BIOLOGY INTRODUCTION CHAPTER 1

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BIOLOGY 

CHAPTER 1 – INTRODUCTION

  • बायोलॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग –  1801 में लैमार्क (फ्राँस) और ट्रेविरेनस (जर्मनी) ने किया था। 
  • जीव विज्ञान का जनक (Father of Biology)  – अरस्तू (Aristotle) को 
  • जंतु विज्ञान का जनक (Father of Zoology) अरस्तू को 
    • पुस्तक –  ‘Historia Animalium‘ – 500 जंतुओं का वर्णन 
  • वनस्पति विज्ञान का जनक (Father of Botany) -थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को 
    • पुस्तक – ‘Historia Plantarum’ 

 

सजीवों के गुण (Characteristics of Living Organisms) 

  1. कोशिकीय संगठन (Cellular Organisation)
  2. उपापचय (Metabolism)
  3. वृद्धि (Growth)
  4. प्रजनन (Reproduction)
  5. चेतना (Consciousness)
  6. गति (Movement)
  7. पोषण (Nutrition) 
  8. उत्सर्जन (Excretion)

 

कोशिकीय संगठन (Cellular Organisation)

  • सभी सजीवों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई – कोशिका (Cell) है। 

उपापचय (Metabolism)

  • सजीवों के शरीर में होने वाली सभी जैव रासायनिक क्रियाओं को संयुक्त रूप से उपापचय कहते हैं। 
  • ये सजीव के वृद्धि एवं विकास, प्रजनन, तथा अनुकूलन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। 

ये दो प्रकार की होती हैं

  • उपचयन (Anabolism)
  • अपचयन (Catabolism)

Difference Between Catabolism and Anabolism

Catabolism

अपचयन

Anabolism

उपचयन

जटिल अणु टूटकर सरल अणुओं का निर्माण

complex molecules  To smaller molecules.

सरल अणुओं से जटिल अणुओं का निर्माण.

smaller molecules  To complex molecules.

catabolism releases energy.

अपचयन ऊर्जा मुक्त करता है।

जैसे- वृद्धि (Growth) क्रिया

Anabolic require energy.

उपचयन को ऊर्जा की आवश्यकता 

जैसे-श्वसन (Respiration) क्रिया

Hormones involved in catabolism processes are  adrenaline, cytokine, glucagon, and cortisol.

Hormones involved in the Anabolic process are  estrogen, testosterone, growth hormones and insulin.

Examples of catabolic processes are proteins becoming amino acids

glycogen breaking down into glucose 

triglycerides breaking up into fatty acids.

Examples include the formation of polypeptides from amino acids, 

glucose forming glycogen 

fatty acids forming triglycerides.

In catabolism, potential energy is changed into kinetic energy.

In anabolism, kinetic energy is converted into potential energy.

जीवों में विभिन्न गतिविधियों को करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।

यह रखरखाव, विकास और भंडारण के लिए आवश्यक है।

 

वृद्धि (Growth)

  • भोजन का उपयोग कर सजीवों में नई कोशिकाओं का निर्माण 

प्रजनन (Reproduction)

  • सजीवों द्वारा अपने समान जीवों को जन्म देने की क्षमता 

चेतना (Consciousness)

  • यह सजीवों को निर्धारित करने वाला गुण है। 
  • संवेदनशीलता (Sensitivity)/प्रतिक्रिया करने की क्षमता 

 

पौधों तथा जंतुओं में विभेद

(Cell Structure)

विशेषताएँ

पादप (plants)

जंतु (animals)

कोशिका भित्ति (Cell Wall)

पादप (Plants) पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पाई जाती है जो ‘सेल्युलोस‘की बनी होती है।

जंतु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति की जगह ‘कोशिका झिल्ली‘ पाई जाती है। 

क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast)

क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण पादप हरे रंग के होते हैं।

इनमें क्लोरोप्लास्ट अनुपस्थित होता है।

रसधानी (Vacuole)

पादप कोशिकाओं में बड़ी रसधानियाँ पाई जाती हैं जो ‘कोशिका द्रव्य’ (Cell Sap) से भरी होती हैं। 

जंतु कोशिकाओं में पादप कोशिकाओं की तुलना में छोटी रसधानियाँ पाई जाती हैं। 

तारककाय (Centrosome)

कुछ पादपों में अनुपस्थित होता है।

जंतु कोशिकाओं में अक्सर केंद्रक के पास पाया जाता है तथा कोशिका विभाजन में सहायक होता है।

पोषण (Nutrition)

पादप अपना भोजन स्वयं तैयार (स्वपोषी) करते हैं।

जंतु अपने भोजन हेतु पौधों एवं अन्य जंतुओं पर निर्भर (परपोषी) करते हैं। (अपवाद-यूग्लीना)

गति  (Movement)

मृदा में स्थिर होते हैं, (अपवाद : शैवाल क्लेमाइडोमोनास) परंतु पत्तियों एवं कलियों में हल्का संचार होता है।

जंतु भोजन हेतु गति करते हैं। 

(अपवाद कोरल एवं स्पंज)

वृद्धि (Growth)

जड़ों एवं तनों के शीर्ष पर पाए जाने वाले विभज्योतक क्षेत्र (Meristematic Zone) के कारण पादप पूरे जीवन काल में वृद्धि करते रहते हैं।

जंतुओं में वृद्धि एक निश्चित आयु तक होती है

उत्सर्जन (Excretion)

पादपों में विकसितउत्सर्जी तंत्र का अभाव होता है। ये हानिकारक उत्पादों, यथा- तेल, गोंद आदि का स्राव करते हैं जो इनके शरीर मे संचित रहते हैं। 

ये विकसितउत्सर्जन तंत्र की सहायता से अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल आदि अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।

अनुक्रिया (Response)

पादपों में तंत्रिका तंत्र एवं संवेदी अंगों का अभाव होता है, जिस कारण विभिन्न उद्दीपनों, यथा- प्रकाश, संपर्क आदि के प्रति इनकी प्रतिक्रिया धीमी होती है।

जंतुओं में विकसित तंत्रिका तंत्र एवं संवेदी अंग पाए जाते हैं जो उद्दीपनों के प्रति तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।

 

जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति

  • जीवों के आधुनिक वर्गीकरण की शुरुआत कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) के द्विजगत-सिद्धांत (Two Kingdom Classification) से होती है। 
    1. जंतु जगत (KingdomAnimal) 
    2. पादप जगत (Kingdom-Plantae) 
  • वर्गिकी का पिता (Father of Taxonomy) – कैरोलस लीनियस 
  • कैरोलस लीनियस ने जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति को 1753 में दिया। 
  • उदाहरण – होमो सेपियंस (Homo sapiens) – मानव का वैज्ञानिक नाम
  • Homo sapiens = Homo + sapiens 
    • पहला शब्द Homo = वंश नाम (Generic Name)
    • दूसरा शब्द  sapiens = जाति नाम (Species Name) 

 

जीवों के पाँच जगत वर्गीकरण

  • व्हिटेकर (R.H.Whittaker) ने ‘पाँच जगत वर्गीकरण’ दी है। 
  • उन्होंने जीवों को पाँच जगत (Kingdom) में बाँटा। 

ये पाँच जगत हैं

  • 1.मोनेरा  (Monera)
  • 2.प्रोटिस्टा (Protista)
  • 3.कवक (Fungi)
  • 4.पादप (Plantae) 
  • 5.जंतु (Animalia)

 

1.मोनेरा  (Monera)

  • यह एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीवों का समूह है अर्थात् इनमें न तो संगठित केंद्रक होता है और न ही विकसित कोशिकांग होते हैं। 
  • इनमें केंद्रिका झिल्ली का अभाव होता है। 
  • इनमें से कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं। 
  • पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी रसायन संश्लेषी/प्रकाश संश्लेषी अथवा विषमपोषी मृत जीवी/परजीवी दोनों हो सकते हैं। 
  • उदाहरणार्थः जीवाणु, यथा-नील हरित शैवाल अथवा सायनो बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा आदि। 

 

प्रोटिस्टा(Protista) 

  • इनमें एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं। हालाँकि कभी-कभी  ये बहुकोशिकीय भी होते हैं, यथा-केल्प या समुद्री घास। 
  • प्रोटिस्टा जगत पादप, जंतु एवं कवक जगत के बीच कड़ी का कार्य करता है। 
  • इस वर्ग के कुछ जीवों में गमन के लिये सीलिया, फ्लैजेला नामक संरचनाएँ भी पाई जाती हैं। 
  • कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है। 
  • इनमें केंद्रिका झिल्ली पाई जाती है तथा ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं। 
  • उदाहरणार्थ-एककोशिकीय शैवाल, डायटम, प्रोटोजोआ, यूग्लीना, पैरामीशियम, क्लोरेला, अमीबा आदि इसी जगत के सदस्य हैं। 

 

कवक (Fungi)

  • ये बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव हैं। 
  • ये विषमपोषी होते हैं जो पोषण के लिये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं, अतः इन्हें मृतजीवी भी कह दिया जाता है। 
  • इनमें से कई अपने जीवन की एक विशेष अवस्था में बहुकोशिकीय क्षमता प्राप्त कर लेते हैं।
  •  इन कवकों में काइटिन (Chitin) नामक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति (सेल्युलोस अनुपस्थित) पाई जाती है। 
  • यीस्ट, पेंसीलियम, मशरूम आदि इसी जगत के सदस्य हैं।

 

सूक्ष्म जीव (Microorganism) 

संरचना के आधार पर सूक्ष्म जीवों का वर्गीकरण

सबसेलुलर (Subcellular):

  • इस प्रकार की संरचना में DNA या RNA एक प्रोटीन आवरण द्वारा घिरा हुआ होता है। जैसे-विषाणु (Virus)। 
  • विषाणु सूक्ष्म आकार के होते हैं परंतु ये अपना पोषण स्वयं नहीं करते। 
  • इसके लिये इन्हें मेज़बान (Host) की आवश्यकता होती है। 
  • ये जीवाणु पौधों तथा जीवों मे गुणन कर वृद्धि कर सकते हैं। 
  • इन्हें निर्जीव एवं सजीव के बीच की कड़ी भी कहा जाता है। 
  • वायरस की खोज रूसी वैज्ञानिक दमित्री इवानविस्की ने 1892 में तंबाकू में मौजेक रोग की खोज के दौरान की थी। 
  • कुछ सामान्य रोग, जैसे- जुकाम, फ्लू, खाँसी आदि विषाणुओं के द्वारा होते हैं। पोलियो और खसरा जैसी खतरनाक बीमारियाँ भी वायरस के कारण होती हैं।

 

प्रोकैरियोटिक (Prokaryotic): 

  • इनकी कोशिका संरचना साधारण होती है जिसमें केंद्रक एवं उपांग (Organelles) उपस्थित नहीं होते, जैसे- जीवाणु (Bacteria)। 
  • यह प्रोकैरियोटिक एक कोशिकीय सरल जीव है। 
  • ये मोनेरा जगत के अंतर्गत वगीकृत किये गए हैं। कुछ बैक्टीरिया, जैसे- नॉस्टॉक एवं एनाबिना पर्यावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं। 
  • ये नाइट्रोजन, फास्फोरस, आयरन एवं सल्फर जैसे पोषकों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

यूकैरियोटिक (Eukaryotic): 

  • इनकी कोशिका संरचना जटिल होती है जिसमें केंद्रक एवं उपांग उपस्थित होते हैं, जैसे-  प्रोटोजोआ, कवक, शैवाल आदि। 
  • अधिकांश कवक परपोषित मृतजीवी होते हैं। 
  • इनमें जनन कायिक खंडन, विखंडन तथा मुकुलन द्वारा होता है। 
  • इनका उपयोग ब्रेड, बीयर इत्यादि बनाने में किया जाता है। 
  • कुछ कवक मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। गंजापन, दमा एवं दाद-खाज का एक प्रमुख कारण कवक है। इसके अलावा फसलों के कई रोग कवक द्वारा फैलते हैं, जैसे- गेहूँ का रस्ट रोग। खमीर और मशरूम भी कवक हैं। 
  • सभी प्रोटोजोआ परपोषी होते हैं और प्रायः परजीवी के रूप में अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं। 
  • ट्रिपैनोसोमा नामक निद्रा रोग का कारण भी प्रोटोजोआ ही हैं। 
  • साथ ही मलेरिया, पेचिस जैसे रोग भी प्रोटोजोआ के कारण होते हैं।
  • नोटः सर्दी-जुकाम तथा फ्लू में एंटीबायोटिक दवाएँ प्रभावशाली नहीं होती क्योंकि ये रोग विषाणुओं द्वारा फैलते हैं। 

 

जंतु (Animalia)

  • यह यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय, विषमपोषी प्राणियों का वर्ग है जो कोशिका भित्ति रहित कोशिकाओं से बना है। 
  • प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र एवं जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं विशेषताओं को वर्गीकरण का आधार बनाया गया है।

 

पादप (Plantae)

  • यह सेल्युलोस से बने कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों का समूह है। 
  • ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा स्वयं का भोजन बनाते हैं। 
  • अतः क्लोरोफिलधारक सभी पौधे इस वर्ग के सदस्य हैं। इनका शरीर ऊतकों एवं अंगों से निर्मित होता है।