भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India)
- (भाग -5 ,अध्याय -5 ,अनुच्छेद 148-151 )
- भारत के संविधान (अनुच्छेद 148) में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है, जिसे संक्षेप में ‘महालेखा परीक्षक‘ कहा गया है।
- यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग’ का मुखिया (Head of the Indian Audit and Accounts Department) होता है।
Audit -किसी संस्था के हिसाब-किताब की जाँच,अंकेक्षण,लेखा-परीक्षण
- यह लोक वित्त का संरक्षक होता है।
- देश की संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था का नियंत्रक होता है।
- इसका नियंत्रण राज्य एवं केंद्र दोनों स्तरों पर होता है।
- भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले।
- यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारत सरकार के रक्षकों में से एक है।
- उच्चतम न्यायालय
- निर्वाचन आयोग एवं
- संघ लोक सेवा आयोग
नियुक्ति एवं कार्यकाल
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- यह राष्ट्रपति के सम्मुख शपथ या प्रतिज्ञान लेता है
- इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष (जो भी पहले हो) की आयु तक होता है।
- वह अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को भेज सकता है।
- राष्ट्रपति द्वारा इसे उसी तरह हटाया जा सकता है, जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। दूसरे शब्दों में, संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत के साथ उसके दुर्व्यवहार या अयोग्यता पर प्रस्ताव पास कर उसे हटाया जा सकता है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्था की गई हैं:
- 1. इसे केवल राष्ट्रपति द्वारा संविधान में उल्लिखित कार्यवाही के जरिए हटाया जा सकता है।
- 2. यह अपना पद छोड़ने के बाद भारत सरकार का या राज्य सरकार के किसी अन्य पद को ग्रहण नहीं कर सकता ।
- 3. इसका वेतन एवं अन्य सेवा शर्ते संसद द्वारा निर्धारित होती हैं। वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है।
- नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यालय में कार्य करने वाले व्यक्तियों के वेतन भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होंगे। इन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता।
- कोई भी मंत्री संसद के दोनों सदनों में उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है और कोई मंत्री उसके द्वारा किए गए किसी कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकता।
कर्तव्य और शक्तियां
- संविधान (अनुच्छेद 149) संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंन्द्र, राज्य या अन्य किसी सरकारी प्राधिकरण या संस्था के महालेखा परीक्षक से जुड़े लेखा मामलों को व्यास्थापित(MANAGE) करे।
- संसद ने महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां एवं सेवा शर्ते) अधिनियम 1971 को प्रभावी बनाया।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य एवं कर्तव्य
1. वह भारत की संचित निधि, प्रत्येक राज्यों की संचित निधि और प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश, जहां विधानसभा हो, से सम्बंधित व्यय संबंधी, लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।
2. वह भारत की संचित निधि और भारत के लोक लेखा सहित प्रत्येक राज्य की आकास्मिकता निधि और प्रत्येक राज्य के लोक लेखा से सभी व्यय की लेखा परीक्षा करता है।
3. वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के सभी विभागों के लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।
4. वह केन्द्र और प्रत्येक राज्य की प्राप्तियों और व्यय की लेखा परीक्षा करता ।
5. वह सरकारी कंपनियां, निकाय एवं प्राधिकरण, जिन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान मिलता है ,उनकी प्राप्तियों और व्ययों का भी लेखा परीक्षण करता है:
6. वह ऋण,जमा,अग्रिम,बचत खाता(Loan, Deposit, Advance, Savings Account) संबंधित केन्द्रीय और राज्य सरकारों के सभी लेन-देनों की लेखा परीक्षा करता है।
7. वह राष्ट्रपति या राज्यपाल के निवेदन पर किसी अन्य प्राधिकरण के लेखाओं की भी लेखा परीक्षा करता है। उदाहरण के लिए स्थानीय निकायों की लेखा परीक्षा।
8. वह राष्ट्रपति को सलाह देता है कि केन्द्र और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिए। (अनुच्छेद 150 )
9. वह केंद्र सरकार के लेखों से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है, जो उसे संसद के पटल पर रखते हैं (अनुच्छेद 151)।
10. वह राज्य सरकार के लेखों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को देता है, जो उसे विधानमंडल के पटल पर रखते हैं (अनुच्छेद 151)।
11. वह किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों का निर्धारण और प्रमाणन करता है (अनुच्छेद 279)। उसका प्रमाण पत्र अंतिम होता है।
- शुद्ध आगमों का अर्थ है-कर या शुल्क की प्राप्तियां, जिसमें संग्रहण की लागत सम्मिलित न हो।
12. वह संसद की लोक लेखा समिति के मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
13. वह राज्य सरकारों के लेखाओं का संकलन और अनुरक्षण करता है।
- 1976 में इसे केन्द्रीय सरकार के लेखाओं के संकलन और अनुरक्षण कार्य से मुक्त कर दिया गया
- सीएजी सष्ट्रपति को तीन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है-
- विनियोग लेखाओं पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Appropriation Accounts)
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- वित्त लेखाओं पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Finance Accounts)
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- सरकारी उपक्रमों पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट Audit Report on Government Undertakings
राष्ट्रपति इन रिपोर्टों को संसद के दोनों सदनों पर रखता है। इसके उपरांत लोक लेखा समिति इनकी जांच करती है और इसके निष्कर्षों से संसद को अवगत कराती है।
- विनियोग लेखा– वास्तविक खर्च(Actual Expenditure) और संसद द्वारा विनियोग अधिनियम(Appropriation Act) के माध्यम से दी गई राशि के बीच तुलनात्मक स्थिति को सामने रखता है,
- वित्त लेखा – वार्षिक प्राप्तियों(Annual Report) तथा केन्द्र सरकार की अदायगियों (disburements)को प्रदर्शित करता है।
भमिका
- वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान की रक्षा महालेखा परीक्षक करता है।
- मंत्रिपरिषद की संसद के प्रति वित्तीय प्रशासन का उत्तरदायित्व कैग की लेखा परीक्षा रिपोर्टों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है।
- महालेखा परीक्षक केवल संसद के प्रति जिम्मेदार होता है।
- कैग को यह निर्धारण करना होता है कि जिस कार्य हेतु धन आवंटित किया गया था, वह उसी प्रयोजन हेतु उपयोग किया गया है और
- कैग का भारत की संचित निधि से धन की निकासी पर कोई नियंत्रण नहीं है और अनेक विभाग कैग के प्राधिकार के बिना चैक जारी कर धन की निकासी कर सकते हैं, कैग की भूमिका व्यय होने के बाद केवल लेखा परीक्षा अवस्था में है।
- इस संबंध में भारत के कैग की भूमिका ब्रिटेन के कैग से बिल्कुल भिन्न हैं। ब्रिटेन में कार्यकारिणी, लोक राजकोष से केवल कैग की स्वीकृति से धन निकाल सकती है।
CAG तथा निगम
सार्वजनिक निगमों की लेखा परीक्षा में कैग की भूमिका सीमित है।
(i) कुछ निगमों की लेखा परीक्षा पूरी तरह एवं प्रत्यक्ष तौर पर सी.ए.जी. द्वारा की जाती है।
दामोदर घाटी निगम,
तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग,
एयर इंडिया,
इंडियन एयरलाइंस कॉरपोरेशन
एवं अन्य।
(ii) कुछ अन्य निगमों की लेखा परीक्षा निजी पेशेवर (लेखा परीक्षकों) के द्वारा की जाती है, जो सी.ए.जी. की सलाह पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त कर किए जाते हैं।
उदाहरण-केन्द्रीय भंडारण निगम, औद्योगिक वित्त निगम एवं अन्य
(iii) कुछ अन्य निगमों की लेखा परीक्षा पूरी तरह निजी पेशेवर (लेखा परीक्षकों) के द्वारा की जाती है। इसमें सी.ए.जी. की कोई भूमिका नहीं होती है। वे अपना वार्षिक प्रतिवेदन तथा लेखा सीधे संसद को प्रस्तुत करती है।
उदाहरण: जीवन बीमा निगम, भारतीय रिजर्व बैंक, सांप भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय खाद्य निगम इत्यादि।
लेखा परीक्षा बोर्ड (ऑडिट बोर्ड)
- 1968 में सी.ए.जी. कार्यालय के एक अंग के रूप में लेखा परीक्षा बोर्ड (ऑडिट बोर्ड) की स्थापना की गई थी।
- इस बोर्ड की स्थापना भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाओं पर की गई थी।
- इसके एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य होते हैं, जो कि सी.ए.जी. द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।