बहमनी साम्राज्य (Bahamani Empire)

बहमनी साम्राज्य 

  • बहमनी साम्राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के काल में निरंतर विद्रोह और अशांति का परिणाम थी। 
  • तुगलक सम्राट द्वारा दक्षिण में नियुक्त अमीर-ए-सादा ने अराजकता की स्थिति का लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया। इसे देखकर दौलताबाद के अमीरों ने दौलताबाद दुर्ग पर अधिकार कर अफगान इस्माइल मख को नासिरुद्दीन शाह की उपाधि से अपना शासक घोषित किया। 
  • इस्माइल मख एक बूढ़ा व्यक्ति था, वह सरल स्वभाव का था, इसलिये उसने अपनी इच्छा से अलाउद्दीन के पक्ष में अपना पद त्याग दिया। 
  • सरदारों और अमीरों ने 1347 ई. में जफर खाँ (हसन गंगू) को अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि देकर अपना शासक घोषित किया। 

 

बहमनी सुल्तान और उनका शासन 

अलाउद्दीन हसन बहमन शाह 

  • बहमन शाह ने 1347 ई. से 1358 ई. तक शासन किया।  
  • सिंहासन पर बैठने के पश्चात् बहमनी राज्य के संस्थापक सुल्तान अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने राज्य विस्तार के लिये कंधार, कोट्टगिरी, कल्याणी और बीदर आदि क्षेत्रों को विजित किया 
  • अलाउद्दीन हसन ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया तथा इसका नाम अहसानाबाद (कुछ स्रोतों में अहमदाबाद) रखा। 
  • अलाउद्दीन हसन ने अपने शासन के अंतिम दिनों में दाबुल पर अधिकार किया। दाबुल पश्चिमी समुद्र तट पर बहमनी साम्राज्य का महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था। 
  • अलाउद्दीन हसन ने हिंदुओं के प्रति उदार नीति अपनाई। उसने राज्य में जज़िया की वसूली पर प्रतिबंध लगा दिया। 
  • फरवरी 1358 ई. में बहमन शाह की मृत्यु हो गई और उसने अपने पीछे एक ऐसा राज्य छोड़ा, जिसकी सीमाएँ उत्तर में वानगंगा नदी तक, दक्षिण में कृष्णा नदी तक, पश्चिम में दौलताबाद तक और पूर्व में भोगिरी तक फैली हुई थी। 

 

मुहम्मद शाह प्रथम (1358-1375 ई.) 

  • अलाउद्दीन हसन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘मुहम्मद शाह प्रथम’ शासक बना। 
  •  मुहम्मद शाह प्रथम का सारा जीवन विजयनगर और वारंगल से युद्ध एवं विजय से संबंधित रहा। मुहम्मद शाह प्रथम का सबसे बड़ा योगदान बहमनी की प्रशासनिक व्यवस्था को व्यवस्थित करना था। उसके आदेशानुसार समस्त सार्वजनिक मद्य गृह बंद कर दिये गए और उसने अपने कठोर प्रबंधन से राज्य की अनुशासनहीनता को समाप्त कर दिया। 
  • राज्य प्रबंधन के लिये उसने राज्य को चार ‘तरफों ‘ या अतराफो (प्रांतों) (गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार व बीदर) में विभाजित किया और प्रत्येक का प्रबंध एक प्रांताध्यक्ष को सौंप दिया, जिसे सेना रखना अनिवार्य था। 
  • इसी के काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ जिससे रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा हुई। 
  • 1375 ई. में मुहम्मद शाह प्रथम की मृत्यु हो गई। 

 

मुहम्मद शाह प्रथम के उत्तराधिकारी 

  • 1375 ई. में मुहम्मद शाह प्रथम की मृत्यु के पश्चात् अगले 22 वर्षों में पाँच सुल्तान सत्तारूढ़ हुए। अलाउद्दीन मुहम्मद (1375–78), दाउद (1378), मुहम्मद शाह द्वितीय (1378-97 ई.), गयासुद्दीन (1397 ई.) और शम्सुद्दीन दाउद (1397) क्रमवार राजगद्दी पर बैठे। बहमनी साम्राज्य में इन शासकों का शासन कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता है। 

 

ताजुद्दीन फिरोजशाह (1397-1422 ई.) 

  • बहमनी राज्य का अगला महत्त्वपूर्ण शासक ताजुद्दीन फिरोजशाह था, जिसने 1397 से 1422 ई. तक शासन किया। 
  • फिरोज़शाह ने खेरला के शासक नरसिंह राय को हराकर बरार का प्रांत जीता। उसने विजयनगर के शासक देवराय प्रथम को पराजित से कर संधि करने पर बाध्य कर दिया था। 
  • फिरोज़ कला प्रेमी और एक सुलेखक था। उसे अरबी, फारसी और तुर्की के अलावा तेलुगू, मराठी एवं मलयालम भाषा का अच्छा ज्ञान था। 

 

शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ( 1422-1436 ई.) 

  • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से स्थानांतरित कर बीदर को बनाया। इस नवीन राजधानी को मुहम्मदाबाद के नाम से जाना गया। 
  • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने 1425 ई. में तेलंगाना, 1426 ई. में माहुर और 1429 ई. में मालवा के साथ युद्ध किया। 
  •  इसकी उदारता के कारण इसे ‘अहमदशाह वली या संत अहमद’ भी कहा जाता है। 
  • ऐसा माना जाता है कि दक्षिण के प्रसिद्ध संत हजरत गेसू दराज़ से उसका घनिष्ठ संबंध था। गेसू दराज ने उर्दू पुस्तक मिराज-उल-आशिकीन‘ की रचना की थी। 

 

अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436-1458 ई.) 

  • अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436-1458 ई.) अपने पिता की तरह योग्य एवं विद्धान शासक था। 
  • इसका संपूर्ण शासनकाल तेलंगाना, गुजरात, खानदेश, विजयनगर, मालवा और उड़ीसा के साथ युद्ध में व्यतीत हुआ। 
  • इसके शासनकाल में महमूद गवाँ को राज्य की सेवा में लिया गया। 

 

हुमायूँ शाह ( 1458-1461 ई.) 

  • अलाउद्दीन द्वितीय के बाद उसका पुत्र हुमायूँ शाह गद्दी पर सत्तासीन हुआ, जिसने 1458 ई. से 1461 ई. तक शासन किया। 
  • हुमायूँ शाह के काल में महमूद गवाँ एक योग्य सेनानायक था। यही कारण है कि हुमायूँ शाह के शासनकाल की समस्त सफलताओं का श्रेय महमूद गवाँ को जाता है। 
  • हुमायूँ शाह को उसके क्रूर स्वभाव के कारण ‘ज़ालिम’ कहा जाता था। 
  • हुमायूँ शाह को ‘दक्कन का नीरो’ भी कहा गया। 
  • हुमायूँ शाह की मृत्यु के पश्चात् उसका अल्पवयस्क पुत्र निजामुद्दीन अहमद तृतीय (1461-63 ई.) सत्ता पर आसीन हुआ। 
  • इसके समय प्रधानमंत्री महमूद गवाँ का नियंत्रण संपूर्ण राज्य पर था। 
  • इसके समय में बहमनी साम्राज्य अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत हो गया था। 
  • आंतरिक प्रबंधन के लिये महमूद गवाँ ने राज्य को आठ प्रांतों में विभक्त किया और प्रत्येक में तर्फदार नियुक्त किये। 
  • 1482 ई. में शम्सुद्दीन मुहम्मद तृतीय (1463-1482 ई.) ने महमूद गवाँ को राजद्रोह के आरोप में फाँसी दे दी। 
  • अंततः दो दशकों के अंदर ही बहमनी साम्राज्य का पतन हो गया। 
  • कालांतर में बहमनी में पाँच नए राज्यों का उदय हुआ, जो निम्न है
    • 1. बीजापुर का आदिलशाही राज्य (1489 ई.), संस्थापक-युसूफ आदिलशाह 
    • 2. अहमदनगर का निजामशाही राज्य (1490 ई.), संस्थापक-मलिक अहमद 
    • 3. बरार का इमादशाही राज्य (1484 ई. में स्वतंत्रता की घोषणा एव 1490 ई. में स्वतंत्र), संस्थापक-फतह उल्लाद इमाद
    • 4.  गोलकुंडा का कुतुबशाही राज्य (1518 ई.) , संस्थापक-कुली कुतुबशाह 
    • 5. बीदर का बरीदशाही राज्य (1526 ई.), संस्थापक-अमीर अली बरीद 

 

बहमनी साम्राज्य के पतन का कारण 

बहमनी साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • बहमनी साम्राज्य के सुल्तान स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासक थे। उनके अधिकारों पर कोई अंकुश नहीं था। 
  • अधिकांश सुल्तान धर्मांध, भोग-विलासी तथा अत्याचारी प्रवृत्ति के थे। बहमनी सुल्तानों ने अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति के लिये कोई ठोस नीति नहीं अपनाई। 
  •  बहमनी सुल्तानों की असहिष्णु धार्मिक नीति के कारण हिंदुओं में असंतोष व्याप्त था। 
  • अपनी स्थापना से लगभग 175 वर्ष तक पूरे अस्तित्व काल में बहमनी सुल्तानों को आंतरिक कलह तथा बाहरी शत्रुओं का निरंतर सामना करना पड़ा। इसं आंतरिक कलह का प्रमुख कारण दरबार में मुस्लिम अमीरों के दो दलों के मध्य ईर्ष्या, प्रतिस्पर्द्धा तथा शत्रुता का होना था। 
  • महमद गवाँ जैसे योग्य प्रधानमंत्री को भी आंतरिक कलह का रोष भुगतना पड़ा। उसकी हत्या के साथ ही बहमनी साम्राज्य का पतन सुनिश्चित हो गया था।

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