डाइन कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
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17 : डाइन कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक 

डाइन , डाइन , डाइन सुनते – सुनते पाकल कान बड़का – बड़का दाँत रहे लंबा लाल जीउ रहे जंतर – मंतर जानोही मुड़े जट बढ़ावोही कांचे मांस कचरही गीदरेक खुइन चुसोही अमावसियाक राती देखा चौबटियें नंगटे भइकें डांड़ाइ बोड़नी बाइंघ के करिया बिलाइर लइके नाचोही गावोही । एकरें कोपे महामारी डाइन कलेरा , मात्र दरसन होवेहे देबी मात्र एखिनेक उपर बतर देख सवार होवोही डाइन , डाइन , डाइन सुनते – सुनते पाकल कान ऐ रे बोका मानुसा एकर भेउ टा जान मगज तनी खाटाइ के बुझ्थेक गाली गुचाइकें पहिले जान तबे माने बेटिक फेंकला चुल्हाक पास बिन जानले काहे माने । बिन कारने कोन्हों घटना घटे नात्र पारे सबले बोड़ कारन मानुसे हवे पारे । समाजेक सगरगाड़ी जनी – मरद दूगो चाक मुदा , जनिक चाक टूटल – टाटल घंसरल चले आर मरदेक गाड़ी देखा गरगराइल अगुवाइल चले । मरद करथ जनिक ऊपर कते अतियाचार चाँद – सुरूज साखी हथ धरती मात्र लाचार मरदें बनवल जनी के छउवा जनमवेक मिसिन जइसें कोन्हों जिनिस होवे पेठिया से आनला कीन । जनिक ऊपर माइर – गारी लाइत जूता , पाहुरेक दान जनिक अबला ह करला मरदे ‘ अपमान ‘ बी . ए . एम . ए . बेटा पास गरीब नारी के बनवला डाइन

ककरो बेटी गोबोर कढ़नी कहूँ बेटी भेल नचनी जनी खातिर सतीप्रथा बनवला कहीं रंडीखाना मरद खातिर ई जगतें न सताप्रथा न रंडाखाना । जनी मोरलें मरद देखा दोसर बिहा करे मुदा , मरद मोइर गेलें जनी रॉड़े भइके मोरे । जनिक गुलाम बनवे खातिर मरद बनवला डीहें डाइन । सिरजनकारिनी नारी कि हवे पारे डाइन । डाइन बनवेक चाइर गो कारन “ गरीबी , अधबइसु , असिकच्छा , काना पतियार समाज अमीर , राजा , जमींदारेक मात्र , बहुक के कहतइ डाइन ककर दूगो मुड़ ह जे एकरां देतइ माइन जे एकरां देतइ माइन । पढ़ल – लिखल नारी के कहमक भला डाइन ? कानापतियार समाजें

गातें जकर बोल हइ डीहें रंगदारी ह गावें जमींदारी ह जे कोरही करम कांधी हके परेक अरजन खनिहार हके बोकोस , ओझा , गुनिक नावें मानुस के ठकनिहार हके मानुस रूप इ सइतान इमान बेचे ई बइमान एकरे मारीं डीहें डाइन कानापतियारें देहथ माइन । ए रे मानुस । मानुसें कि मानुस खाइ ? ई जुगे कि भूत पावाइ ? काहे सतावे नारी के मात्र अइसन प्यारी के परेक मात्र तोर मात्र सिरजनकारिनी हवे माञ मरद ले बोड़ जनी हवे ई जगतेक मनी हवे जनी के मान देवे जान तबे बाढ़त समाजेक सान

भावार्थ-झारखण्ड में डाइन जैसे अंधविश्वास का प्रचलन बहुत जोरों पर है। इस बात पर कटाक्ष किया गया है कविता में। प्रायः हम किसी गरीब, कमजोर, असहाय महिला को डाइन घोषित कर देते हैं और समाज में होने वाली किसी घटना, रोग-व्याधि का सारा दोष डाइन रूपी महिला पर थोप देते हैं। यह भारी अंध विश्वास है, इसका परित्याग करना जरूरी है। 

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