माल पहाड़िया जनजाति झारखण्ड की जनजातियाँ JPSC/JSSC/JHARKHAND GK/JHARKHAND CURRENT AFFAIRS JHARKHAND LIBRARY

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झारखण्ड की जनजातियाँ।। माल पहाड़िया जनजाति

 माल पहाड़िया जनजाति

  • माल पहाड़िया एक आदिम जनजाति है जिनका संबंध प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह से है।
  • रिजले के अनुसार इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है।
  • रसेल और हीरालाल के अनुसार यह जनजाति पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज हैं।
  • बुचानन हैमिल्टन ने इस जनजाति का संबंध मलेर से बताया है।
  • इनका संकेंद्रण मुख्यत संथाल परगना क्षेत्र में पाया जाता है, परन्तु यह जनजाति संथाल क्षेत्र के साहेबगंज को छोड़कर शेष क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • इनकी भाषा मालतो है जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है।
  • इस जनजाति में पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय सामाजिक व्यवस्था पायी जाती है।
  • इस जनजाति में गोत्र नहीं होता है।
  • इस जनजाति में अंतर्विवाह की व्यवस्था पायी जाती है।
  • इस जनजाति में वधु-मूल्य (पोन या बंदी) के रूप मे सूअर देने की प्रथा है क्योंकि सूअर इनके आर्थिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
  • इस जनजाति में अगुवा (विवाह हेतु कन्या ढूंढने वाला व्यक्ति) को ‘सिथू या सिथूदार‘ कहा जाता है।
  • इस जनजाति में वर द्वारा सभी वैवाहिक खर्चों का भुगतान किया जाता है।
  • इनके गांव का मुखिया माँझी कहलाता है, जो ग्राम पंचायत का प्रधान भी होता है।
  • इस जनजाति ने माघ माह में माघी पूजा तथा अगहन माह में घंघरा पूजा की जाती है।
  • यह जनजाति कृषि कार्य के दौरान खेतों में बीज बोते समय बीचे आड़या नामक पूजा (ज्येष्ठ माह में) तथा फसल की कटाई के समय गांगी आड़या पूजा करती है। बाजरा के फसल की कटाई के समय पुनु आड़या पूजा की जाती है।
  • करमा, फागु व नवाखानी इस जनजाति के प्रमुख त्योहार हैं
  • इनका मुख्य पेशा झूम कृषि, खाद्य संग्रहण एवं शिकार करना है।
  • इस जनजाति मे झूम खेती को कुरवा कहा जाता है।
  • इस जनजाति में भूमि को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। ये हैं 
    • सेम भूमि (सर्वाधिक उपजाऊ)
    • टिकुर भूमि (सबसे कम उपजाऊ)
    • डेम भूमि (सेम व टिकुर के बीच)
    • बाड़ी भूमि (सब्जी उगाने हेतु प्रयुक्त)
  • इस जनजाति में उपजाऊ भूमि को सेम कहा जाता है।
  • इनके प्रमुख देवता सूर्य एवं धरती गोरासी गोंसाई हैं।
  • धरती गोरासी गोंसाई को वसुमति गोंसाई या वीरू गोंसाई भी कहा जाता है।
  • इस जनजाति में पूर्वजों की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है।
  • इनके गांव का पुजारी देहरी कहलाता है।

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