झारखण्ड के लोकगीत Post published:Last updated on September 2, 2024 झारखण्ड के लोकगीत प्रमुख लोकगीत व उनके गाये जाने के अवसर प्रमुख लोकगीत उनके गाये जाने के अवसर झंझाइन जन्म संबंधी संस्कार के अवसर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। डइड़धरा वर्षा ऋतु में देवस्थानों में गाया जाता है। प्रातकली इसका प्रदर्शन प्रातः काल किया जाता है। अधरतिया इसका प्रदर्शन मध्यरात्रि में किया जाता है। कजली इसका गायन वर्षा ऋतु में किया जाता है। टुनमुनिया, बाराहमास तथा झूलागीत स्थानीय संगीत के प्रकार हैं जो कजली की ही श्रेणी में आते हैं। औंदी यह विवाह के समय गाया जाता है। अंगनई यह स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। झूमर इस गीत को विभिन्न त्योहारों (जैसे – जितिया, सोहराय, करमा आदि) केअवसर पर झूमर राग में गाया जाता है। उदासी तथा पावस यह नृत्यहीन गीत है। जनजाति लोकगीत संथाल दोड (विवाह संबंधी लोकगीत) विर सेरेन (जंगल के लोकगीत) सोहराय, लागेड़े, मिनसार, बाहा, दसाय, पतवार, रिजा, डाटा, डाहार, मातवार, भिनसार, गोलवारी, धुरूमजाक, रिजो, झिका आदि मुण्डा जदुर (सरहुल/बाहा पर्व से संबंधित लोकगीत) गेना व ओर जदुर (जदुर लोकगीत के पूरक) अडन्दी (विवाह संबंधी लोकगीत) जापी (शिकार संबंधी लोकगीत) जरगा, करमा हो वा (बसंत लोकगीत) हैरो (धान की बुआई के समय गाया जाने वाला लोकगीत) नोमनामा (नया अन्न खाने के अवसर पर गाया जाने वाला लोकगीत) उराव सरहुल (बंसत लोकगीत) जतरा (सरहुल के बाद गाया जाने वाला लोकगीत) करमा (जतरा के बाद गाया जाने वाला लोकगीत) धुरिया, असाढ़ी, जदुरा, मठा आदि Report a question What's wrong with this question? You cannot submit an empty report. Please add some details. /13 Only for logged in users Username or Email Address Password Remember Me Follow FBJoin WhatsAppSUBSCRIBE Youtube