कॉन्ग्रेस की स्थापना एवं सम्मलेन
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की स्थापना एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (ए.ओ. ह्यूम) द्वारा दिसंबर 1885 में की गई।
- प्रारंभ में इसका नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय संघ’ रखा गया था, लेकिन बाद में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर इसका नाम बदलकर ‘भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस‘ कर दिया गया।
- कॉन्ग्रेस की स्थापना के समय भारत का वायसराय लॉर्ड डफरिन था।
- इसका प्रथम अधिवेशनपुणे में आयोजित किया जाना था, लेकिन पुणे में प्लेग फैल जाने के कारण यह अधिवेशन बंबई में आयोजित किया गया।
- इसका प्रथम अधिवेशन28 दिसंबर, 1885 को बंबई के ग्वालिया टैंक में स्थित ‘गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज‘ में हुआ।
- इस सम्मेलन में भाग लेने वाले सदस्यों की संख्या 72 थी।
- इसमें सर्वाधिक सदस्य बबई प्रांत से (38 सदस्य) थे।
- इस अधिवेशन के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी तथा सचिव ए.ओ. ह्यूम थे।
- इसमें शामिल थे फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैय्यबजी, डब्ल्य.सी. बनजी, आनंद मोहन बोस और रोमेश चंद्र बनर्जी आदि।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के प्रथम अधिवेशन में सुरेंद्रनाथ बनर्जी शामिल नहीं हुए थे, क्योंकि इसी समय Indian National Association,(Founded: 26 July 1876) (भारतीय राष्ट्रीय संघ) का दूसरा ‘अखिल भारतीय सम्मेलन’ आयोजित होना था।
- 1886 में इंडियन एसोसिएशन का विलय भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में हो गया।
- सरसैयद अहमद खान एक ऐसे व्यक्ति थे जो कभी भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े नहीं थे।
- बाल गंगाधर तिलक कॉन्ग्रेस सदस्य होते हुए भी कभी भी इसके अध्यक्ष नहीं चुने गए।
कॉन्ग्रेस की स्थापना से संबंधित विवाद/मत/सिद्धांत
- सेफ्टी वॉल्व(Safety Valve) का सिद्धांतलाला लाजपत राय ने ‘यंग इंडिया'(यंग इंडिया (Young India)/साप्ताहिक पत्रिका/महात्मा गांधी /अंग्रेजी में /शुरुआत 1919) में प्रकाशित अपने एक लेख में दिया था।
- उन्होंने, ‘कॉन्ग्रेस को डफरिन के दिमाग की उपज‘ बताया।
कॉन्ग्रेस से संबंधित विशेष टिप्पणी
- बंकिम चंद्र चटर्जी – “कॉन्ग्रेस के लोग पदों के भूखे हैं।”
- सर सैय्यद अहमद खाँ – “कॉन्ग्रेस आंदोलन न तो लोगों द्वारा प्रेरित था और न ही उनके द्वारा सोचा या योजनाबद्ध किया गया था।”
- अश्विनी कुमार दत्त – “कॉन्ग्रेस सम्मेलन तीन दिन का तमाशा है।”
- बाल गंगाधर तिलक – “यदि वर्ष में हम एक बार मेंढ़क की तरह टर्राएँ तो हमें कुछ नहीं मिलेगा।”
- डफरिन – “वह जनता के उस अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जिसकी संख्या सूक्ष्म है।”
- कर्जन – कांग्रेस अपनी मौत की घड़िया गिन रहा है ,भारत में रहते हुए मेरी एक सबसे बड़ी इच्छा है कि मैं उसे शांतिपूर्वक मरने में मदद कर सकूँ।”
भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के महत्त्वपूर्ण वार्षिक अधिवेशन
Surendranath Banerjee
- उन्होंने इंडियन नेशनल एसोसिएशन नामक एक राष्ट्रवादी संगठन की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने आनंदमोहन बोस के साथ 1883 और 1885 में भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दो सत्रों का नेतृत्व किया।
- उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 1919 में इंडियन नेशनल लिबरेशन फेडरेशन नामक एक नए संगठन की स्थापना की
- उन्हें राष्ट्रगुरु की उपाधि दी गई है।