सांप कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
बाप रे बाप , बाप रे घरे कल परे अजगर जइसन लंबा – चउड़ा जियत मानुस भोकसनिहार थुलथुल वाला भोटीवाला जघऽ जमीन हड़पनिहार , खादी वाला खाकी वाला रोटी – माटी लुटनिहार परेक अरजन खाने वाला छाती मूंग दररनिहार , बेल हरि बोल बोले वाला रातीं बोतल खोले वाला घरें – घरें लूट करे वाला भायें – भायें फूट करे वाला सड़कें झंडा ढोवे वाला इन्कलाब बोल बोले वाला , मानुस खोरई के मारले नाञ पाप रे । बाडू चिती बजवे बाजा गहुमन हके एकर राजा दुधिया करिया रंग – बिरंग मानुस मारेके भनु ढंग मुड़े खिस दांते रिस मुहें राखे चुपें बिस मुड़ उठाइके मानुस काटे सुखल टांइड़ें मानुस मोरे
अइसन मानुस के ई दुसमन डरें मानुस करे पूजन देहें घाम नाञ गारेवाला परेक डींड माड़े वाला आदिक माडल हमर ठांव राज करे ऊ गोटे गाँव बारी झारी जहाँ पइभक खंइचला ‘ लइके ‘ झांप रे । डोंड़ हके घरेक दलाल धामना हके गांवेक काल दलाल दुइयों मिल के अजगर सहियाक लइके गहुमन के नेता माइनकें घर दूकबे चहइक के पाटी पोवा रोइज चलाये घरें – घरें खुब लड़ावे नेता देवता के चिन्हावे जनता के ई खुब चरावे सीधा – सादा गांवेक लोक कूटनिती में एकदम फोंक जाल- जाल महाजाल दलाल हथ बड़का काल सांप जइसन काल के करिहें नाञ माफ रे । बाप रे बाप , बाप रे घरें दूकल सांप रे ।।
18 : सांप कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
भावार्थ-इस कविता में सांप शोषक अत्याचारी, भ्रष्टव्यक्ति का प्रतीक है। ऐसे लोग छोटे-बड़े, मोटे-तगड़े हर प्रकार के होते हैं जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के सांप होते हैं। इन शोषकों, भ्रष्टचारियों की प्रवृति और सांप की प्रवृति एक समान होती है उसका और उसे मार डालना, खड़े-खड़े लील जाना।
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