सूफी एवं भक्ति आंदोलन
मध्यकाल में समाज में ऐसे सुधार की सख्त आवश्यकता थी जिसके द्वारा ब्राह्मण धर्म के कर्मकाण्ड एवं इस्लाम में कट्टर पंथियों के प्रभाव को कम किया जा सके। अतः सूफी एवं भक्ति आन्दोलनों का शुभारंभ हुआ।
सूफी आंदोलन
- सूफी मत, इस्लाम धर्म में उदार, रहस्यवादी और संश्लेषणात्मक प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाली विचारधारा हैं।
- सूफी शब्द की उत्पत्ति के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है।
- पहला मत – सबसे प्रसिद्ध मत के अनुसार (अबू नसर अल सराज‘ की पुस्तक ‘किताब उल लुमा’ में किये गये उल्लेख के आधार पर ) सूफी शब्द ‘सूफ‘ से विकसित हुआ है जिसका तात्पर्य है- ऊन या ऊनी कपड़ा। सूफी साधक आरंभिक समय में भेड़ या बकरी की ऊन से बने कपड़े धारण किया करते थे। संभवतः इसलिए उन्हें सूफी कह दिया गया।
- दूसरे मत के अनुसार, सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द ‘सफा‘ से हुई है जिसका अर्थ है- पवित्रता , विशुद्धता या शुद्धि की अवस्था। इसके अनुसार आचरण की पवित्रता और शुद्धता के कारण ही इन लोगों को सूफी कहा गया।
- एक अन्य मत के अनुसार मदीना में निर्मित मस्जिद के बाहर सफा अर्थात् मक्का की एक पहाड़ी पर कुछ लोगों ने अपने को खुदा की अराधना में लीन कर लिया, अतः सूफी कहलाए।
- सूफी संतों ने एकेश्वर में विश्वास, भौतिक जीवन के त्याग, कर्मकांडों के विरोध, शांति, धार्मिक सहिष्णुता एवं अहिंसा पर बल दिया।
- 8वीं शताब्दी के सूफियों को ‘मौनी’ कहा गया क्योंकि वे मौन साधनारत रहते थे, जनता के बीच प्रचार नहीं करते थे।
- मंसूर हल्लाज (858-922 ई०) प्रथम साधक था जिसने अपने को ‘अनलहक़ (( मैं ईश्वर हूँ) घोषित किया और परिणामस्वरूप उसे उलेमा द्वारा फांसी दिया गया।
- परवर्ती काल में मंसूर सूफ़ी विचारधारा का प्रतीक बन गया।
- मंसूर अल हल्लाज ( 10वीं सदी) के सिद्धांतों के आधार पर ही इंसान-ए-कामिल’ (पूर्ण व्यक्ति) की अवधारणा विकसित हुई ।
- ईरान और भारत में सूफी मत के विकास में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आठवीं शताब्दी में महिला सूफी संत राबिया का जिक्र बसरा में मिलता हैं ।
- अबू- हमीद अल गजाली (1058-1111ई०) ने सूफ़ीमत को मुस्लिम जगत में सम्मानित स्थान प्राप्त कराया और उसी के चिन्हों पर जलालुद्दीन रूमी और फ़रीदुद्दीन अत्तार ने सूफी मत को आरोपी और उलेमा के अत्याचारों से मुक्त किया।
- इब्नुल अरबी प्रथम व्यक्ति था जिसने सूफी जगत में महत्वपूर्ण वहदत-उल-वुजूद (आत्मा-परमात्मा की एकता) का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
- इस सिद्धांत का सारांश यह रहा है कि भगवान सर्वव्यापी है और सब में उसी की झलक है। उससे कुछ भी अलग नहीं है। सभी मनुष्य समान हैं ।
- इस समय तक सूफी बारह सिलसिलो में बंट चुका था। लेकिन आईने अकबरी में अबुल फजल ने 14 सूफी सिलसिलो का वर्णन किया हैं।
कुछ सूफी शब्द एवं उनके अर्थ
- 1. अनलहक– मैं ईश्वर हँ
- 2. खानकाह – सूफी संतों के रहने की जगह
- 3. पीर, शेख,मुर्शीद – गुरु
- 4. मुरीद– शिष्य
- 5. वली – उत्तराधिकारी
- 6. हक – परमात्मा
- 7. खल्क – सृष्टि
- 8. तरीकत – कुराण की उदारवादी व्याख्या
- 9. मौनी – प्रारम्भिक सूफी संत
- 10. सिद्ध– चिश्ती संत
- 11. इंसान- ए-कामिल – पूर्ण व्यक्ति
- 12. समा – संगीत आयोजन
- 13. मलफूजात – वार्तालाप
- 14. मकामात – ईश्वर का अनुभव करने के लिए पड़ाव
- 15. ख्वाजगान – “नक्शबंदी’ का प्रारंभिक नाम
- 16. हाल – मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों का सामना
- 17. तसव्वुफ – रहस्यवाद
- 18. मुतालिज – तर्क बुद्धिवादी दर्शन
- 19. मज़जूब – शरिया की पूर्ण उपेक्षा करने वाला
- 20. जमाल – ईश्वर, सौन्दर्य
- 21. फुतूह – उपहार
- 22. सफा – पवित्रता, ऊन, चटाई, चबूतरा, प्रथम पंक्ति, एक पहाड़ी
भारत में प्रमुख सूफी सिलसिले
भारत आकर बसने वाले आरंभिक सूफियों में अल हुजविरि सर्वप्रमुख है। उसने कशफ – उल – महजूब नामक एक ग्रंथ लिखा था जो सूफी मत का एक प्रामाणिक ग्रंथ है।
- सूफियों के आरंभिक केन्द्र – मक्का मदीना, बसरा, कूफा आदि।
दस अवस्थाएँ जिनसे परमपद प्राप्ति के लिए प्रत्येक सूफी को गुजरना पड़ता था-
- 1.तौबा – पश्चाताप
- 2.वरा – संयम
- 3.तवाकुल– प्रतिज्ञा
- 4. जुहद्– भक्ति
- 5. फग्र– निर्धनता
- 6. सब्र – संतोष
- 7. रिजा– आत्म-समर्पण
- 8. शुक्र – आभार
- 9. खौफ– डर
- 10. रजा – उम्मीद
13वीं – 14वीं शताब्दी में अफगानिस्तान के रास्ते अनेक सूफी सिलसिलों से संबंध रखने वाले लोग भारत आए । ईश्वर-प्रेम तथा मानव सेवा उनका ध्येय था। उनके पवित्र आचरण ने भारत की जनता को शीघ्र आकृष्ट किया।
सूफी सिलसिले दो वर्गों में विभाजित थे –
(i) बा-शरा– अर्थात् इस्माली विधि (शरा) का अनुकरण करने वाले।
(ii) बे-शरा– जो इस्माली विधि से बँधे हुए नहीं थे।
- चिश्ती सिलसिला
- सुहरावर्दी सिलसिला
- कादिरी सिलसिला
- नक्शबंदी सिलसिला
- सत्तारी सिलसिला
चिश्ती सिलसिला
भारत में चिश्ती संप्रदाय सबसे अधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध हुआ।
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती
- भारत में चिश्ती परंपरा के प्रथम संत शेख उम्मान के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती थे।
- मोईनुद्दीन चिश्ती 1192 ई. में मुहम्मद गौरी(मुइजुद्दीन मुहम्मद-बिन-साम/शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी/गौर वंश का मुहम्मद) के साथ भारत आए थे।
- इन्होंने ‘चिश्तिया परंपरा’ की नींव रखी थी।
- 1206 ई० में उसने अजमेर में अपनी खानकाह स्थपित की।
- मोईनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना केंद्र (खानकाह) बनाया।
- उनकी दरगाह अजमेर में स्थित है और ‘ख्वाजा साहब‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
- प्रमुख शिष्य–
ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
- वे इल्तुतमिश के समकालीन थे।
- हॉसी और अजोधन को अपना केन्द्र बनाया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक उनका अनुयायी था ।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रसिद्ध सूफी संत ‘ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी’ की स्मृति में दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव रखी, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
- ख्वाजा फरीदुद्दीन मसूद (‘गज-ए-शकर’ या ‘बाबा फरीद) उनका उत्तराधिकारी बना।
बाबा फरीद /शेख फरीदुद्दीन मसूद / गंज-ए-शकर(1175-1265)
- बाबा फरीद (गंज-ए-शकर) के कारण चिश्ती सिलसिले को भारत में अत्यधिक प्रसिद्धि मिली।
- बाबा फरीद, ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे
- निवास स्थल – अजोधन , पंजाब में (वर्तमान नाम – पाकपटन/पाटणफ़रीद ,पाकिस्तान )
- ‘बाबा फरीद का निम्न वर्गों के लोगों से अधिक लगाव था।
- इनकी अनेक रचनायें उनकी मृत्यु के 300 वर्ष बाद भी गुरु अर्जुनसिंह के द्वारा गुरुग्रंथ साहिब में शामिल कर ली गई। (1604 ई० में)
- वे बलवन का दामाद माने जाते हैं।
- नाथपंथी योगी उनकी खानकाह में आकर रहस्यवाद के स्वरूप पर बहस किया करते थे।
- फरीद की मजार– पाकपाटन
- फरीद के प्रमुख शिष्य
- हजरत निजामुद्दीन औलिया
- हजरत अलाउद्दीन साबिर
निज़ामुद्दीन औलिया (महबूब-ए-इलाही) (1238-1325)
- संत निजामुद्दीन औलिया, बाबा फरीद के शिष्य थे।
- निज़ामुद्दीन औलिया ने दिल्ली के सात सुल्तानों का शासनकाल देखा था, किंतु वे किसी भी सुल्तान के दरबार में उपस्थित नहीं हुए।
- शिष्य
-
- ‘शेख बुरहानुद्दीन गरीब’
- अमीर खुसरो
- शेख सलीम चिश्ती
- अमीर हसन सिज्जी द्वारा लिखित फवायद – उल – फुवाद में उनकी शिक्षा और मलफजात (वार्तालाप) संकलित है।
- योग में दक्ष होने के चलते ‘सिद्ध’ कहलाते हैं।
- ‘महबूब-ए-इलाही’ (ईश्वर के प्रेमी) की उपाधि मिली।
- ‘गयासुद्दीन से मतभेद एवं ‘हुनूज दिल्ली दुरस्थ’ की भविष्यवाणी ।
- मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली में उनका मकबरा बनवाया ।
- दिल्ली में शेख नासिरुद्दीन महमूद ‘चिराग-ए-दिल्ली’ उनका उत्तराधिकारी थे।
नासिरुद्दीन महमूद ‘चिराग-ए-दिल्ली’
- चिश्ती संत नासिरुद्दीन महमूद ‘चिराग-ए-दिल्ली’ अर्थात ‘दिल्ली के चिराग’ नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए।
- रचना– तौहीद -ए -वजूदि
- कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा और सूफी मत के बीच सामंजस्य स्थापित किया।
- चिराग-ए-दिल्ली का अर्थ दिल्ली का दीप ।
- चिश्ती सम्प्रदाय की उन प्रथाओं को छोड़ दिया जो कट्टरपंथी इस्लाम से टकरायी थीं।
- दूसरी तरफ उलेमा से चिश्ती सम्प्रदाय की प्रमुख प्रथा समा (संगीत आयोजन) के प्रति रुख नरम करने को कहा।
- चिराग-ए-दिल्ली के शिष्य
- गेसूदराज
शेख बुरहानुद्दीन गरीब
- निज़ामुद्दीन औलिया के शिष्य
- दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले को प्रारंभ करने का श्रेय ‘शेख बुरहानुद्दीन गरीब‘ को जाता है।
- मुहम्मद तुगलक ने दक्कन जाने पर मजबूर किया।
- दक्षिण भारत में उसने 1340 में चिश्ती सिलसिले की नींव डाली।
- दौलताबाद को अपना मुख्य केन्द्र बनाया।
मुहमद बिन युसूफ अलहुसैनी (बन्दे नवाज़ गेसूदराज )
- उर्दू शायरी का पहला पुस्तक मिराज उल आशिक़ीन लिखा।
- बहमनी सल्तनत की स्थापना के बाद कर्नाटक के गुलबर्गा में जाकर बस गए।गुलबर्गा में दरबार से रिश्ता कायम किया और राज्य संरक्षण स्वीकार किया। गुलबर्गा उस समय बहमनी राज्य की राजधानी थी।
- फिरोजशाह बहमनी से बतौर अनुदान ‘बंदानवाज’ को चार गाँव मिले।
- बहमनी सुल्तान उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार को भू- अनुदान देते रहे.
- चिराग-ए-दिल्ली का प्रमुख शिष्य था।
- ‘बंदानवाज’ की उपाधि धारण की।
- गेसूदराज ने उलेमा को न भाने वाली सभी प्रथाएँ छोड़ दीं।
- पूर्ववर्ती चिश्तियों के विपरीत तसव्वुफ ( सूफी चिंतन) पर खूब लिखा।
- बंदानवाज एक कट्टरपंथी सूफी था।
- उसने सूफी मत की अपेक्षा इस्लामी कानून (शरीयत) को प्रमुखता दी ।
संत शेख सलीम चिश्ती
- मुगल शासक अकबर फतेहपुर सीकरी के चिश्ती संत शेख सलीम चिश्ती के प्रति आदर भाव रखता था तथा अपने पुत्र जहाँगीर को उनका ही आशीर्वाद समझता था।
- ‘फतेहपुर सीकरी’ में अकबर ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे का निर्माण कराया।
हाजी रूमी
- इन्होंने बीजापुर में खानकाह की स्थापना की।
चिश्ती सिलसिले की विशेषता
- चिश्ती सिलसिले के संत अत्यंत उदार प्रवृत्ति के थे। उन्होंने ऊँच-नीच, धर्म-जाति और जन्म के भेदभाव को त्याग कर मानव सेवा व प्रेम को प्रमुखता दी।
- चिश्ती सिलसिले से संबंधित संत सुल्तान या अमीरों से कोई वास्ता नहीं रखते थे। एक बार अलाउद्दीन खिलजी ने निज़ामुद्दीन औलिया से मिलने की इच्छा जाहिर की, लेकिन औलिया ने कहा, “मेरे घर में दो दरवाजे हैं, यदि बादशाह एक से अंदर आता है तो मैं दूसरे से बाहर चला जाऊँगा।”
- चिश्ती संतों ने संगीत को बढ़ावा दिया।
- चिश्ती सिलसिले के संत व्यक्तिगत संपत्ति को आत्मिक उन्नति और विकास के मार्ग में बाधा मानते थे। उनका रहन-सहन अत्यंत साधारण था।
- चिश्ती सिलसिले के संत ईश्वर के प्रति प्रेम और मनुष्य मात्र की सेवा में विश्वास रखते थे। वे मनुष्य मात्र की सेवा को भक्ति से भी ऊँचा समझते थे।
सुहरावर्दी सिलसिला
- सुहरावर्दी सिलसिले के संस्थापक -बगदाद के शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी
- भारत में सुहरावर्दी सिलसिले के संस्थापक – शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के शिष्य बहाउद्दीन जकारिया
- जकारिया सुहारावदी के आदेश पर भारत आए ।
- कुबाचा – इल्तुतमिश संघर्ष में इल्तुतमिश का पक्ष लिया।
- इल्तुतमिश ने जकारिया को शेख-उल-इस्लाम (इस्लाम प्रमुख) का खिताब दिया और अनुदान की व्यवस्था की।
- उन्होंने राज्य का संरक्षण स्वीकार किया तथा काफी धन इकट्ठा किया।
- सुहरावर्दी सिलसिले का केंद्र – मुल्तान ,पंजाब व सिंध में
- सुहरावर्दी सिलसिले पर परंपरावादी रूढ़िवादी विचारों का अत्यधिक प्रभाव था। इस सिलसिले के संत चिश्ती सिलसिले के विपरीत शासक वर्ग से संबंध रखते थे तथा राजकीय पद और संरक्षण का लाभ उठाते हुए अत्यंत आराम से जीवन व्यतीत करते थे।
- सुहरावर्दी सिलसिले के प्रमुख संत
- शेख रुक्नुद्दीन
- शेख सलाउद्दीन जमाली
- मखदूमें जहाँनियाँ
- सैय्यद जलालुद्दीन बुखारी
- हमीमुद्दीन नागौरी (उपाधि-सुल्तान-ए-तारीकिन’ (सन्यासियों के सुल्तान)
- जलालुद्दीन तबरीची,
- सैय्यद (सुर्खपोश
- बुरहान ।
- तबरीची ने बंगाल में खानकाह स्थापित की।
- सुहारावर्दी सूफियों ने हिन्दुओं को मुसलमान बनने के लिए प्रेरित किया तथा प्रशासनिक पद ग्रहण किया।
- सल्तनत काल में सुहारावर्दी गतिविधियों के तीन प्रमुख केन्द्र थे- पंजाब, सिन्ध एवं बंगाल
- एक सुहारावर्दी संत जलालुद्दीन बुखारी ने फिरोज तुगलक की नीतियों को प्रभावित किया।
सुहरावर्दी सिलसिले की शाखा
(I) फिरदौसी उपसंप्रदाय :
- संस्थापक– शेख बदरुद्दीन (14वीं शताब्दी में, राजगीर में, बिहार में)
- प्रमुख संत- शेख शरफुद्दीन याह्या मनेरी प्रभाव क्षेत्र- बिहार एवं बंगाल
- फिरदौसी शाखा के संस्थापक सैफुद्दीन बखरजी ,वही भारत में इसके संस्थापक बदरुद्दीन समरकंदी है .
- इसके सबसे प्रमुख संत हज़रत शफुद्दीन याहया मनेरी थे।
- इनके पत्रों को ‘मक्तूबात‘ के नाम से जाना जाता है।
(II) सत्तारी उपसम्प्रदाय :
- संस्थापक- शेख अब्दुल्ला सत्तारी
- प्रभाव क्षेत्र -बंगाल, जौनपुर, दक्खन
- प्रमुख संत – मोहम्मद गौस
- मोहम्मद गौस ने हठ योग की एक पुस्तक ‘अमृतकुंड’ का फारसी में नया अनुवाद किया।
- मोहम्मद गौस की सबसे अधिक विख्यात रचना जवाहिर-ए-खम्सा है जिसमें उन्होंने अपनी आध्यात्मिक खोज को अभिव्यक्त किया।
- इस रचना में रहस्यवादी और जादुई क्रियाओं का भी उल्लेख है।
- उसने ‘बहर उल हयात’ का सिद्धांत दिया जो आगे चलकर दारा शिकोह द्वारा प्रतिपादित मज्मा – उल – बहरीन का आधार बना।
- गौस ने संस्कृत का अध्ययन कर कलीद-ए-मखाजिन नामक ग्रंथ लिखा ।
- हुमायूँ से गौस के अच्छे संबंध थे परन्तु बैरम खाँ से संबंध के चलते अकबर से संबंध अच्छे नहीं थे।
चिश्ती सिलसिला और सुहरावर्दी सिलसिला में अंतर
- चिश्ती सिलसिले के संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप नहीं रखते थे, जबकि सुहरावर्दी संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप रखते थे।
- चिश्ती संतों को जो धन मिलता था, उसे वे लोगों में बाँट देते थे, जबकि सुहरावर्दी संत बहाउद्दीन जकारिया ने सब प्रकार से धन इकट्ठा किया।
- चिश्तियों के ‘जमातखाना’ में हर तरह के लोग आ सकते थे, वे सभी एक बड़े कमरे में बैठते थे। जबकि सुहरावर्दी सिलसिले के लोगों को अलग-अलग रहने का स्थान दिया जाता था। अमीर और साधारण लोगों को मिलने के लिये अलग-अलग समय दिया जाता था।
कादिरी सिलसिला
- कादिरी संप्रदाय की स्थापना– बगदाद के अब्दुल कादिर जिलानी ने 12वीं सदी में की थी।
- शेख मुहम्मद उल हुसैनी के पुत्र शेख अब्दुल कादिर ने पूरे भारत में इस परंपरा का प्रचार किया। (अन्य स्रोतों में मोहम्मद गौस गिलानी/ जिलानी को श्रेय है।
- कादिरी सिलसिले के सबसे प्रमुख संत शेख मीर मुहम्मद या मियाँ मीर थे।
- शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह इस सिलसिले का अनुयायी था।
- भारत में इसे शाह निजामतुल्लाह और नासिरुद्दीन मुहम्मद जिलानी ने संगठित किया।
- दृष्टिकोण – कट्टरपंथी, उलेमा से मेल खाता था।
- उद्देश्य – गैर-इस्लामी प्रभावों से ग्रस्त भारतीय मुसलमानों की जिन्दगी में सुधार लाना ।
- राज्य संरक्षण स्वीकार किया।
- मियाँ मीर का शिष्य ‘मुल्ला शाह’ दारा शिकोह और उसकी बहन जहाँआरा बेगम के आध्यात्मिक गुरु थे।
- जहाँआरा ने ‘साहिबिया’ शीर्षक से मुल्ला शाह का जीवन-वृत्तान्त लिखा ।
नक्शबंदी सिलसिला
- 13वीं सदी में नक्शबंदी सिलसिले की स्थापना ख्वाजा उबैदुल्ला (अन्य स्रोतों में ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंद) ने की थी।
- भारत में इसे लोकप्रिय(स्थापना) बनाने का काम ख्वाजा बकी बिल्लाह ने किया।
- इन्हें नक्शबंदी इसलिए कहा गया कि ये लोग आध्यात्मिक तत्वों से सम्बन्धित तरह-तरह के नक्शे बनाकर उसमें रंग भरते थे।
- इस सिलसिला के अनुयायियों का विश्वास सनातन इस्लाम में था।
- नक्शबंदी सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत शेख अहमद सरहिंदी थे, जो मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के समकालीन थे। ये इस्लाम के प्रबल समर्थक थे।
- 1619 में जहाँगीर ने शेख अहमद शेख अहमद सरहिंदी को पाखंडी होने के आरोप पर गिरफ्तार करवा लिया। उलेमा ने इस कार्य का समर्थन किया।
- शेख अहमद सरहिंदी ने अकबर की उदार धार्मिक नीतियों का विरोध किया। औरंगजेब इस परंपरा का समर्थक था। औरंगजेब नक्शबंदी सिलसिले का अनुयायी 1665 ई० में बना।
- अठारहवीं शताब्दी में नक्शबंदी सिलसिले में एक नई परम्परा तरीकाए मुहम्मदिया विकसित हुई जिसमें पैगम्बर मुहम्मद के उपदेशों को नई शक्ति देने का दावा किया गया।
- इस आन्दोलन के दो नेताओं ख्वाजा मुहम्मद नासिर अंदलीब ने किताब “नालाए अंदलीब” एवं उसके पुत्र ख्वाजा मीर दर्द ने “इल्म उल किताब” की रचना की ।
- मीर दर्द उर्दू का कवि था।
- शेख अहमद के शिष्य ‘आदम बनूरी’ को शाहजहाँ ने देश से निष्कासित कर दिया।
- शाहवली उल्लाह देहलवी भी नक्शबंदी सिलसिले से संबद्ध था।
- उसने हुज्जत उल्लाह इल बालिघा प्रपत्र लिखा। कुरान का फारसी अनुवाद किया ताकि आम लोग उसे सहज रूप से समझें ।
- मिर्जा महजर जानेजाना प्रथमतः नक्शबंदी सिलसिला के अनुयायी थे लेकिन कादिरी, सुहारावर्दी और चिश्ती परम्पराओं की भी दीक्षा ली। मीर दर्द की तरह वे भी उर्दू कवि थे।
- बाबर नक्शबंदी नेता ख्वाजा उबैदुल्ला अहरार का भक्त था।
नक्शबंदी सिलसिले की विशेषता
- सूफी सिलसिलों में नक्शबंदी सिलसिला सबसे कट्टरपंथी था।
- नक्शबंदी सिलसिले के संत ‘शरीयत’ पर अधिक जोर देते थे।
- इस सिलसिले के लोग संगीत के विरोधी थे।
- उन्होंने एक ईश्वरवाद के सिद्धांत को भी चुनौती दी।
सत्तारी सिलसिला
- इस सिलसिले की भारत में स्थापना शाह अब्दुल सत्तार द्वारा की गई।
- शत्तारी सिलसिले का प्रभाव जौनपुर, बंगाल और दक्कन के क्षेत्रों में था।
- इस सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत ग्वालियर निवासी हज़रत मुहम्मद गौस थे।
- इन्होंने संगीत के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- संगीत सम्राट तानसेन इन्हीं के शिष्य थे।
शत्तारी सिलसिले की विशेषता
- इस सिलसिले के संतों ने भी राज्य संरक्षण तथा शासक वर्ग से संबंध रखा।
- शत्तारी संत आराम पूर्वक जीवन व्यतीत किया करते थे तथा हिंदू और इस्लाम धर्म में समन्वय का समर्थन करते थे।
- खानकाह -सूफी संतों की गतिविधियों का केंद्र/ निवास स्थल
- वहादत-उल-वुजूद -परमतत्त्व की एकता का सिद्धांत (आत्मा-परमात्मा की एकता)
- वहादत-उल-शुहूद -प्रत्यक्षवाद (इसमें खुदा को स्वामी और भक्त को दास माना जाता है)
- रिज़ा –आत्मसमर्पण
- फ़ना–एकाकार (विलीन) हो जाना (अहम् का दफन)
- हकीकात – सात्विक ज्ञान की प्राप्ति की अवस्था
- मारिफत – ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति हेतु उन्मुख होना
- इश्कहकीकी – अलौकिक प्रेम (परम सत्य से प्रेम)
- इश्कमजाजी – लौकिक प्रेम (सांसारिक प्रेम)
- मसनवी – वर्णनात्मक कविताएँ
- शेख/ पीर – गुरु / मार्गदर्शक
- मुर्शीद – शिष्य
- बाबा फरीद का पंजाबी साहित्य पर अनूठा प्रभाव है।
- कुतुबन, मंझन, जायसी और नूर मुहम्मद जैसे सूफी कवियों का साहित्य अवधी भाषा में है।
- नव सूफीवाद के संत जफ़र, ख्वाजा मीर दर्द, ग़ालिब आदि उदार कवियों ने अपनी कविताओं में मनुष्य की वास्तविकता को पहचानने का प्रयत्न किया है।
- योग की पुस्तक अमृतकुंड का संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद हुआ।
- सूफी सिलसिले की दो श्रेणियां
-
- बा-शरा -शरीयत को मानने वाले
- बे -शरा -शरीयत को नहीं मानने वाले(घुमकड़ संत )
ऋषि सम्प्रदाय ( 15वीं – 16वीं शताब्दी)
- संस्थापक – शेख नुरुद्दीन वली (कश्मीर)
- ऋषि सम्प्रदाय ने कश्मीर में लोकप्रिय शैव भक्ति परंपरा से प्रेरणा ली तथा ग्रामीण परिवेश में फला – फूला ।
- ऋषि सम्प्रदाय से पूर्व इस्लाम धर्म प्रचार के लिए मीर सैय्यद हमादानी, हमादान से अपने शिष्यों सहित कश्मीर आया परन्तु कश्मीर की जनता पर इसका थोड़ा ही प्रभाव पड़ा।
कलंदरी सिलसिला
- संस्थापक– ‘निजामुद्दीन कलंदर’ निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था ।
- इस सिलसिला के सन्त घुमक्कड़ फकीर होते थे।
- वे इस्लामी कानून का पालन नहीं करते थे तथा निंदनीय माने जाते थे।
- उनका कोई आध्यात्मिक गुरु और संगठन नहीं था।
- उन्होंने नाथपंथी मान्यताओं और प्रथाओं को अपनाया विशेषकर नाथपंथियों के समान कान छिदवाना।
महादवी सिलसिला
- इनका मत था कि महादवी सिद्धांत से असहमत मुसलमानों पर भी जजिया लगाना चाहिए।