BIOLOGY
CHAPTER 1 – INTRODUCTION
- बायोलॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग – 1801 में लैमार्क (फ्राँस) और ट्रेविरेनस (जर्मनी) ने किया था।
- जीव विज्ञान का जनक (Father of Biology) – अरस्तू (Aristotle) को
- जंतु विज्ञान का जनक (Father of Zoology) – अरस्तू को
- पुस्तक – ‘Historia Animalium‘ – 500 जंतुओं का वर्णन
- वनस्पति विज्ञान का जनक (Father of Botany) -थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को
- पुस्तक – ‘Historia Plantarum’
सजीवों के गुण (Characteristics of Living Organisms)
- कोशिकीय संगठन (Cellular Organisation)
- उपापचय (Metabolism)
- वृद्धि (Growth)
- प्रजनन (Reproduction)
- चेतना (Consciousness)
- गति (Movement)
- पोषण (Nutrition)
- उत्सर्जन (Excretion)
कोशिकीय संगठन (Cellular Organisation)
- सभी सजीवों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई – कोशिका (Cell) है।
उपापचय (Metabolism)
- सजीवों के शरीर में होने वाली सभी जैव रासायनिक क्रियाओं को संयुक्त रूप से उपापचय कहते हैं।
- ये सजीव के वृद्धि एवं विकास, प्रजनन, तथा अनुकूलन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
ये दो प्रकार की होती हैं
- उपचयन (Anabolism)
- अपचयन (Catabolism)
वृद्धि (Growth)
- भोजन का उपयोग कर सजीवों में नई कोशिकाओं का निर्माण
प्रजनन (Reproduction)
- सजीवों द्वारा अपने समान जीवों को जन्म देने की क्षमता
चेतना (Consciousness)
- यह सजीवों को निर्धारित करने वाला गुण है।
- संवेदनशीलता (Sensitivity)/प्रतिक्रिया करने की क्षमता
जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति
- जीवों के आधुनिक वर्गीकरण की शुरुआत कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) के द्विजगत-सिद्धांत (Two Kingdom Classification) से होती है।
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- जंतु जगत (KingdomAnimal)
- पादप जगत (Kingdom-Plantae)
- वर्गिकी का पिता (Father of Taxonomy) – कैरोलस लीनियस
- कैरोलस लीनियस ने जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति को 1753 में दिया।
- उदाहरण – होमो सेपियंस (Homo sapiens) – मानव का वैज्ञानिक नाम
- Homo sapiens = Homo + sapiens
- पहला शब्द Homo = वंश नाम (Generic Name)
- दूसरा शब्द sapiens = जाति नाम (Species Name)
जीवों के पाँच जगत वर्गीकरण
- व्हिटेकर (R.H.Whittaker) ने ‘पाँच जगत वर्गीकरण’ दी है।
- उन्होंने जीवों को पाँच जगत (Kingdom) में बाँटा।
ये पाँच जगत हैं
- 1.मोनेरा (Monera)
- 2.प्रोटिस्टा (Protista)
- 3.कवक (Fungi)
- 4.पादप (Plantae)
- 5.जंतु (Animalia)
1.मोनेरा (Monera)
- यह एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीवों का समूह है अर्थात् इनमें न तो संगठित केंद्रक होता है और न ही विकसित कोशिकांग होते हैं।
- इनमें केंद्रिका झिल्ली का अभाव होता है।
- इनमें से कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं।
- पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी रसायन संश्लेषी/प्रकाश संश्लेषी अथवा विषमपोषी मृत जीवी/परजीवी दोनों हो सकते हैं।
- उदाहरणार्थः जीवाणु, यथा-नील हरित शैवाल अथवा सायनो बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा आदि।
प्रोटिस्टा(Protista)
- इनमें एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं। हालाँकि कभी-कभी ये बहुकोशिकीय भी होते हैं, यथा-केल्प या समुद्री घास।
- प्रोटिस्टा जगत पादप, जंतु एवं कवक जगत के बीच कड़ी का कार्य करता है।
- इस वर्ग के कुछ जीवों में गमन के लिये सीलिया, फ्लैजेला नामक संरचनाएँ भी पाई जाती हैं।
- कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है।
- इनमें केंद्रिका झिल्ली पाई जाती है तथा ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं।
- उदाहरणार्थ-एककोशिकीय शैवाल, डायटम, प्रोटोजोआ, यूग्लीना, पैरामीशियम, क्लोरेला, अमीबा आदि इसी जगत के सदस्य हैं।
कवक (Fungi)
- ये बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव हैं।
- ये विषमपोषी होते हैं जो पोषण के लिये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं, अतः इन्हें मृतजीवी भी कह दिया जाता है।
- इनमें से कई अपने जीवन की एक विशेष अवस्था में बहुकोशिकीय क्षमता प्राप्त कर लेते हैं।
- इन कवकों में काइटिन (Chitin) नामक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति (सेल्युलोस अनुपस्थित) पाई जाती है।
- यीस्ट, पेंसीलियम, मशरूम आदि इसी जगत के सदस्य हैं।
सूक्ष्म जीव (Microorganism)
संरचना के आधार पर सूक्ष्म जीवों का वर्गीकरण
सबसेलुलर (Subcellular):
- इस प्रकार की संरचना में DNA या RNA एक प्रोटीन आवरण द्वारा घिरा हुआ होता है। जैसे-विषाणु (Virus)।
- विषाणु सूक्ष्म आकार के होते हैं परंतु ये अपना पोषण स्वयं नहीं करते।
- इसके लिये इन्हें मेज़बान (Host) की आवश्यकता होती है।
- ये जीवाणु पौधों तथा जीवों मे गुणन कर वृद्धि कर सकते हैं।
- इन्हें निर्जीव एवं सजीव के बीच की कड़ी भी कहा जाता है।
- वायरस की खोज रूसी वैज्ञानिक दमित्री इवानविस्की ने 1892 में तंबाकू में मौजेक रोग की खोज के दौरान की थी।
- कुछ सामान्य रोग, जैसे- जुकाम, फ्लू, खाँसी आदि विषाणुओं के द्वारा होते हैं। पोलियो और खसरा जैसी खतरनाक बीमारियाँ भी वायरस के कारण होती हैं।
प्रोकैरियोटिक (Prokaryotic):
- इनकी कोशिका संरचना साधारण होती है जिसमें केंद्रक एवं उपांग (Organelles) उपस्थित नहीं होते, जैसे- जीवाणु (Bacteria)।
- यह प्रोकैरियोटिक एक कोशिकीय सरल जीव है।
- ये मोनेरा जगत के अंतर्गत वगीकृत किये गए हैं। कुछ बैक्टीरिया, जैसे- नॉस्टॉक एवं एनाबिना पर्यावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं।
- ये नाइट्रोजन, फास्फोरस, आयरन एवं सल्फर जैसे पोषकों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यूकैरियोटिक (Eukaryotic):
- इनकी कोशिका संरचना जटिल होती है जिसमें केंद्रक एवं उपांग उपस्थित होते हैं, जैसे- प्रोटोजोआ, कवक, शैवाल आदि।
- अधिकांश कवक परपोषित मृतजीवी होते हैं।
- इनमें जनन कायिक खंडन, विखंडन तथा मुकुलन द्वारा होता है।
- इनका उपयोग ब्रेड, बीयर इत्यादि बनाने में किया जाता है।
- कुछ कवक मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। गंजापन, दमा एवं दाद-खाज का एक प्रमुख कारण कवक है। इसके अलावा फसलों के कई रोग कवक द्वारा फैलते हैं, जैसे- गेहूँ का रस्ट रोग। खमीर और मशरूम भी कवक हैं।
- सभी प्रोटोजोआ परपोषी होते हैं और प्रायः परजीवी के रूप में अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं।
- ट्रिपैनोसोमा नामक निद्रा रोग का कारण भी प्रोटोजोआ ही हैं।
- साथ ही मलेरिया, पेचिस जैसे रोग भी प्रोटोजोआ के कारण होते हैं।
- नोटः सर्दी-जुकाम तथा फ्लू में एंटीबायोटिक दवाएँ प्रभावशाली नहीं होती क्योंकि ये रोग विषाणुओं द्वारा फैलते हैं।
जंतु (Animalia)
- यह यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय, विषमपोषी प्राणियों का वर्ग है जो कोशिका भित्ति रहित कोशिकाओं से बना है।
- प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र एवं जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं विशेषताओं को वर्गीकरण का आधार बनाया गया है।
पादप (Plantae)
- यह सेल्युलोस से बने कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों का समूह है।
- ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा स्वयं का भोजन बनाते हैं।
- अतः क्लोरोफिलधारक सभी पौधे इस वर्ग के सदस्य हैं। इनका शरीर ऊतकों एवं अंगों से निर्मित होता है।