संविधान का संशोधन (Amendment of the constitution)
- संविधान के भाग XX/20 के अनुच्छेद-368 में संसद कोसंविधान एवं इसकी व्यवस्था में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है।
- लेकिन संसद ,संविधान के मूल ढांचे से संबंधित व्यवस्थाओं को संशोधित नहीं कर सकता। यह व्यवस्था उच्चतम न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती मामले (1973) में दी गई थी।
संशोधन प्रक्रिया
अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का निम्नलिखित तरीकों से उल्लेख किया गया है:
- संविधान संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में विधेयक पुरः स्थापित करके ही किया जा सकेगा
- राज्य विधानमण्डल में विधेयक पुरः स्थापित करके नहीं किया जा सकेगा ।
- विधेयक को किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुरः स्थापित किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है।
- विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित कराना अनिवार्य है।
- सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत (50 प्रतिशत से अधिक)
- सदन में उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत
- प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग-अलग पारित कराना अनिवार्य है।
- दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कराने का प्रावधान नहीं है।
- यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे आधे राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत से पारित होना चाहिए।
- विधानमंडल में उपस्थित सदस्यों के बहुमत ।
- संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है।
- राष्ट्रपति विधेयक को सहमति देंगे।
- वे विधेयक को अपने पास नहीं रख सकते हैं
- वे संसद के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकते हैं।
- राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है।
संशोधनों के प्रकार
- अनुच्छेद 368दो प्रकार के संशोधनों की व्यवस्था करता है।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत संशोधन।
लेकिन संविधान संशोधन तीन प्रकार से हो सकता है:
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत संशोधन।
संसद के साधारण बहुमत द्वारा
- संविधान के अनेक उपबंध संसद के दोनों सदनों साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं।
- ये व्यवस्थाएं अनुच्छेद 368 की सीमा से बाहर हैं।
संसद के विशेष बहुमत द्वारा
- प्रत्येक सदन के
- कुल सदस्यों का बहुमत (अर्थात् 50 प्रतिशत से अधिक)
- प्रत्येक सदन के उपस्थित और मतदान के सदस्यों के दो-तिहाई का बहुमत
इस तरह से संशोधन व्यवस्था में शामिल हैं
- मूल अधिकार
- राज्य की नीति के निदेशक तत्व
संसद के विशेष बहुमत एवं राज्यों की स्वीकृति द्वारा
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा + आधे राज्य विधानमंडलों में साधारण बहुमत
- विधेयक को स्वीकृति देने के लिए राज्यों के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है।
निम्नलिखित उपबंधों को इसके तहत संशोधित किया जा सकता है।
- 1. राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं इसकी प्रक्रिया।
- 2. केंद्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार।
- 3. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय।
- 4. केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन।
- 5. सातवीं अनुसूची से संबद्ध कोई विषय।
- 6. संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व।
- 7. संविधान का संसोधन करने की संसद की शक्ति और इसके लिए प्रक्रिया (अनुच्छेद 368 स्वयं)।