फुनगिनी कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक 

देस गहें खातिर सरदार बने हतो समाज गर्हे खातिर समझदार बने हतो , गीला माटी सुधे माटिक लोंदा हवे पारे मानुस गर्हे खातिर साहितकार बने हतो । धाराञ बोहे खातिर धारदार बने हतो माटिक रइखा खातिर चउकीदार बने हतो , ले गोठ ले मानुस के भिनू करे खातिर कुछ तो कलाकार- साहितकार बने हतो । सइतान बने खातिर मुरदार बने हतो भगवान बने खातिर जादुगर बने हतो , मनुस बने खातिर तनी आँट लागे पारे इनसान बने खातिर इमानदार बने हतो । बिन बइरसाक तोञ कि चास करेहें खामखेयाली गात के नास करेहें , जा जिनगी माटिक जे चिन्हल नखे अइसन पुता से कि आस करेहें । डीहेक भीतरें केउ सियार नात्र हल परेक अरजन केउ खनिहार नाञ हल , सहर बनेक पहिले डीहेक आस – पासें मानुसेक भेसें केउ हूँडार नात्र हल पोंगापंथिक थोपल डीडा खांधार मेटाइ देहक सोझ डहरें डिहरवइयाक पांधार मेटाइ देहक ,

मेंटाइ देहक ऊँच – नीचेक कांटा – कुसाकडहर समतावादिक सुरूज उगाइ आंधार मेंटाइ देहका कुर्सी चोर नेता सब बइमान बनबहथ चमचा – बेलचा सबके दरवान बनवऽहथ देसेक नेता किना – बेचा करथ मानुस के मुदा , कलमकार मानुस के इनसान बनव हथ पेट भोकसा देसेक नेता दलाल बने पारे भूखल मानुस कर्मों महाकाल बने पारे , संतवेक नाञचाही बेसी गरीब लोक के बेसी पोड़ले करिया कोयला लाल बने पारे । भले तोञ आपन डींडाक नाम नात्र कर सुगुनबासी माटी के बदनाम नाञ कर , माटिक कोरवी ले कहूँ जनमें पारे कांटा मुदा , जनमथान माटी के लीलाम नाञ कर । M बाघेक खोहें हुँडारेक खेल देख ले लकराक संगे सियारेक मेल देख ले , दूध के अगोरिया हिया बिलाइर बनल हे बनज – खनिज लुटेके धूरखेल देख ले । एक लोक माँड़ खातिर छउवा कांदे घरें मायेक आँचरा भींज जाइ आँखी केरी लोरें जकर गरमें सोना – हीराक मरल भंडार है । सइ धरतिक मानुस आइज बोर गाछेक तरें माटिक सपुत तोञ , तोत्र धरतिक लाल झूरें – पातें टाका फोरे ई माटी टकसाल 

तोर – भाते धुरा , अइसन काहे मीरा । नागपुरेक नाग जाग , जाग महाकाल ।। सीदा – सादा भेस हमर बोने बाडल गाँव गीत गावे नदी – नाला नीमे पाडल छाँव , माटिक मान मिले जहाँ मायेक समान जान दइ जोगावा भाई आदिक माडल ठाँव । डहरेक मोल तखन , डहर मुंदाइ जखन आलोक मोल तखन , आलो निझाइ जखन , सांझ होवेक पहिले आलो बारे सीख ले जिनगिक मोल तखन , जिनगी सिराइ जखन । जिनगी टा काहे तोञ नास करेहें अइसन गोठे काहे बास करेहें , मात्र , माटी , मानुसेक हित जोदि नखो तो कनफुसकी बात कि खास करे । दिनेक आलोञ डहर धइर गीदरो चले पारे अंधार रातीं जुतागोड़े सभी ने चले पारे मानुसेक जिनगी तो ओकरे सफल होवे जे धूरागोड़ें डहर बनाइ बोने चले पारे ।

21 : फुनगिनी कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – शीर्ष, श्रेष्ठ, फुनगी 

भावार्थ-यहां छोटी-छोटी कविताएं (क्षपिकाएं) प्रस्तुत की गई है। उसे कवि ने काव्यापु अदा है। ये क्षपिकाएं प्रगतिशील विचारों से ओत-प्रोत है। इन क्षपिकाओं के माध्यम से वैसे श्रेष्ठ विचारों को प्रस्तुत किय गया है, जिससे समाज का हित हो, विकास हो।

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फुनगिनी ( काव्याणु ) कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक