प्रदूषण (Pollution)
- पर्यावरण में अवांछित पदार्थों के समाविष्ट हो जाने की प्रक्रिया, जो जीवन के सम्मुख संकट उत्पन्न करती है, प्रदूषण कहलाती है।
- वैसे प्रदूषक जो अपने मूल स्वरूप में ही पर्यावरण में विद्यमान रहते हैं, ‘प्राथमिक प्रदूषक’ कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये जिस रूप में उत्पादित होते हैं, उसी स्वरूप में बने रहते हैं। जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड इत्यादि।
- वैसे प्रदूषक जो प्राथमिक प्रदूषकों की आपसी अंत:क्रिया के कारण निर्मित होते हैं, “द्वितीयक प्रदूषक’ कहलाते हैं। जैसे- ओज़ोन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड, परॉक्सीएसीटाइल नाइट्रेट (PAN), धूम (Smog) इत्यादि।
- प्रदूषकों के निवारण के आधार पर इसे जैव निम्नीकृत प्रदूषक तथा जैव अनिम्नीकृत प्रदूषकों में बाँटा जाता है।
- वैसे प्रदूषक जो सूक्ष्मजीवीय गतिविधियों के कारण निम्नीकृत हो जाते हैं, उन्हें ‘जैव निम्नीकृत प्रदूषक’ कहते हैं। जैसे- कागज़, सब्जी, फल इत्यादि।
- वैसे प्रदूषक जिनका अपघटन सूक्ष्म जीवों द्वारा नहीं हो पाता, ‘जैव अनिम्नीकृत प्रदूषक’ कहलाते हैं। जैसे- प्लास्टिक, रेडियोसक्रिय तत्त्व, सीसा इत्यादि।
वायु प्रदूषण
- वाय में किसी भी हानिकारक ठोस, तरल या गैस (ध्वनि व रेडियोधर्मी विकिरण भी) का इस मात्रा में मिल जाना कि वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मानव समेत अन्य जीवधारियों को हानि पहुँचाए, ‘वायु प्रदूषण’ कहलाता है।
- वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है, जिसमें नाइटोजन (78 प्रतिशत), ऑक्सीजन (21 प्रतिशत), आर्गन (0.9 प्रतिशत), कार्बन डाइऑक्साइड (0.038 प्रतिशत) इत्यादि गैसें पाई जाती हैं।
फ्लाई ऐश
- कोयला दहन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उप उत्पाद के रूप में राख (फ्लाई ऐश) प्राप्त होती है। ताप विद्युत संयंत्रों से बड़ी मात्रा में फ्लाई ऐश प्राप्त होती है, जो जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण के साथ मानव में भी श्वसन संबंधी समस्या पैदा कर सकती है। इसमें आर्सेनिक, कोबाल्ट जैसी विषैली धातुएँ भी होती हैं। हालाँकि वर्तमान में फ्लाई ऐश से सीमेंट, ईंटें व अन्य निर्माण सामग्रियों का निर्माण कर इसका | सदुपयोग किया जा रहा है।
गैसीय प्रदूषक
- ताप संयंत्र, मोटरवाहन इत्यादि के संचालन में ईंधन के रूप में पेट्रोल या डीज़ल का प्रयोग किया जाता है, जो कणिकीय पदार्थों के साथ-साथ गैसीय प्रदूषकों के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड इत्यादि का भी उत्सर्जन करते हैं।
भीतरी वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution)
- भवन निर्माण के गलत तरीकों के कारण भवनों में वायु का संचार ठीक से नहीं हो पाता है, जिससे वायु प्रदूषित होती है।
- दरअसल कमरे के अंदर के सामान, जैसे- फर्नीचर, कालीन, पेंट इत्यादि वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compound – VOC) उत्पन्न करते ये हैं। इसके अतिरिक्त अस्पतालों का कचरा भी हवा में रोगाणुओं का प्रसार करता है।
- स्क्रबर आर्द्र संचयकर्ता होते हैं तथा गैस की धारा से एरोसोल्स को हटाते हैं। स्क्रबर सूखे या गीले दोनों प्रकार के पदार्थों से निर्मित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये सल्फर डाइऑक्साइड की निकासी के लिये एल्केलाइन घोल (Alkaline Solution) की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह सल्फर डाइऑक्साइड को घुला देता है। उसी प्रकार सिलिका जेल (Silica Gel) जलवाष्प को हटा देता है।
- वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये वाहनों में ‘उत्प्रेरक कन्वर्टर’ (Catalytic Converter) का उपयोग किया जाता है, जो नाइट्रोजन ऑक्साइड को नाइट्रोजन में बदल देता है, जिससे नाइट्रोजन ऑक्साइड के हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं।
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक
- देश के बड़े शहरी नगरों में रियल टाइम आधार पर वायु गुणवत्ता की निगरानी करने और ज़रूरी कार्रवाई करने के लिये जन जागरूकता में वृद्धि हेतु राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक शुरू किया गया है।
- इसमें छह वायु गुणवत्ता सूचकांक श्रेणियाँ हैं।
- वायु गुणवत्ता सूचकांक में आठ प्रदूषणकारी तत्त्वों (पीएम 10, पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा लेड) को शामिल किया गया है।
जल प्रदूषण
- जल में ऐसे अवांछित पदार्थों का मिल जाना, जो उसे उपयोग लायक नहीं रहने देते, ‘जल प्रदूषण’ कहलाता है।
तापीय प्रदूषण
- तापीय संयंत्र, नाभिकीय संयंत्र समेत अनेक अन्य औद्योगिक इकाइयाँ पानी का उपयोग शीतलक (Coolant) के रूप में करती हैं तथा उपयोग के बाद गर्म जल नदियों, समुद्र या अन्य किसी जलस्रोत में छोड़ देती हैं। इस प्रकार जल स्रोत का तापमान 10°C से 15°C तक बढ़ जाता है। जल का तापमान बढ़ने से पानी में घुली हुई ऑक्सीजन कम हो जाती है जिससे जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
DO (Dissolved Oxygen):
- यह जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा ह, जो जलीय जीवों के श्वसन के लिये आवश्यक होती है।
- जब जल में DO की मात्रा 4.0 मि. ग्रा. प्रति लीटर से कम हो जाती है तो ऐसे जल को ‘प्रदूषित’ कहा जाता है।
BOD (Biological Oxygen Demand) जैविक ऑक्सीजन मांग:
- ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिए आवश्यक होती है।
- जहाँ BOD उच्च है, वहाँ DO निम्न होगा।
- जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है।
COD (Chemical Oxygen Demand) रासायनिक ऑक्सीजन मागः
- जल में ऑक्सीजन की वह मात्रा जो उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थों (Biodegradable and Non- Biodegradable) के ऑक्सीकरण के लिये आवश्यक होती है।
- यह जल प्रदूषण के मापन के लिये बेहतर विकल्प है।
MPN (Most Probable Number) (सर्वाधिक संभाव्य संख्या):
- जिस जल में जल-मल जैसे जैविक अपशिष्टों का प्रदूषण होता है, उसमें ई. कोलाई (E.Coli) जैसे जीवाणुओं की संख्या अधिक पाई जाती है।
- MPN परीक्षण की सहायता से ई. कोलाई आदि जीवों को पहचाना एवं मापा जा सकता है।
- प्रदूषित जल में उच्च MPN पाया जाता है।
ध्वनि प्रदूषण
- उच्च तीव्रता वाली ध्वनि अर्थात् अवांछित शोर, जो जीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, ‘ध्वनि प्रदूषण’ कहलाता है।
- भारत में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित मानकों का निर्धारण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किया जाता है।
रेडियोसक्रिय प्रदूषण
कुछ तत्त्वों के नाभिकीय विखंडन के कारण अल्फा, बीटा तथा गामा किरणों का उत्सर्जन होता है, नाभिकीय उत्सर्जन की यही प्रक्रिया रेडियोसक्रियता (Radioactivity) कहलाती है। रेडियम, थोरियम, यूरेनियम जैसे कुछ तत्त्व हैं, जो इस प्रकार का गुण प्रदर्शित करते हैं। ये किरणें जैविक कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती हैं।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- जल प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
- वायु प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988
- ध्वनि प्रदूषण (नियमन व नियंत्रण) नियम, 2000
- पर्यावरण के अधिकारों की सुरक्षा तथा पर्यावरण संबंधी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये अक्तूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना की गई।
ई-अपशिष्ट (E-Waste)
- ई-अपशिष्ट का निर्माण इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयुक्त एवं बेकार हो जाने से होता है।
- इनमें अनेक खतरनाक रसायन एवं भारी धातुएँ, जैसे-सीसा, कैडमियम, बेरिलियम पाए जाते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हैं।
पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection)
- पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से 1972 का वर्ष भारत के लिये विशेष महत्त्व रखता है, जिसका कारण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 था।
- साथ ही 1972 से ही विश्व के विभिन्न देशों में पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर चर्चा हेतु कई सम्मेलनों का आयोजन शुरू हुआ, जिसमें सर्वप्रमुख UN द्वारा 1972 में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र कांफ्रेंस था।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment)
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किसी प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के अध्ययन के रूप में जाना जाता है।
- यह परियोजना के कार्यान्वयन हेतु ऐसे विकल्प चुनने में मदद करता है जो पर्यावरणीय एवं आर्थिक मूल्य के दृष्टिकोण से सर्वश्रेष्ठ हों।
- इस संकल्पना का विकास 1969 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से संबंधित तथ्य
- भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का आरंभ 1976-77 में हुआ जब योजना आयोग ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को नदी घाटी परियोजनाओं का परीक्षण पर्यावरणीय दृष्टिकोण से करने को कहा।
- वर्तमान में EIA को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत ₹50 करोड़ एवं उससे अधिक निवेश वाली विकास परियोजनाओं की 29 श्रेणियों के लिये अनिवार्य बना दिया गया है।