बिहार के प्रमुख व्यक्तित्व

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  • याज्ञवल्क्य 
  • उपनिषद् काल के महान ऋषि याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा के प्रधान दार्शनिक, 
  • यजुर्वेद सहित शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक व याज्ञवल्क्य स्मृति के रचयिता तथा योगदर्शन के आरंभकर्ता थे । याज्ञवल्क्य ऋषि वैशम्पायन के प्रमुख शिष्यों में एक थे । 
  • पहली शताब्दी में मिथिला के ब्राह्मण कुल में जन्मे याज्ञवल्क्य के पिता का नाम ब्रह्मराज था ।
  • महावीर (540-468 ई० पू० ) 
  • महावीर को जैन धर्म का वास्तविक प्रवर्तक माना जाता है। इनके पाँच मुख्य उपदेश थे— अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य । 
  • बिम्बिसार के राजकाल में कुण्डग्राम में (वैशाली के निकट ) इनका जन्म हुआ था और पावापुरी में इन्होंने शरीर त्याग किया । 
  • उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया, 12 वर्षों तक कठिन तप किया और फिर ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद 30 वर्षों तक देशभर में धर्मोपदेश दिया । 
  • महात्मा बुद्ध (563-483 ई० पू० ) 
  • बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया और बिहार में अत्यधिक सक्रिय रहे। उन्होंने चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया । 
  • वृहद्रथ 
  • 29 वर्ष की आयु में किये गये गृहत्याग के 6 वर्ष बाद गया में बुद्धत्व प्राप्त किया । 
  • 45 वर्ष तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में पद यात्रा करके धर्मोपदेश देते रहे । प्रथम धर्मोपदेश सारनाथ में दिया । मगध के प्रसिद्ध शासक बिम्बिसार ने उनसे दीक्षा ली थी । 
  • वृहद्रथ मगध के प्राचीनतम राजवंश वृहद्रथ वंश का संस्थापक था । चेदिराज वसु के पुत्र वृहद्रथ ने गिरिव्रज को राजधानी बनाकर मगध में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया । उसे ही मगध साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है । मगध सम्राट् जरासंध उसी का महापराक्रमी पुत्र था । 
  • जीवक 
  • जीवक बौद्धकाल का उत्कृष्टतम वैद्य एवं चिकित्सक था । हर्यक वंशीय मगध के शासक बिम्बिसार के पुत्र अभय ने उनका लालन-पालन किया । उन्होंने वैद्य की शिक्षा तक्षशिला में ग्रहण की । गिलगिट से प्राप्त पांडुलिपि के अनुसार जीणक के गुरु तक्षशिला के प्रसिद्ध वैद्य आत्रेय पुनर्वसु थे । 
  • घोषा 
  • पाटलिपुत्र की विख्यात नर्तकी थी । वह 1000 सुइयों की नोक पर नृत्य करती थी । 
  • चाणक्य 
  • विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से विख्यात यह महान कूटनीतिज्ञ चंद्रगुप्त मौर्य के राजनीतिक गुरु और पथ-प्रदर्शक था । उनकी सुविख्यात रचना ‘अर्थशास्त्र’ मौर्यकालीन राजनीतिक व्यवस्था संबंधी एक मानक रचना मानी जाती है । 
  • पाणिनि 
  • मौर्यकालीन प्रसिद्ध व्याकरण शास्त्री और ‘अष्टाध्यायी’ के रचयिता पाणिनि, जो तक्षशिला के विद्यार्थी रह चुके थे, को कुछ लोग जहाँ मनेर (पटना) का निवासी मानते हैं, वहीं कुछ इतिहासकार उन्हें उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के शलातुर नामक स्थान का निवासी मानते हैं । 
  • उनकी प्रसिद्ध रचना ‘अष्टाध्यायी’ प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । इसमें आठ अध्याय एवं 3863 सूत्र हैं । 
  • आर्यभट्ट (पाँचवीं शताब्दी ई०) 
  • आर्यभट्ट का जन्म 476 ई० में प्राचीन कुसुमपुर (पाटलिपुत्र या आधुनिक पटना ) में (वर्तमान खगौल में ) हुआ था । 
  • आर्यभट्ट दशमलव प्रणाली का आविष्कार करने वाले गणितज्ञ के रूप में जाने जाते हैं । 
  • आर्यभट्ट ने बीजगणित की प्रारंभिक आधारशिला रखी। वह महान गणितज्ञ होने के साथ-साथ महान खगोलविद् भी थे । इन्हीं के नाम पर भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया । 
  • आर्यभट्ट ने कॉपरनिकस से 1000 वर्ष पूर्व सिद्ध कर दिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है । इस विद्वान् ने 499 ई० में मात्र 23 वर्ष की उम्र में गणित व खगोलशास्त्र पर एक शोध ग्रंथ ‘आर्यभटीयम्’ लिखा था । इनकी विद्वता से प्रभावित होकर ही तत्कालीन गुप्त सम्राट ने इनको अपने दरबार में रखा था । 
  • इनके द्वारा पृथ्वी का अपने कक्ष पर घूमने का समय 23 घंटे 56 मिनट 4.1 सेकेण्ड निकाला गया, जो कि आधुनिक यंत्रों के माध्यम से निकाले गये समय से मात्र 1 सेकेण्ड के दसवें हिस्से की भिन्नता रखता है । 
  • आर्यभट्ट ने संस्कृत में ‘आर्यभटीयम’ के अलावे ‘दशगीति सूत्रम’ तथा ‘आर्याष्टिशत’ नामक ग्रंथ लिखा । 
  • सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही बताया कि सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण क्यों होते हैं । 
  • अश्वघोष 
  • अश्वघोष महान संगीतज्ञ, नाटककार, कवि, दार्शनिक एवं धर्मज्ञ थे। अपने ‘महायान श्रद्धोत्पाद संग्रह’ नामक ग्रंथ में इन्होंने शून्यवाद का प्रतिपादन किया है। माना जाता है कि ऐतिहासिक चरित ग्रंथ लेखन विद्या की शुरुआत अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’ से हुई । 
  • पुष्यमित्र शुंग 
  • पुण्यमित्र शुंग ने 38 वर्षों तक मगध पर शासन किया । उसने दीर्घ अंतराल के बाद अश्वमेध यज्ञ करवाया, हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया तथा संस्कृत को राजभाषा बनाया । 
  • वाणभट्ट 
  • बाणभट्ट का जन्म बिहार में सोन नदी के किनारे बसा प्रीतिकूट नामक नगर में एक समृद्ध वात्स्यायन गोत्रिय ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम चित्रभानु और माता का नाम राज्यदेवी था । 
  • संस्कृत के विश्वविख्यात कवि बाणभटूट ने ‘हर्षचरित’ और ‘कादम्बरी’ जैसी कालजयी कृतियों के साथ-साथ ‘दुर्गासप्तक’ और ‘सूर्यसप्तक’ की भी रचना की । 
  • सातवीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुए बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के समकालीन थे। उन्हें मौखरी वंश एवं पुष्यभूति वंश का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है। 
  • सरहपाद 
  • भारतीय जनमानस को अद्भुत रूप से प्रभावित करने वाले सरहपाद 84 सिद्धों में सबसे अधिक समादृत हुए । महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें हिन्दी काव्य का प्रथम जनक माना है । 
  • शांतरक्षित 
  • पाल शासकों के काल में 8वीं शताब्दी में नालंदा महाविहार के आचार्य और बौद्ध विद्वान शांतरक्षित ने तिब्बत जाकर वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किया । 
  • अतिश दीपांकर श्रीज्ञान 
  • वह विक्रमशिला के प्रसिद्ध आचार्य थे, जिन्हें ग्यारहवीं शताब्दी में तिब्बत के शासक के निमंत्रण पर वहाँ भेजा गया । बौद्ध धर्म के तांत्रिक रूप के प्रचार-प्रसार में इनका विशेष योगदान रहा । 
  • धीमन एवं बिठपाल 
  • वे पालकालीन सुप्रसिद्ध मूर्तिकार थे, जो नालंदा के निवासी थे । पालकालीन कांस्य प्रतिमाओं की रचना और चित्रकला के विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा । 
  • मंडन मिश्र 
  • पं० मंडन मिश्र 9वीं सदी में मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वान एवं दार्शनिक थे, जिन्होंने न्याय, मीमांसा तथा वेदान्त दर्शन की समृद्धि एवं प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया । आदि शंकराचार्य के साथ उनके शास्त्रार्थ की चर्चा अनुश्रुतियों में मिलती है । 
  • पं० मंडन मिश्र पूर्व मीमांसा के साथ-साथ वेदान्त के महान ज्ञाता थे । उनकी प्रसिद्ध रचनाओं प्रमुख ‘नैष्कर्म सिद्धि’ में बौद्ध धर्म पर करारा प्रहार किया गया था । उनकी अन्य रचना है ‘विधि विवेक’ । उनकी शादी कुमारिल भट्ट की बहन की पुत्री सरस्वती या भारती से हुई थी । 
  • इनकी पत्नी भारती परम विदुषी थी, जिसने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर दिया था ।
  • वाचस्पति मिश्र 
  • वाचस्पति मिश्र का जन्म मधुबनी जिलान्तर्गत ठाढ़ी गाँव (अन्धरा ठाढ़ी) में हुआ था ।
  • शंकर भाष्य की टीका ‘भाष्य भामती’ के रचयिता वाचस्पति मिश्र प्रकाण्ड विद्वान व दार्शनिक थे ।
  • भारतीय दर्शन की प्रत्येक शाखा पर समान रूप से अधिकार करने के कारण उन्हें षड्दर्शन वल्लभ के नाम से भी जाना जाता है । उन्होंने मंडन मिश्र की पुस्तक ‘विधि-विवेक’ पर ‘न्याय कण्डिका’ नामक प्रसिद्ध टीका के अतिरिक्त ‘ब्रह्मतत्व समीक्षा’ नामक टीका भी लिखी जो वेदान्त दर्शन को समझने में सहायक सिद्ध हुई । 
  • मोहसिन फानी 
  • जहाँगीर का समकालीन इतिहासकार मोहसिन फानी ने पटना में अपनी प्रसिद्ध रचना ‘दबिस्ताने-मजाहिब’ लिखी। इसमें विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक वर्णन है । इसी पुस्तक में पहली बार अकबर के ‘दीने – इलाही’ को एक नये मार्ग की संज्ञा दी गयी । 
  • दाऊद खाँ करारानी 
  • वह बिहार एवं बंगाल के स्वतंत्र अफगान राज्य का अंतिम शासक था, जिसे 1578 में पराजित कर अकबर ने बिहार को अंततः मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया । 
  • विद्यापति 
  • शृंगार रस के प्रसिद्ध मध्यकालीन कवि विद्यापति का जन्म दरभंगा ( अब मधुबनी) जिले के विस्फी ग्राम में 1368 या 1377 ई० में हुआ । मैथिली भाषा में रचित उनकी ‘पदावली’, अवहट्ट में ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ सुविख्यात हैं ।  
  • उनकी संस्कृत रचनाओं में ‘भूपरिक्रमा’, पुरुष परीक्षा’, ‘लिखनावली’, ‘दुर्गाभक्ति तरंगिणी’, ‘पुराण-संग्रह’, ‘विभासागर’ और ‘गंगा काव्यावली’ प्रमुख हैं । 
  • विद्यापति की 200 कविताओं का अनुवाद योगी अरविन्द ने अंग्रेजी में किया है । यह यूनेस्को से प्रकाशित हुआ है । 
  • वह महाराज शिव सिंह के समकालीन थे। उनकी मृत्यु 1475 ई० में हुई । 
  • मख्दुम शर्फुद्दीन याहया मनेरी 
  • वह 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिन्हें बिहार में सूफी आंदोलन का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि माना जाता है । उनका जन्म 1263 ई० में हुआ था । इनका संबंध फिरदौसी सम्प्रदाय से था। वह सूफी संत शेख निजामुद्दीन फिरदौसी के शिष्य थे तथा 1332 ई० में उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी बने । 
  • सूफी मत की व्याख्या में इनके पत्रों का संकलन ‘मकतूबाते – सदी’ प्रसिद्ध है । 
  • मोहम्मद शाह नूहानी 
  • मोहम्मद शाह नूहानी लोदी शासकों के काल में बिहार का महत्वपूर्ण अफगान सामंत था । 
  • उसने पानीपत की लड़ाई (1526 ई०) के बाद बिहार में प्रथम स्वतंत्र अफगान राज्य का निर्माण किया। उसी के संरक्षण में बिहार में शेरशाह का उत्कर्ष हुआ 
  • शेरशाह (1486-1545) 
  • भारत के सर्वश्रेष्ठ अफगान शासक शेरशाह का जन्म 1486 में हुआ था । उसका राजनैतिक उत्कर्ष बिहार में सहसराम (सासाराम) के क्षेत्र से आरंभ हुआ । यहीं पर उसने अपने प्रशासनिक सुधारों, विशेषकर लगान – संबंधी सुधारों का प्रयोग किया । 
  • उसने जनकल्याण के वृहत उपाय किये तथा संचार और यातायात का व्यापक विकास किया । उससे संबद्ध जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत अब्बास खाँ सरबानी की रचना ‘तारीखे – शेरशाही’ है। सन् 1539 में बक्सर के निकट चौसा युद्ध में उसने हुमायूं को बुरी तरह हराया ।
  • शेरशाही सूरी सन् 1539 से सन् 1545 तक भारत का बादशाह रहा । प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण इसी ने करवाया । कला के प्रति उसकी उत्कृष्ट देन सासाराम स्थित मकबरा है । गौतम मुनि 
  • गौतम मुनि न्यायशास्त्र के विख्यात आचार्य तथा ‘न्यायसूत्र’ के लेखक थे । 
  • गुरु गोविन्द सिंह जी (1666-1708) 
  • पटना सिटी में 26 दिसम्बर, 1666 ई० को जन्म लेनेवाले गोविन्द सिंहजी सिक्खों के 10वें एवं अंतिम गुरु थे, जिन्होंने मुगल शासकों से संघर्ष के लिए सिक्ख सम्प्रदाय को संगठित किया और उनके धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण सुधार लाये । 
  • दशमेश पिता / गुरु के नाम से भी विख्यात गुरु गोविन्द सिंह जी का 350 वाँ प्रकाश पर्व 1 से 5 जनवरी, 2017 तक पटना में बड़ी धूम-धाम से मनाया गया । 
  • वह सिक्खों को एक सैन्य शक्ति बना देने वाले प्रथम गुरु के रूप में समादृत हैं । इन्होंने ही पाहुल (दीक्षा) प्रथा शुरू की तथा पाँच ककार का नियम बनाया। उन्होंने सिखों में पाँच ‘क’ (केश, कृपाण, कंघा, कच्छा व कड़ा) की परंपरा की शुरुआत की एवं ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की । गुरु गोविन्द सिंह उच्च कोटि के कवि भी थे । 
  • वह अपने पिता गुरु तेग बहादुर की गद्दी पर 1675 ई० में बैठे तथा 1708 ई० में नान्देड़ में एक अफगान द्वारा मारे जाने तक इस पर विराजमान रहे । 
  • गुलाम हुसैन तबातबाई 
  • वह पटना के निवासी और अठारहवीं शताब्दी के विख्यात इतिहासकार थे । उनकी रचना ‘सीयरूल मुताखेरीन’ ब्रिटिश सत्ता के बिहार और बंगाल में प्रसार और उससे उत्पन्न हानिकारक प्रभावों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है । 
  • वीर कुंवर सिंह 
  • बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर ग्राम में 23 अप्रैल, 1777 ई० को जन्मे बाबू कुँवर सिंह ने 1857 के गदर में बिहार के क्रांतिकारी देशभक्तों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये । 
  • वह परमार राजपूत या उज्जैनी राजपूत वंश के महान सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे । 7 फीट लम्बे कुंवर सिंह ने 49 वर्ष की अवस्था में जगदीशपुर की जमींदारी सम्हाली । 
  • वीर अमर सिंह 
  • शाहाबाद (बिहार) में जन्मे अमर सिंह वीर कुँवर सिंह के सबसे छोटे भाई थे । कैमूर पहाड़ियों में स्थित अड्डे का नेतृत्व करने वाले अमर सिंह अँग्रेजों के साथ गुरिल्ला युद्ध में माहिर तथा नेपाल में ‘नाना सेना’ के गठन के सूत्रधार थे । 
  • जुलाई, 1857 में वीर कुँवर सिंह के साथ दानापुर विद्रोह में शामिल हुए तथा अप्रैल, 1858 में कुँवर सिंह की मृत्यु के बाद उन्होंने बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया । अक्टूबर, 1858 में अँग्रेज सेनापति डगलस के साथ उनका भयानक युद्ध हुआ । दिसंबर, 1859 में वे गिरफ्तार हुए तथा 5 जनवरी, 1860 को गोरखपुर जेल में अतिसार रोग से इनकी मृत्यु हो गयी । जगदीशपुर और कैमूर की पहाड़ियों से लेकर नेपाल तक इनका कार्य-क्षेत्र था । 
  • विलायत अली (1791 – 1852) 
  • वह बिहार में वहाबी आंदोलन के अग्रणी नेता थे। उन्होंने 1826 में पश्चिमोत्तर सीमान्त में वहाबी आंदोलन को संगठित किया । 1836 के बाद वह सिताना के वहाबी राज्य के प्रधान रहे । इनायत अली (1793-1858) 
  • विलायत अली के अनुज इनायत अली ने 1852 से 1858 के बीच पश्चिमोत्तर सीमांत के वहाबी राज्य के प्रधान का पद ग्रहण किया और ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध वृहत विरोध को संगठित किया । 
  • पीर अली 
  • पीर अली पटना सिटी के पुस्तक विक्रेता थे, जिन्होंने पटना में 1857 के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों से संघर्ष किया। अंगरेज ऑफिसर डॉ. लायल की हत्य के आरोप में 7 जुलाई, 1857 को पटना के कमिश्नर एम. टेलर के आदेश पर इन्हें पटना में फाँसी दे दी गयी । उस समय वे 37 साल के थे । 
  • शेख भिखारी 
  • 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों में एक शेख भिखारी भी थे, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा फाँसी दी गयी थी । 
  • मौलाना मजहरूल हक (1866-1930) 
  • शेख अहमदुद्दौला के इकलौते पुत्र के रूप में मजहरूल हक का जन्म पटना से 25 किमी 
  • पश्चिम में स्थित बाहपुरा में 22 दिसम्बर, 1866 ई० को हुआ था । 
  • इंग्लैंड से बैरिस्टरी की पढ़ाई के बाद 1891 में उन्होंने पटना में वकालत की शुरुआत की । इसके बाद कुछ समय के लिए उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में मुंसिफ के रूप में कार्यरत रहे । 1915 में वे मुस्लिम लीग के बम्बई अधिवेशन के अध्यक्ष बनाये गये । 1916 में वे होम रूल आंदोलन से जुड़े | 
  • बिहार के राष्ट्रवादी नेताओं में अग्रणी मौलाना मजहरूल हक खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन में काफी सक्रिय रहे। पटना में इन्होंने सदाकत आश्रम की स्थापना की (1920)। वह बिहार विद्यापीठ के संस्थापक – कुलाधिपति रहे ।  
  • इनके द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र The Motherland’ राष्ट्रीय एकता का प्रबल समर्थक रहा । गाँधीजी इन्हें ‘देशभूषण’ कहते थे। 2 जनवरी, 1930 को उनका निधन हो गया । 
  • डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा 
  • सच्चिदानन्द सिन्हा का जन्म 10 नवम्बर, 1871 को आरा में हुआ था । उनके पिता रामयाद सिन्हा आरा के प्रसिद्ध वकील और डुमराँव राज के स्थायी अधिवक्ता थे । 
  • विख्यात बुद्धिजीवी डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा का पृथक् बिहार के निर्माण के प्रयास में अग्रणी भूमिका रही । प्रसिद्ध पत्रकार के रूप में ख्याति प्राप्त सच्चिदा बाबू विख्यात विधिवेत्ता थे । वे बिहार एवं उड़ीसा सरकार के प्रथम भारतीय वित्तमंत्री तथा बिहार विधान परिषद् के प्रथम भारतीय अध्यक्ष रहे । वे पटना विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे । 
  • पटना स्थित विख्यात सिन्हा लाइब्रेरी के संस्थापक डॉ० सिन्हा भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए । उन्होंने राधिका देवी से लाहौर में विवाह किया । 
  • 9 दिसम्बर, 1946 को इन्हीं की अध्यक्षता में हमारे देश के संविधान सभा का अधिवेशन प्रारंभ हुआ था । उनकी मृत्यु (6 मार्च, 1950) के बाद डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने यह पद ग्रहण किया । 
  • हसन इमाम (1871-1933) 
  • वरिष्ठ बैरिस्टर और राष्ट्रवादी नेता हसन इमाम 1912 में कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रथम बिहारी जज नियुक्त हुए । 1921 में वह बिहार एवं उड़ीसा विधान परिषद् के प्रथम उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। 
  • राष्ट्रसंघ की सभा में भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य बने । कालान्तर में वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष भी बने । 
  • होमरूल आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आन्दोलन तक उनकी सक्रिय भूमिका रही । बिहार के पृथक्करण में उल्लेखनीय योगदान के साथ-साथ बिहार में शिक्षा और पत्रकारिता के विकास में भी इनकी देन काफी महत्वपूर्ण है । 
  • सर सुल्तान अहमद (1880-1963) 
  • वे सुप्रसिद्ध विधिशास्त्री थे, जिन्हें पटना विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय कुलपति होने का श्रेय प्राप्त हुआ। 1937 में वह वायसराय की कार्यकारी परिषद् के सदस्य भी रहे । 
  • 1941 में वे भारत सरकार में विधि सदस्य नियुक्त हुए। वे राष्ट्रसंघ में भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में भी सक्रिय रहे । 
  • डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (1884–1963) 
  • डा० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को सारण (वर्तमान सीवान) जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृत के विद्वान होने के साथ-साथ आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे । 
  • 1906 में इन्होंने बिहारी छात्र सम्मेलन की स्थापना की । सन् 1916 में उन्होंने ‘बिहार लॉ’ नामक एक साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया था । 1919 में रॉलेट ऐक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह से लेकर 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन तक राष्ट्रीय आन्दोलन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही । 
  • वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के तीन बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए । 1947 में संविधान सभा के अध्यक्ष और 1950 में संविधान लागू होने के पश्चात् देश के प्रथम राष्ट्रपति बने । उन्होंने ‘इंडिया डिवाइडेड’ नामक पुस्तक की रचना की । 
  • उनकी मृत्यु 28 फरवरी, 1963 को पटना स्थित सदाकत आश्रम में हुई । 
  • खान बहादुर खुदाबख्श खाँ (1842-1908) 
  • > खान बहादुर खुदाबख्श खाँ पांडुलिपियों के प्रसिद्ध संग्रहकर्ता थे। इनके द्वारा पटना में स्थापित पुस्तकालय खुदाबख्श लाइब्रेरी को 1891 में बंगाल की तत्कालीन सरकार ने अपनी देख-रेख में ले लिया । 1969 में संसद ने इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित कर दिया । 
  • अली इमाम 
  • हसन इमाम के ज्येष्ठ भ्राता और प्रसिद्ध बैरिस्टर अली इमाम राष्ट्रीय आंदोलन के सक्रिय सदस्य रहे । उनका जन्म 11 फरवरी, 1869 को पटना जिला के नेउरा में हुआ था । > विख्यात विधिवेत्ता अली इमाम सन् 1908 में भारत सरकार के स्थायी विधि परामर्शद नियुक्त किये गये । इतने बड़े पद पर पहुँचने वाले वे प्रथम बिहारी थे। बाद में वह विधि सदस्य भी बनाये गये । 
  •  1917 में उन्हें पटना हाइकोर्ट का जज और 1919 में हैदराबाद राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया । उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1932 को राँची में हो गयी । 
  • बैकुंठ शुक्ल 
  • सन् 1910 में जलालपुर गाँव, लालगंज थाना (वैशाली) में जन्मे बैकुंठ शुक्ल का 1930 में नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण योगदान रहा। नमक आंदोलन के दौरान उन्हें छह माह की सजा हुई । 
  • पूर्णिया से इनके क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत हुई । काशी से लेकर हाजीपुर तक इनका कार्यक्षेत्र था। देशभर में सरकार विरोधी पर्चे तैयार कराने तथा उसे देशभर के विभिन्न हिस्सों में पहुँचाने की व्यवस्था करनेवाले बैकुंठ शुक्ल हाजीपुर ( बिहार ) स्थित गुप्त अड्डे सूत्रधार थे । 
  • सरदार भगत सिंह को फाँसी के मामले में मुखबिरी करनेवाले गद्दार फणीन्द्र घोष की 23 मार्च, 1932 को बेतिया में इन्होंने सरेआम हत्या कर दी । 14 अप्रैल, 1934 को गया जेल में इन्हें फाँसी दे दी गयी !
  • फणीन्द्र नाथ घोष 
  • बेतिया निवासी फणीन्द्र नाथ घोष 1916 से ही बिहार में बंगाल अनुशीलन समिति के सदस्य के रूप में सक्रिय था । 1925 में उसने ‘हिन्दुस्तान सेवा दल’ की स्थापना की तथा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की दिल्ली सभा में बिहार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया । 
  •  बाद में वह लाहौर षड्यंत्र कांड, पटना षड्यंत्र कांड आदि में क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही दे कर मुखबिर बन गया। चंद्रमा सिंह की सहायता से बैकुंठ शुक्ल ने उसकी हत्या कर दी । 
  • योगेन्द्र शुक्ल 
  • 1896 ई० में लालगंज (वैशाली) में जन्मे योगेन्द्र शुक्ल एक महान देशभक्त और स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया था । 
  • वे 1931 के तिरहुत षड्यंत्र कांड और मोतिहारी षड्यंत्र कांड में अभियुक्त थे, जिसमें उन्हें 20 वर्ष के कठोर कारावास का दंड दिया गया था । वर्ष 1932 में पहले उन्हें गया जेल में रखा गया, परन्तु बाद में श्यामदेव नारायण और केदार मणि शुक्ल के साथ अंडमान भेज दिया गया । 1937 में 46 दिन तक भूख हड़ताल करने के बाद इन्हें हजारीबाग जेल में डाल दिया गया । 
  •  1938 में वे कॉंग्रेस के सदस्य तथा 1940 में अखिल भारतीय किसान सभा केंद्रीय कमेटी के सदस्य चुने गये। 1940 में उन्हें गिरफ्तार किया गया तथा 9 नवम्बर, 1942 को वे जयप्रकाश नारायण के साथ हजारीबाग जेल से फरार हो गये। बाद में मुजफ्फरपुर में गिरफ्तार करके उन्हें 7 दिसम्बर, 1942 को पटना लाया गया, जहाँ से उन्हें बक्सर जेल भेज दिया गया । 1946 में छूटे । 
  • 1958 से 1960 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे योगेन्द्र शुक्ल का निधन 19 नवंबर 1960 को हो गया । 
  • जगत नारायण लाल 
  • वे एक प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी तथा जयप्रकाश नारायण के सहयोगी थे। 
  • 1942 के आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया था । 13 सितम्बर, 1942 को जगत आंदोलन नारायण लाल को गिरफ्तार करके बांकीपुर जेल (पटना) लाया गया । 
  • अप्रैल, 1946 में जयप्रकाश नारायण की रिहाई के लिए पटना के बांकीपुर मैदान में आयोजित विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने डॉ० श्री कृष्ण सिंह आदि वक्ताओं के साथ मिलकर राजनैतिक बंदियों को जेल में रखने की सरकारी नीति की आलोचना की तथा जयप्रकाश नारायण की रिहाई की मांग की। 
  • रामप्यारी देवी 
  • प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी श्रीमती रामप्यारी देवी देशभक्त जगत नारायण लाल की पत्नी थीं ।
  • उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान बिहार के बांकीपुर (पटना) में एक सभा को संबोधित करते हुए लोगों से सरकारी नौकरियाँ छोड़ने का आह्वान किया । 
  • सिताब राय 
  • सिताब राय बिहार के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिन्हें ‘राजा’ की उपाधि मिली थी। > ईस्ट इंडिया कम्पनी को बिहार की दीवानी मिलने के उपरान्त राजा सिताब राय को दो उप 
  • नायबों में से एक के पद पर द पर नियुक्त करके उन्हें बिहार में भूमि कर एकत्र करने का कार्य सौंपा गया। बाद में कम्पनी के गारेक्टरों की आज्ञा से वारेन हेस्टिंग्स ने सिताब राय को पद मुक्त कर दिया। बंदी बनाकर गुबन के आरोप में उन पर अभियोग भी चलाया गया । परंतु निर्दोष सिद्ध होने पर उन्हें छोड़ दिया गया । 
  • रामचन्द्र शर्मा 
  • बिहटा (पटना) के निकट अमराहा गाँव के निवासी रामचन्द्र शर्मा बिहार में फॉरवर्ड ब्लॉक के एक प्रमुख नेता थे। स्वाधीनता संग्राम में उनका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 
  • श्री नरसिंह नारायण 
  • श्री नरसिंह नारायण एक समाजवादी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे । भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल से फरार होने के पश्चात् 14 नवम्बर, 1942 को उन्हें गया में गिरफ्तार किया गया ।
  • अब्दुल बारी 
  • प्रो० अब्दुल बारी का जन्म शाहाबाद जिला के कोइलवर में 1896 को हुआ। 1919 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। खिलाफत आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। उन्हें बिहार विद्यापीठ में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया । 
  • 1923 में उन्हें स्वराज पार्टी की बिहार शाखा का सचिव तथा 1930 में बिहार लेजिस्लेटिव कौंसिल का सदस्य चुना गया। खिलाफत आंदोलन के समय से राष्ट्रवादी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता अब्दुल बारी की मुख्य देन बिहार में श्रमिकों के आंदोलन को संगठित करने में रही। 1931 में बिहार समाजवादी दल के संस्थापकों में एक अब्दुल बारी ने 1936 में टाटा वर्कर्स यूनियन का गठन किया । 
  • वह साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रबल समर्थक थे और मुसलमानों को कॉंग्रेस के नेतृत्व में गोलबंद करने में सक्रिय रहे। 1946 में बिहार के दंगा पीड़ितों के बीच इन्होंने गाँधीजी के साथ मिलकर काम किया। 28 मार्च, 1947 को पुलिस की गोलियों से इनकी हत्या हो गयी । 
  • राजकुमार शुक्ल 
  • मुरली भरहवा गाँव के निवासी राजकुमार शुक्ल चम्पारण के प्रसिद्ध किसान नेता थे । इन्होंने ही गाँधीजी को 1917 में चम्पारण लाया और किसानों के प्रति नील कोठियों के मालिकों के अत्याचार के विरुद्ध ध्यान केन्द्रित कराया । 
  • सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा 
  • वे बिहार – उड़ीसा के प्रथम भारतीय गवर्नर थे। 1919 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत स्थापित बिहार सरकार के गवर्नर के रूप में इन्होंने 29 दिसंबर, 1920 को पद ग्रहण किया । 1921 ई० लार्ड सिन्हा ने गवर्नर पद से त्यागपत्र दे दिया । 
  • मोहम्मद यूनुस 
  • मोहम्मद यूनुस 1937 के चुनाव के पश्चात् बिहार के प्रथम भारतीय मुख्यमंत्री बने ।
  • चूँकि डॉ० श्री कृष्ण सिंह (काँग्रेस) ने मंत्रिमंडल बनाने से इनकार कर दिया था, इसलिए 
  • मोहम्मद यूनुस को बिहार का मुख्यमंत्री ( प्रधानमंत्री) बनाया गया । 
  • उस समय मुख्यमंत्री को राज्य का प्रधानमंत्री कहा जाता था । 
  • श्री कृष्ण सिंह 
  • श्री कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर, 1887 को मुंगेर जिला के बरबीघा थानान्तर्गत माउर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिहर सिंह था । उन्होंने मैट्रिक 1913 में एम. ए. एवं उसके बाद बी.एल. की परीक्षा पास की। कुछ समय तक बी. एन. कॉलेज, पटना में इतिहास विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्य करने के पश्चात् मुंगेर में वकालत करने लगे । स्वतंत्र भारत में बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री एवं सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी डॉ० श्री कृष्ण सिंह की बिहार में नमक सत्याग्रह में अग्रणी भूमिका रहीं। वह 1937 में बिहार में काँग्रेस मंत्रिमंडल के अध्यक्ष और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी रहे। “बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह को आधुनिक बिहार का निर्माता भी कहा जाता है । 1961 में उनकी मृत्यु हो गयी ।
  • दीपनारायण सिंह  
  • दीपनारायण सिंह स्वतंत्र भारत में बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष और सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके प्रयत्नों से बिहार प्रान्तीय काँग्रेस का दूसरा अधिवेशन हुआ। वह बिहार के कार्यवाहक मुख्यमंत्री भी रहे । 
  • ब्रजकिशोर प्रसाद 
  • बिहार में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख नेता बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद एक कानूनविद् थे। 1916 में काँग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने ही सर्वप्रथम चम्पारण के किसानों की दुर्दशा पर प्रस्ताव द्वारा ध्यान केन्द्रित कराया । 
  • ब्रजकिशोर प्रसाद महात्मा गाँधी के निकटतम सहयोगी, प्रथम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी तथा जयप्रकाश नारायण के ससुर ( प्रभावती जी के पिता ) थे । 
  • अनुग्रह नारायण सिंह 
  • असहयोग आंदोलन के दौरान बिहार के प्रमुख नेताओं में एक अनुग्रह बाबू स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक मंत्री और प्रशासक के रूप में विख्यात हुए । 
  • उनका जन्म 18 जून, 1887 को औरंगाबाद जिला के पोइआवाँ गाँव में एक प्रतिष्ठित जमींदार परिवार में हुआ था। पटना कॉलेज से स्नातक अनुग्रह बाबू ने एम. ए. और बी. एल. की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की । कुछ समय तक ( 1915 में) टी. एन. जे. कॉलेज, भागलपुर में व्याख्याता के रूप में कार्य करने के बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत करना शुरू कर दिया । 
  • 1946 और 1952 में वे राज्य में मंत्री बने तथा 1947 में जेनेवा में हुए अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि सम्मेलन तथा 1954 में हुए अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन एवं अंतर्राष्ट्रीय समाज कल्याण सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 5 जुलाई, 1957 को उनकी मृत्यु हो गयी । 
  • चुनचुन पाण्डेय 
  • भागलपुर निवासी चुनचुन पाण्डेय बिहार में क्रांतिकारियों के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 1905 से 1917 तक अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 
  • उन्होंने 1905 में पुलिन बिहारी दास, रास बिहारी बोस, नलिनी बागची व रेवती मोहन नाग जैसे महापुरुषों के साथ मिलकर ‘ढाका अनुशीलन समिति’ का गठन किया । 
  • उस समय यह देश का सबसे बड़ा संगठन था तथा देश भर में इसकी 600 शाखाएँ थीं । 
  • जगजीवन राम 
  •  ‘बाबूजी’ उपनाम से विख्यात जगजीवन राम सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी और दलित वर्ग के प्रमुख नेता थे। उनका जन्म 5 अप्रैल, 1908 को शाहाबाद ( वर्तमान भोजपुर) जिला के चन्दवा गाँव में हुआ था। 1926 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की, विद्या सागर कॉलेज, कलकत्ता से बी.एससी. की डिग्री प्राप्त की, 1929 में कलकत्ता में अखिल भारतीय रविदास सभा की तथा 1937 खेतिहर मजदूर सभा की स्थापना की । 
  • 1935 में उनकी शादी कानपुर के डॉ० बीरबल की पुत्री इन्द्रा से हुई । इसके बाद वे अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग का अध्यक्ष बने । इस लीग का एक विशाल अधिवेशन, 1936 में लखनऊ में हुआ, जिसका उद्घाटन महात्मा गाँधी ने किया । 
  • 1937 में बिहार में प्रथम काँग्रेस मंत्रिमंडल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जवाहरलाल नेहरू से श्रीमती इंदिरा गाँधी तक केन्द्रीय मंत्रिमंडलों में कैबिनेट मंत्री रहे । 
  • 28 वर्ष की अवस्था में बिहार विधान सभा में निर्विरोध निर्वाचित हुए । अंतरिम सरकार में भारत के प्रथम श्रम मंत्री एवं संविधान सभा के सदस्य रहे । केन्द्र सरकार में श्रम, संचार, रेल, कृषि और रक्षा मंत्री रहे । कृषि मंत्री के रूप में हरित क्रांति लाये तथा रक्षामंत्री के रूप में बंगला देश मुक्ति अभियान में भारत की विजय के सूत्रधार बने । 1977 में मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में वे उप-प्रधानमंत्री रहे । 6 जुलाई, 1986 को उनका निधन हो गया ।
  • डॉ० सैय्यद महमूद (1889 – 1971 ) 
  • डॉ० सैय्यद महमूद होमरूल लीग और खिलाफत आंदोलन से स्वतंत्रता प्राप्ति तक सक्रिय स्वतंत्रता-सेनानी तथा स्वतंत्र भारत की मंत्रिपरिषद् के सदस्य रहे । उन्होंने शिक्षा के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया । 
  • अब्दुल कयूम अंसारी 
  • खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन के समय से सक्रिय अब्दुल कयूम अंसारी बिहार में मुसलमानों के पिछड़े वर्ग के प्रमुख नेता थे । 
  • खुदीराम बोस 
  • खुदीराम बोस ने केवल 18 वर्ष की अवस्था में प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की योजना बनायी थी । 
  • दुर्भाग्यवश किंग्सफोर्ड के स्थान पर एक स्थानीय वकील की पत्नी तथा बेटी घायल हो गयी तथा उनकी घोड़ा गाड़ी का चालक मारा गया। इस आरोप में खुदीराम बोस को 18 अगस्त, 1908 को फांसी दे दी गयी । 
  • जयप्रकाश नारायण (1902-1979) 
  • जयप्रकाश नारायण का जन्म सारण जिले के सिताब दियारा नामक स्थान पर 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ। उनके पिता का नाम हरसू दयाल और माता का नाम फूलरानी देवी था । 1919 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा इसी वर्ष उनका विवाह बाबू ब्रज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती से हुआ। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी ।
  • पढ़ाई के लिए वह 1922 में अमेरिका गये । विस्कोंसिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एम०ए० की डिग्री लेकर वह 1929 में भारत लौटे। रामनंदन मिश्र, अब्दुल बारी, गंगाशरण सिन्हा, योगेन्द्र शुक्ल, रामवृक्ष बेनीपुरी, डॉ० सम्पूर्णानन्द बसावन सिंह, कर्पूरी ठाकुर आदि की सहायता से आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में उन्होंने 1934 में बिहार सोशलिस्ट पार्टी बनायी तथा इस पार्टी के महासचिव का पद संभाला । 
  • 18 फरवरी, 1940 को जमशेदपुर में एक उकसाऊ भाषण देने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया, जिसकी काँग्रेस ने भर्त्सना की तथा 14 मार्च, 1940 को पूरे बिहार में ‘जयप्रकाश दिवस’ मनाया गया। 28 नवंबर, 1940 को वह जेल से छूटे, पर शीघ्र ही पुनः गिरफ्तार कर लिये गये । 9 नवंबर, 1942 को सूरज नारायण सिंह, रामनंदन मिश्र आदि के सहयोग से वह बड़े ही नाटकीय ढंग से हजारीबाग जेल से फरार हुए । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद जयप्रकाश नारायण सर्वोदय आंदोलन से जुड़े रहे और सत्ता की राजनीति से अलग-थलग रहे । 
  • 1952 में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया तथा 1954 में विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से खुद को सम्बद्ध कर लिया । 
  • 5 जून, 1974 को उन्होंने ‘संपूर्ण क्रांति’ की घोषणा की तथा 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें नजरबन्द कर दिया गया। 8 अक्टूबर, 1979 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण का देहावसान हो गया। ‘लोकनायक’ के नाम से प्रसिद्ध बिहार के विख्यात स्वतंत्रता सेनानी और राजनैतिक विचारक जयप्रकाश नारायण का सक्रिय राजनैतिक जीवन सविनय अवज्ञा आंदोलन से आरंभ हुआ था । 
  • ललित नारायण मिश्र 
  • पूर्व केन्द्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र का जन्म सहरसा जिलान्तर्गत बासोपट्टी (वर्तमान में सुपौल जिलान्तर्गत बलुआ बाजार / ललित ग्राम) में जनवरी, 1923 में हुआ था । 
  • उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से 1948 में अर्थशास्त्र में एम० ए० किया । वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हुए तथा पहली और दूसरी लोकसभा के सदस्य रहे । 
  • वह योजना, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में संसदीय सचिव रहे ; ( 1957-60); गृह मंत्रालय में उप मंत्री रहे (1964-66), उप वित्त मंत्री रहे (1966-67), रक्षा उत्पाद मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे (1967-70)। 1970 से 4 फरवरी, 1973 तक आप भारत के विदेश व्यापार मंत्री रहे । 5 जनवरी, 1973 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा ‘ललित बाबू’ को भारत का रेल मंत्री बनाया गया । 
  • 2 जनवरी, 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर बड़ी रेल लाइन के उद्घाटन समारोह में समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हुए बम विस्फोट में घायल हुए ललित बाबू का निधन 3 जनवरी, 1975 को दानापुर में अस्पताल में हो गया । 
  • बिरसा मुण्डा 
  • बिरसा का जन्म 15 नवम्बर, 1874 को तमाड़ के निकट उलिहातु नामक गाँव (अब झारखंड में) में हुआ था । उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम कदमी था । 
  • बिरसा बराबर कहा करते थे कि राजा और प्रजा के बीच कोई बिचौलिया नहीं है। जमीन हमारी है । हम इसका कर सीधे खजाने में जमा करेंगे । 
  • 11 नवम्बर, 1908 को छोटानागपुर कास्तकारी कानून ( टेनेंसी ऐक्ट ) को बंगाल कास्तकारी कानून की जगह पर लागू किया गया। इस कानून के अन्तर्गत उपायुक्त जनजातियों का एक संरक्षक के रूप में उभरा, जिसकी आज्ञा के बिना जनजातियों की कोई भी भूमि हस्तान्तरित ॐ नहीं की जा सकती थी और उसके पुस्तैनी मुण्डारी, खूंटकट्टी तथा अन्य सामाजिक सेवा के 
  • बदले में प्राप्त परम्परागत जमीन पर हस्तान्तरण रोकने की जिम्मेवारी उपायुक्त को सौंपी गई । > बिरसा की लड़ाई बिचौलिये सरदारों को हटाने के लिए थी । वह शुरू से कहते थे, “अबुआ राज एटे जाना-महारानी राज टुंडुजाना” अर्थात् हमलोगों का राज्य शुरू हुआ, महारानी का राज्य समाप्त हुआ। 3 मार्च, 1900 को बिरसा को पकड़ लिया गया तथा 9 जून, 1900 को उनकी मृत्यु जेल में हैजा से हो गयी ।  
  • तिलका मांझी
  • अमर शहीद तिलका मांझी का जन्म 1750 ई० में तिलकपुर गाँव में हुआ था । अंग्रेजों के दमन से त्रस्त तिलका मांझी के नेतृत्व में भागलपुर के निकट बंचरी जोर नामक स्थान पर संथाली तथा सभी वर्ग के लोगों ने संगठित रूप से स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम अध्याय शुरू किया । 
  • तिलका मांझी की चुनौतियों का सामना करने में कंपनी असमर्थ थी, क्योंकि उसकी सारी सेना 1767 से ही धालभूम, मानभूम, बांकुड़ा आदि में चुआर विद्रोह का सामना करने में व्यस्त थी । 13 जनवरी, 1784 को तिलका मांझी ने खुले तौर पर भागलपुर पर आक्रमण कर दिया, जिसमें क्लीवलैंड मारा गया। बाद में तिलका पकड़ा गया और उसे फाँसी दे दी गयी 
  • सिद्धू और कान्हू 
  • 1855-56 में संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तथा अपने-आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। वीरभूम सिंहभूम, राजमहल, भागलपुर, हजारीबाग और बांकुड़ा इस विद्रोह के प्रमुख केंद्र थे । … 
  • इस संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू ने किया । आदिवासियों के विद्रोहों में यह सबसे जबर्दस्त था । इस जन आंदोलन के नायक थे भगिनीडीह निवासी चार भाई- सिद्ध, कान्हू, चाँद और भैरव । चुनी मांझी के पुत्र सिद्धू का जन्म 1815 ई० माना जाता है, जबकि कान्हू को उससे 5 वर्ष छोटा माना जाता है । 
  • अगस्त, 1855 में सिद्धू को पकड़ा और मार दिया तथा फरवरी, 1856 में कान्हू पकड़ा गया । 1784 ई० में तिलका मांझी के नेतृत्व में आंदोलन के 71 वर्षों बाद 1855 ई० में ‘संथाल हूल’ (संथाल विद्रोह) हुआ । वास्तव में यह संथाली आंदोलन दामन-ए-कोह ( भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र) के समस्त निर्धन शोषितों द्वारा शोषकों, अंग्रेजी सरकार और उसके कर्मचारियों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन था । 
  • जुब्बा साहनी 
  • बिहार के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक जुब्बा साहनी का जन्म 1906 ई० में मुजफ्फरपुर जिलान्तर्गत चैनपुर गाँव में हुआ था । अत्यंत निर्धन परिवार में जन्म होने के बावजूद उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी । 
  • भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त, 1942 ई० को अपने क्षेत्र के मीनापुर थाना के अंग्रेज प्रभारी ( पुलिस अधिकारी) लियो वालर को पकड़ कर आग के हवाले कर दिया था । 
  • बाद में वह पकड़े गए और 11 मार्च, 1944 को उन्हें फाँसी दे दी गई । 
  • मोईनुल हक (1890-1973) 
  • प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एवं खेल – प्रेमी मोईनुल हक 1928 से 1956 तक भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के सचिव रहे । प्रथम एशियाई खेलों के आयोजकों में वे भी एक थे । 
  • 1937 से 1950 तक वह अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन के अध्यक्ष रहे। 1948 के ओलम्पिक खेलों में वह भारतीय दल के प्रधान रहे । इन्हीं के नाम पर पटना में मोईनुल हक स्टेडियम का निर्माण हुआ । एक लम्बी अवधि तक वह बिहार नेशनल कॉलेज के प्रधानाचार्य भी रहे । 
  • गणेशदत्त सिंह 
  • गणेशदत्त सिंह का जन्म 15 जनवरी, 1868 को वर्तमान नालंदा जिलान्तर्गत छतियाना में हुआ था। 1891 ई० में उन्होंने पटना कॉलेजिएट स्कूल से प्रथम श्रेणी में प्रवेशिका की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1895 में पटना कॉलेज से बी० ए० और 1897 में पटना लॉ कॉलेज से बी० एल० करने के उपरांत उन्होंने वकालत करना आरंभ किया । 
  • पटना जिला न्यायालय के पश्चात् उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय और पटना न्यायालय में एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में ख्याति अर्जित की। 1920 में वे पहली बार बिहार लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। इसके बाद वे इस कौंसिल के लिए 1923, 1929, 1932 और 1937 में भी निर्वाचित हुए। प्रांतीय द्वैध शासन के अंतर्गत वे 27 मार्च, 1923 से 31 मार्च, 1937 तक बिहार एवं उड़ीसा प्रान्त के मंत्री रहे ।  
  • उन्होंने अपना निजी मकान एवं चार लाख रुपये पटना विश्वविद्यालय को दान में दिया । > 26 सितम्बर, 1947 को उनका निधन हो गया । आधुनिक बिहार और यहाँ के उच्च शिक्षण संस्थानों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने वाले गणेशदत्त सिंह को भूमिहार ब्राह्मण जाति के लोगों का उद्धारकर्त्ता भी कहा जाता है । 
  • जगलाल चौधरी 
  • स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा तथा शोषितों- पीड़ितों के मसीहा जगलाल चौधरी का जीवन गाँधीजी की विचारधारा से ओत-प्रोत था । 
  • उनका जन्म 1 मार्च, 1895 को सारण जिला के गड़खा गाँव में हुआ था । वे एक मेधावी छात्र थे। 1921 में जब कलकत्ता में वह डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने वाले थे, तभी गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन के आह्वान पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए गाँधीजी के वर्धा आश्रम पहुँच गये। बाद में पूर्णिया के टीका पट्टी आश्रम से अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया और नमक सत्याग्रह में शामिल हुए । 
  • 1937 से 1962 तक पाँच बार बिहार विधान सभा के सदस्य रहे जगलाल चौधरी ने ‘ए प्लान टू रिकन्स्ट्र भारत’ नामक पुस्तक लिखी । 1937 में उन्होंने चुनाव में कुरसेला स्टेट के जमींदार को हराया तथा 1938 में स्वास्थ्य एवं आवकारी मंत्री के रूप में शराब बंदी विधेयक पारित कराया । 
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। चार साल जेल में रहे । 1946 में रिहा होकर श्रीकृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बने । 9 मई, 1973 को उनका देहान्त हो गया । 
  • कर्पूरी ठाकुर 
  • कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजवादी नेता थे । इनका जन्म 24 जनवरी, 1921 को समस्तीपुर जिले के पितौझिया गाँव में हुआ था । 
  • वह 1952 तक हिन्द किसान पंचायत के महामंत्री और 1953 से 1988 तक विधानसभा सदस्य रहे। 1967 में महामाया प्रसाद के नेतृत्व में गठित संविद सरकार में वह उप मुख्यमंत्री बने तथा 22 दिसम्बर, 1970 से जून, 1971 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे । 
  • 24 जून, 1977 से 21 अप्रैल, 1979 तक वह जनता पार्टी सरकार में पुनः बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 1982 में जनता पार्टी से अलग होकर उन्होंने पृथक दल का गठन किया। 1985 में वह बिहार विधानसभा में विरोधी दल के नेता बने। 17 फरवरी, 1988 को इनका निधन हो गया । 
  • दरोगा प्रसाद राय 
  • दरोगा प्रसाद राय एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रशासक एवं समाजसेवी थे । 2 सितम्बर, 1923 को इनका जन्म बजहिया गाँव, परसा थाना, सारण जिला में हुआ था । इन्होंने टी०एन०बी० कॉलेज भागलपुर से अर्थशास्त्र में बी०ए० की डिग्री प्राप्त की । वह समाजवादी विचारधारा के थे और 1942 ई० के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया । 
  • वह 1948 ई० में सारण जिला के पार्षद सदस्य बने तथा 1952 ई० में परसा विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए । 16 फरवरी, 1970 से 22 दिसम्बर, 1970 तक वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे । उनके मुख्यमंत्रित्व काल में 19 मई, 1970 को गंगापुल ( महात्मा गाँधी सेतु, पटना) बनाने की स्वीकृति प्रदान की गयी । 
  • लालू प्रसाद यादव 
  • लालू प्रसाद का जन्म 11 जून, 1948 को छोटी फुलवरिया, मीरगंज प्रखंड, गोपालगंज, बिहार में हुआ । इनके पिता का नाम श्री कुंदन राय एवं माता का नाम मरछिया देवी है । 
  • इन्होंने 1965 ई० में मैट्रिक, 1969 ई० में बी० ए० (ऑनर्स) एवं 1974 ई० में एल० एल० बी० ( कानून में डिग्री) प्राप्त की । 1967 से 1969 तक ये पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव रहे तथा 5 जनवरी, 1967 को छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। 1973 से 1977 तक पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे । 
  • 18 मार्च, 1974 को पटना में छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया और 7 अप्रैल, 1974 को गाँधी मैदान, पटना की महती जनसभा की अध्यक्षता की। 1974 से 20 मार्च, 1977 तक बांकीपुर सेन्ट्रल जेल पटना में रहे तथा फुलवारीशरीफ, भागलपुर, गया, छपरा में छात्र आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की । 
  • लालू प्रसाद मार्च, 1977 में छपरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए, 1980 से 1984 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे तथा 1985 ई० में सोनपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। वह 18 मार्च, 1989 से 7 दिसम्बर, 1989 तक विधानसभा में विरोधी दल के नेता रहे । फरवरी, 1990 में विधानसभा चुनाव के बाद जनता दल विधायक दल के नेता चुने गए और 10 मार्च, 1990 को इन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पद का पहली बार शपथ ग्रहण किया तथा 28 मार्च, 1995 तक इस पद पर रहे। दूसरी बार 4 अप्रैल, 1995 से 25 जुलाई, 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 25 जुलाई, 1997 को उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री का पद अपनी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी को सौंप दिया । 
  • जनवरी, 2016 में नौंवीं बार चुने गए राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष (‘राजद सुप्रीमो ‘) 
  • लालू प्रसाद केन्द्र में डॉ० मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2004 में बनी संप्रग सरकार में 5 वर्ष तक रेल मंत्री रहे । चारा घोटाला केस में न्यायालय द्वारा (2013 में) दोषी ठहराये जाने के बाद लोकसभा की सदस्यता गँवाने वाले भारत के प्रथम सांसद के रूप में चर्चित रहे । 
  • नीतीश कुमार 
  • नीतीश कुमार का जन्म पटना जिलान्तर्गत बख्तियारपुर के कल्याणपुर ( कल्याण बिगहा ) गाँव में एक साधारण किसान परिवार में 1 मार्च, 1951 ई० को हुआ । 
  • उनकी माता का नाम श्रीमती परमेश्वरी देवी था । उनके पिता कविराज रामलखन सिंह जी एक प्रसिद्ध वैद्य थे। 22 फरवरी, 1973 को उनका विवाह मंजू कुमारी सिन्हा से हुआ । उनकी एक मात्र संतान का नाम निशांत है । 
  • बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त कर 
  • नीतीश कुमार ने 1974 में जेपी आंदोलन से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी ।
  • वे 1974 एवं 1980 ई० में हुए विधानसभा चुनावों में पराजित होने के बाद 1985 में पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए । लोकसभा के लिए वह पहली बार 1989 में बाढ़ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए । इसके बाद वह 1991, 1996, 1998 तथा 1999 में लोकसभा के लिए चुने गये। 22 नवम्बर, 1999 से 3 मार्च, 2000 तक वह केन्द्र में कृषि मंत्री रहे । 
  • 3 मार्च, 2000 से 10 मार्च, 2000 तक मात्र 7 दिन तक वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे । किंतु बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा । 
  • जनता दल (यू) नेता नीतीश कुमार 20 मार्च, 2001 से 21 जुलाई, 2001 तक पुनः केन्द्र में कृषि मंत्री रहे। बाद में वह भारत के रेलमंत्री भी रहे। गैसल रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था । इस प्रकार नैतिक आधार पर इस्तीफा देने वाले नीतीश कुमार (लाल बहादुर शास्त्री के बाद) दूसरे रेल मंत्री हैं । 
  • नीतीश कुमार 24 नवम्बर, 2005 को दूसरी बार 26 नवम्बर, 2010 को तीसरी बार, 22 फरवरी 2015 को चौथी बार एवं 20 नवंबर 2015 को पाँचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने । वह 10 अप्रैल 2016 को जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने । 
  • बी० पी० मंडल 
  • पिछड़ी जाति आयोग के प्रमुख एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल अपने सामाजिक न्याय संबंधी विचारों के लिए याद किये जाते हैं । 
  • राबड़ी देवी 
  • बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी का जन्म सेलारकला (गोपालगंज) में हुआ था । उनके पिता का नाम शिव प्रसाद चौधरी है । 
  • राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी 25 जुलाई, 1997 को पहली बार बिहार की मुख्यमंत्री बनी एवं तब से 2005 तक वह तीन बार इस पद को सम्हाल चुकी हैं । 
  • दशरथ मांझी 
  • ‘पर्वत पुरुष’ ( माउन्टेन मैन ) के नाम से जाना जानेवाले दशरथ मांझी का जन्म 1934 ई० में गया जिला के गहलौर गाँव में हुआ था । पानी के लिए इस गाँव के लोगों को तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था । लोगों की सुविधा के लिए दशरथ मांझी ने पहाड़ को छैनी – हथौड़े से काटकर 360 फीट लम्बा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया। 22 वर्ष (1960 से 1982) तक अनवरत किये गये उनके पुरुषार्थ और भगीरथ प्रयास से गया जिला के अतरी और वजीरगंज प्रखंड के बीच की दूरी 80 किमी से घटकर मात्र 3 किलोमीटर रह गयी । इतना ही नहीं तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मिलने के लिए उन्होंने गया से दिल्ली तक रेल पटरी के सहारे पैदल यात्रा की। 18 अगस्त, 2007 ई० को ए.आई. आई. एम. एस., नई दिल्ली में उनका निधन कैंसर के कारण हो गया ।
  • आरसी प्रसाद सिंह 
  • हिन्दी एवं मैथिली के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि आरसी बाबू का जन्म रोसड़ा (समस्तीपुर) के निकट एरौत (इरावत) गाँव में 19 अगस्त, 1911 ई० को हुआ था । 
  • उदय, कुँअर सिंह, आरसी, संचयिता, पाञ्चजन्य, कलापी, पूजाक फूल, चाणक्य – शिखा, पंचपल्लव, कागज की नाव, हीरा-मोती आदि उनकी कुछेक महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं । मैथिली काव्य संकलन ‘सूर्यमुखी’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक सम्मानों से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह का निधन 15 नवम्बर, 1996 ई० को पटना में हो गया । 
  • राधाकृष्ण जालान 
  • राधाकृष्ण जालान कलाकृतियों और ऐतिहासिक अवशेषों के प्रसिद्ध संग्रहकर्त्ता थे, जिनके 
  • व्यक्तिगत संग्रह पर आधारित जालान संग्रहालय, पटना सिटी में स्थापित है । 
  • सैय्यद हसन अस्करी (1901-1990)
  • सैय्यद हसन अस्करी मध्यकालीन भारतीय इतिहास और विशेषकर सूफीमत के विख्यात विद्वान, शोधकर्त्ता एवं अध्यापक थे, जिन्होंने बिहार में इतिहासकारों की नई पीढ़ियों को प्रभावित किया । भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री सहित अन्य सम्मान प्रदान किये गये ।
  • कालिकिंकर दत्त 
  • प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और शिक्षाशास्त्री कालिकिंकर दत्त न केवल ‘बिहार में स्वतंत्रता संग्राम’ नामक पुस्तक के रचयिता थे, बल्कि वे पटना एवं मगध विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे । 
  • गोरखनाथ सिंह 
  • छपरा के गोरखनाथ सिंह प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा शिक्षाविद् थे । वह पटना कॉलेज के प्राचार्य तथा ए० एन० सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के निदेशक भी रहे । 
  • डॉ० अजीमुद्दीन अहमद (1882 – 1949) 
  • डॉ० अजीमुद्दीन अहमद ऐसे प्रथम बिहारी थे जिन्होंने लिप्जिग विश्वविद्यालय (जर्मनी) से डॉक्ट्रेट की डिग्री प्राप्त की । इनकी शोध-रचना ‘शम्सुल उलूम’ लंदन की गिब्स मेमोरियल सीरिज में प्रकाशित हुई । इस सम्मान को पानेवाले वे प्रथम भारतीय थे । 
  • इन्हें उर्दू कविता में सॉनेट शैली के प्रथम प्रयोग का भी श्रेय प्राप्त है । 
  • कलीमुद्दीन अहमद ( 1908-1985) 
  • कलीमुद्दीन अहमद उर्दू भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं अंग्रेजी के अध्यापक थे, जिन्होंने उर्दू में आलोचना की नयी शैली का विकास किया। बिहार सरकार में दो दशकों तक उच्च पद पर रहने वाले श्री अहमद पद्मश्री सहित अनेक सम्मानों से पुरस्कृत हुए । 
  • काज़ी अब्दुल बदूद 
  • काज़ी अब्दुल बदूद उर्दू भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे, जिन्होंने उर्दू साहित्य में वैज्ञानिक शोध प्रबंध को प्रचलित किया । 
  • शाद अज़ीमाबादी (1848-1927) 
  • शाद अज़ीमाबादी पटना सिटी के रहने वाले उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने में निर्णायक योगदान दिया। उन्होंने उर्दू भाषा में बिहार पर पहली ऐतिहासिक रचना ‘नक्शे पायदार’ लिखी । 
  • कलीम आजिज़ 
  • वर्तमान काल में बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय उर्दू कवि, जो पद्मश्री से सम्मानित भी हैं ।
  • रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974) 
  • राष्ट्रकवि दिनकर जी की नवीन चेतना और ओज से भरी अधिकांश कविताओं में राष्ट्रीयता की भावना तथा कुछ कविताओं में विश्व – प्रेम की भावना स्पष्टतः परिलक्षित होती है ।
  • बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में एक अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने साहित्य की दोनों विधाओं गद्य तथा पद्य में समान रूप से महारत हासिल की।
  • पहली पुस्तक ‘प्राण मंत्र’ उनके हाई स्कूल पास करने के बाद ही प्रकाशित हो गयी थी । 
  • उनकी अधिकांश रचनाएँ साहित्य की पद्यात्मक शैली में ही हैं, जिनमें प्रमुख हैं— रेणुका, इन्दुगीत, हुंकार, रसवंती, चकवाल, धूप-छाँव, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, नीलकुसुम, सीपी और शंख, उर्वशी, परशुराम की प्रतिज्ञा तथा हारे को हरिनाम । 
  • उनके द्वारा रचित गद्य खंड हैं— संस्कृति के चार अध्याय, अर्द्धनारीश्वर, रेत के फूल, उजली आग आदि । यद्यपि उनकी कृति ‘रेणुका’ ने ही उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया था, किन्तु उनके महाकाव्य ‘उर्वशी’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर उनकी ख्याति और बढ़ी । 
  • आचार्य नलिन विलोचन शर्मा (1916-1961) 
  • आचार्य नलिन विलोचन शर्मा का जन्म पटना के बदर घाट मुहल्ले में हुआ था । वह हिन्दी के मौलिक सर्जनात्मक साहित्यकार, नई दृष्टि के समीक्षक, प्रयोगधर्मी कवि, मनोवैज्ञानिक कहानीकार, अध्यापक, निबन्धकार, अनुवादक, सम्पादक तथा चित्रकार थे । साहित्य और बौद्धिकता के क्षेत्र में इनकी पैठ अद्वितीय थी । 
  • इनकी प्रमुख कृतियों में ‘दृष्टिकोण और मापदण्ड’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’ तथा ‘विष के दाँत (कहानी संग्रह) प्रमुख हैं । 
  • केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ 
  • भोजपुरी भाषा के महाकवि, पं० केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ छायावादी और राष्ट्रवादी चेतना के समन्वयवादी कवि थे । इनकी रचना में दोनों प्रकार के (छायावादी और राष्ट्रवादी) स्वर मुखरित होते हैं । 
  • नागार्जुन (1919-1998) 
  • तरौनी ग्राम (दरभंगा) के निवासी श्री वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ उर्फ नागार्जुन का जन्म जून, 1919 में हुआ था । आरंभ से ही उनका जीवन संघर्षमय रहा। इसी कारण उनकी रचनाओं में मानवीय दुःख, अभाव व संघर्षों की कहानी प्रतिबिम्बित होती है । 
  • इनकी गिनती अग्रगण्य आंचलिक उपन्यासकारों में की जाती है । दुःखमोचन, बलचनमा, पत्रहीन नग्न गाछ आदि उनकी अनेक रचनाओं ने हिन्दी एवं मैथिली साहित्य को समृद्ध किया है। 5 नवम्बर, 1998 को पटना में उनका देहावसान हो गया । 
  • उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
  • फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ (1921-  1977) 
  • फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्म 4 मार्च, 1921 को पूर्णिया ( अब अररिया ) जिला के औराही हिंगना गाँव में हुआ था । वह एक साहित्यकार ही नहीं पत्रकार भी थे। उन्होंने ‘नई दिशा’ (1945), ‘नया कदम’ (1952-53) आदि पत्रों का सम्पादन किया । 
  • हिन्दी उपन्यासों की दुनिया में आंचलिकता को आन्दोलन के रूप में आरंभ करने का श्रेय रेणु के आंचलिक उपन्यास ‘मैला आंचल’ को जाता है। इसमें उनके आंचलिक चित्रण की क्षमता चरम सीमा पर है । 
  • परती परिकथा, मारे गये गुलफाम, जुलूस, रसप्रिया, कितने चौराहे, आदिम रात्रि की महक आदि उनकी अन्य लोकप्रिय रचनाएँ हैं। 11 अप्रैल, 1977 को इनका निधन हो गया । 
  • देवकीनंदन खत्री (1861-1913) 
  • देवकीनंदन खत्री पत्रकार एवं साहित्यकार थे । इनका जन्म 18 जून, 1861 को मुजफ्फरपुर के पूसा में हुआ । इन्होंने उपन्यास ‘लहरी’ का संपादन किया। 1898 ई० में लहरी प्रेस की स्थापना की एवं माधव प्रसाद मिश्रा के संपादन में प्रकाशित पत्र ‘सुदर्शन’ का संचालन किया । 
  • चन्द्रकांता (1891), नरेन्द्र मोहिनी (1892), कुसुम कुमारी (1898), कटोरा भर खून (1895), काजर की कोठरी (1902), चन्द्रकांता संतति (1905), भूतनाथ ( 1907) के अतिरिक्त लैला- मजनू, गुप्त गोदना, नौलखा हार, अनूठी बेगम आदि इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं । > इनका निधन 1913 ई० में हुआ । 
  • राजा राधिकारमण प्र० सिंह (1890–1971) 
  • राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं साहित्यकार थे ।
  • उनका जन्म 10 सितम्बर, 1890 को सूर्यपुरा रियासत (मुंगेर) में हुआ । इनकी रचना ‘कानों में कंगना’ सर्वप्रथम 1913 ई० में जयशंकर प्रसाद की पत्रिका ‘इंदू’ में प्रकाशित हुईं। 1970 ई० में इनकी अंतिम पुस्तक ‘बिखरे मोती’ ( चार खंड ) प्रकाशित हुई । 
  • वह जिला परिषद् शाहाबाद के अध्यक्ष बने, गाँधीजी के सहयोगी रहे, राहत कार्यों में उनकी सक्रिय भूमिका रही तथा हरिजन सेवक संघ जैसी संस्थाओं से उनका गहरा संपर्क रहा । 
  • राम रहीम (1936), पुरुष और नारी, टूटा तारा, सूरदास संस्कार, नारी क्या – एक पहेली ?, चुंबन और चाँटा, गाँधी टोपी, धर्म की धुरी, अपना-पराया, हवेली और झोपड़ी, धर्म और मर्म, अबला क्या ऐसी सबला आदि इनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं । इन्होंने 1950 ई० में प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘नई धारा’ का प्रकाशन किया । 
  • उन्हें 1962 ई० में पद्म भूषण एवं 1965 ई० में उत्कृष्ट साहित्य रचना हेतु डेढ़ लाख का पुरस्कार सम्मानित किया गया था । 24 मार्च, 1971 को उनका निधन हो गया । 
  • आचार्य शिवपूजन सहाय (1893-1962) 
  • पत्रकार, साहित्यकार, अध्यापक आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त, 1893 को बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) के उनवास ग्राम में हुआ था । 
  • उन्होंने माधुरी (लखनऊ 1925), मतवाला (1926), गंगा (सुलतानगंज, भागलपुर, 1930), जागरण (काशी, 1932), हिमालय (पटना, 1946), साहित्य ( पटना, 1950 ) आदि पत्रों का संपादन किया। उन्होंने बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का संचालन (1950 से 1957 तक) किया । 
  •  1939 से 1949 तक राजेन्द्र कॉलेज, छपरा में वे हिन्दी के अध्यापक रहे। . > हिन्दी में प्रथम आंचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ के लेखक आचार्य शिवपूजन ने साहित्यिक पत्रकारिता एवं संस्मरण लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया । उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में बिहार का विहार विभूति (कहानी संग्रह), देहाती दुनिया (आंचलिक उपन्यास), भीष्म- अर्जुन (जीवनी), दो घड़ी ( व्यंग्य – विनोद), ग्राम-सुधार (लेख), शिवपूजन रचनावली आदि प्रमुख हैं । 1960 ई० में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनका निधन 21 जनवरी, 1962 को पटना में हो गया । 
  • रामवृक्ष बेनीपुरी (1902–1968) 
  • साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, समाजसेवक एवं पत्रकार बेनीपुरीजी का जन्म जनवरी, 1902 में मुजफ्फरपुर के बेनीपुर ग्राम में हुआ था । उन्होंने कॉंग्रेस पार्टी सहित बिहार सोशलिस्ट पार्टी एवं बिहार प्रान्तीय किसान सभा में महत्वपूर्ण योगदान दिया । 
  • उन्होंने ‘तरुण भारत’ साप्ताहिक (1921) से लेकर ‘जनवाणी’ मासिक ( 1948 ) तक दर्जनों पत्रों का संपादन किया । शब्द-चित्र शैली के जनक बेनीपुरीजी के रेखाचित्र ‘माटी की मूरतें, ( संकलन) साहित्य अकादमी द्वारा सभी भारतीय भाषाओं में अनुवादित हुआ । 
  • उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं— ‘कविता कुसुम’ संग्रह (1925), लँगट सिंह (1927-28), चिता के फूल (1930-32 ), दीदी (1935-36), झोपड़ी का रुदन ( 1937-39), अपना देश (1948-50), नया समाज (1951), कुछ मैं कुछ एवें (1952-54), जंजीरें एवं दीवारें (1955), मील के पत्थर (1957) आदि । 1955-56 में बेनीपुरी ग्रंथावली का प्रकाशन हुआ । 1967 में उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ सम्मान और 1968 में ‘वयोवृद्ध साहित्यिक पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 7 सितम्बर, 1968 को उनका निधन हो गया । 
  • गोपाल सिंह ‘नेपाली’ (1911-1963) 
  • कवि, पत्रकार, गीतकार एवं फिल्म निर्माता ‘नेपाली जी’ का जन्म 11 अगस्त, 1911 को बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले के बेतिया में हुआ था । 
  • ‘भारत गगन के जगमग सितारे’ कविता से कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए नेपालीजी की पहली रचना 1930 ई० में ‘बालक’ मासिक (दरभंगा) में प्रकाशित हुई। उन्होंने ‘प्रभात’ हस्तलिखित पत्र (बेतिया, 1932), ‘दी मुरली’ (अँग्रेजी पत्रिका टंकित करके, 1932) तथा ‘सुधा’ (लखनऊ, 1932) का संपादन किया । नेपाली जी 1934 ई० में ‘चित्रपट’ सिने साप्ताहिक (दिल्ली) में संयुक्त संपादक रहे तथा । 1935 से 1937 तक ‘योगी’ साप्ताहिक (पटना) का संपादन किया । 
  • 1939 से 1940 तक वह बेतिया राज प्रेस में प्रबंधक रहे तथा 1944 से 1956 तक गीतकार के रूप में अनुबंधित रहे। उन्होंने नजराना, सनसनी, खुशबू आदि फिल्मों का निर्माण तथ 
  • स्वतंत्र लेखन (1956 से 1963 तक ) किया। उनकी प्रमुख कृतियों (गीत एवं पुस्तकों) में पतंग (1933), पक्षी (1934), रागिनी (1935), पंचमी ( 1942), नवीन एवं नीलिमा (1944), हिमालय ने पुकारा (1963) का नाम उल्लेखनीय है । 
  • उन्होंने तिलोत्तमा, माया बाजार, नागपंचमी, सफर, नजराना, मजदूर (1944), शिवभक्ति, तुलसीदास आदि लगभग चार दर्जन फिल्मों में 400 गीतों की रचना की । 
  • 17 अप्रैल, 1963 को उनका निधन भागलपुर जं० के प्लेटफार्म नं० -2 पर हुआ । 
  • आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री (1916-2011 ) 
  • गया जिला के मैरवा में 1916 ई० को जन्मे शास्त्री जी ने मुजफ्फरपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया । 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने संस्कृत भाषा में ‘काकली’ नामक अपनी प्रथम पुस्तक की रचना की। इसके बाद उन्होंने संस्कृत में – वंदी मंदिरम, लीला पदम आदि के अतिरिक्त हिन्दु में-रूप-अरूप, राधा, तीर-तरंग, हंस किंकिणी आदि कविताओं की रचना की। उनका महाकाव्य ‘राधा’, उपन्यास ‘कालिदास’ और उनकी आत्मकथा ‘हंस बलाका’ विश्व प्रसिद्ध हुईं | 
  • उन्हें बिहार सरकार की ओर से राजेन्द्र शिखर सम्मान और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से भारत-भारती पुरस्कार प्रदान किये गये । किन्तु वर्ष 2011 में उन्होंने भारत सरकार के ‘पद्मश्री’ सम्मान को स्वीकार नहीं किया । 
  • एक साथ गीत, गजल व कविता को विशिष्ट आयाम देने वाले छायावाद के अंतिम स्तंभ शास्त्री का निधन 96 वर्ष की अवस्था में 7 अप्रैल, 2011 को हो गया । 
  • राजमोहन झा 
  • प्रसिद्ध साहित्यकार स्व० हरिमोहन झा के सुपुत्र श्री राजमोहन झा मैथिली के सुप्रसिद्ध कथाकार हैं । ‘काल्हि परसू’ आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । इन्हें वर्ष 2009 का प्रबोध साहित्य सम्मान दिया गया है। वर्ष 1996 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 
  • स्वामी सत्यानंद सरस्वती ( 1923 – 2009) 
  • अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में 23 दिसम्बर, 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 20 वर्ष की अवस्था में (1943 में) गृहत्याग किया । 
  • उन्होंने 1963 में ‘योग मित्र मंडल’ और 1964 में बिहार योग विद्यालय मुंगेर की स्थापना की। अगले 20 वर्ष तक उन्होंने योग को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाया। उन्होंने 80 से अधिक ग्रंथों की रचना की । 
  • 1988 में उन्होंने क्षेत्र संन्यास लिया तथा 1989 में वे रिखिया (देवघर) आ गये। अगले 20 वर्ष तक उन्होंने कठोर तप किया तथा सार्वभौमिक दृष्टि से साधनारत रहे । 
  • स्वामी सत्यानंद सरस्वती योग और तंत्र के एक अग्रणी संत थे। 6 दिसम्बर, 2009 को वे ब्रह्मलीन हो गये । 
  • नंदलाल बसु (1882–1966) 
  • नंदलाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1882 को खड़गपुर (मुंगेर) में हुआ। उनकी शिक्षा गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, कलकत्ता (कोलकाता) में हुई । 
  • उन्होंने 1920 ई० में शांति निकेतन के कला भवन में योगदान दिया तथा 1922 ई० में शांति निकेतन, कला भवन के प्राचार्य बने। 1927 ई० में रवीन्द्र नाथ टैगोर के साथ चीन, जापान, मलाया, बर्मा की यात्रा पर गये। 1927 ई० में जावा – सुमात्रा की यात्रा की एवं 
  • अजंता एवं बाघ आदि गुफाओं के भित्तिचित्रों की प्रतिलिपि का निर्माण किया । 
  • उनकी कुछ महत्वपूर्ण कलाकृतियों में शिव की तपस्या में लीन पार्वती, सती, सुजाता, शिव का विषपान, बुद्ध और महेश, उमा का शोक, पूजा, दुर्गा, जगई मघई, शीत के कमल, बसंतोत्सव, भीष्म प्रतिज्ञा, कुरुक्षेत्र, अनन्नास का वन, युधिष्ठिर की स्वर्ग यात्रा, वीणावादिनी, विरहिणी, मेघ, गाँधीजी की दांडी यात्रा आदि का नाम उल्लेखनीय है । 
  • उन्हें 1950 ई० में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं 1957 ई० में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा विश्वभारती द्वारा ‘देशिकोत्तम’ और भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण की उपाधि दी गयी । 
  • 1954 ई० में वे ललित कला अकादमी के रत्न सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए । 1957 ई० में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया । 16 अप्रैल, 1966 को शांति निकेतन में उनका निधन हो गया । 
  • ईश्वरी प्रसाद (1887-1949) 
  • 1887 ई० में लोदी कटरा, पटना सिटी, पटना, बिहार में जन्मे ईश्वरी प्रसाद ने प्रसिद्ध चित्रकार एवं अपने नाना शिवलाल से कला की शिक्षा ग्रहण की थी । 
  • वह गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, कलकत्ता से भारतीय लघु चित्रकला के विशेषज्ञ अध्यापक एवं उपप्राचार्य तथा कुशल सितारवादक हुए । उनकी महत्वपूर्ण कलाकृतियों में— पर्दानशीन, चाइल्ड इन द वर्ल्ड, भारत माता, मीर अमीर, जान साहब आदि चित्र प्रमुख हैं । 
  • ईश्वरी प्रसाद पटना शैली के अंतिम चित्रकार थे, जिन्होंने हाथी दाँत एवं अबरख की परतों पर कुशल चित्रकारी की। उन्होंने कंपनी शैली परम्परा की शुरुआत की। यूरोपीय कला पर उनके द्वारा बड़े तैल चित्रों का निर्माण उल्लेखनीय है । इनका निधन 18 जून, 1949 को महेन्द्रू, पटना में हुआ। 
  • महाराजा भूपेन्द्र नारायण सिंह 
  • इन्हें बिहार में फिल्मों के निर्माण (सिनेमा) की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है । 
  • 1931 में इन्होंने हिन्दी में ‘पुनर्मिलन’ नामक फिल्म का निर्माण किया था, जिसे बिहार की पहली फिल्म होने का गौरव प्राप्त है । 
  • विश्वनाथ प्रसाद (बी. पी.) शाहाबादी 
  • 1960-62 के दौरान ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ेबो’ नामक भोजपुरी फिल्म के माध्यम से इन्होंने बिहार में फिल्मों के व्यावसायिक निर्माण की शुरुआत की। इन्हीं से जुड़े लोगों ने बाद में ‘लागी नाहीं छूटे रामा’ नामक लोकप्रिय भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया था । 
  • अल्लामा ज़मील मज़हरी 
  • आप स्वतंत्रता सेनानी एवं उर्दू के प्रमुख शायर होने के साथ-साथ राज्य के प्रमुख शिक्षाविद् भी थे । 
  • चित्रगुप्त 
  • मुम्बई की फिल्मी दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखनेवाले बिहार के इस प्रसिद्ध संगीतकार ने ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ेबो’ फिल्म में भी संगीत दिया था । 
  • हिन्दी फिल्मों से जुड़े रहने के बावजूद उन्होंने भोजपुरी फिल्मों से अपना रिश्ता कायम रखा। 
  • रामेश्वर सिंह कश्यप 
  • बिहार और आस-पास के क्षेत्रों में ‘लोहा सिंह’ के नाम से मशहूर श्री कश्यप आकाशवाणी के पटना केन्द्र से प्रसारित ‘लोहा सिंह’ शीर्षक नाटक से काफी प्रसिद्ध हुए। बाद में इसी शीर्षक से इन्होंने एक फिल्म भी बनायी थी । 
  • श्याम सागर 
  • ‘कल हमारा है’, ‘बलमा नादान’, ‘बंसुरिया बाजे गंगा तीरे’ जैसी फिल्मों में लोकप्रिय संगीत देकर वे दूसरे चित्रगुप्त कहलाये । अचानक कैंसर हो जाने से इनका असामयिक निधन हो गया । 
  • लक्ष्मण शाहाबादी 
  • ये भोजपुरी फिल्मों के एक अन्य स्तंभ थे । पेशे से इंजीनियर एवं शौक से संगीतकार श्री शाहाबादी ने ‘दुल्हा गंगा पार के’ फिल्म में लोकप्रिय संगीत दिया था । इन्हें फिल्म लेखन में भी महारत हासिल थी । 
  • प्रकाश झा 
  • 1984 में ‘हिप-हिप हुर्रे’ नामक फिल्म बनाकर ये काफी मशहूर हुए । 1985 में इन्होंने ‘दामुल’ नामक फिल्म बनायी, जिसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला । 
  • इनकी लोकप्रिय फिल्मों में मृत्युदंड, गंगाजल, अपहरण, राजनीति, आरक्षण, सत्याग्रह आदि का नाम उल्लेखनीय है । इन्होंने कई वृत्त चित्र तथा ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’, ‘विद्रोह’ आदि टीवी सीरियल भी बनाये । 
  • 2009 में हुए आम चुनाव में प्रकाश झा ने बेतिया लोक सभा क्षेत्र से लोक जनशक्ति पार्टी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा किन्तु हार गये । 
  • गिरीश रंजन 
  • फिल्मी दुनिया में निर्देशक के रूप में प्रसिद्ध गिरीश रंजन ने महान फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ सहायक निर्देशक की हैसियत से अपना कैरियर शुरू किया था । 
  • 1981 में इन्होंने बिहार की पहली हिन्दी में सफल फिल्म ‘कल हमारा है’ बनायी । उन्होंने ‘मोरे मन मितवा’, ‘डाक बंगला’ आदि कई फिल्मों का निर्देशन भी किया । 
  • रामायण तिवारी
  • > हिन्दी चलचित्रों के प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता रामायण तिवारी ने भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में अग्रणी योगदान दिया था। उन्होंने गोपी, यादगार, इज्जत, दुश्मन आदि अनेक हिन्दी फिल्मों में खलनायक की तथा चरित्र भूमिकाएँ की । 
  • शत्रुघ्न सिन्हा 
  • हिन्दी चलचित्रों के प्रसिद्ध अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने अनेक हिन्दी फिल्मों में खलनायक, नायक एवं चरित्र अभिनेता के रूप में विभिन्न भूमिकाएँ अदा की हैं। उनकी चर्चित फिल्मों  में कालीचरण, विश्वनाथ, खिलौना, गौतम गोविन्दा, दोस्ताना, शान, खुदगर्ज आदि का नाम उल्लेखनीय है । 
  • राजनीति में भी सक्रिय श्री सिन्हा राज्य सभा के सदस्य रह चुके हैं । अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री तथा जल परिवहन मंत्री थे । 
  • 2009 एवं 2014 के लोक सभा चुनावों में श्री सिन्हा पटना साहब सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए । 
  • पं० सियाराम तिवारी 
  • इनकी गणना ध्रुपद – धमार, ख्याल, ठुमरी, भजन, कजरी, चैती आदि विधाओं के महान गायकों में होती है। इन्होंने प्रमुख नगरों में शास्त्रीय संगीत कला की विभिन्न विधाओं का प्रदर्शन कर भारतीय संगीत का मान बढ़ाया है । 
  • पं० रामचतुर मल्लिक 
  • हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रमुख घरानों में ग्वालियर, आगरा और मल्लिक घराना को काफी सम्मान प्राप्त है । इनमें से मल्लिक घराना के प्रमुख गायक पं० रामचतुर मल्लिक एक सुविख्यात ध्रुपद गायक थे। इनका जन्म 1906 में दरभंगा जिला के अमता गाँव में हुआ था । 
  • ध्रुपद गायन की शिक्षा उन्हें अपने पिता पं० रजित राम मल्लिक और चाचा क्षितिज मल्लिक से मिली थी। बाद में उन्होंने प्रख्यात सितारवादक पं० रामेश्वर पाठक से भी शिक्षा ग्रहण की ।
  • उन्हें 1953 में बिहार संगीत अकादमी की फेलोशिप प्रदान की गयी। 1970 में उन्हें ‘पद्म- श्री’ तथा ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 1977 में उन्हें ‘सुर विलास’ की उपाधि प्रदान की गयी तथा 1981 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार से ‘तानसेन ॐ सम्मान’ मिला । 11 जनवरी, 1990 को उनका निधन हो गया । 
  • भिखारी ठाकुर 
  • रायबहादुर भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध नाटककार, लेखक और अभिनेता थे ।
  • इन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, विसंगतियों और अंधविश्वासों पर अपनी रचनाओं के माध्यम से कुठाराघात किया । ‘विदेसिया’ इनकी सबसे प्रसिद्ध कृति थी । इस पर निर्मित फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया था । 
  • भिखारी ठाकुर का जन्म 11 जनवरी, 1887 को कुतुबपुर (सारण) में हुआ था । 
  • उनके प्रमुख नाटकों में गंगास्नान, कलयुगी प्रेम, भाई विरोध, बेटी वियोग, पुत्रवधू, बेटी-बेचवा, विदेशिया आदि का नाम उल्लेखनीय है । ब्रिटिश काल में उन्हें ‘राय बहादुर’ की उपाधि मिली तथा भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया । 
  • उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ 
  • 1916 में बिहार में जन्मे उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शहनाई वादक थे । डुमराँव के राज दरबार का उन्हें संरक्षण प्राप्त था। बाद में वह बनारस में रहने लगे थे । 
  • शहनाई वादन को बुलंदियों तक पहुँचाने वाले इस अजीम शहनाई नवाज को 2001 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च असैनिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया । लगभग 90 वर्ष की अवस्था में 2006 में उनका निधन हो गया । 
  • पं. श्याम दास मिश्र 
  • ‘संगीत मार्तण्ड’ से सम्मानित प्रख्यात गायक व शास्त्रीय संगीत के महान साधक पं. श्याम दास मिश्र की ख्याति बिहार ही नहीं अपितु देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में भी थी । > पं. बच्चा मिश्र उनके पिता व गुरु थे। छह राष्ट्रीय राष्ट्रपति पुरस्कारों से सम्मानित पं. श्याम दास मिश्र चौदह भाषाओं के जानकार थे। टीवी चैनल ‘ई टीवी बिहार-झारखंड’ पर नियमित रूप से प्रसारित गीत ‘ये है मेरा बिहार, ये है मेरा बिहार’ के रचयिता व गायक पं. श्याम दास मिश्र का निधन 65 वर्ष की आयु में पटना में 9 अगस्त, 2011 को हो गया । 
  • दामोदर प्रसाद अम्बष्ठ 
  • दामोदर प्रसाद अम्बष्ठ बिहार के गिने-चुने शिल्पकारों में थे, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई । 
  • श्री अम्बष्ठ पटना के प्रसिद्ध शहीद स्मारक एवं बिहार कला महाविद्यालय के निर्माण से जुड़े थे ।
  • इन्हें मूर्तिकला एवं चित्रकला दोनों में ही दक्षता प्राप्त थी । श्री विश्वेश्वरैया की मूर्ति तरासने में इन्हें विशेष प्रशंसा प्राप्त हुई । इन्होंने केन्द्र सरकार के इंस्टीच्यूट ऑफ डिजाइन डेवलपमेन्ट के क्षेत्रीय निदेशक के रूप में भी कार्य किया था । 
  • हरि उप्पल 
  • ‘नटराज’, ‘नाट्यगुरु’, ‘नृत्य गुरु’, ‘दादा’ आदि उपनामों से सम्बोधित होने वाले हरि उप्पल का जन्म 22 सितम्बर, 1926 को हुआ था । उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पटना में ग्रहण की। पटना आर्ट कॉलेज में मूर्तिकला की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने शांति निकेतन से जुड़कर कथकली और मणिपुरी नृत्यों में महारत हासिल की।
  • उन्हें 1943 में सिंघानिया स्कॉलरशिप मिला था। बाद में उन्होंने सुविख्यात नृत्य गुरु कुंजु कुरुप के मार्गदर्शन में कथकली में अभिनय और मुद्रा में अपनी दक्षता को बढ़ाया । > पटना स्थित भारतीय नृत्य कला मंदिर की स्थापना उन्होंने 1950 में की। 84 वर्ष की अवस्था में उनका निधन 2 जनवरी, 2011 को कोलकाता में हुआ, परन्तु उनकी अंत्येष्टि पटना में की गई। उन्हें ‘पद्म श्री’ एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है । मिलन दास 
  • मिलन दास की शिक्षा कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना से हुई, जहाँ से उन्होंने ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त की । कला एवं शिल्प महाविद्यालय, आरा में अध्यापक पद पर कार्य किया । 
  • उन्हें नेशनल अकादमी अवार्ड, शिल्पकला परिषद् (पटना) अवार्ड, बिहार स्टेट अवार्ड आदि से सम्मानित किया गया । 
  • मधुबनी चित्रकला के प्रमुख चित्रकारपद्मश्री सीता देवी ( 1986 में बर्लिन में भारत महोत्सव में भाग लिया था), महासुन्दरी देवी,  कौशल्या देवी, भगवती देवी, जगदम्बा देवी, गोदावरी दत्त । 

बिहार के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ 

  • बाणभट्ट – कादम्बरी, हर्षचरितम्, चण्डीशतक
  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’ – ‘उर्वशी’, ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रश्मिरथी’, ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’
  • फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ – ‘मैला आंचल’, ‘जुलूस’, ‘पलटू बाबू रोड’, ‘दीर्घतमा’, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम) 
  • देवकीनंदन खत्री – ‘चंद्रकांता संतति’, ‘काजर की कोठरी’, ‘भूतनाथ’, ‘नौलखा हार’
  • डॉ० राजेन्द्र प्रसाद – ‘इंडिया डिवाइडेड’, ‘चम्पारण में सत्याग्रह’, ‘बापू के कदमों में’ 
  • राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह –  पुरुष और नारी’, ‘बिखरे मोती’, ‘राम-रहीम’, ‘गाँधी टोपी’, ‘धर्म और मर्म’, ‘अपना-पराया’ 
  • डॉ० कुमार विमल – ‘मूल्य और मीमांसा’, ‘सर्जना के स्वर’, ‘अंगार ये सम्पुट सीपी के’, ‘युगमानव बापू’, ‘ये अभंग अनुभव अमृत’, ‘सौन्दर्यशास्त्र के तत्व’
  • आर्यभट्ट – ‘आर्यभटीयम’, ‘दशगीतिसूत्रम’ 
  • वाचस्पति मिश्र – ‘भाष्य भामती’, ‘न्याय कण्डिका’, ‘ब्रह्मतत्व समीक्षा’ के टीकाकार
  • अश्वघोष – ‘महायान श्रद्धोत्पाद संग्रह’, ‘बुद्ध चरित’ 
  • कौटिल्य – ‘अर्थशास्त्र’ 
  • रामवृक्ष बेनीपुरी – ‘अम्बपाली’, ‘माटी की मूरतें,’ ‘चिता के फूल’, ‘संघमित्रा’
  • विद्यापति –  ‘पदावली’, ‘कीर्तिलता’, ‘कीर्तिपताका’ 
  • वात्स्यायन – ‘कामसूत्रम्’
  • मण्डन मिश्र – ‘नैष्कर्म सिद्धि’, ‘विधि विवेक’
  • ज्योतिरीश्वर ठाकुर – ‘ दर्शन रत्नाकर’, ‘वर्ण रत्नाकर’
  • दाउद – ‘चन्द्रायन’ 
  • विष्णु शर्मा‘पंचतंत्र’ 
  • नारायण पंडित‘हितोपदेश’ 
  • नागार्जुन – ‘बटेसरनाथ’, ‘पारो’, ‘दुःखमोचन’ ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’
  • शिवसागर मिश्र –  ‘दूब जनम छायी’
  • नलिन विलोचन शर्मा – ‘दृष्टिकोण और मापदण्ड’, ‘विष के दाँत’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’
  • केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’- ‘ज्वाला’, ‘कैकेयी’, ‘ऋतुवंश’
  • जानकी बल्लभ शास्त्री – 
  • ‘काकली’, ‘गाथा’, ‘मेघगीत’, ‘अवन्तिका’, ‘चिन्ताहास’, ‘हंस ‘बुलाया’, ‘त्रयीप्रस्थ’, ‘मन की बात’, ‘एक किरण : सौ झाइयाँ’, ‘दो तिनकों का घोंसला’, ‘अशोक वन’, ‘सत्यकाम’, ‘जिंदगी’, ‘आदमी’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘देवी’, ‘नील- झील’, ‘पाषाणी’, ‘तमसा’, ‘इरावती’ 
  • शाद अजीमाबादी – ‘नक्शे-पायदार’ 
  1. कुँवर सिंह ने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किस प्रांत से किया ? [45वीं BPSC, 2002]
  1. जगदीशपुर के किस व्यक्ति ने 1857 ई० के विप्लव में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया ? [48वीं – 52वीं BPSC, 2008]
  • (a) कुँवर सिंह 
  • (b) चन्द्रशेखर 
  • (c) तीरत सिंह 
  • (d) राम सिंह  
  1. कुँवर सिंह राजा थे ? [43वीं BPSC, 1999 एवं 53वीं 55वीं BPSC 20111 
  • (a) हमीरपुर के 
  • (b) धीरपुर के 
  • (c) जगदीशपुर के 
  • (d) रामपुर के 
  1. कुँवर सिंह के पिता का नाम था- 
  • (a) उमराव सिंह
  • (c) रामबख्श सिंह 
  • (b) साहबजादा सिंह 
  • (d) उदवंत सिंह
  1. कुँवर सिंह के विरुद्ध आरा में अँग्रेजी फौज का नेतृत्व करने वाला पहला सेनानायक इनमें कौन था ? 
  • (a) कैप्टेन ली ग्रांड 
  • (c) मिलमैन 
  • (b) कैप्टेन डनवर 
  • (d) लूगार्ड  

बिहार के महापुरुष और उनसे संबंधित स्थान

वर्द्धमान महावीर

कुंडलग्राम

कौटिल्य / चाणक्य

पाटलिपुत्र 

शेरशाह सूरी

सासाराम 

अश्वघोष 

पाटलिपुत्र

चन्द्रगुप्त मौर्य 

पाटलिपुत्र

आर्यभट्ट 

पाटलिपुत्र

व्यक्ति

जन्म स्थल

डॉ . राजेन्द्र प्रसाद

जीरादेई 

( पुराना सारण , वर्तमान सीवान जिला ) 

जय प्रकाश नारायण

सिताब दियारा 

( पुराना सारण , वर्तमान छपरा जिला ) 

बाबू कुँअर सिंह

जगदीशपुर 

( पुराना शाहाबाद , वर्तमान भोजपुर जिला ) 

विद्यापति

विस्फी 

( पुराना दरभंगा , वर्तमान मधुबनी जिला ) 

पंडित मण्डन मिश्र

महिषी ( सहरसा ) 

डॉ ० श्रीकृष्ण सिंह

बरबीघा ( मुंगेर ) 

गुरु गोविन्द सिंह

पटना सिटी ( पटना ) 

फणीश्वर नाथ ‘ रेणु ‘

औराही हिंगना 

( पुराना पूर्णिया , वर्तमान अररिया जिला ) 

रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘

सिमरिया 

( पुराना मुंगेर , वर्तमान बेगूसराय जिला )

आचार्य शिवपूजन सहाय

उन्नवास 

( पुराना शाहाबाद , वर्तमान भोजपुर जिला ) 

मोहनलाल महतो ‘ वियोगी ‘

गया

अनुग्रह नारायण सिंह

पोइआंवा ( औरंगाबाद ) 

राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह

सूर्यपुरा 

जगजीवन राम

चन्दवा 

( पुराना शाहाबाद , वर्तमान भोजपुर जिला ) 

पं ० रामचतुर मल्लिक

अमता ( दरभंगा ) 

जानकी वल्लभ शास्त्री

मैगरा ( गया ) 

बिहार विभूतियों के चर्चित उपनाम 

डॉ ० राजेन्द्र प्रसाद

  • देशरल 
  • अजातशत्रु 
  • संत राष्ट्रपति 

जय प्रकाश नारायण

  • लोकनायक 
  • जेपी

विद्यापति

  • मैथिल कोकिल 
  • महाकवि

डॉ ० अनुग्रह नारायण सिंह

  • बिहार विभूति 
  • बड़े साहब

वैद्यनाथ मिश्र ‘ यात्री ‘

  • बाबा 
  • नागार्जुन 

सत्येन्द्र नारायण सिंह 

  • छोटे साहब

जगजीवन राम

  • बाबूजी

कुंअर सिंह

  • बाबू

डॉ ० श्रीकृष्ण सिंह

  • बिहार केसरी

रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘

  • राष्ट्रकवि

भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति 

राजेंद्र प्रसाद 

1962

डॉ जाकिर हुसैन 

1963

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 

1992

जे आर डी टाटा 

1992

जयप्रकश नारायण 

1998

उस्ताद बिस्मिलाह खान 

2001