15. चेरो जनजाति
- प्रजातीय संबंध – प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह
- चेरो जनजाति अपने आप को ‘च्यवन ऋषि’ का वंशज मानती है।
- चेरो जनजाति स्वयं को चौहान या राजपूत कहती है।
- निवास – पलामू व लातेहार जिले में है।
- झारखण्ड की एकमात्र जनजाति है जो जंगलों और पहाड़ों में रहना पसंद नहीं करती है।
- बोलचाल की भाषा – सदानी
- पितृसत्तात्मक समाज
- यह जनजाति दो उपसमूहों में विभक्त है।
- बारह हजारी/बारह हजारिया – स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं।
- तेरह हजारी/ वीरबंधिया
- चेरो जनजाति गोत्रों(पारी) की संख्या – 7
- प्रमुख गोत्र (पारी) छोटा मउआर, बड़ा मउआर, छोटा कुँवर, बड़ा कुँवर, सोनहैत आदि
- इस जनजाति में विवाह के दो प्रकार हैं।
- ढोला विवाह (लड़के के घर लड़की लाकर विवाह) – गरीबों के घरो में
- चढ़ा विवाह (लड़की के घर बारात ले जाकर विवाह)
- वधु मूल्य – को ‘दस्तुरी’ कहा जाता है।
- चेरो गाँव को डीह कहते हैं।
- प्रमुख त्योहार – सोहराय, काली पूजा, छठ पूजा, होली आदि
- प्रमुख पेशा – कृषि
- धार्मिक प्रधान – को बैगा कहा जाता है।
- माटी – जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को कहा जाता है।