बुनियादेक पथल : तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

  बुनियादेक पथल  कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

नजइर गाबचाइ हेरे गेलें सुपती से घूँदी तक देखे पांवोहों ई परियाक समाजें भोरल हे तैंतीस करोड़ खामखेयालिक देबताक थान । हियां रोइज बालुक भीत नियर माटिक भूत् – भगवान बनोहय रोइज मानुसेक कपारें भाइग लिखाइ जाहे लीलज जीउ आपन सवारथ चाटल परें । भाइग आर भगवानेक चाइट ले हथ । आर देखे पावो हों जाइत – पांतिक जोभी पेंचा भोइर कादा करिया – गोरा , थुलथुल- पातर कादाफ भीतर जोगटी पुलइन पेंगरपसर हवो हथ आर माटिक रकत चुसोहय ई समाजें आर एगो फोटो झलकेहे घमचुवाक कोन्हो मोल नाञ घोंघचल सवारथ पइर लोक परेक अरजन बइसले – बइसल घीवें छाकल मालपुवा खा हथ उड़ीस जोंक नियर घमगाराक रकत चुसो हथ कि ? दंगदंग खांड़ा नियर हाड़ लइके मानूस बाचता ? आर एगो अड़गुड़ा जनी बनवल गेल हथ छउवा जनमेक मिसीन दान करेक बसूत गोला बइन गेल हथ समाजेक मरद बाह रे । समाजेक सगरगाड़ी एक चाके गाड़ी डहरे डिहर जितक ? ई फटक फुलाञ , पोंगापंथी खामखेयालिक गोबोरडींग दुरगंइध बासा हे ई दुरगंइथे नाक फाटे हे लुगे लेपटल्हीं कि कोन्हो गात मानुस बने पारत ? असंभव , कयूँ नाञ तो आवा , नावा समाज गहें खातिर सभीन मिल – मिस के बनब बुनियादेक पथल ।

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – बुनियाद का पत्थर/बुनियाद की ईंट 

भावार्थ – यह भी एक आह्वान/उद्बोधन गीत/कविता है। आज हमारे देश में धर्म-सम्प्रदाय का भेद-भाव जाति-पाति का भेदभाव, भाग्य-भगवान का चक्कर, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब को भेद-भाव चरम पर है। हड्डी-तोड़ काम करने वाला भूखों मरता है और बाते बनाने वाला निकम्मा मौज उड़ाता है। आओ हम इन सारे भेद-भावों को मिटाकर नये समाज की स्थापना करते हैं और बुनियाद का पत्थर बने।

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