छाप कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
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  छाप कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

झलफले एक दिन बिहान उइठ सोझाइ गेलों मानुस खोजेले । डहरें भाभले जाहलों कहीं हम पागल तो नात्र जे , मानुस भोरल समाजे हम मानुस खोजोहों मुदा , सइबते हक हम खांटी : मानुस खोजेलें छाप एकाइ डिहइर गेलों । जाइ पहुंचलोगो भेंटाइल एगो जुवान गाल – आंइख घसल , हरल थकल पता लागल सिखित बेरोजगार कहलिये – नुनू , जोदि तोर नाम रामचंदर से रहीम चाँद कइर दियो आर नउकरी कहूँ लागाइ दियो तो करभी ? कहलक – भले भूखें मोइर जिबो मुदा , धरम नाञ छोड़बो डीहेक दोसर मुड़ें एगो बुजरूग भेटल पुछलिये बाबा मूलूक बोड़ ने मजहब ? ‘ मजहब ‘ ताताताही जबाब देल आर दरिहा सोंटै लागल ! ताले सटर बाटें गोहाइर सुनलों दू पाटी मारा – पीटा बामपंथी – दखिनपंथी । इन्कलाब जिंदाबाद हर जोर जुल्म के टक्कर में …. हमसे जो टकरायेगा . मानुस खोजेले हुवों पहुंइच गेलों भीड़ें देखे लागलों छाप । भिनू – भिनू छाप हिन्दू के , मुस्लिम के , जाइत के , पांइत के … अगड़ा – पिछड़ा पाटी के , भिनू – भिनू पंथ लोकेक देहें चमके हे लोकेक देहें चमके हे रंग – बिरंगेक छाप । मुदा , मानुसेक छाप ? ककरो गातें नखे । घूरती बेरें जोरिया धारें सुने पइलों बांसिक मधुर टान मधुर टाने टानाइ गेलों चाइरो बाट गरू – डांगर चरे हथ हाथें बांसी , मुड़े गामछा पथल ऊपर पइना राखल मुँह मुचकी हांसी , हुलसल मन पुछलिये तोर नाम ? -‘टेपरा ‘ जाइत ? – नाञ जानो धरम ? – नाञ जानो खाली गरू टेको हियो । खोजेले जिहा ने बिन खोजले पइहा कांधे टंइगली , गोटे बोन खोजा मिल गेल हमरां – खांटी मानुस जाइत , धरम , पाटी कोन्हो छाप नखे एके गो छाप- ‘ मानु

12 : छाप कविता

भावार्थ – इस दुनिया में हिन्दू है, मुस्लिम है, सिख है, ईसाई है, अलग-अलग जाति है, बड़ा है, छोटा है, अगड़ा है, पिछड़ा है, आदिवासी है, सदान है, अंग्रेजी है भाजपाई है, सब है पर मनुष्य नहीं है। आदमी नहीं है। वास्तव में आदमी तो वह है जो इन विभिन्न छापों से मुक्त है। मनुष्य का कोई छाप नहीं है। मनुष्य सिर्फ मनुष्य हे।

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