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झारखण्ड की जनजातियाँ।। चेरो जनजाति
चेरो जनजाति
- प्रजातीय दृष्टि से इस जनजाति का संबंध प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह से है।
- इनका झारखण्ड में सर्वाधिक संकेन्द्रण पलामू व लातेहार जिले में है।
- यह जनजाति स्वयं को ‘च्यवन ऋषि’ का वंशज मानती है।
- यह जनजाति स्वयं को चौहान या राजपूत कहती है।
- यह झारखण्ड की एकमात्र जनजाति है जो जंगलों और पहाड़ों में रहना पसंद नहीं करती है।
- इनकी बोलचाल की भाषा सदानी है।
- इनका समाज पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय होता है।
- यह जनजाति दो उपसमूहों बारह हजारी/बारह हजारिया और तेरह हजारी/वीरबंधिया में विभक्त है। बारह हजारी स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं।
- यह जनजाति 7 गोत्रों(पारी) में विभाजित है। इनके प्रमुख गोत्र (पारी) छोटा – मउआर, बड़ा मउआर, छोटा कुँवर, बड़ा कुँवर, सोनहैत आदि है।
- इस जनजाति में विवाह के दो प्रकार ढोला विवाह (लड़के के घर लड़की लाकर विवाह) व चढ़ा विवाह (लड़की के घर बारात ले जाकर विवाह) हैं। ढोला विवाह सामान्यतः गरीबों के यहाँ देखा जाता है।
- इस जनजाति में वधु मूल्य को ‘दस्तुरी’ कहा जाता है।
- चेरो लोग गाँव को डीह कहते हैं।
- इस जनजाति का प्रमुख त्योहार सोहराय, काली पूजा, छठ पूजा, होली आदि है।
- इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य है।
- इस जनजाति के धार्मिक प्रधान को बैगा कहा जाता है।
- इस जनजाति में जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को माटी कहा जाता है।
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