परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)
- शरीर में रुधिर का परिसंचरण सदैव एक निश्चित दिशा में होता है और रुधिर परिसंचरण का कार्य हृदय द्वारा संपादित किया जाता है।
- रुधिर परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे ने की थी।
- बहुकोशिकीय जंतुओं के शरीर में विभिन्न पोषक पदार्थों, गैसों,उत्सर्जी पदार्थों आदि के परिवहन के लिये एक तंत्र होता है जिसे परिसंचरण तंत्र कहा जाता है।
- मनुष्यों में रुधिर तथा लसिका द्वारा पचे हुए भोजन, ऑक्सीजन, हार्मोन्स, अपशिष्ट उत्पाद जैसे विविध पदार्थ संबंधित अंगों एवं ऊतकों तक पहुँचाए जाते हैं।
- रक्त परिसंचरण तंत्र हृदय, रुधिर एवं रुधिर वाहिकाओं से मिलकर बना होता है।
हृदय (Heart)
- हृदय बंद मुट्ठी के आकार का होता है जो दोनों फेफड़ों के मध्य वक्षगुहा में स्थित रहता है तथा थोड़ा सा बाईं तरफ झुका रहता है।
- यह एक दोहरी झिल्ली ‘पेरीकार्डियम’ से घिरा रहता है।
- हृदय में चार कक्ष होते हैं, जिनमें दो कक्ष अपेक्षाकृत छोटे तथा ऊपर को पाए जाते हैं जिन्हें अलिंद (Atrium) कहते हैं, तथा दो कक्ष अपेक्षाकृत बड़े होते हैं जिन्हें निलय (Ventricle) कहते हैं।
- सामान्य मनुष्य के हृदय का वजन लगभग 300 ग्राम होता है।
- यह प्रति मिनट 70 से 80 बार धड़कता है।
- एक वयस्क व्यक्ति का रक्तचाप लगभग 120/80 होता है। यह रक्तचाप वायुमंडलीय दाब से अधिक होता है।
- हृदय की धड़कन पर नियंत्रण के लिये पोटेशियम (K) आवश्यक है। हृदय दो धड़कनों के बीच आराम करता है।
- प्रकुंचन दाब (Systolic Pressure) = 120 mmHg तथा आकुंचन दाब (Diastolic Pressure) = 80 mmHg के अंतर को नाड़ी दाब (Pulse Pressure) = 40 mmHg कहते हैं।
- हृदय लगभग 5 लीटर रक्त प्रति मिनट पंप करता है।
- नाड़ी की गति हृदय स्पंदन गति (70-90/मि.) के समान होती है।
- हृदय को रक्त का संभरण करने वाली धमनियाँ, हृदय धमनियाँ (Coronary Arteries) कहलाती है, जो शुद्ध रक्त को स्वयं हृदय की दीवार तक पहुँचाने का कार्य करती है।
- रूमैटिक हृदय रोग का इलाज एस्पिरिन की मदद से किया जाता है।
- E.C.G (इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राम) एक प्रकार का चिकित्सीय परीक्षण है जो हृदय की गतिविधि को दर्शाता है।
हृदयाघात (Heart Attack) के लक्षण
- सीने में तेज़ दर्द
- तेज़ पसीना आना एवं जी मिचलाना
- बाँह में दर्द एवं झंझनाहट
कभी-कभी नवजात शिशुओं में सायनोटिक हृदय रोग (हृदय की संरचनात्मक गड़बड़ी, जैसे-फोरामेन ओवेल का जन्मोपरांत भी बंद न होना आदि) के कारण उनके रक्त का पूर्ण तरीके से शुद्धिकरण (ऑक्सीजन से युक्त होना) नहीं हो पाता, जिससे उनकी त्वचा, नाखून, होंठ आदि का रंग असमान्य रूप से नीला पड़ जाता है। इसे ब्लू बेबी सिंड्रोम एवं ऐसे शिशुओं को ब्लू बेबी कहते है। अपर्याप्त ऑक्सीजन के कारण रंग का नीला पड़ जाना ‘सायनोसिस‘ भी कहलाता है। कभी-कभी फेफड़े द्वारा रक्त को शुद्ध न कर पाना भी इसका एक कारण होता है।
सायनोसिस का एक अन्य कारण मिथेमोग्लोबिनेमिया (Methamo-globinemia) भी है। इसमें प्रदूषित भूमिगत जल से नाइट्रेटनवजात शिशुओं के शरीर में पहुँच जाता है जिससे उनके रक्त की ऑक्सीजन वहन क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है एवं शरीर का रंग नीला पड़ जाता है।
रुधिर वाहिकाएँ (Blood Vessels)
- रक्त रुधिर वाहिकाओं में प्रवाहित होता है। रुधिर वाहिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
- 1. धमनियाँ arteries
- 2. शिराएँ Veins
- 3. केशिकाएँ Capillaries
धमनियाँ (Arteries)
- रुधिर को हृदय से विभिन्न अंगों में ले जाती हैं।
- फेफड़ों में जाने वाली फुफ्फुसीय धमनियों (Pulmonary Arteries) के अतिरिक्त इनमें शुद्ध रक्त प्रवाहित होता है।
- धमनियाँ शरीर में काफी गहराई में स्थित होती हैं।
- महाधमनी (Aorta): यह शरीर की सबसे बड़ी धमनी है जो बाएँ निलय से शुद्ध रक्त शरीर में पहुँचाती है।
- फुफ्फुसीय धमनी (Pulmonary Artery) : यह दाएँ निलय से अशुद्ध रक्त फेफड़ों तक पहुँचाती है।
- दायाँ अलिंदः यह शरीर से अशुद्ध रक्त प्राप्त करता है।
- बायाँ अलिंदः बाएँ अलिंद में फेफड़ों से शुद्ध रक्त आकर बाएँ निलय में जाता है।
शिराएँ (Veins)
- ये रुधिर को विभिन्न अंगों से हृदय में ले जाती हैं।
- फुफ्फुसीय शिराओं के अतिरिक्त सबमें अशुद्ध रुधिर प्रवाहित होता है।
- शिराएँ त्वचा के समीप पाई जाती हैं।
- महाशिरा (Vena Cava) : यह हृदय के दाहिने भाग को ऑक्सीजन की कमी वाले रक्त की आपूर्ति करता है।
- यह दो प्रकार का होता है
- 1. अग्रमहाशिरा
- 2. पश्चमहाशिरा
- फुफ्फुसीय शिरा (Pulmonary Vein) : यह शुद्ध रक्त फेफड़ों से बाएँ अलिंद में पहुँचाता है।
- दायाँ निलयः यह अशुद्ध रक्त फुफ्फसीय धमनी में भेजता है।
- बायाँ निलयः यहाँ से शुद्ध रक्त शरीर के सभी ऊतकों में पहुँचता है।
रुधिर केशिकाएँ (Blood Capillaries)
- ये बहुत ही महीन रुधिर वाहिनियाँ होती हैं।
- इनकी भित्ति की मोटाई केवल एक केशिका (Capillary) के स्तर की होती है।
- ये धमनियों को शिराओं से जोडती हैं।
- शिराओ में रुधिर का पश्च प्रवाह (Back Flow) रोकने के लिये वाल्व (Valves) पाए जाते हैं।
- बायाँ अलिंद, बाएँ निलय में एक छिद्र द्वारा खुलता है जहाँ एक वाल्व पाया जाता है। इसे द्विकपाटीय वाल्व (Bicuspid Valve) कहते हैं।
- दायाँ अलिंद, बाएँ निलय में एक छिद्र द्वारा खुलता है जहाँ एक त्रिकपाटीय वाल्व (Tricuspid Valve) पाया जाता है।
- हृदय के दाहिने कक्ष में अवस्थित सिनोएट्रियल नोड (SA Node) हृदय गति को नियंत्रित करता है। इसे प्राकृतिक पेस मेकर भी कहा जाता है। हृदय की पेसमेकर कोशिकाएँ विद्युतीय तरंग उत्पन्न करती है। जो स्पंदन को निष्पादित करती है।
हार्ट मरमरिंग (Heart Murmuring)
- ये हृदय की वे ध्वनियाँ है जो हृदय कपाटों (Mitral Valves) या हृदय के निकट स्थित रक्त शिराओं में रक्त प्रवाह के कारण उत्पन्न होती हैं।
- बच्चों की तेज़ वृद्धि के समय इसका होना सामान्य है जो बड़े होने पर स्वयं चला जाता है।
- कभी-कभी गर्भावस्था, उच्च रक्तचाप या. बुखार के समय हृदय के तेज़ धड़कने से हृदय को अधिक मात्रा में रक्त प्रवाह को सँभालना पड़ता है। इस कारण भी हार्ट मरमरिंग होता है।
- यह सामान्य मरमरिंग है एवं हानिरहित होता है। परंतु जब मरमरिंग क्षतिग्रस्त या अतिकार्य किये हुए हृदय कपाट के कारण होता है तो यह असामान्य मरमरिंग होता है जिसके लिये उपचार की आवश्यकता होती है।
रुधिर
- रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक तथा प्राकृतिक कोलॉइड है जो मुख्यतः दो अवयवों से मिलकर बना होता है-
- 1. प्लाज्मा (Plasma)
- 2. रुधिर कोशिकाएँ (Blood Cells)
प्लाज्मा (Plasma)
- मानव के कुल रक्त आयतन में प्लाज्मा लगभग 55 प्रतिशत होता है
- यह रंगहीन तरल है एवं इसका अधिकाधिक भाग (लगभग 90%) जल होता है। इसमें अनेक प्रोटीन पाए जाते हैं।
- यह CO2 हार्मोन्स एवं अपशिष्ट को ले जाने का कार्य करता है।
- ग्लोब्यूलिन Globulin), एल्ब्यूमिन (Albumin) एवं फाइब्रिनोजन (Fibrinogen), यकृत में बनने वाले प्लाज्मा प्रोटीन हैं।
रक्त कोशिकाएँ (Blood Cells)
ये मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं
- 1. लाल रक्त कोशिकाएँ red blood cells (Erythrocytes)
- 2. श्वेत रक्त कोशिकाएँ White blood cells(Leukocytes)
- 3. प्लेटलेट्स (Platelets)
लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs)
- ये कोशिकाएँ गोलाकार होती हैं एवं इनमें केंद्रक अनुपस्थित होता है।
- हीमोग्लोबिन नामक लाल वर्णक के कारण रुधिर का रंग लाल होता है।
- ये O2 के वहन का कार्य करती हैं।
- इनका जीवन-काल लगभग 120 दिनों का होता है।
- रक्त का सामान्य pH स्तर 7.35 से 7.45 के बीच होता है।
श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBCs)
- ये अनियमित आकार की व केंद्रक युक्त होती हैं।
- रुधिर में लाल रक्त कणिकाओं की अपेक्षा श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या कम होती है।
- ये संक्रमण से शरीर की रक्षा करती हैं। ये रक्त कोशिकाओं में सबसे बड़ी होती हैं।
- WBC का जीवन-काल 10-13 दिनों का होता है।
- मोनोसाइट या केंद्रकाणु सबसे बड़ा श्वेत रक्त कण है।
- लसीका कोशिकाएँ (Lymphocyte Cells) श्वेत रुधिर कणिकाओं के महत्त्वपूर्ण घटक हैं एवं ये सबसे छोटी WBC हैं। ये दो प्रकार की होती हैं
- B–लिम्फोसाइट,
- T-लिम्फोसाइट से
- इनका निर्माण लसीका गाँठों, प्लीहा (Spleen), थाइमस ग्रंथि तथा अस्थि मज्जा द्वारा किया जाता है।
- ये एंटीबॉडी या प्रतिरक्षी प्रोटीन का निर्माण करती हैं और शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- AIDS होने पर इनकी संख्या बहुत कम हो जाती है।
प्लेटलेट्स (Platelets)
- ये सूक्ष्म एवं रंगहीन होती हैं। इनमें केंद्रक नहीं पाया जाता।
- ये रुधिर का जमना/स्कंदन ( Blood Clotting), रक्त वाहिकाओं की मरम्मत तथा संक्रमण से शरीर की रक्षा में सहायक होते हैं।
- रक्त कोशिकाओं (RBC, WBC, Platelets आदि) का निर्माण, जन्म से लेकर वयस्कों तक में लाल अस्थि मज्जा (Red Bone Marrow) में होता है।
- प्लीहा को RBC का कब्रगाह भी कहते हैं क्योंकि यह मृत RBCs का निपटान करती है।
- रक्तदाब का नियंत्रण अधिवृक्क (एड्रिनल) ग्रंथि करती है।
- RBC की सामान्य संख्या
- वयस्क पुरुषः 4.6-6.0 मिलियन/मिमी3
- वयस्क महिलाः 4.2-5.0 मिलियन/मिमी3
- मानव शरीर में रक्त की अपर्याप्त आपूर्ति इस्कीमिया कहलाती है।
- एक स्वस्थ मनुष्य में रक्त का कुल मात्रा 5-6 लीटर होता है।
- रूधिर में हिपैरिन या एंटीथ्राम्बिन नामक प्रतिस्कंदक (Anticoagulant) पदार्थ पाए जाने के कारण रक्त में थक्का नहीं जमता।
रुधिर का कार्य
- परिवहन –O2, CO2, हार्मोन्स (Hormones) एवं अपशिष्टों (wastes) का परिवहन।
- रोगों से बचाव – रुधिर में उपस्थित प्रतिरक्षी (Antibodies) विषैले, बाहरी तथा असंगत पदार्थों को निष्क्रिय करके इनका विघटन कर देते हैं।
- शरीर की सफाई– टूटी-फूटी, मृत कोशिकाओं के कचरे या मलबे आदि का W.B.Cs भक्षण कर नष्ट करते हैं।
- शरीर ताप का नियंत्रण-जब अधिक सक्रिय भागों में तीव्र उपापचय (Metabolism) के फलस्वरूप रुधिर ताप बढ़ने लगता है तो रुधिर त्वचा की रुधिर वाहिनियों में अधिक मात्रा में बहकर शरीर ताप का नियंत्रण करते हैं।
- थक्का जमना– घाव पर रुधिर के थक्का जमने से रुधिर का बहाव बंद होता है।
रुधिर का थक्का जमना (Coagulation of Blood)
- रुधिर का थक्का जमना एक जटिल प्रक्रिया है। रुधिर के जमने के प्रमुख चरण निम्न हैं
- सामान्यतः रुधिर, रुधिर वाहिनी में नहीं जमता परंतु जब क्षतिग्रस्त रुधिर वाहिका से रक्त बहने लगता है तो उसमें उपस्थित प्लेटलेट्स थ्रोम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ स्राव करती हैं।
क्षतिग्रस्त ऊतक + प्लेटलेट्स = थ्रोम्बोप्लास्टिन का स्राव
- थ्रोम्बोप्लास्टिन एवं कैल्शियम की उपस्थिति में रुधिर में उपस्थित प्रोथ्रोम्बिन नामक पदार्थ ‘थ्रोम्बिन’ में परिवर्तित हो जाता है।
प्रोथ्रोम्बिन→थ्रोम्बिन
- थ्रोम्बिन प्लाज्मा में उपस्थित फाइब्रिनोजन को उत्प्रेरित करता है और उसे फाइब्रिन नामक अघुलनशील तंतुओं में बदल देता है।
फाइब्रिनोजन → फाइब्रिन
- फाइब्रिन के तंतु एक जाल बनाते हैं जिसमें रुधिर कणिकाएँ फँस जाती हैं और रक्त का थक्का बन जाता है।
फाइब्रिन + R.B.Cs → रुधिर का थक्का
रुधिर वर्ग (Blood Groups)
- सर्वप्रथम कार्ल लैंडस्टीनर (Karl Landsteiner) ने ज्ञात किया कि सभी मनुष्यों में रुधिर एक समान नहीं होता।
- मनुष्य का रुधिर, लाल रुधिर कणिकाओं में पाए जाने वाले एक विशेष प्रकार के प्रोटीन, एंटीजन्स (Antigens) के कारण भिन्न होता है।
रुधिर के एंटीजन्स तथा एंटीबॉडी (Antigens and Antibodies of Blood) :
- लैंडस्टीनर ने बताया कि मनुष्य के शरीर में गलत रुधिर आधान (Blood Transfusion) के कारण होने वाले अभिश्लेषण (Agglutination = रक्त के अवयवों का चिपकना) दो विशेष प्रकार के प्रोटीन के कारण होता है जिन्हें एंटीजन्स तथा एंटीबॉडी कहते हैं।
- रक्तदाब का मापक यंत्र – स्फिग्मोमैनोमीटर(sphygmomanometer)
- मानवशरीर का रक्तदाब वायुमंडलीय दाब से अधिक होता है। व्यक्ति के वृद्ध होने पर सामान्यतया उसका रक्तचाप बढ़ जाता है।
प्रतिजन/एंटीजन्स (Antigens)
- प्रतिजन वे पदार्थ है जो प्रतिपिंड या प्रतिरक्षी (Antibody) के निर्माण को उद्दीप्त करते है तथा प्रतिरक्षा तंत्र को प्रवर्तित करते है।
- इन्हें ऐग्लुटीनोजेन्स (Agglutinogens) भी कहते हैं, ये सदैव लाल रुधिर कणिकाओं की Plasma Membrane में लगे हुए पाए जाते हैं।
- एंटीजन्स ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) होते हैं तथा ये पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित अर्थात् वंशागत (Inherited) होते हैं।
- मनुष्य में एंटीजन (Antigen) दो प्रकार के होते हैं
- एंटीजन-A
- एंटीजन-B
एंटीबॉडीज (Antibodies)
- इन्हें ऐग्लुटिनिन्स (Agglutinins) भी कहते हैं।
- ये रुधिर प्लाज्मा (Blood Plasma) या सीरम (Serum) में पाए जाते हैं।
- एंटीबॉडी WBC में संश्लेषित गामा ग्लोब्यूलिन (Gamma Globulin) प्रोटीन के रूपांतरण के फलस्वरूप संश्लेषित होता है।
- एंटीबॉडी भी दो प्रकार के होते है
- Anti A or a
- Anti B or b
- परंतु ये शुद्ध प्रोटीन के रूप में होते है।
मनुष्य में रुधिर वर्ग या ABO सिस्टम (Blood Group or ABO System in Human)
- लैंडस्टीनर के अनुसार ABO रुधिर वर्ग सिस्टम के अंतर्गत ग्लाइकोप्रोटीनों की उपस्थिति के आधार पर मनुष्य में चार रुधिर वर्ग (Blood Groups) पाए जाते हैं।
- रुधिर वर्ग ‘A’
- रुधिर वर्ग ‘B’
- रुधिर वर्ग ‘AB’
- रुधिर वर्ग ‘O’
- उपर्युक्त चारों रुधिर वर्गों में से, A, B तथा O वर्ग की खोज कार्ल लैंडस्टीनर ने 1901 ई. में की थी तथा रुधिर वर्ग AB की खोज डीकैस्टेलो तथा स्टर्ली (Decastello and Sturli-1902) ने की थी।
मनुष्य में रक्त का आधान (Blood Transfusion in Man)
- यदि मनुष्य में एंटीजन A है तो उसमें एंटीबॉडी b पाया जाता है तथा यदि मनुष्य में एंटीजन B है तो एन्टीबॉडी a पाया जाता है।
- इस स्थिति में रक्त का अभिश्लेषण (Agglutination-चिपकना) नहीं होता।
- लेकिन यदि रुधिर वर्ग A वाले व्यक्ति को रुधिर B का रक्त दे दिया जाए तो ऐसी स्थिति में रुधिर ग्रहण करने वाले व्यक्ति के रुधिर में एंटीजन तथा एंटीबॉडी एक दूसरे के अनुरूप (एंटीजन A तथा एंटीबॉडी a, एंटीजन B तथा एंटीबॉडी b) हो जाता है और रक्त का अभिश्लेषण हो जाता है। इस रक्त के अभिश्लेषण के कारण रुधिर वाहिनियों (Blood Vessels) में अवरोध उत्पन्न हो जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
- यही कारण है कि रुधिर आधान (खून चढ़ाना) के समय रुधिर वर्ग का मिलान किया जाता है।
- रुधिर वर्ग ‘O’ वाले व्यक्ति का रुधिर सभी रुधिर वर्गों वाले व्यक्तियों को दिया जा सकता है। अतः 0 रुधिर वर्ग को सार्वत्रिक दाता (Universal Donor) कहा जाता है।
- रुधिर वर्ग AB’ वाले व्यक्ति को किसी भी रुधिर वर्ग वाले व्यक्ति का रुधिर दिया जा सकता है। अतः ‘AB’ रुधिर वर्ग को सार्वत्रिक ग्राही (Universal Recipient) कहा जाता है।
रुधिर वर्ग के जीन्स (Genes of Blood Group) :
- मनुष्य की संततियो (Offsprings) की लाल रुधिर कणिकाओं (RBCs) में बनने वाले एंटीजन का निर्धारण जीन्स करते हैं। इन जीन्स की अभिव्यक्ति अंग्रेज़ी के I अक्षर से की जाती है।
- I का अर्थ ; आइसोहीमेग्ल्यूटिनीन (Isohemagglutinin) होता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त करते हैं
- IA– यह एंटीजन-A का निर्धारण करता है (प्रभावी जीन)
- IB– यह एंटीजन-B का निर्धारण करता है (प्रभावी जीन)
- I0– यह किसी भी एंटीजन का विकास नहीं करता है (अप्रभावी जीन)
- किंतु जिस संतान या संतति को माता-पिता से IAIB जीन्स प्राप्त होंगे उसमें एण्टीजन A तथा एंटीजन B दोनों विकसित होंगे, क्योंकि ये जीन समान रूप से प्रभावी होते हैं। अतः संतान का रुधिर वर्ग AB होगा।
- जो संतति I0I0 जीन्स प्राप्त करेगी उसमें कोई भी एन्टीजन नहीं होंगे पर उसका रुधिर वर्ग O होता है।
Rh कारक या एंटीजन (Rh Factor or Antigen)-
- इस एंटीजन की खोज कार्ल लैंडस्टीनर तथा वीनर (1940) ने रीसस बंदर (Rhesus Monkey) की लाल रुधिर कणिकाओं में ज्ञात किया था। यह कारक मनुष्य में भी पाया जाता है।
Rh कारक के आधार पर मनुष्यों का वर्गीकरण
(a) Rh पॉजीटिव (Rh+):
- जिन मनुष्यों की RBCs में यह Rh एंटीजन उपस्थित होता है उन्हें Rh+ मनुष्य कहते हैं।
(b) Rh निगेटिव (Rh-):
- जिन मनुष्यों की RBCs में यह Rh एंटीजन अनुपस्थित होता है उन्हें Rh- मनुष्य कहते हैं।
Rh+ रुधिर का आधान (Transfusion of Rh+ Blood):
- सामान्यतः मनुष्य के रुधिर प्लाज्मा में Rh एंटीजन का एंटीबॉडी Rh- नहीं पाया जाता किंतु यदि रुधिर आधान में किसी Rh- व्यक्ति को किसी Rh+ का रुधिर चढ़ाया जाता है तब उस समय उस ग्राही (Recipient) के लिये Rh एटीजन फॉरेन बॉडी (Foreign body) की तरह कार्य करता है जिससे ग्राही व्यक्ति (Rh- ) के रुधिर में Rh एंटीजन से प्रतिक्रिया करने के लिये Rh-एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है। इस अवस्था में ग्राही व्यक्ति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
- पुनः आवश्यकता पड़ने पर ग्राही व्यक्ति (Rh-) में, जिसके रुधिर में Rh-एंटीबॉडी का निर्माण हो चुका है, को किसी Rh+ व्यक्ति का रुधिर चढ़ाने पर इन Rh- एंटीबॉडी के कारण दाता (Donor) या Rh+ व्यक्ति की लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs) ग्राही के रुधिर में समूह के रूप में चिपकने लगती हैं तथा रुधिर कणिकाओं का समूहन हो जाता है जिससे रक्त का थक्का बनने के कारण रुधिर परिसंचरण रुक जाने से ग्राही की मृत्यु हो जाती है।
- अतः रुधिर आधान में अन्य एंटीजेन्स (Antigens) की भाँति Rh एंटीजन को ज्ञात करना आवश्यक होता है।
Rh-एंटीजन की वंशागति (Inheritance of Rh- Antigen): Rh+ लक्षण Rh- लक्षण पर प्रबल (Dominant) होता है।
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस (Erythroblastosis Fetalis): यह Rh कारक से संबंधित रोग है जो केवल गर्भावस्था में शिशुओं में होता है। इससे प्रभावित शिशु की गर्भावस्था में ही मृत्यु हो जाती है। ऐसे शिशु सदैव Rh+ तथा इनकी माता Rh- तथा पिता Rh+ होते हैं।
रोग के कारण:
- Rh पॉजीटिव पुरुष तथा Rh निगेटिव स्त्री में विवाह होने पर इनसे उत्पन्न होने वाली संतति की भ्रूणावस्था (Embryonic Stage) के परिवर्धन काल में भ्रूण की RBCs से Rh कारक या एंटीजन, प्लेसेंटा (Placenta) से होकर माता के रुधिर में पहुँच जाता है। अब माता के रुधिर में इस बाहरी Rh कारक या एंटीजन के विरुद्ध एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है।
- सामान्यतः प्रथम गर्भ के शिशु को विशेष हानि नहीं होती, क्योंकि इस समय तक माता के रुधिर में Rh एंटीबॉडी की थोड़ी ही मात्रा बन पाती है, किंतु बाद में माता के रुधिर में Rh एंटीबॉडी के अधिक बन जाने के कारण अन्य गर्भ के Rh शिशुओं में इस रोग की संभावना प्रबल होती है। इस स्थिति में माता के रुधिर के Rh एंटीबॉडी, भ्रूण (Embryo) के RBCs के Rh* एंटीजन के साथ मिलकर रुधिर का थक्का (Clot) बना देते हैं जिससे भ्रूण के रुधिर का समूहन हो जाता है तथा भ्रूण की मृत्यु हो जाती है।
उपचारः
- इरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस रोग के उपचार के लिये रुधिर प्लाज्मा से तैयार किये गए इम्यूनोग्लोब्युलिन (Immunoglobulin – IgG), जिसमें अत्यन्त प्रभावकारी rh- एंटीबॉडी होता है, की कुछ मात्रा माता के रुधिर में इंजेक्ट की जाती है।
- यह इम्यूनोग्लोब्युलिन उन Rh एंटीजन को नष्ट कर देता है जो भ्रूण से प्लासेन्टा के माध्यम से माता के रुधिर में पहुँच जाते हैं।
लसीका (Lymph)
- लसीका रुधिर वाहिनियों तथा ऊतकों के मध्य खाली स्थान में एक रंगहीन, स्वच्छ तरल पदार्थ के रूप में पाया जाता है। रुधिर, प्लाज्मा रुधिर केशिकाओं की पतली दीवार से छनकर ऊतक कोशिकाओं के संपर्क में आ जाता है, इस छने हुए द्रव को लसीका या ऊतक द्रव कहते हैं।
- लसीका में लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs) नहीं पाई जातीं।
- इसमें WBCs अधिक मात्रा में पाई जाती हैं।
- इसमें ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
- इसमें CO2 तथा उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अधिक होती है।
लसीका का कार्य(Function of Lymph)
- यह कोशिका ऊतकों से CO2, एवं अन्य हानिकारक पदार्थ लेकर रुधिर तक पहुँचता है।
- कोशिकाओं तक पोषक तत्त्वों, गैसों, हार्मोन्स तथा एंजाइम्स आदि को पहुँचाने का कार्य करता है।
- लसीका अंगों व लसीका ग्रंथियों में लिम्फोसाइट्स का निर्माण होता है, जो जीवाणुओं का भक्षण करती है।
- यह कोमल अंगों की रक्षा करने तथा उन्हें रगड़ से बचाने में सहायक है।
- मनुष्य में शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त अलग-अलग प्रवाहित होता है, अतः मनुष्य में दोहरा रुधिर परिवहन पथ पाया जाता है।
Previous Year Questions :
- Q. एक स्वस्थ व्यक्ति का हृदय 1 मिनट में औसतन कितनी बार धड़कता है? 72 बार
- Q. स्टैथोस्कोप में रोगी की दिल की धड़कन की ध्वनि डॉक्टर के कानों तक पहुंचती है? ध्वनि के बहूपरावर्तन द्वारा
- Q. हृदय कब आराम करता है? दो धड़कनों के बीच
- हृदयाघात से संबंधित प्रमुख लक्षण है ? सीने में दर्द, पसीना एवं जी मतलाना, बांह में दर्द तथा झनझनाहट
- हृदय में कितने कक्ष होते हैं ? चार
- हृदय स्पंदन एक विद्युतीय तरंग द्वारा निष्पादित होता है जो उपजती है ? ह्रदय में
- मानव कलाई में नाड़ी स्पंदन करती है ? हिर्दय के बराबर
- एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य में रक्त का कुल परिमाप होता है? 5-6 लीटर (संपूर्ण शरीर का1/13 भाग)
- रक्त किस प्रकार का उत्तक है ? तरल संयोजी उत्तक
- हीमोग्लोबिन क्या है ? मानव रक्त में पाया जाने वाला पदार्थ
- हीमोग्लोबिन के संबंध में सही कथन है ?
- यह लाल रंग का होता है
- फेफड़ों से कोशिकाओं तक ऑक्सीजन का वाहक होता है
- यह उत्तक को से फेफड़ों तक कार्बन डाइऑक्साइड को पहुंचाता है .
- रुधिर वर्णिका के संबंध में सही कथन है ?
- इसमें लोह होता है
- यह रक्त को लाल रंग प्रदान करता है
- यह रक्त में ऑक्सीजन का वाहक है
- शरीर में हिमोग्लोबिन का कार्य है ? ऑक्सीजन का परिवहन
- निम्नलिखित में से किस प्राकृतिक पदार्थ में लोह विद्यमान होता है ? मायोग्लोबिन
- किस प्राणी के जीव द्रव्य में हिमोग्लोबिन का विलय हो जाता है ? केचुआ
- रक्त में लाल रंग निम्न में से किसके कारण होता है ? हिमोग्लोबिन
- लाल रक्त कणिकाओं का रंग होता है ? हिमोग्लोबिन के कारण
- रक्त शरीर में क्या कार्य करता है ? सारे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है
- मनुष्य का औसत रक्तचाप होता है ? 120/80
- स्वस्थ मनुष्य का रक्तचाप (सिस्टोलिक व डायस्टोलिक) होता है ? 120 मिमी/80 मिमी
- रक्त दाब का मापक यंत्र कौन सा है ? स्फिग्मो मैनोमीटर
- किसी व्यक्ति का रक्तचाप 140 मिमी Hg है, तो इस उल्लेख में Hg से तात्पर्य है ? मरकरी से
- एक व्यक्ति सामान्यता वृद्ध होता जाता है तो उसका रक्त का दाब ? बढ़ जाता है
- हमारे शरीर में रक्त का दाब होता है ? वायुमंडलीय दाब से अधिक
- सार्वत्रिक दाता (यूनिवर्सल डोनर) होता है ? O ब्लड ग्रुप
- सार्वभौमिक प्राप्तकर्ता (सार्विक रक्त आदाता ) होते हैं ? AB ब्लड ग्रुप के लोग
- क्योंकि इनमें एंटीजन (प्रतिजन ) ए और B दोनों होते हैं तथा कोई एंटीबॉडी (प्रतिपिंड ) नहीं होता है
- वर्ग AB रक्त वाला व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति का रक्त ले सकता है जिसका रक्त वर्ग —- हो ? कोई भी वर्ग का
- एक मनुष्य दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और उसे रक्त की आवश्यकता होती है, किंतु उसके रक्त समूह का परीक्षण करने का समय नहीं है, निम्नलिखित में से कौन सा रक्त समूह उसे दिया जा सकता है ? O-
- रक्त समूह की खोज की थी ? कार्ल लैंडस्टेनर ने
- RH कारक का नाम संबंधित है ? एक प्रकार के बंदर से
- माता गर्भस्थ शिशु RH रक्त प्रकार विसंगति की समस्या उत्पन्न हो सकती है, यदि माता ….. है एवं उसका गर्भस्थ शिशु है….. ? RH हिन: RH सहित
- किस देश के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कृत्रिम रक्त बनाया है, जो प्लास्टिक रक्त की किस्म है, जिसे किसी मरीज को रक्त की किस्म का विचार किए बिना दिया जा सकता है ? ब्रिटेन
- कटे स्थानों से रक्त प्रवाह रोकने के लिए फिटकरी का उपयोग किया जाता है
- रक्त एक कोलाइडी निकाय है जिसमें ऋण आवेशित कोलाइडी कण होते हैं
- फिटकरी के एलुमिनियम आयनों की स्कंदन शक्ति अधिक होती है अतः रक्त स्कंदन हो जाता है
- रक्त में श्वेत रुधिररानू या ल्यूकोसाइट की तुलना में बिम्बाणु या रुधिर प्लेटलेट्स की संख्या अधिक होती है
- प्लाज्मा में जल का प्रतिशत होता है ? 90%
- किस शारीरिक प्रक्रम से थ्रोम्बिन का संबंध है ? रक्त जमाव
- रक्त का थक्का बनाने में फिब्रिनोजिन को फाइब्रिन के परिवर्तन में भाग लेने वाला एंजाइम है ? थ्रोम्बिन
- हृदय को रक्त का संभरण करने वाली धमनिया कहलाती है ? हिर्दय धमनिया
- रक्त में शर्करा का स्तर सामान्यतया प्रदर्शित किया जाता है? मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर के रूप में
- डब्ल्यूबीसी का बनना तथा आरबीसी का विनाश होता है ? प्लीहा में
- लाल रक्त कणिकाएं मुख्यतः बनती है ? अस्थि मज्जा में
- रुधिर में श्वेत रक्त कणिकाओं की अत्यधिक मात्रा में उपस्थिति को रोग विज्ञान की भाषा में कहते हैं ? ल्युकेमिआ
- मानव में श्वेत रक्त कणो का व्यास लगभग होता है ? 0.007 मिमी/ 7 माइक्रोमीटर
- मानव रक्त की श्यानता का कारण है ? रक्त में प्रोटीन
- प्रतिरक्षा का सर्वाधिक संबंध है ? लिंफोसाइट से
- मनुष्य के शरीर के किस अंग में लिंफोसाइट का निर्माण होता है ? प्लीहा थाइमस ग्रंथि एवं अस्थि मज्जा आदि में
- रक्त के संचालन में मदद करता है ? लिंफोसाइट
- रक्त के प्लाज्मा में किसके द्वारा एंटीबॉडी निर्मित होती है ? लिंफोसाइट
- सफेद रक्त कण का मुख्य कार्य है ? रोग प्रतिरोधक क्षमता धारण करना
- शरीर में कौन संक्रमण हमारी रक्षा करता है ? सफेद रक्त कण
- एंटीजन के मूल विशेषता क्या है ? वे प्रतिरक्षीओं (एंटीबाडी ) के निर्माण को प्रेरित करते हैं
- प्रतिजन(एंटीजन) ऐसा पदार्थ है जो….. ?
- प्रतिरक्षा तंत्र को प्रवर्तित करता है
- एंटीबाडी ) के निर्माण को प्रेरित करते हैं
- मनुष्य के शरीर का PH मान है ? 7.4 (7.35-7.45 के मध्य)
- यदि एक पिता का रक्त वर्ग A है और माता का O, तो बताइए कि उनके पुत्र का निम्नलिखित में से कौन सा रक्त वर्ग हो सकता है ? O
- एक विवाहित दंपत्ति ने एक बालक को गोद लिया/ इसके कुछ वर्ष उपरांत उन्हें जुड़वा पुत्र हुआ/ दंपति में एक का रक्त वर्ग AB पॉजिटिव है और दूसरे का O नेगेटिव है/ तीनों पुत्रों में से एक का रक्त वर्ग A पॉजिटिव ,दूसरे का B पॉजिटिव हो, तीसरे का O पॉजिटिव है . गोद लिए गए पुत्र का रक्त वर्ग कौन सा है ? O पॉजिटिव