हेठमुड़िया कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
You are currently viewing हेठमुड़िया कविता  तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

 

हेठमुड़िया कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

हेंठमुड़िया गरूक पीठें पइना चले । दामड़ा बाछा साँढ़ देखा हँकइद बुले ।। भेड़ा – भेड़ी पठरूक मुड़ हेंठें रहे एहेक लेल मुड़गड़वा पाहुर परे , झबरल मुहाँ बाघ गरजल चले । दामड़ा बाछा साँढ़ देखा हँकइद बुले लेदा गाछेक फोर सभीन तोरे पारे सरगे टांगाइल खिजूर आँट लागे पारे सरगेक बदरी देखा गरजल चले । दामड़ा बाछा साँढ़ देखा हँकइद बुले । पूजा – पाठ नेम – धरमें जनी डिहरे हांथो जोरे देखा मुड़ पटके । तावे जनी चुल्हें पोड़ल चले । दामड़ा बाछा साँढ़ देखा हँकइद बुले । मुड़ ऊपर करेक उंता – सुता करा नमो – नमो निंगछाछोरी करा गाली गुचाइ बुइथ बाढ़ल चले । दामड़ा बाछा साँढ़ देखा हँकइद बुले ।।

8.हेठ मुड़िया कविता

नीची गर्दन वाला कविता


हेठ –  नीचे

मुड़िया – गर्दन/सिर वाला 

भावार्थ – जिसे स्वयं अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं है, वह सदा अपनी गर्दन नीचे किए हुए रहता है। और नीची गर्दन वालों पर दुनिया हर तरह का  अत्याचार करती है, पर जो सिर उठाकर चलता है, उससे दुनिया डरती है, सलाम करती है, सम्मान देती है। ठीक वैसा ही जैसा कि नीचे गर्दन लिए बैल की पीठ पर डंडा पड़ता है, पर ऊंची गर्दन/सिर किए सांढ से सभी डरते हैं। नारियां सिर नीचा किए रहती है, अतः पुरूष उस पर अत्याचार करता है। जिस दिन औरत सिर उठाकर चलना शुरू करेगी उस दिन पुरूष-समाज उसे सम्मान देगा। 

khortha for JSSC
khortha for JSSC

Leave a Reply