हो जनजाति की शासन व्यवस्था (मानकी मुंडा शासन व्यवस्था और विलकिन्सन रूल,1833)
- मुण्डा-मानकी शासन व्यवस्था हो जनजाति की पारंपरिक शासन व्यवस्था है।
- इस शासन व्यवस्था को भारत की प्रथम गणतांत्रिक शासन व्यवस्था के रूप में देखा जाता है।
- इस शासन व्यवस्था को थॉमस विल्किंसन द्वारा मंजूरी मिली थी।
- हो जनजाति मुण्डा समाज की एक उपशाखा है।
- मुण्डा- मुण्डा जनजाति के ग्राम पंचायत का प्रमुख
- मानकी – कई ग्राम पंचायतों से मिलाकर बनी संस्था का प्रमुख
- हो जनजाति की शासन व्यवस्था को दो स्तरों में विभाजित किया गया है
- ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत
- परहा (गांव के समूह) के स्तर पर परहा/पट्टी पंचायत
A.ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत
मुण्डा
- हो शासन व्यवस्था में गाँव के प्रधान को मुण्डा कहा जाता है।
- मुण्डा प्रशासनिक, न्यायिक तथा लगान एकत्रित करने का कार्य करता है।
डाकुआ
- डाकुआ मुण्डा का सहयोगी होता है
- डाकुआ का कार्य मुण्डा के निर्णयों एवं आदेशों को गाँव के लोगों तक पहुंचाता है।
तहसीलदार
- तहसीलदार गाँव का राजस्व अधिकारी होता है जो लगान वसूली का कार्य करता है।
दिउरी
- यह गाँव का धार्मिक प्रधान है तथा जो धार्मिक कार्यो को संपन्न करता है।
- यह धार्मिक विवादों के मामलों को सुलझाने का भी कार्य करता है।
यात्रा दिउरी
- यह दिउरी का सहयोगी होता है।
B.परहा (गांव के समूह) के स्तर पर परहा/पट्टी पंचायत
मानकी/परहा राजा
- 15 -20 गांवों को मिलाकर बने गाँवो के समूह को पड़हा कहा जाता है,जिसका प्रमुख मानकी कहलाता है।
- मानकी द्वारा आयोजित सभा में सभी मुण्डा तथा डाकुआ की उपस्थिति होते हैं जिसमें सर्वसम्मति से किसी मामले का निपटारा किया जाता है।
पीरपंच
- पड़हा का न्यायिक प्रधान पीरपंच कहलाता है।