छोटकी बोहोरिया नागपुरी लोककथा (chotki bahuriya )

  

 छोटकी बोहोरिया ( हिन्दी ) 

‘ छोटकी बोहोरिया ‘ लोककथा ‘ नगपुरिया सदानी साहित्य ‘ नामक लोककथा से ली गयी है । यह नागपुरी लोककथा का पहला संग्रह है । इसके संग्रहकर्ता हैं फॉ . पीटर शांति नवरंगी । बाद में इस लोककथा का प्रकाशान सन 2012 ई . में कल्याण विभाग द्वारा प्रकाशित ‘ नागपुरी लोक साहित्य गोछा ‘ में किया गया है । 


‘ छोटकी बोहोरिया ‘ लोककथा एक समाजिक कथा है , जिसमें एक राजा , उसके सात पुत्र और बहुओं की कथा है । राजा अपने सातो पुत्रों का विवाह करते करते एकदम से बहुत गरीब हो जाता है । प्रतिदिन दूसरों के यहाँ रोकाड़ी का काम करके किसी तरह उनका घर परिवार का खर्च चलता था । घर में खाना बनाने एवं घर का काम करने के लिये एक बहु को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य रोकाड़ी कमाने के लिये चले जाते थे । सभी छवों बहु अपनी – अपनी पारी के अनुसार खाना बनाते , खिलाते और घर का सारा काम काज करते । राजा के सभी बड़ी बहुओं ने अपने – अपने पारी के अनुसार सबों की सेवा की । परन्तु कोई भी दिन परिवार के किसी भी सदस्य का पेट नहीं भरता था । सबसे पीछे छोटी बहु का पारी आता है घर में खाना बनाने और घर का काम काज करने का । ससुर – सास , भैंसुर- गोतनी और पति , सभी लोग रोकाड़ी का काम करने के लिये बाहर जा चुके थे , सो छोटी बहु घर के आंगन और घर के पिछवाड़े में जाकर देखी तो धान का भूसा , चावल की खुददी और नहीं कुटाया हुआ धान सभी ओर फेंका हुआ था । यह देख कर वह तुरंत डलिया और सुप निकाल कर उस बिखरे पड़े अनाज को फटकने में जुट गयी । फटक और साफ करने के बाद एक ओर खुददी और धान से सभी घड़े , टोकरी , डेकची के साथ ही साथ छोटे – छोटे बर्तनों अनाज से भर देती है । वह सभी सदस्यों के खाने भर खुददी निकाल कर पानी भींगा देती है । उसके पशचात धान कुटने लगती है । सबों के लिये खाना में रोटी , चावल , साग – सब्जी बनायी  और सबों को खिलायी । सबों ने पहली बार पेटभर के खाना खाया , जैसों सप्ताह भर से भूखा हों । सबों को पेट भरकर खाना खाने का आनन्द मिला । सभी बहुत खुश हुये । ससुर चुप ना रह सका और छोटी बहु को ही घर पर रहकर खाना पीना और घर का सारा काम करने की जिम्मेदारी सौंपता है । यह देख छोटी बहु की बड़ी गोतनियां उससे जलने लगती हैं । जंगल से दतवन , पत्ता लाने के क्रम में साजिश कर के सभी छोटकी बहू को यह कह कर फंसा देती है कि वह सुंदर – सुंदर पत्ते में सास – ससुर का कलेजा खाउँगी कहती थी । सास – ससुर के द्वारा छोटी बहु के बारे में पूछने पर बड़ी बहुओं ने कहा कि हमलोग उसे डांटे और गालियां भी दियें , जिससे वह शर्मा गयी और अकेले ही धीरे – धीरे आ रही है । यह बात सुनकर सास – ससुर और छोटकी के पति और भैंसुर लोग गुस्सायें । पति का तो भरोसा ही टूट गया था पत्नी से । उसका पति छोटकी को बहला फुसला कर जंगल  ले जाता है । छोटकी चलने की वजह से बहुत थक चुकी थी , इसलिये वे दोनों जंगल के अंदर एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं । छोटकी अपने पति के जांघ में सिर रख कर सुस्ताने लगती है और नींद से सो जाती है । उसे नींद में सोता देख उसका पति उसे मरने के लिये वहीं पर जंगल में छोड़ कर चला जाता है । जब उसकी नींद टूटती है तो अपने को अकेला पाती है । वह अपना घर जाने का रास्ता  भी भूल जाती है । किसी प्रकार वह उस भयावह जंगल से बाहर निकलती है और रास्ता भटकने के कारन दूसरे राज्य में पहुँच जाती है । 


जंगल के किनारे एक तालाब में एक धोबिन कपड़ा साफ कर रही होती है । छोटकी उस धोबिन के पास पहुँचती है और उसके साथ काम करने लगती है और उसी के साथ रहने लगती है । छोटकी और धोबिन दोनों ही गर्भवती थी । कुछ दिनों के पशचात छोटकी एक बेटा और धोबिन एक बेटी को जन्म देती है । छोटकी के बेटे के मुँह से निकलने वाला लार सोना और नाक से निकलने  वाला पानी चाँदी में बदल जाता था । यह देखकर धोबिन को लालच आ जाता है और वह छोटकी के बेटे को लेकर दूसरे राज्य में भाग जाती है । छोटकी के बेटे के नाक से निकलने वाला पानी और मुँह से निकलने वाला लार से बने  सोना और चाँदी को जमा कर के बहुत धनी रानी बन जाती है । दूसरी ओर छोटकी धोबिन की बेटी को पालने – पोसने लगती है । वह लड़की जब थोड़ी बड़ी होती तो छोटकी उसे लेकर के अपने बेटे को खोजने के लिये निकल पड़ती है । पहले से जमा किये गये सोना और से वह कपड़ा बनवाती है और गांव– गांव घूमकर , कपड़ा बेचने के बहाने से उस राज्य में पहुँच जाती है जिस राज् में नौकरानी धोबिन महारानी बन कर रह रही थी । छोटकी को देखते ही धोबिन परेशान हो जाती है और उसे भगाने का आदेश देती है । परंतु छोटकी काफी चतुर थी । उसकी बुद्धी के आगे धोबिन की एक भी न चल सकी । छोटकी ने गांव वालों के सामने जो शर्त रखी , उसके अनुसार गांव वालों को पंचायती बैठना पड़ा । पंचयती में छोटकी सभी को बिते हुये दिनों की सारी बातों को विस्तार से बताती है , जिसके बाद नौकरानी धोबिन पकड़ी जाती है । 


छोटकी  को गांव वाले महारानी बना देते हैं और नौकरानी धोबिन को गांव से निकाल देते हैं । अब छोटकी अपने बेटे सोनबरिस के साथ महल में सुख और शांति के साथ रहने लगती है । उधर छोटकी के सास – ससुर , पति , भैंसुर और गोतनी लोग बहुत ही गरीब हो गये थे । किसी दिन तो खाने के लिये उन्हें कुछ भी नसीब नहीं होता था । एक दिन उसकी बड़ी गोतनियाँ दतवन और पतल लेकर छोटकी के महल के पास पहुँचती हैं । बेटा सोनबरिस तो उन्हें पहचान नहीं पाता लेकिन छोटकी उन लोगों को पहचान लेती है । उसकी बड़ी गोतनियाँ भी छोटकी को नहीं पहचान पाती  है । छोटकी उन लोगों से उनकी स्थिति और परिस्थितियों की जानकारी लेने के बाद वह अपने सास – ससुर , पति , भैंसुर और सभी गोतनियों को महल में खाने पीने के लिये आमंत्रित करती है । सभी छोटकी के आमंत्रण पाकर बहुत खुश होते हैं और वहां पहुँच जाते हैं । सबों का बहुत ही आदर – सत्कार किया जाता है । उसके पशचात अपनी पहचान बताते हुये छोटकी उनलोगों को सभी बिती घटनाओं को विस्तार से बता देती है । छोटकी की बातें सुनकर सभी शर्मिंदा हो जाते हैं काफी पछतावा करते हैं । छोटकी के बेटे सोनबरिस की इच्छानुसार बिना किसी भेदभाव के वे सभी महल में ही हंसी खुशी के साथ रहने लगते हैं ।