भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement)
- भक्ति का अर्थ ही एकाग्रचित और निस्वार्थ होकर ईश्वर की पूजा करना था।
- भक्त के प्रेम की तुलना सेवक का मालिक के प्रति सेवा भाव, मित्रों के मध्य प्रेम,शिशु के प्रति माँ का वात्सल्य और अपनी प्रिया के प्रति प्रियतम के स्नेह से
- भक्तिमत का आरंभ सूफी मत से पहले हुआ था।
भक्तिमत के संतों द्वारा हिंदू धर्म में व्याप्त विसंगतियों के सुधार हेतु अनेक प्रयास किये गए।
- इस्लाम के भारत में आगमन से पूर्व भक्ति की कविताएँ दक्षिण भारत में प्रचलित थीं।
- तमिलनाडु में अलवार और नयनार के भक्ति से भरे भजन, मंदिरों में पूजा के अंग थे।
- कंबन ने तमिल में रामायण लिखी।
- बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बासवन्ना (1106-68 ई.) वीरशैव संप्रदाय चलाया
- उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रथम प्रवर्तक रामानंद थे।
- रामानंद, रामानुज की पीढ़ी के प्रथम संत थे। वे राम के उपासक थे।
भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत
शंकराचार्य
- भक्ति आंदोलन के प्रथम प्रचारक और संत शंकराचार्य थे।
- केरल में आठवीं शताब्दी में जन्मे संत शंकराचार्य द्वारा भारत में भक्ति मत को प्रसारित किया गया।
- शंकराचार्य के दर्शन का आधार वेदांत अथवा उपनिषद था।
- उनका सिद्धांत ‘अद्वैतवाद‘ कहलाया।
- शंकराचार्य ने भारत के चार भागों में चार मठ स्थापित किए
1. वेदांत मठ, शृंगेरी (दक्षिण भारत)
2. गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत)
3. शारदा मठ, द्वारका (पश्चिम भारत)
4. ज्योतिर्मठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत)
अद्वैतवाद के विरोध में दक्षिण में 4 नए मतों की स्थापना की गई, जो इस प्रकार हैं
- विशिष्टाद्वैतवाद – रामानुजाचार्य
- द्वैतवाद-मध्वाचार्य
- शुद्धाद्वैतवाद – विष्णुस्वामी या वल्लभाचार्य
- द्वैताद्वैतवाद – निंबार्काचार्य
रामानुजाचार्य
- इनका जन्म श्रीपेरुम्बुदुर (तमिलनाडु) में हुआ था। ये वैष्णव संत थे।
- रामानुजाचार्य ने कांची या कांचीपुरम् के यादव प्रकाश की देखरेख में शिक्षा ग्रहण की। माना जाता है कि रामानुज होयसल यादव राजकुमार विष्णुवर्धन के भाई को वैष्णव बनाने में सफल हुए थे।
- उन्होंने “विशिष्टाद्वैतवाद‘ का मत दिया
- रामानुजाचार्य की मान्यता थी कि व्यक्ति की आत्मा ईश्वर के साथ एकीकृत नहीं है, बल्कि आत्मा और ईश्वर का संबंध अग्नि और चिंगारी के समान है।
- रामानुजाचार्य ने सगुण ईश्वर का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को त्याग और तपस्या द्वारा निस्वार्थ भक्ति करने को कहा। रामानुज के अनुयायियों की संख्या दक्षिण में बहुत बड़ी तथा उत्तर में कम है।
- रामानुजाचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर ‘श्री भाष्य’ नाम से टीका लिखा है
- रामानुजाचार्य को दक्षिण में ‘विष्णु का अवतार‘ माना जाता है।
निबार्काचार्य
- निम्बार्काचार्य रामानुजाचार्य के समकालीन थे।
- कृष्ण की भक्ति पर इन्होंने अत्यधिक जोर दिया।
- उत्तर प्रदेश में निम्बार्काचार्य के शिष्य बड़ी संख्या में हैं।
- इनका मत ‘द्वैताद्वैतवाद‘ के नाम से जाना जाता है।
मध्वाचार्य
- वेदांत दर्शन के तीन दार्शनिकों में उनका नाम रामानुजाचार्य तथा शंकराचार्य के साथ लिया जाता है।
- मध्वाचार्य तत्त्व वाद के प्रवर्तक थे, जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है।
- मध्वाचार्य का मत था कि मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य हरी दर्शन करना है, जिससे उसे मोक्ष तथा परमानंद की प्राप्ति होगी। जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति केवल ज्ञान और भक्ति द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
वल्लभाचार्य
- ये तेलंगाना के ब्राह्मण परिवार से थे।
- वल्लभाचार्य का दर्शन शुद्धाद्वैतवाद कहलाता है।
- वल्लभाचार्य ने ईश्वर प्राप्ति के लिये ‘पुष्टिमार्ग’ एवं भक्ति मार्ग पर विश्वास किया तथा कबीर और नानक की तरह विवाहित जीवन व्यतीत किया।
- ‘अष्टछाप’ के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- वल्लभाचार्य के पुत्र ‘विट्ठलनाथ’ ने ‘कृष्ण भक्ति’ को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया।
रामानंद
- रामानंद 14वीं शताब्दी के महान संत थे।
- रामानंद का जन्म इलाहाबाद में हुआ था।
- रामानंद ने दक्षिण भारत के आंदोलन को उत्तर भारत में प्रसारित किया और विष्णु की जगह राम की भक्ति की।
- रामानंद के गुरु रामानुज थे।
- रामानंद ने अपने उपदेश संस्कृत की जगह हिंदी में दिये, जिससे यह आंदोलन अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ।
- रामानंद ने जाति प्रथा का विरोध नहीं किया, परंतु व्यावहारिक जीवन में वे जाति की समानता पर विश्वास करते थे। चारों वर्णों को उन्होंने भक्ति के उपदेश दिये।
- उनके शिष्यों में कबीर (जुलाहा), रैदास (चमार), सेना (नाई), धन्ना (जाट), सधना (कसाई), पीपा (राजपूत) आदि शामिल थे। पद्मावती और सुरसरी इनकी शिष्याएँ थीं।
- उन्होंने एकेश्वरवाद पर बल देते हुए राम की उपासना की बात कही।
कबीर
- कबीर रामानंद के प्रिय शिष्यों में से एक थे।
- कबीर, लोदी सुल्तान ‘सिकंदर लोदी के समकालीन’ थे।
- कबीर ने निर्गुण ईश्वर की उपासना पर बल दिया तथा हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों की कुरीतियों की कटु आलोचना की। कबीर हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। कबीर निर्गुण भक्ति शाखा के पहले संत थे, जिन्होंने गृहस्थ धर्म का भी पालन किया।
- कबीर ने अपने दोहों द्वारा जात-पाँत, मूर्ति पूजा आदि का विरोध किया।
- इनके दोहों को इनके शिष्यों द्वारा ‘बीजक’ में संग्रहित किया गया। इसके तीन भाग हैं- रमैनी, सबद और साखी।
- इसकी भाषा ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ कही जाती है।
रविदास रैदास
- कबीर के बाद रामानंद के शिष्यों में रैदास अत्यधिक प्रसिद्ध हुए।
- रैदास ने मन की पवित्रता पर जोर दिया तथा मानव सेवा को जीवन में धर्म की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम बताया।
- सिख धर्म के प्रमुख ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में रैदास के भजन संग्रहित हैं।
- प्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई ने कई स्थानों पर इन्हें अपना गुरु बताया है।
- चित्तौड़ की रानी (झाला) उनकी परम शिष्या थी।
दादू दयाल
- निर्गुण भक्ति परंपरा में कबीर और गुरु नानक के साथ दादू दयाल का स्थान प्रमुख है।
- दादू की रचनाओं का संग्रह उनके दो शिष्यों- संतदास एवं जगन दास ने ‘हरडेवाणी‘ नाम से किया था।
- कालांतर में रज्जब ने इसका संपादन ‘अंगवधू’ नाम से किया।
- कबीर की भाँति दादू ने भी निर्गुण निराकार ब्रह्म को अपनी भक्तिपरक भावनाओं का विषय बनाया।
- उनकी काव्य-भाषा ब्रजभाषा है जिसमें राजस्थानी और खड़ी बोली के शब्दों का मिश्रण है।
नोट : इनका जन्म संभवतः अहमदाबाद में हुआ था। इस पर विवाद है कि वे गुजरात के थे या राजस्थान के; किंतु उनकी प्रसिद्धि राजस्थान के क्षेत्र में ज्यादा है। कहा जाता है कि सम्राट अकबर दादू से धार्मिक वार्ताएँ किया करते थे। के शिष्य थे।
रज्जब
- रज्जब दादू के शिष्य थे।
- इनकी रचनाएँ ‘रज्जब-बानी‘ में संग्रहित हैं।
गुरु नानक
- सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक (1469-1539) का जन्म तलवंडी (पाकिस्तान) में हुआ था।
- ये सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
- इन्होंने एकेश्वरवाद को प्राथमिकता दी।
- कबीर की भाँति नानक भी जात-पात, मूर्तिपूजा आदि का विरोध करते थे।
- हालाँकि वे कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे।
- उन्होंने भी हिंदू-मुस्लिम एकता पर अत्यधिक बल दिया था।
- माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर की सामाजिक नीतियों में इनके उपदेशों का अत्यधिक प्रभाव था।
- नानक ने ही पंगत, संगत और सामुदायिक भोजन लंगर की शुरुआत की।
- गुरु नानक की वाणी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित हैं।
- गुरु नानक की रचनाएँ हैं- जपुजी, आसादीवार, रहिरास और सोहिला।
- नानक देव की काव्य भाषा के तीन रूप हैं- हिंदी, फारसी बहुल पंजाबी और पंजाबी।
चैतन्य महाप्रभु
- नवद्वीप (नदिया ज़िला, पश्चिम बंगाल) में जन्मे
- चैतन्य महाप्रभु का वास्तविक नाम ‘विश्वंभर’ था।
- चैतन्य महाप्रभु ने बंगाल में आधुनिक वैष्णववाद या गौड़ीय वैष्णव धर्म की स्थापना की।
- ये सगुण उपासक तथा कृष्ण भक्ति शाखा से संबंधित थे।
- चैतन्य महाप्रभु ने मूर्तिपूजा का विरोध न करते हुए राधा-कृष्ण की उपासना की
- इनके अनुयायी इन्हें कृष्ण का अवतार और ‘गौरांग महाप्रभु’ कहते थे।
- इनका दर्शन ‘अचिन्त्य भेदाभेदवाद’ कहलाता है।
- इनकी जीवनी पहले ‘संस्कृत में मुरारी गुप्त‘ ने तथा ‘बांग्ला में वृंदावन दास‘ ने लिखी।
- कृष्णदास कविराज ने बांग्ला में ‘चैतन्य चरितामृत‘ की रचना की।
मीराबाई
- मीराबाई, मेड़ता के राजा की पुत्री और मेवाड़ के राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज की पत्नी थीं।
- मीराबाई ने कृष्ण की भक्ति में अनेक पद और गीतों की रचना राजस्थानी और ब्रजभाषा में की।
- मीराबाई के भक्ति गीत को ‘पदावली कहा जाता है।
तुलसीदास
- तुलसीदास का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- तुलसीदास सगुण उपासक कवि थे।
- तुलसीदास ‘अकबर के समकालीन‘ थे।
- उन्होंने राम भक्ति पर जोर दिया।
- प्रमुख रचनाएँ
रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, दोहावली, गीतावली, रामलला नहछू, बरवै रामायण
सूरदास
- सूरदास सगुण भक्ति के उपासक थे।
- अकबर इनके समकालीन थे।
- सूरदास भगवान कृष्ण और राधा के भक्त थे।
- वल्लभाचार्य के परम शिष्य सूरदास को ‘पुष्टिमार्ग का जहाज‘ कहा जाता है।
- सूरदास ने ब्रजभाषा में अपनी रचनाएं की है।
- प्रमुख रचनाएँ –सूरसागर, ‘साहित्य लहरी’ ,सूरसारावली
शंकर देव
- अहोम (आधुनिक असम) के रहने वाले।
- वैष्णव तथा एकशरण संप्रदाय से जुड़ाव।
- मूर्ति पूजा एवं कर्मकांड दोनों के विरोधी।
- ‘असम के चैतन्य’ कहलाते थे।
- ‘अंकिया’ नामक नाटक शैली का विकास।
नामदेव
- इनका जन्म एक दर्जी परिवार में हुआ था। माना जाता है कि अपने प्रारंभिक जीवन में ये डाकू थे।
- नामदेव ने ‘वारकरी संप्रदाय’ की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई।
- नामदेव के कुछ पद्यात्मक गीत ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संग्रहित हैं।
एकनाथ
- इनका जन्म ‘पैठण’ (औरंगाबाद) में हुआ था।
- इन्होंने जाति एवं धर्म में कोई भेदभाव नहीं किया।
- एकनाथ ने रामायण पर टीका लिखी।
रामदास
- रामदास शिवाजी के समकालीन थे।
- इन्होंने ‘दासबोध’ नामक ग्रंथ की रचना की
- रामदास को ‘धरकरी संप्रदाय’ का प्रमुख संत माना जाता है।
- इनकी स्तुतियाँ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित हैं।
तुकाराम
- तुकाराम जन्म से शूद्र थे। ये शिवाजी के समकालीन थे।
- तुकाराम ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया तथा ‘वारकरी संप्रदाय’ की स्थापना की।
- इन्होंने अपनी स्तुतियों की रचना मराठी भाषा में की है।