आयन (lons ) :
- आवेशयुक्त परमाणु या परमाणुओं के समूह को आयन कहा जाता है ।
- उदाहरण के लिए, सोडियम आयन (Na+), मैग्नीशियम आयन (Mg++),
- आयन दो प्रकार के होते हैं- धनायन (Cation) or ऋणायन (Anion)
- धनायन (Cation) : जिस आयन पर धन आवेश (Positive Charge) होता है, उसे धनायन कहते हैं।
- उदाहरण के लिए, सोडियम आयन (Na+) और मैग्नीशियम आयन (Mg++) धनायन हैं।
- धन आयन का निर्माण परमाणु से एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से होता है ।
- सभी धातु तत्वों के आयन धनायन होते हैं।
- धातु तत्वों के परमाणुओं में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन में बदल जाने की प्रवृत्ति के कारण ये विद्युत् धनात्मक तत्व कहलाते हैं ।
- ऋणायन (Anion) : जिस आयन पर ऋण आवेश होता है, उसे ऋणायन कहते हैं।
- उदाहरण के लिए, क्लोराइड आयन (Cl–), ऑक्साइड आयन (O—), सल्फेट आयन (SO4—),
- ऋणायनों का निर्माण किसी परमाणु द्वारा एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के ग्रहण करने के कारण होता है ।
- सभी अधातुओं के आयन ऋणायन (Anion) होते हैं ।
- अधातु तत्वों के परमाणुओं में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन में बदल जाने की प्रवृत्ति के कारण ये विद्युत् ऋणात्मक तत्व कहलाते हैं ।
संयोजकता ( Valency) :
- तत्वों के परमाणुओं के परस्पर संयोजन करने की क्षमता को ही संयोजकता कहते हैं ।
- अपने निकटस्थ अक्रिय गैस की तरह इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था प्राप्त करने में किसी परमाणु द्वारा त्यक्त या ग्रहित इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या को उस परमाणु संयोजकता कहते है।
- किसी तत्व की संयोजकता उसके परमाणु की बाह्यतम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है ।
- सोडियम (Na) की संयोजकता 1 : सोडियम परमाणु एक इलेक्ट्रॉन का त्यागकर अक्रिय गैस निऑन जैसी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था प्राप्त करता है । अतः सोडियम (Na) की संयोजकता 1 होती है।
- क्लोरीन की संयोजकता 1 : क्लोरीन परमाणु एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर अक्रिय गैस ऑर्गन जैसी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था प्राप्त करता है ।
वैद्युत् संयोजक बंधन या आयनिक बंधन (Electrovalent or Ionic Bond) :
- जब एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण होने से उन दोनों परमाणुओं के बीच बंधन बनता है, तो उसे वैद्युत् संयोजक बंधन कहते हैं।
- इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण इस प्रकार होता है कि प्राप्त आयनों की बाह्यतम कक्षाओं की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था अक्रिय गैसों की भाँति स्थायी बन जाती है।
- उदाहरणार्थ, सोडियम क्लोराइड का बनना – सोडियम (Na) और क्लोरीन (Cl) परमाणुओं की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्थाएँ इस प्रकार होती हैं-
सहसंयोजक बंधन (Covalent Bond) :
- जब दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी फलस्वरूप रासायनिक बंधन बनता है, तब उसे सहसंयोजक बंधन कहते हैं।
- सहसंयोजक बंधन के बनने में दोनों परमाणु इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी इस प्रकार से करते हैं कि निर्मित अणु में प्रत्येक परमाणु एक अक्रिय गैस का स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त कर लेता है ।
- सहसंयोजक बंधन तभी बनता है, जब अभिकारी परमाणुओं को अक्रिय गैस की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता हो ।
सहसंयोजक बंधन तीन प्रकार के होते हैं-
(i) एकल सहसंयोजक बंधन (Single Covalent Bond) : जब दो परमाणुओं के बीच एक जोड़ा इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब एकल सहसंयोजक बंधन बनता है। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन अणु (H) में दोनों H परमाणुओं के बीच साझेदारी में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 (या एक जोड़ा ) होती है। अतः इनके बीच एकल सहसंयोजक बंधन बनता है।
(ii) द्विक सहसंयोजक बंधन (Double Covalent Bond): जब दो परमाणुओं के बीच दो जोड़े इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके बीच द्विक सहसंयोजक बंधन बनता है।
(iii) त्रिक सहसंयोजक बंधन (Triple Covalent Bond) : जब दो परमाणुओं के बीच तीन जोड़ा इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके बीच त्रिक सहसंयोजक बंधन बनता है । उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन अणु का बनना ।
सहसंयोजकता (Covalency):
- किसी सहसंयोजक यौगिक में एक परमाणु की सहसंयोजकता इलेक्ट्रॉनों की वह संख्या है, जिसे वह परमाणु साझेदारी में भाग लेने के लिए, प्रदान करता है ।
- उदाहराण के लिए, H, (H-H) में हाइड्रोजन की सह-संयोजकता 1, O, (O = O) में ऑक्सीजन की सह-संयोजकता 2, N2 (N = N) में नाइट्रोजन की सह संयोजकता 3, CH4 में कार्बन की सहसंयोजकता 4 होती है ।
उप-सहसंयोजक बंधन (Co-ordinate Bond) :
- उप-सहसंयोजक बंधन में इलेक्ट्रॉन युग्म एक ही परमाणु से प्राप्त होता है ।
- इस बंधन की रचना में इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करने वाले परमाणु को दाता तथा ग्रहण करने वाले परमाणु को ग्राही कहा जाता है ।
- दाता परमाणु द्वारा दिये गये इलेक्ट्रॉन युग्म को एकाकी युग्म कहा जाता है ।
- उप-सहसंयोजक बंधन को तीर (→ ) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
- इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करने वाले दाता पर धनात्मक आवेश (δ+) तथा इसे ग्रहण करने वाले ग्राही परमाणु पर ऋणात्मक आवेश (δ–) स्थापित हो जाता है ।
इलेक्ट्रॉन की निर्जन जोड़ी (Lone Pair of Electron) :
- इलेक्ट्रॉनों का ऐसा जोड़ा जो सह- संयोजक बंधन के बनने में भाग नहीं लेते हैं, इलेक्ट्रॉन की निर्जन जोड़ी कहलाता है ।
- उदाहरण के लिए, जल (H2O) के बनने में ऑक्सीजन परमाणु के पास दो जोड़े इलेक्ट्रॉन शेष रह जाते है, जिनका साझा किसी भी परमाणु के साथ नहीं होता है । इसी प्रकार अमोनिया (NH3) में नाइट्रोजन परमाणु के पास एक जोड़ा इलेक्ट्रॉन शेष रह जाता है ।