झारखण्ड की असुर जनजाति AsurTribes of Jharkhand

30. असुर जनजाति 

  • झारखण्ड की प्राचीनतम एवं आदिम जनजाति
  • सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतिष्ठापक 
  • प्रजातीय संबंध –  प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह 
  • अन्य नाम – ‘पूर्वादेवा’ 
  • झारखण्ड में प्रवेश –  मध्य प्रदेश से 
  • भाषा – असुरी (आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा समूह) 
    • असुरी भाषा को मालेय भाषा भी कहा जाता है।
  • असुर जनजाति का उल्लेख –  ऋगवेद, अरण्यक, उपनिषद्, महाभारत ऋगवेद में इनका नाम 
    • अनासहः – चिपटी नाक वाले
    • अव्रत – भिन्न आचरण करने वाले
    • मृर्धः वाचः – अस्पष्ट बोलने वाले
    • सुदृढ़ – लौह दुर्ग अथवा अटूट दुर्ग निवासी
  • निवास क्षेत्रलातेहार (नेतरहाट पाट क्षेत्र में सर्वाधिक) गुमला तथा लोहरदगा 
  • तीन उपजाति  
    1. वीर  असुर
    2. बिरजिया  असुर
    3. अगारिया  असुर

असुर जनजाति के प्रमुख गोत्र एवं उनके प्रतीक

गोत्र

प्रतीक

गोत्र

प्रतीक

बेंग

मेढ़क

बघना 

बाघ

केरकेट्टा 

पक्षी

अईद

मछली 

बरवा

जंगली पशु 

 

  • युवागृह – ‘गितिओड़ा’ कहा जाता है।
  • बहिर्गोत्रीय विवाह का प्रचलन 
  • वधु मूल्य – ‘डाली टका‘ 
  • इदी मी’ परंपरा 
    • लड़का-लड़की बिना विवाह किए पति-पत्नी की भांति साथ में रहते हैं। 
    • परंतु इन्हे बाद में आपस में विवाह करना अनिवार्य है।
  • मातृसत्तात्मक परिवार 
    • संयुक्त परिवार की प्रणाली 
  • कुंवारे लड़के/लड़कियों द्वारा केले का पौधा लगाना वर्जित 
  • गर्भवती महिला द्वारा ग्रहण देखना प्रतिबंधित 

चामबंदी संस्कार

  • बच्चे को सुरक्षा हेतु चमड़े का धागा पहनाने की परंपरा है, जो विवाह के समय खोला धाता है। 

 

  • दिन के भोजन – ‘लोलोघेटू जोमेंकू‘ कहा जाता है।
  • रात के भोजन – ‘छोटू जोमेंकू‘ कहा जाता है।
  • प्रमुख पेयहड़िया (‘बोथा’ या ‘झरनुई’ ) 
  • प्रमुख त्योहार –  सरहुल, सोहराई, कथडेली, सरही, कुटसी (लोहा गलाने के उद्योग की उन्नति हेतु), नवाखानी आदि 
  • इनकी संस्कृति को मय संस्कृति‘ कहा जाता है।
  • अखरा नृत्य स्थल 
  • प्रमुख पेशा  – लोहा गलाना 
  • प्रमुख देवता –  सिंगबोंगा हैं 
  • धार्मिक प्रधानबैगा 
    • बैगा का सहायक-  ‘सुबार‘ 
  • माटी – जादू-टोना करने वाले व्यक्ति