  तीसरे चवर्णक लगभग 20 वर्ष की आयु में निकलते हैं जिन्हें ‘बुद्धि दंत’ (Wisdom Teeth) कहते हैं। ये सबसे अंत में निकलते हैं।
  •  मनुष्य में रदनक व बुद्धि दंत अवशेषी संरचनाएँ (Vestigial Structures) हैं। 
  • दंतवल्क या इनैमल (Enamel) दाँत की ऊपरी परत होती है। इनैमल (Enamel) मानव शरीर का कठोरतम भाग (The Hardest Part) होता है। 
  • इनैमल लगभग 98 प्रतिशत कैल्शियम लवण (कैल्शियम फॉस्फेट व कैल्शियम कार्बोनेट) द्वारा बना होता है जिसे फ्लोरीन मज़बूती प्रदान करता है।

 

ग्रसनी (Pharynx) 

  • मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है।

ग्रासनली (Oesophagus) 

  • मुखगुहा से लार युक्त भोजन ग्रासनली में पहुँचता है। यह एक लंबी नली है जो अमाशय में खुलती है। इसके क्रमाकुंचन (Peristalsis) क्रिया के कारण भोजन नीचे की ओर खिसकता है। यहाँ कोई पाचन क्रिया नहीं होती है। 

आमाशय (Stomach) 

  • यह वक्षगुहा में बाई तरफ फैली हुई रचना है जो तीन भागों में बँटी रहती है 
    • (i) अग्र भाग (कार्डियक) 
    • (ii) मध्य भाग (फडिक) 
    • (iii) पश्च भाग (पाइलोरिक) 
  • आमाशय की भीतरी दीवार पर जठर ग्रंथियाँ (Gastric Glands) पाई जाती हैं।

 

आमाशय में पाचन (Digestion in Stomach) 

  • आमाशय प्रोटीन पाचन का प्रमुख स्थान होता है। 
  • आमाशय की भीतरी दीवार पर उपस्थित ‘जठर ग्रंथियाँ’ जठर रस स्रावित करती हैं, जो अत्यधिक अम्लीय (pH = 1.8) होता है। 
  • जठर रस के अंतर्गत पाचक एंजाइम्स, यथा-पेप्सिन एवं रेनिन तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) एवं म्यूकस (Mucus) आते हैं। 
  • HCl की उपस्थिति में ‘पेप्सिनोजन’सक्रिय पेप्सिन में बदल जाता है एवं प्रोटीन को सरल अणुओं (पहले प्रोटिओज़ फिर पेप्टोन्स) में तोड देता है। 
  • पेप्सिन का स्रवण मुख्य कोशिकाओं द्वारा किया जाता है, जो उदर ग्रंथियों के नज़दीक प्रचुर मात्रा में मौजूद रहती है। 
  • इसी प्रकार HCl की उपस्थिति में निष्क्रिय ‘प्रोरेनिन’ सक्रिय ‘रेनिन’ में परिवर्तित हो जाता है। यह रेनिन दूध में उपस्थित कैसिनोजन प्रोटीन को कैसीन में बदल देता है। 
  • आमाशय में उपस्थित एक अन्य एंजाइम ‘गैस्ट्रिक लाइपेज’ (Gastric Lipase)वसा का पाचन करके इसे ट्राइग्लिसराइड में बदल देता है। 
  • म्यूकस जठर रस के अम्लीय प्रभाव को कम कर आमाशय की रक्षा करता है। 

 

आँत (Intestine) 

  • मनुष्य की आँत की लंबाई लगभग 22 फीट होती है। 
  • शाकाहारियों में आँत की लंबाई अपेक्षाकृत अधिक होती है जिससे भोजन अवशोषण हेतु अतिरिक्त पृष्ठ क्षेत्र (Surface Area) मिल सके। 
  •  मनुष्य की आँत को दो भागों में बाँटा जा सकता है
    • छोटी आंत(Small Intestine) 
    • बड़ी आँत (Large Intestine) 

 

छोटी आंत(Small Intestine)  

  • छोटी आँत तीन भागों में विभक्त होती है 
    • ग्रहणी (Duodenum)
    • अग्रक्षुद्रांत (Jejunum) 
    • क्षुद्रांत (Ileum)। 
  • आमाशय से निकलने के पश्चात् भोजन ‘अम्लान्न’ (Chyme) कहलाता है। 
  • यह काइम ग्रहणी में पहुँचता है जहाँ सबसे पहले यकृत से निकलकर पित्त रस इसमें मिलता है। क्षारीय प्रकृति का होने के कारण पित्त रस काइम को क्षारीय बना देता है। पित्त रस में किसी भी प्रकार का एंजाइम नहीं पाया जाता। यहाँ अग्न्याशय से स्रावित अग्नाशय रस आकर काइम में मिलता है। इसके पश्चात् यह इलियम में पहुँचता है, जहाँ आंत्र रस की क्रिया काइम पर होती है। 
  • छोटी आँत में भोजन के पूर्ण पाचन के उपरांत, उसका अवशोषण भी छोटी आंत में स्थित रसांकुर (Villi) द्वारा होता है। 
  • बिना पचा हुआ काइम बड़ी आँत में पहुँचता है जहाँ जल का अवशोषण होता है एवं शेष काइम मल के रूप में मलाशय में एकत्र होकर गुदा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। 

 

छोटी आंत में पाचन (Digestion in Small Intestine) 

  • छोटी आंत में भोजन के आते ही इसमें तीन पाचक रस (पित्त रस, अग्न्याशय रस तथा आंत्र रस) मिला दिये जाते हैं।

 

 पित्त रस (Bile Juice) 

  • पित्त रस यकृत द्वारा स्रावित होता है जो पित्ताशय (Gall Bladder) में संचित रहता है। 
  • पित्त रस गाढ़ा, हरे-पीले रंग का हल्का क्षारीय द्रव होता है। 
  • मनुष्य में प्रतिदिन लगभग 600 मिली. पित्त रस स्रावित होता है। 
  • पित्त रस में कोई भी पाचक एंजाइम नहीं पाया जाता। 
  • पित्त रस में पित्तवर्णक (Bile Pigment) जैसे- विलीरुबीन, बिली वर्डिन आदि भी पाए जाते हैं।
  •  पित्त रस में उपस्थित दो लवण-‘सोडियम ग्लाइकोकोलेट’ तथा ‘सोडियम टॉरोकॉलेट‘ भोजन में उपस्थित वसा को जल के साथ मिलाकर छोटी-छोटी बूंदों में तोड़ देते हैं जिसे वसा का इमल्सीकरण (Emulsification of Fat) कहते हैं। 
  • वसा में घुलनशील विटामिन्स (A, D, E, K) के अवशोषण में भी पित्त रस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • यदि किसी व्यक्ति का पित्ताशय निकाल दिया जाए तो उस व्यक्ति में वसा का पाचन सामान्यतः नहीं हो पाता है। 

 

अग्न्याशय रस (Pancreatic Juice) 

  • अग्न्याशय रस क्षारीय होता है जो अग्न्याशयी कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। 
  •  इसमें 98 प्रतिशत जल तथा शेष 2 प्रतिशत एंजाइम व लवण (सोडियम बाइकार्बोनेट) होते हैं। 
  • इसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन आदि सभी के पाचन के लिये पाचक एंजाइम्स उपस्थित होते हैं। अतः इसे “पूर्ण पाचक रस’ (Complete Digestive Juice) कहा जाता है। 
  • इसमें एमाइलेज, ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, कार्बोक्सीपेप्टिडेज,  लाइपेज आदि एंजाइम पाए जाते हैं। 

 

आंत्र रस (Intestinal Juice) 

  • यह हल्के पीले रंग का हल्का क्षारीय द्रव होता है, जो आंत्र-ग्रंथियों द्वारा स्रावित होता है। 
  • मनुष्य में लगभग 2-3 लीटर आंत्र रस प्रतिदिन स्रावित होता है। 
  • आंत्र रस में निम्नलिखित एंजाइम्स उपस्थित होते हैं
    • माल्टेज : माल्टोज को ग्लूकोज में बदल देता है। 
    • सुक्रेज : सुक्रोज (चीनी) को ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज में बदल देता है। 
    • लेक्टेज : लेक्टोज को ग्लूकोज तथा गैलेक्टोज में बदल देता है।
    • इरेप्सिन : डाइ तथा ट्राइ पेप्टाइड (प्रोटीन के अवयव) को एमीनो अम्लों में तोड़ देता है। इस प्रकार आँत में संपूर्ण भोजन का पाचन हो जाता है। 

 

बड़ी आँत (Large Intestine) 

  • बड़ी आँत, छोटी आंत की तुलना में अधिक चौड़ी, किंतु लंबाई में छोटी होती है। मनुष्य में यह लगभग 5 फीट लंबी तथा 2.5 इंच चौड़ी होती है। 
  • बड़ी आँत तीन भागों में विभक्त होती है
    • सीकम (Cecum) 
    • मलाशय (Rectum) 
    • कोलन (Colon) 
  • मनुष्य में सीकम से एक मुड़ी (Twisted) और कुंडलित (Coiled) लगभग 2 इंच लंबी रचना “वर्मीफॉर्म एपेंडिक्स’ निकलती है। वर्मीफॉर्म एपेंडिक्स एक अवशेषी अंग है।
  • बड़ी आँत कोई एंजाइम स्राव नहीं करती है। इसका कार्य केवल बिना पचे हुए भोजन को कुछ समय के लिये संचित करना होता है। 
  • यहाँ जल और कुछ खनिजों का अवशोषण होता है। 

 

पाचक ग्रंथियाँ 

यकृत (Liver) 

  • यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। 
  • यकृत कोशिकाओं से पित्त का स्राव होता है जो यकृत नलिका से होते हुए एक पतली पेशीय थैली (पित्ताशय) में सांद्रित एवं जमा होता है। 
  • यह विटामिन-A का संश्लेषण भी करता है। 
  • इसके अलावा यकृत ग्लूकोज को ग्लाइकोजन के रूप में संचित रखता है।
  • पित्त का लगातार स्रवण करना यकृत का प्रमुख कार्य होता है। यद्यपि पित्त में एंजाइम नहीं होते, फिर भी पित्त लवण भोजन, विशेषतः वसाओं के पाचन के लिये अत्यावश्यक होता हैं। 
  • पित्त भोजन को सड़ने से रोकता है। 
  • लंबे समय तक शराब का सेवन, हेपेटाइटिस-बी एवं सी संक्रमण, विषाक्त धातुओं आदि के कारण यकृत सिरोसिस नामक रोग हो जाता है। 

 

यकृत के अन्य कार्य

  • 1. बाइल जूस एवं यूरिया का संश्लेषण (Urea Sunthesis)
  • 2. कार्बनिक पदार्थों का संग्रह 
  • 3. एंजाइमों का स्रवण 
  • 4. हिपैरिन का स्रवण 
  • 5. लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण के लिये आयरन को स्टोर करना। 

 

अग्न्याशय (Pancreas) 

  • अग्न्याशय U आकार के ग्रहणी के बीच स्थित एक लंबी ग्रंथि है, जो बहिर्स्रावी और अंत:स्रावी, दोनों ही ग्रंथियों की तरह कार्य करती है। 
  • बहिर्स्रावी भाग से क्षारीय अग्न्याशयी रस निकलता है, जिसमें एंजाइम होते हैं और अंत:स्रावी भाग से इंसुलिन और ग्लूकागॉन नामक हार्मोन का स्राव होता है। 
  • अग्न्याशय द्वारा ट्रिप्सिन एंजाइम का स्राव किया जाता है जो प्रोटीन को अमीनों अम्ल में परिवर्तन के लिये उत्प्रेरक की तरह कार्य करता है।