Computer Memory : SARKARI LIBRARY

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 Primary or Main Memory

  • वह मेमोरी यूनिट जो सीधे CPU से संपर्क रखता है
    • हर समय कम्प्यूटर से जुड़ा रहता है।
  • यह साधारणतः कम्प्यूटर सिस्टम के अंदर स्थित होता है।
  • प्राथमिक मेमोरी अनेक छोटे भागों में बँटी होती है जिन्हें लोकेशन या सेल (Location or Cell) कहते हैं। 
    • लोकेशन में डाटा संग्रहित करने को लिखना (Write) कहते हैं।
    • लोकेशन से डाटा प्राप्त करने को पढ़ना (Read) कहते हैं।
  • प्रत्येक लोकेशन में एक निश्चित बिट (bit) जिसे वर्ड लेंथ कहते हैं, स्टोर की जा सकती है। 
  • कम्प्यूटर में वर्ड लेंथ 8, 16, 32 या 64 बिट की हो सकती है। 
    • मेमोरी में वर्ड लेंथ (Word Length) जितने अधिक बिट का होगा, कम्प्यूटर में data transfer की गति उतनी ही अधिक होगी। 
    • किसी मशीन में वर्ड लेंथ बड़ा कर देने पर उसकी गति बढ़ जाती है।
  • प्राथमिक मेमोरी की गति– तीव्र होती है
  • प्राथमिक मेमोरी की स्टोरेज क्षमता – सीमित
  • प्राथमिक मेमोरी की कीमत – अधिक
  • प्राथमिक मेमोरी अस्थायी (Volatile) मेमोरी होता है। 
    • विद्युत सप्लाई बंद हो जाने पर , स्टोर डाटा समाप्त हो जाता है।
  • प्राथमिक मेमोरी के उदाहरण – रजिस्टर, कैश मेमोरी, रॉम (ROM) तथा रैम (RAM)
  • प्राथमिक मेमोरी इलेक्ट्रानिक या सेमीकण्डक्टर मेमोरी होती है।
    • इनमें (IC-Integrated Circuit) का प्रयोग किया जाता है जो सिलिकन चिप के बने होते हैं।
      • IC के विकास का श्रेयजे. एस. किल्बी को जाता है। 
    • सिलिकन चिप मुख्यतः गैलियम आर्सेनाइड के बने होते हैं। 

 

द्वितीयक या सहायक मेमोरी (Secondary or Auxiliary Memory)

  • द्वितीयक मेमोरी में डाटा और सूचनाओं को बड़ी मात्रा में संग्रहित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। 
  • यह साधारणतः कम्प्यूटर सिस्टम के बाहर स्थित होता है। इसे स्थायी मेमोरी (Permanent Memory) भी कहा जाता है। 
  • इसकी स्टोरेज क्षमता लगभग असीमित होती है, परंतु डाटा ट्रांसफर की गति धीमी होती है।
  • इसका प्रयोग मख्यतः बैकअप डाटा (Backup Data) को स्टोर करने के लिए किया जाता है।
  • सहायक मेमोरी एक स्थायी (Non Valatile) मेमोरी है जिसमें विद्युत सप्लाई बंद हो जाने पर भी डाटा बना रहता है। 
  • मैग्नेटिक टेप, मैग्नेटिक डिस्क (फ्लॉपी डिस्क तथा हार्ड डिस्क) तथा ऑप्टिकल डिस्क (सीडी, डीवीडी तथा ब्लू रे डिस्क) सहायक मेमोरी के उदाहरण हैं।

 

स्थायी या अस्थायी मेमोरी (Non Volatile or Volatile Memory)

  • वह मेमोरी यूनिट जिसमें विद्युत सप्लाई बंद हो जाने पर भी डाटा बना रहता है, स्थिर या स्थायी (Non-Volatile) मेमोरी कहलाता है। 
  • जिस मेमोरी यूनिट में विद्युत सप्लाई बंद हो जाने पर संग्रहित डाटा नष्ट हो जाता है, अस्थिर या अस्थायी (Volatile) मेमोरी कहलाता है। 
  • सामान्यतः प्राथमिक मेमोरी अस्थायी (Volatile) होता है, जबकि सहायक मेमोरी स्थायी (Non Volatile) मेमोरी होता है। 
  • रॉम (Read only memory) इसका अपवाद है जो एक स्थायी प्राथमिक मेमोरी है। 

 

रैंडम या सिक्वेंसियल एक्सेस मेमोरी (Random or Sequential Access Memory)

  • मेमोरी में डाटा अलग-अलग स्थानों (Locations) पर संग्रहित किया जाता है। जिस मेमोरी यूनिट में किसी भी लोकेशन पर संग्रहित डाटा को पढ़ने या डाटा स्टोर करने में एक समान समय लगता है उसे रैंडम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory) कहा जाता है। 
  • प्राथमिक या सेमीकंडक्टर मेमोरी सामान्यतः रैंडम एक्सेस मेमोरी ही होते हैं। 
  • रजिस्टर, कैश मेमोरी, रॉम (ROM) तथा रैम (RAM) रैंडम एक्सेस मेमोरी के उदाहरण हैं।
  • यदि किसी मेमोरी के डाटा को क्रमानुसार एक के बाद एक कर ही पढ़ा जा सकता है, तो उसे सिक्वेंसियल एक्सेस मेमोरी (Sequential Access Memory) कहते हैं। 
  • मैग्नेटिक टेप सिक्वेंसियल एक्सेस मेमोरी का उदाहरण है।
  • मैग्नेटिक डिस्क या ऑप्टिकल डिस्क में किसी भी लोकेशन पर स्थित डाटा को पढ़ने या डाटा स्टोर करने में लगा समय बराबर तो नहीं होता, पर लगभग एक समान होता है। इसमें किसी भी लोकेशन तक सीधे पहुंचा जा सकता है। अतः इन्हें क्षद्म रैंडम एक्सेस मेमोरी (Pseudo Random Access Memory) या डायरेक्ट एक्सेस मेमोरी कहा जाता है। 
  • फ्लॉपी डिस्क, हार्ड डिस्क, सीडी, डीवीडी तथा ब्लू रे डिस्क डायरेक्ट एक्सेस मेमोरी के उदाहरण हैं। 

 

स्थायी मेमोरी (Non Volatile Memory)

रॉम (ROM-Read Only Memory) : 

  • यह एक स्थायी (Non Volatile) इलेक्ट्रानिक मेमोरी है जिसमें संग्रहित डाटा व सूचनाएं स्वयं नष्ट नहीं होती हैं तथा उन्हें बदला भी नहीं जा सकता। 
  • रॉम में सूचनाएं निर्माण के समय ही भर दी जाती हैं तथा कम्प्यूटर इन्हें केवल पढ़ सकता है, इनमें परिवर्तन नहीं कर सकता। इसीलिए, इसे Read Only Memory कहते हैं। 
  • रॉम को कम्प्यूटर का Built in मेमोरी भी कहते हैं। 
  • कम्प्यूटर की सप्लाई बंद कर देने पर भी रॉम में सूचनाएं बनी रहती हैं।
  • इसे इलेक्ट्रानिक या सेमीकंडक्टर मेमोरी भी कहा जाता है। 
  • रॉम का प्रयोग स्थायी प्रकृति के प्रोग्राम तथा डाटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है। 
  • रॉम में कम्प्यूटर को स्टार्ट करने के लिए आवश्यक सूचना जैसे—Instructions Set तथा System Boot Program स्टोर किया जाता है। 
  • रॉम में बायोस (BIOS-Basic Input Output System) होता है जो कम्प्यूटर चालू करने पर पोस्ट (POST Power on self test) प्रोग्राम चलाता है।
  • रॉम में प्रोग्राम या डाटा को फ्यूज लिंक के जरिये डाला जाता है। 
  • एक बार डाटा भर देने पर फ्यूज लिंक को जला दिया जाता है ताकि डाटा को बदला न जा सके। 
  • इस कारण रॉम में डाटा डालने को ‘जलाना’ (Burning in the Data) कहते हैं।

 

PROM – Programmable Read Only Memory 

  • यह एक विशेष प्रकार का रॉम है जिसमें एक विशेष प्रक्रिया द्वारा उपयोगकर्ता के अनुकूल डाटा को प्रोग्राम किया जा सकता है। 
  • प्रॉम में हजारों डायोड होते हैं जिन्हें उच्च वोल्टेज से फ्यूज कर वांछित सूचना रिकॉर्ड की जाती है। 
  • एक बार प्रोग्राम कर दिए जाने के बाद यह सामान्य रॉम की तरह व्यवहार करता है।

E-PROM – Erasable Programmable Read Only Memory 

  • इस प्रकार के रॉम पर पराबैंगनी किरणों (Ultra Violet Rays) की सहायता से पुराने प्रोग्राम को हटाकर नया प्रोग्राम लिखा जा सकता है। 
  • इसके लिए ई-प्रॉम को सर्किट से निकालना पड़ता है। 
  • इसे अल्ट्रा वायलेट ई-प्रॉम (Ultra Voilet EPROM) भी कहते हैं। 

 

EE-PROM- Electrically ErasableProgrammable Read Only Memory 

  • इस तरह के रॉम को सर्किट से निकाले बिना इस पर उच्च विद्युत विभव की सहायता से पुराने प्रोग्राम को हटाकर नया प्रोग्राम लिखा जा सकता है। 
  • इसका उपयोग मुख्यतः अनुसंधान में किया जाता है।
  • वर्तमान में, सहायक मेमोरी के रूप में EE-PROM का उपयोग बढ़ रहा है। 
  • इसे फ्लैश मेमोरी (Flash Memory) भी कहा जाता है। 
  • पेन ड्राइव (Pen Drive) इसका अच्छा उदाहरण है। 
    • फ्लैश मेमोरी एक पोर्टेबल सेमीकंडक्टर मेमोरी है जिसमें रॉम तथा रैम दोनों की विशेषताएं मौजूद हैं।

 

RAM – Random Access Memory 

  • रैम माइक्रोचिप से बना एक तीव्र सेमी कंडक्टर मेमोरी है। 
  • इसमें सूचना चाहे जहां भी स्थित हो, उसे पढ़ने में एक समान समय लगता है।
  •  रैण्डम एक्सेस मेमोरी में सूचनाओं को क्रमानुसार न पढ़कर सीधे वांछित सूचना को पढ़ा जा सकता है। 
  • यह एक अस्थायी (Volatile) मेमोरी है जहां डाटा और सूचनाओं को अस्थायी  समय के लिए रखा जाता है। 
  • इसमें संग्रहित सूचनाओं को बदला जा  सकता है 
  • कम्प्यूटर की पॉवर सप्लाई बंद कर देने पर रैम में संग्रहित समाप्त हो जाता है। 
  • प्रोसेसिंग से पहले डाटा को सहायक मेमोरी से लाकर रैम में स्टोर किया जाता है। 
  • CPU ,RAM से ही डाटा प्राप्त करता है। 
  • प्रोसेस के बाद अंतिम तथा अंतरिम परिणामों को भी अस्थायी रूप से रैम में स्टोर किया जाता है। 
  • RAM को कम्प्यूटर की Working memory कहा जाता है।
  • रैम की क्षमता GB में मापी जाती है। 
  • मदरबोर्ड के खाली स्लॉट्स (Slots) में रैम चिप्स  लगाकर मेमोरी क्षमता बढ़ायी जा सकती है। 
  • इन रैमचिप्स को मदरबोई पर बने ‘सिम्स’ (SIMMs-Single In-line Memory Modules) में लगाया जाता है। 
  • वर्तमान में डिम्स (DIMMs-Dual in-Line Memory Modules) का प्रयोग किया जा रहा है। 
    • SIMM जहां 32 बिट मेमोरी है, वहीं DIMM 64 बिट मेमोरी है।

 

रैम को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है

(i) डायनमिक रैम (Dynamic RAM) 

  • डाटा बनाये रखने के लिए उसे एक सेकेण्ड में सैकड़ों बार re-write या refresh करना पड़ता है।

(ii) स्टैटिक रैम (Static RAM)

  • डाटा बनाये रखने के लिए स्टैटिक रैम को बार-बार refresh करने की जरूरत नहीं पड़ती।
  • स्टैटिक रैम में कम्प्यूटर की सप्लाई बंद कर देने पर भी संग्रहित डाटा अगली बार कम्प्यूटर ऑन होने तक सुरक्षित रहता है।

 

कैश मेमोरी (Cache Memory): 

  • मेमोरी से डाटा प्राप्त करने की गति CPU के डाटा प्रोसेस करने की गति से धीमी होती है। 
  • मेमोरी-प्रोसेसर के बीच इस गति अवरोध (Part Mismatch) को दूर करने के लिए कैश मेमोरी का प्रयोग किया जाता है। 
  • यह प्राथमिक मेमोरी और (CPU) क बार अत्यंत तीव्र मेमोरी है जहां बार-बार प्रयोग में आने वाले डाटा निर्देशों को संग्रहित किया जाता है। कैश मेमोरी की गति तार कारण प्रोसेसर की गति में वृद्धि होती है।
  • कैश मेमोरी CPU से सीधे जड़ा होता है।
  •  कैश मेमोरी से सीपीयू तक सूचना लाने या ले जाने के लिए कम्प्यूटर मदर बोर्ड के सिस्टम बस का प्रयोग नहीं करना पड़ता। अतः की गति तेज होती है। 
  • कैश मेमोरी CPU तथा मुख्य मेमोरी के बीच  बफर (Buffer) का काम करता है। 
  • सामान्यतः कम्प्यूटर कैश मेमोरी का आकार 256 KB –  4MB तक हो सकता है।

क्रमानुसार मेमोरी (Sequential Access Memory)

  • इसमें वांछित डाटा को क्रमानुसार ही पढ़ा जा सकता है। इस कारण इस मेमोरी से डाटा को पढ़ने में समय अधिक लगता है। 
  • इस कारण इसका उपयोग ऐसी जगह किया जाता है, जहां लगभग सभी डाटा को प्रोसेस करने की जरूरत पड़ती है। 
  • जैसे- पे रोल (Pay Roll), बिजली का बिल बनाना आदि।

मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape) : 

  • यह क्रमानुसार मेमोरी का उदाहरण है। 
  • इसमें एक प्लास्टिक रिबन पर चुम्बकीय पदार्थ (आयरन आक्साइड या क्रोमियम डाई आक्साइड) की परत चढ़ी रहती है जिसे विद्युतीय हेड से प्रभावित कर डाटा स्टोर किया जाता है। 
  • मैग्नेटिक टेप पर स्टोर किए गए डाटा को रिकॉर्ड कहा जाता है। 
  • दो अलग-अलग डाटा में अंतर करने के लिए उनके बीच कुछ खाली जगह छोड़ दिया जाता है जिसे Inter Record Gap कहा जाता है। 
  • यह बड़ी मात्रा में डाटा को स्टोर करने हेतु प्रयुक्त होता है। 
  • डाटा को कितनी भी बार लिखा और मिटाया तथा पढ़ा जा सकता है। 
  • नया डाटा लिखने पर पुराना डाटा स्वयं मिट जाता है। 
  • मैग्नेटिक टेप डाटा स्टोर करने का एक सस्ता माध्यम है। अतः इसका प्रयोग विशाल डाटा बैकअप (Backup) लेने के लिए किया जाता है। 
  • डाटा बैकअप में उपलब्ध डाटा की एक कॉपी बनाकर सुरक्षित रखा जाता है ताकि किसी कारण मुख्य डाटा के नष्ट होने पर बैकअप डाटा का उपयोग किया जा सके। मैग्नेटिक टेप को पढ़ने के लिए मैग्नेटिक टेप ड्राइव का प्रयोग किया जाता है।

 

  • मैग्नेटिक टेप की भंडारण क्षमता डाटा रिकार्ड करने के घनत्व तथा टेप की लंबाई का गुणनफल होता है। 

भंडारण क्षमता = डाटा का घनत्व (बाइट प्रति इंच) x टेप की लंबाई। 

 

डायरेक्ट एक्सेस मेमोरी (Direct Access Memory)

  • इसमें वांछित सूचना या डाटा को सीधे पढ़ा जा सकता है। इस कारण डाटा को पढ़ने में समय कम लगता है। डायरेक्ट एक्सेस मेमोरी से डाटा पढ़ने में लगा समय डिस्क पर डाटा की स्थिति तथा वर्तमान समय में Read-Write Head की स्थिति पर निर्भर करता है। 
  • Read Write Head के डाटा लोकेशन तक पहुंचने में लगने वाला समय अलग-अलग हो सकता है। पर यह समय इतना कम होता है कि किसी भी डाटा को पढ़ने में लगने वाले समय को लगभग समान माना जा सकता है। 
  • डायरेक्ट एक्सेस मेमोरी के उदाहरण हैं 
    • चुम्बकीय डिस्क (फ्लापी तथा हार्ड डिस्क)
    • ऑप्टिकल डिस्क (सीडी रॉम, सीडीआर, सीडीआर/डब्ल्यू, डीवीडी, ब्लू रे डिस्क) 
    • फ्लैश ड्राइव 
    • मेमोरी कार्ड

 

चुंबकीय डिस्क (Magnetic Disk) : 

  • यह एक स्थायी (Non volatile) डायरेक्ट एक्सेस सहायक मेमोरी है। 
  • इसमें धातु या प्लास्टिक से बने पतले डिस्क पर चुंबकीय पदार्थ जैसे आयरन ऑक्साइड की परत चढ़ा दी जाती है। 
  • डिस्क पर डाटा स्टोर करने तथा पहले से स्टोर की गई डाटा को पढ़ने के लिए डिस्क ड्राइव (Disk Drive) का प्रयोग किया जाता है। 
  • मैग्नेटिक डिस्क एक सस्ता स्टोरेज डिवाइस है, जो बड़ी मात्रा में डाटा स्टोर कर सकता है। 
  • इसका एक्सेस टाइम भी कम होता है, परंतु धूल या खरोंच के कारण इसके खराब होने की संभावना भी रहती है। 
  • मैग्नेटिक डिस्क के उदाहरण 
    • फ्लॉपी डिस्क तथा हार्ड डिस्क

 

फ्लापी डिस्क (Floppy Disk) : 

  • यह प्लास्टिक का बना वृत्ताकार डिस्क होता है जिस पर चुंबकीय पदार्थ की लेप चढ़ी रहती है। 
  • सुरक्षा के लिए इसे प्लास्टिक के वर्गाकार खोल में बंद रखा जाता है। इसके बीच में धातु की बनी गोल धुरी होती है। इसके ऊपरी भाग में लिखने-पढ़ने का खुला स्थान होता है जिसे खिसकने वाले एक ढक्कन से ढका जाता है। 
  • इसके निचले कोने पर एक सुरक्षा छिद्र (Write Protect Notch) होता है जिसे बंद कर देने पर फ्लापी के डाटा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 
  • फ्लापी कुछ वृत्ताकार पथों में बंटा होता है जिसे ट्रैक (Track) कहते हैं। ट्रैक पुनः सेक्टर (Sector) में बंटा होता है। 
  • फ्लापी पर डाटा इसी सेक्टर में लिखा जाता है। प्रत्येक सेक्टर की स्टोरेज क्षमता 512 बाइट होती है।

 

हार्ड डिस्क (Hard disk) : 

  • हार्ड डिस्क मैग्नेटिक डिस्क का एक प्रकार है। 
  • यह एक स्थायी (Non volatile), डायरेक्ट एक्सेस तथा सहायक मेमोरी है। 
  • इसकी भंडारण क्षमता अधिक तथा डाटा स्टोर करने और पढ़ने की गति तेज होती है। 
  • किसी कम्प्यटर का आपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर तथा विभिन्न अप्लिकेशन साफ्टवेयर हार्ड डिस्क में ही स्टोर किए जाते हैं। 
  • हार्ड डिस्क में एल्युमिनियम धातु का बना एक पतला डिस्क होता है जिस पर चुंबकीय पदार्थ जैसे आयरन ऑक्साइड का लेप चढ़ा रहता है। 
  • धातु से बने होने के कारण यह लोचदार नहीं होता,अतः इसे हार्ड डिस्क का नाम दिया जाता है। 
  • डिस्क के एक या दोनों सतहों को डाटा स्टोरेज के लिए प्रयोग किया जा सकता है। 
  • डाटा रिकार्ड करने (Write) या पढ़ने (Read) के लिए प्रत्येक सतह पर अलग-अलग Read-Write head होता है। 
  • जिस डिस्क के दोनों सतहों पर डाटा स्टोर किया जाता है उसे Double sided disk कहा जाता है।
  • हार्ड डिस्क में डाटा को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड के द्वारा लिखा व पढ़ा जाता है। 
  • हार्ड डिस्क के Read-Write head का डिस्क की सतह से भौतिक संपर्क नहीं होता। परंतु डिस्क और हेड के बीच का गैप इतना कम (3 नैनोमीटर तक) होता है कि धूल का छोटा कण भी उसमें फंस सकता है जिससे डाटा पढ़ना संभव नहीं होता। इसे हार्ड डिस्क क्रैश (Crash) करना कहा जाता है।

 

  • मैग्नेटिक डिस्क की सतह को अनेक संकेन्द्रित वृत्तों (Cocentric Circles) में बांटा जाता है जिसे ट्रैक (Track) कहते हैं। 
  • इन ट्रैक्स को पुनः सेक्टर (Sector) में बांटा जाता है। 
  • सेक्टर डाटा स्टोर करने की सबसे छोटी इकाई है। एक सेक्टर की स्टोरेज क्षमता 512 बाइट होती है। 
  • मैग्नेटिक डिस्क पैक की कुल स्टोरेज क्षमता गीगा बाइट (GB-Giga Bite) में होती है।
  • मैग्नेटिक डिस्क पर डाटा लिखने से पहले प्रत्येक ट्रैक तथा सेक्टर को एक विशेष ऐड्रेस (address) दिया जाता है। 
  • इस्तेमाल से पूर्व प्रत्येक डिस्क को डाटा भंडारण के लिए व्यवस्थित किया जाता है जिसे डिस्क फारमेटिंग (Disc Formatting) कहते हैं। 
  • डिस्क फारमेटिंग द्वारा मेमोरी डिस्क पर सेक्टर व ट्रैक के लोकेशन के बारे में एक टेबल बना लिया जाता है जिसे File Allocation Table (FAT) कहते हैं। इससे भविष्य में डाटा प्राप्त करने में कम समय लगता है।

 

विंचेस्टर डिस्क (Winchester Disk) : 

  • हार्ड डिस्क को डिस्क पैक के आधार परजिप डिस्क, डिस्क पैक तथा विंचेस्टर डिस्क में बांटा जाता है। 
  • विंचेस्टर डिस्क में दो या अधिक हार्ड डिस्क प्लैटर को एक केंद्रीय शाफ्ट के सहारे एक के ऊपर एक स्थापित किया जाता है। 
  • इस डिस्क पैक को उसके एक्सिस पर घुमाने के लिए मोटर लगा रहता है। 
  • विचेस्टर डिस्क को सील बंद डिब्बे में पैक कर देने के कारण
    • डिस्क के धूल, खरोंच या नमी के कारण खराब होने की संभावना नहीं रहती।
    • इसके सबसे ऊपरी तथा सबसे निचली सतह को भी डाटा स्टोर करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। 
    • पैक होने के कारण डिस्क की स्टोरेज क्षमता सीमित (Limited) हो जाती है। 
    • ड्राइव या Read-Write head खराब होने पर डाटा को पुनः प्राप्त कर पाना संभव नहीं होता। अतः विंचेस्टर डिस्क के साथ डाटा बैकअप रखने का सुझाव दिया जाता है।

 

  • पर्सनल कम्प्यूटर के साथ प्रयुक्त हार्ड डिस्क विंचेस्टर डिस्क का उदाहरण है। 
  • कम्प्यूटर में लगे हार्ड डिस्क को ‘C’ ड्राइव का नाम दिया जाता है। इसमें आवश्यक साफ्टवेयर प्रोग्राम तथा डाटा स्टोर किया जाता है।

 

चुंबकीय डिस्क का एक्सेस टाइम (Access time of Magnetic Disk) : 

  • प्रोसेस के दौरान कम्प्यूटर को विभिन्न डाटा की आवश्यकता पड़ती है। डाटा की आवश्यकता पड़ने पर सीपीयू उसे मेमोरी से प्राप्त करने का निर्देश देता है। सीपीयू द्वारा डाटा प्राप्त करने का निर्देश दिए जाने के बाद वास्तव में डाटा को सीपीयू मेमोरी में उपलब्ध होने में लगा समय एक्सेस टाइम (Access Time) कहलाता है। 
  • डाटा को सहायक मेमोरी से मुख्य मेमोरी में लाने में लगा कुल समय एक्सेस टाइम कहलाता है। 
  • किसी डाटा को मेमोरी में ढूंढकर कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रदर्शित करना डाटा रिट्रीवल (Data Retrieval) कहलाता है।

 

FAT (File Allocation Table)

  • FAT (File Allocation Table) विंडोज आपरेटिंग सिस्टम में डिस्क फारमैटिंग का एक तरीका है। 
  • हाल के विंडोज आपरेटिंग सिस्टम जैसे- Windows XP तथा Windows 2000 में NTFS (New Technology File System) का प्रयोग किया जा रहा है।

 

प्रकाशीय या आप्टिकल डिस्क (Optical Disk) : 

  • आप्टिकल डिस्क पॉली कार्बोनेंट प्लास्टिक से बना गोल डिस्क है जिसकी एक सतह को प्रकाश परावर्तित करने के लिए एल्युमिनियम की पतली परत चढ़ाकर चमकदार बनाया जाता है। 
  • आप्टिकल डिस्क पर डाटा लिखने या पढ़ने के लिए लेजर बीम का प्रयोग होता है, अतः इसे लेजर डिस्क (Laser Disk) भी कहते हैं। 
  • आप्टिकल डिस्क में ट्रैक संकेन्द्रित वृत्तों में न होकर बाहर से अंदर की ओर एक सर्पिलाकार (Spiral) आकार में होता है। 
  • इन ट्रैक्स को समान आकार वाले सेक्टर में विभाजित किया जाता है। 
  • सर्पिलाकार ट्रैक के कारण आप्टिकल डिस्क का एक्सेस टाइम मैग्नेटिक डिस्क से अधिक होता है, अर्थात डाटा को पढ़ने में अधिक समय लगता है। 
  • आप्टिकल डिस्क ऑडियो, वीडियो, मल्टीमीडिया अप्लिकेशन तथा साफ्टवेयर प्रोग्राम को स्टोर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। 
  • आप्टिकल डिस्क में डाटा को पिट्स (Pits) और लैंड्स (Lands) में स्टोर किया जाता है। 
    • डिस्क पर डाटा लिखने के लिए उच्च क्षमता वाले लेजर बीम का प्रयोग किया जाता है, जिससे डिस्क की सतह पर अति सूक्ष्म गढ्ढे बन जाते हैं जिन्हें Pits कहा जाता है। 
    • गड्ढों के बीच स्थित समतल क्षेत्र को Lands कहा जाता है। 

Pits

  • 0 या ऑफ
  • डिस्क की सतह पर अति सूक्ष्म गढ्ढे

Lands

  • 1 या ऑन
  • गड्ढों के बीच स्थित समतल क्षेत्र

 

  • Pits बाइनरी डिजिट 0 या ऑफ को निरूपित करते हैं तथा Lands बाइनरी डिजिट 1 या ऑन को निरूपित करते हैं। 
  • डिस्क पर कम तीव्रता वाले लेजर बीम डालकर परावर्तित किरणों के आधार पर डाटा को पढ़ा जाता है। 
  • कम्पैक्ट डिस्क (CD), डीवीडी (DVD) तथा ब्लू रे डिस्क (Blue-ray disk) आप्टिकल डिस्क के उदाहरण हैं।

 

  • आप्टिकल डिस्क को आप्टिकल डिस्क ड्राइव में डालकर लिखा या पढ़ा जाता है। 

 

आप्टिकल डिस्क के प्रयोग के लाभ हैं

  • कम लागत में अधिक स्टोरेज क्षमता। 
  • डाटा को लंबे समय (लगभग 30 वर्ष) तक स्टोर किया जा सकता है। 
  • डाटा के परिवर्तित होने या मिटने की संभावना कम होती है। 
  • Read write head का डिस्क से भौतिक संपर्क न होने के कारण डिस्क के घिसने की संभावना कम रहती है।
  • डिस्क द्वारा डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना आसान होता है। 

 

आप्टिकल डिस्क की कमियां हैं

  • धूल, मिट्टी, अंगुली के छाप आदि से डिस्क के खराब होने की संभावना बनी रहती है। 
  • सामान्य डिस्क को एक बार डाटा लिखे जाने के बाद उसमें परिवर्तन करने या दूसरा डाटा स्टोर करने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता।

 

सीडी रॉम (CD-ROM-Compact Disk-Read Only Memory) : 

  • यह आप्टिकल डिस्क का एक प्रकार है।
  • सीडी रॉम में डाटा निर्माता द्वारा फैक्ट्री में ही स्टोर कर दिया जाता है जिसे बाद में बदला नहीं जा सकता। 
  • सीडी रॉम (CD ROM) से डाटा को बार-बार Read किया जा सकता है पर नया डाटा स्टोर (Write) नहीं किया जा सकता। 
  • सीडी रॉम से डाटा पढ़ने के लिए इंफ्रारेड लेजर बीम (InfraRed Laser Beam) का प्रयोग होता है। 
  • प्रचलित सीडी रॉम का व्यास (diameter) 120 mm तथा मोटाई 1.2 mm होता है। 
  • इसकी स्टोरेज क्षमता लगभग 700 MB (Mega Byte) होती है । 
  • सीडी रॉम को सीडी ड्राइव (CD Drive) की सहायता से पढ़ा जाता है । 
  • सीडी ड्राइव की गति को एक संख्या और ‘x’ से निरूपित करते हैं, जैसे- 1X, 8X, 52X, 72X आदि। 
  • यह डिस्क से डाटा ट्रांसफर की गति को बतलाता है। 

 

सीडी-आर (CD-Recordable) : 

  • यह सामान्य काम्पैक्ट डिस्क की तरह आप्टिकल डिस्क का एक प्रकार है जिसमें सीडीआर ड्राइव (Compact Disc-Recordable Drive) की सहायता से कम्प्यूटर द्वारा डाटा स्टोर किया जा सकता है। 
  • इसे WORM (Write Once, Read Many) डिस्क कहा जाता है जिस पर केवल एक बार लिखा जा सकता है जबकिबार-बार पढ़ा जा सकता है। 
  • एक बार लिखे जाने के बाद डाटा बदला नहीं जा सकता। लेकिन किसी सीडी-आर के बाकी बचे सतहों पर डाटा को अलग-अलग समय में रिकॉर्ड किया जा सकता है। 
  • इसका प्रयोग संगीत व चलचित्र (Music and Video) सीडी तैयार करने तथा डाटा बैकअप रखने के लिए किया जाता है।

 

सीडी-आर/डब्ल्यू (CD-Re-Writable) : 

  • एक सामान्य सीडी की तरह दिखता है तथा आप्टिकल डिस्क का एक प्रकार है। 
  • इस तरह के डिस्क पर धातु की एक परत होती है। इसके रासायनिक गुणों में परिवर्तन कर इस पर बार बार लिखा और पढ़ा जा सकता है। 
  • इसके लिए विशेष सीडीआर/डब्लू ड्राइव (CD-R/W Drive) की जरूरत पड़ती है। 

 

डीवीडी (DVD-Digital Versatile/Video Disk)

  • डीवीडी आप्टिकल डिस्क का एक उदाहरण है। 
  • यह सीडी रॉम की तरह ही होता है, पर इसकी भंडारण क्षमता अधिक होती है। 
  • आरंभ में इसका प्रयोग चलचित्रों (Movies) के लिए किया गया। 
  • ध्वनि के लिए इसमें डाल्बी डिजिटल (Dolby Digital) या डिजिटल थियेटर सिस्टम (DTS-Digital Theater System) का प्रयोग किया जाता है। 
  • डीवीडी में ऑडियो तथा वीडियो डाटा स्टोर करने के लिए MPEG (Moving Picture Expert Group) वीडियो फार्मेट का प्रयोग किया जाता है।
  • इसमें डाटा के दो लेयर संग्रहित किये जा सकते हैं। एकल लेयर डिस्क की क्षमता 4.7GB तथा दो लेयर डिस्क की क्षमता 8.5GB होती है। 
  • आजकल रिकार्ड करने योग्य डीवीडी का प्रयोग किया जा रहा है जिसे डीवीडी-आर (DVD-Recordable) कहा जाता है। 
  • डीवीडी ड्राइव डाटा पढ़ने के लिए लाल रंग के लेजर बीम (Red Laser Beam) का प्रयोग करता है। 
  • आजकल एचडी डीवीडी (HD DVD-High Definition/Density DVD) का भी प्रयोग किया जा रहा है जिसकी स्टोरेज क्षमता सामान्य डीवीडी से 3 से 4 गुना अधिक होती है।

 

ब्लू रे डिस्क (Blu Ray Dise) : 

  • यह आप्टिकल डिस्क का एक प्रकार है 
  • इसको पढ़ने व लिखने के लिए ब्लू वायलेट लेजर किरणों (Blue Violet Laser Rays) का प्रयोग किया जाता है। 
  • इसकी भंडारण क्षमता 25GB (एक लेयर) या 50GB (दो लेयर) हो सकती है। 
  • धूल व खरोच से इसके खराब होने का डर भी कम रहता है। 
  • ब्लू रे डिस्क का आकार सामान्य सीडी या डीवीडी की तरह ही होता है। 
  • ब्लू रे डिस्क हाई डेफिनीशन (HD-High Definition) वीडियो का समर्थन करता है।

 

पेन ड्राइव (Pen Drive) : 

  • इसे फ्लैश ड्राइव (Flash Drive) भी कहा जाता है। 
  • यह पेन के आकार का इलेक्ट्रानिक मेमोरी है जिसे ‘लगाओ और खेलो’ (Plug and Play) डिवाइस की तरह युएसबी पोर्ट (Universal Serial Bus Port) में लगाकर डाटा संग्रहित, परिवर्तित या पढ़ा जा सकता है। 
  • यह ई ई प्रॉम का एक रूप है। 
  • यह स्थायी (Non Volatile) प्रकार का द्वितीयक मेमोरी का एक उदाहरण है जिसे कम्प्यूटर से हटा लेने पर भी डाटा बना रहता है।
  • इसमें पुराने डाटा को मिटाकर नया डाटा बार-बार स्टोर किया जा सकता है (Rewritable)। 
  • यह इलेक्ट्रानिक मेमोरी है, अतः इसमें कोई गतिमान पुर्जा नहीं होता जिससे इसके घिसने और टूटने का खतरा नहीं रहता तथा यह झटके (Mechanical Shock) से भी सुरक्षित रहता है। 
  • मैग्नेटिक डिस्क की तरह पेन ड्राइव पर चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Induction) का कोई प्रभाव नहीं होता। 
  • पेन ड्राइव की स्टोरेज क्षमता गीगा बाइट (GB) तक हो सकती है। 
  • इसके डाटा ट्रांसफर की गति भी तेज होती है तथा डाटा 10 वर्षों तक सुरक्षित रह सकता है। 
  • आजकल पेन ड्राइव का उपयोग डाटा और साफ्टवेयर स्टोर करने, बैकअप बनाने तथा डिजिटल फाइल स्थानान्तरण के लिए किया जा रहा है। 
  • पेन ड्राइव को किसी बाहरी ऊर्जा (External Power Supply) तथा किसी विशेष ड्राइव या साफ्टवेयर की आवश्यकता नहीं होती। कम्प्यूटर इसे स्वयं एक एक्सटरनल स्टोरेज डिवाइस के रूप में पढकर जरूरी साफ्टवेयर इंस्टाल कर लेता है। 
  • कुछ पेन ड्राइव में Read-Write Indicator एलईडी तथा गलती से डाटा मिटने से बचाने के लिए Write Protect Tab भी लगा होता है।

 

मेमोरी कार्ड (Memory Card) : 

  • यह पतले आकार का छोटा कार्ड जैसा इलेक्ट्रानिक मेमोरी डिवाइस है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर के अलावा अन्य आधुनिक उपकरणों जैसे—मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा, पीडीए, पामटॉप, स्मार्टफोन आदि में किया जा रहा है। 
  • इसे मल्टीमीडिया कार्ड (Multimedia Card-MMC) भी कहा जाता है। 
  • इसका उपयोग Removeable Storage Device के रूप में प्रचलित हो रहा है।

 

फ्लैश मेमोरी (Flash Memory) : 

  • यह एक स्थायी (Non Volatile) इलेक्ट्रानिक मेमोरी है जिसमें विद्युत द्वारा पुराने डाटा या प्रोग्राम को हटाकर नया डाटा या प्रोग्राम लिखा जा सकता है। 
  • यह EE PROM का एक उदाहरण है।
  • फ्लैश मेमोरी से सप्लाई हटा लेने के बाद भी डाटा बना रहता है। 
  • इसकी गति क्षमता उच्च है। 
  • वर्तमान में मेमोरी कार्ड के रूप में इसका प्रयोग प्रचलित हो रहा है।

स्मार्ट कार्ड (Smart Card) : 

  • इसे Chip Card या Integrated Circuit Card भी कहा जाता है। 
  • यह एक छोटा प्लास्टिक (Poly Vinyl Chloride) का बना कार्ड है जिसमें स्थायी मेमोरी चिप लगा होता है।
  •  कुछ स्मार्ट कार्ड में माइक्रो प्रोसेसर के साथ ई-प्राम (Erasable Programmable ROM) लगा रहता है। 
  • जिससे डाटा में परिवर्तन भी किया जा सकता है। स्मार्ट कार्ड में निहित डाटा को स्मार्ट कार्ड रीडर द्वारा पढ़ा जाता है।
  • उपयोग- क्रेडिट कार्ड, एटीएम कार्ड, पहचान कार्ड, सेक्यूरीटी कार्ड आदि।

 

वर्चुअल मेमोरी (Virtual Memory)

  • यह मेमोरी प्रबंधन की एक व्यवस्था है जिसमें बड़े साफ्टवेयर प्रोग्राम को मुख्य या प्राथमिक मेमोरी में अंशतः डालकर क्रियान्वित किया जाता है। 
  • किसी भी प्रोग्राम को क्रियान्वित करने से पहले उस प्रोसेस को मेन मेमोरी में डाला जाता है। पर मेन मेमोरी की क्षमता कम होने पर बड़े साफ्टवेयर प्रोग्राम क्रियान्वित नहीं किए जा सकते। इस समस्या के समाधान के लिए वर्चुअल मेमोरी प्रबंधन का प्रयोग किया जाता है।
  • वर्चुअल मेमोरी प्रणाली किसी प्रोसेस को पूर्णतः मेन मेमोरी में डाले बिना उसका क्रियान्वयन सक्षम बनाती है। 
  • वर्चुअल मेमोरी हार्ड डिस्क जैसे सहायक मेमोरी में खाली स्थान का उपयोग रैम (RAM) की आभासी क्षमता बढ़ाने के लिए करता है। 
  • वर्चुअल मेमोरी का आकार डिस्क में खाली स्थान पर निर्भर करेगा।

 

वर्चुअल मेमोरी के लाभ

  • मेन मेमोरी का आकार कम होने पर भी किसी बड़े प्रोग्राम का क्रियान्वयन संभव हो पाता है। 
  • प्रोग्रामर को प्रोसेस तैयार करते समय उपलब्ध मेमोरी क्षमता पर ध्यान नहीं देना होता। इससे सीपीयू की उपयोगिता तथा श्रूपुट बढ़ती है।

 

वर्चुअल मेमोरी के दोष

  • आपरेटिंग सिस्टम द्वारा बेहतर मेमोरी प्रबंधन की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी प्रोग्राम के निष्पादन में समय भी अधिक लगता है।

 

  • फ्लिप फ्लॉप इलेक्ट्रानिक परिपथ से बना एक बाइस्टेबल मल्टीवाइब्रेटर है जो डाटा भंडारण की सबसे छोटी इकाई के रूप में कार्य करता है। 
  • यह एक बिट (0 या 1) को अस्थायी रूप से भंडारित कर सकता है। 

 

प्राथमिक व द्वितीयक मेमोरी में अंतर 

प्राथमिक (मुख्य)

Primary Memory

द्वितीयक (सहायक)

Secondary Memory

स्थान

कम्प्यूटर के भीतर

मुख्यतः कम्प्यूटर के बाहर

प्रकार

अस्थायी (Volatile)

स्थायी (Non Volatile)

क्षमता

सीमित

असीमित

गति

तेज

अपेक्षाकृत धीमी

एक्सेस  टाइम

कम (नैनो सेकेंड)

अधिक (मिली सेकेंड)

प्रति बिट लागत 

अधिक

कम

 

विभिन्न प्रकार के मेमोरी का एक्सेस टाइम तथा स्टोरेज क्षमता

मेमोरी

Memory

एक्सेस टाइम

Acceess time

स्टोरेज क्षमता

Storage Capacity

रजिस्टर

1-2 ns (नैनो सेकेंड)

200 बाइट

कैश मेमोरी

3-10ns

32 KB-4MB

RAM

11-60 ns

16MB-4GB

मैग्नेटिक डिस्क

10-50 ms(मिली. सेकेंड)

160GB-1600GB

आप्टिकल डिस्क

100-200ms

700 MB-60GB

 

वृहद स्टोरेज यूनिट (Mass Storage Device) 

  • कम्प्यूटर के अनुप्रयोग में वृद्धि होने के कारण विशाल डाटा को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की जरूरत उत्पन्न हुई है। इसके लिए कम लागत तथा असीमित क्षमता वाले वृहद स्टोरेज यूनिट का उपयोग किया जाता है। 
  • मास स्टोरेज डिवाइस के उदाहरण हैं
    • (i) डिस्क एरे (Disc Array) : 
    • ( ii) सीडी रॉम ज्यूक बॉक्स (CD ROM Juke Box) :

 

(i) डिस्क एरे (Disc Array) : 

  • यह उच्च क्षमता वाले हार्ड डिस्क प्लैटर का समूह, हार्ड डिस्क ड्राइव तथा निर्धारित साफ्टवेयर का सेट है जिसे एक डिब्बे में सील बंद कर दिया जाता है। 
  • इसे किसी भी कम्प्यूटर के यूएसबी पोर्ट से जोड़कर डाटा स्टोर किया जा सकता है। 
  • इसे रेड (RAID-Redundant Array of Inexpensive Disc) भी कहा जाता है।

 

( ii) सीडी रॉम ज्यूक बॉक्स (CD ROM Juke Box) : 

  • यह CD-ROM डिस्क, CD-ROM ड्राइव तथा निर्धारित साफ्टवेयर का सेट है जिसे एक डिब्बे में सील बंद कर दिया जाता है। 
  • एक ज्यूक बॉक्स में सैकड़ों सीडी रॉम हो सकते हैं जिससे इसकी स्टोरेज क्षमता बहुत अधिक हो जाती है। 
  • इसका प्रयोग लंबे समय तक डाटा सुरक्षित रखने यानि आर्काइव (Archive) के लिए किया जाता है। 

 

बफर (Buffer) 

  • यह अस्थायी (Volatile) मेमोरी का एक भाग है जिसका उपयोग प्रोसेसिंग या इनपुट/आउटपुट डिवाइस को देने से पहले डाटा के अस्थायी भंडारण (Temporary Storage) के लिए किया जाता है। 
  • दो उपकरणों के बीच डाटा स्थानान्तरण की गति में अंतर रहने पर बफर का उपयोग किया जाता है। 
  • आडियो या वीडियो फाइल को चालू करने से पूर्व कुछ डाटा बफर में रख लिया जाता है ताकि इसमें गतिरोध न हो।
  • बफर व कैच (Cache) की कार्य पद्धति व उद्देश्य एक ही हैं। पर कैच की तुलना में बफर का भंडारण अधिक अस्थायी (very temporary) होता है। 

 

स्पूलिंग (Spooling) : 

  • किसी डाक्यूमेंट को प्रिंट करने पर उसे पहले उच्च गति क्षमता वाले प्रिंट बफर में भेजा जाता है। इस कार्य को स्पूलिंग कहा जाता है। 
  • स्पूलिंग के बाद प्रिंटर बफर से डाटा लेकर प्रिंट करता है। 

 

कम्प्यूटर मेमोरी का चयन (Selection of Memory for Use)

  • प्राइमरी या सेमीकंडक्टर मेमोरी 
    • जैसे रजिस्टर, कैश मेमोरी, रैम तथा रॉम 
    • आदि तीव्र गति वाली मेमोरी है। 
    • स्टोरेज क्षमता कम 
    • प्रति बिट लागत अधिक 
  • सहायक मेमोरी 
    • जैसे मैग्नेटिक टेप, मैग्नेटिक डिस्क (फ्लापी डिस्क तथा हार्ड डिस्क) और आप्टिकल डिस्क (सीडी, डीवीडी, ब्लू रे डिस्क)  
    • स्टोरेज क्षमता बहुत अधिक
    •  प्रति बिट लागत भी कम 
    • डाटा प्राप्त करने की गति (Access Time) धीमी 

 

  • कम्प्यूटर के लिए मेमोरी का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि कम खर्च में महत्तम उपयोगिता प्राप्त की जा सके तथा डाटा प्रोसेस की गति भी धीमी न पड़े।