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झारखण्ड की जनजातियाँ।। कवर जनजाति
कवर जनजाति
- यह जनजाति कौरवों के वंशज हैं।
- इस जनजाति का संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है।
- इनकी भाषा कवराती (कवरासी) या सादरी है।
- कवर झारखण्ड की 31वीं जनजाति है जिसे भारत सरकार ने 8 जनवरी, 2003 में जनजाति की श्रेणी में शामिल किया है।
- यह जनजाति पलामू, गुमला व सिमडेगा जिले में निवास करती है।
- इनका परिवार पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय होता है।
- इस जनजाति में कुल 7 गोत्र पाए जाते हैं, जिनके नाम प्रह्लाद, अभिआर्य, शुकदेव, तुण्डक, वशिष्ठ, विश्वामित्र व पराशर हैं।
- इनका समाज बहिर्विवाही होता है। अर्थात् विवाह हेतु अपने वंश या गोत्र के बाहर की कन्या को ढूंढा जाता है, जिसे ‘कुटमैती प्रथा‘ कहते हैं।
- इस जनजाति में चार प्रकार के विवाह प्रचलित हैं जिसमें क्रय विवाह सर्वाधिक प्रचलित है।
- इसके अतिरिक्त इनमें सेवा विवाह, ढुकू विवाह व जिया विवाह का प्रचलन पाया जाता है।
- इस जनजाति में वधु मूल्य को सुक-दाम कहा जाता है।
- वधु मूल्य रूप में नकद के अतिरिक्त 10 खंडी चावल दिये जाने पर इसे ‘सुक-मोल‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति का पंचायत प्रधान सयान कहलाता है तथा इनकी ग्राम पंचायत का संचालन प्रधान या पटेल करता है।
- इस जनजाति के लोग मुख्यतः करम, तीज, जयाखानी, हरेली, पितर-पूजा आदि पर्व मनाते हैं।
- इस जनजाति का प्रमुख पेशा कृषि कार्य है।
- कवर सरना धर्मावलंबी हैं तथा इस जनजाति का सर्वोच्च देवता भगवान है, जो सूर्य का प्रतिरूप है।
- इनके ग्राम देवता को खूट देवता कहा जाता है।
- इनके गांव का पुजारी पाहन या बैगा कहलाता है।
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