दार्जिलिंग और गंगटोक के जातरा
  • Post author:

      दार्जिलिंग और गंगटोक के  जातरा  – डॉ. चतुर्भुज साहु

      • मानवशास्त्री’ डॉ. साहु हँसमुख, मिलनसार आर सादा जीवनेक एगो पटतइर लागथा तोहर हिया-खलास मधुर बेबहारें कोन्हों लोक मोहित भइ जाथा तोहे खोरठा भासां-संस्कीरतिक एगो बोड़ बिद्वान लाघे। मानवबादी बिचारेक परचारपरसारेक लेताइरें तोहर कई गो किताब छपल हो।

      • खोरठा भासा आर संस्कीरतिक बिकासेक दइके संगिया रूपें तोहें हिन्दी आर खोरठा में कइगो किताप लिखल हा। तोहें खोरठा सिलेवसेक बहुत कितापेक संगिया संपादनो करल आइल हा।

      • गिरिडीह कोलेजेक मानव-बिगियान बिभागें प्राध्यापक रहलो बादे डा. साहु खोरठा भासाक माइध में ई. छेतरेक संगे मानुसेक कठिन सेवा कइर रहल हथ।हियाँ दियल रचना टा इनखर एगो जातरा-बिरात लागइ।

      दारजिलिंग आर गंगटोकेक जातरा 

      • अइसे तो जहाँ-तहाँ आवे-जाएक आर जे-से जगह में घुरे-फिरेक चाहे कते किसम के जातरा करेक अनुभव ढेइरे आदमी के होय सकेहे चाहे रइह सकेहे। कते झन तो पइत महिना आर पइत हपता हियाँ-हुयाँ अइते-जइते रह हथा मनतुक आपने पढवल कॉलेजिया बिदियारथी सब के आपने संग लथके ओखनिक सम्हरवेक जिम्मादारी के आपन माथाक उपर ढोवेक संगे-संग किसिम-किसिम के सवारी से जातरा करेक आर जातरा करवेक अनुभव एगो दोसर रहे है। ई जिम्मादारी एगो बड़का जिम्मादारी हे। तकरो में जकरा हमरे तरी जातरा में जाय परे हे मानव विगियानी बिदियारथी सबके गोंठ के आपन संगे-संग खेदले-खेदले आर गोंठउले-गोंठउले आर बतर-सिरे ओखनिक किसिम-किसिम के जरूरत के पुरा करेक डहर चकरवेक उपरउती कते-कते, किसिम-किसिम के जरूरत के पुरा करेक डहर चकरवेक उपरउती कते-कते, किसिम-किसिम के सवाल-जबाब के पियास के मेटवेक उता-सुता करे में कते कि-कि जिगिरता करे परे है। मानव विगियानेक बिसयोतो बेसे डागर-चाकर बिसय हे -जकर में जाति-विगियान तो बस्तुकला, तो संसकिरति से जोर-नार रखवइया किसिम-किसिमेक बात हेन-तेन ढेइरे-ढेइर, झबरल-झबरल, डाइर-डहुरा, डोहँगी, डगी आर फुघी हे ई मानव बिगियान बिसयेक ऑपरा गाछ के।
      • तो तोहर साथे चाहे अइसन जातरा करबइयाक संगे, से जातराक डहरें जे डिहरे लागल हथुन किसिम-किसिमेक अधपुरवा बिचार आर अधपुरवा गियान राखेवाला, अधडेरका आर गोठडेरका उमइरेक बिदियारथी जेखिन केर मइधे केउ तो ढेइर पुरना सामंतवादी नियर बिचार आर तइसने समझदारी राखे हे तो फइर केउ अजगुत आबगा, टाटका नियर-माने कि केउ तो गाछेक फेडेतरे चकरथुम होवे लागल हे तो दोसर केउ मकर आगा बाटे चाइप के चाइरो कर देखेक हुब राखे हे आर अइसन जातरा में तो आपन कलासेक से अनुसासनेक बेड़ मानेक दरकारो नाइँ बुझथा से ले बुइधेक घोड़वो तनी बेसी दुलकी चाइल धइर लय सके हे आर बइजकेक, बुझेक आर जानेक जिगिस्ता टा तकरे मोताबिक बेस टनक आर फइलगर बइन जाय सकेहे।
      • तो ई तोहे जाय रहल हाय आपन अइसन छउवइन के डिहरउले आर केउ कोना गाँव के देखइके, तो केउ कोनो मानुसेक अँड़ के, तो के उ कोनो सहर के देइख के, तो केउ कोनो पहार-ढुंगरी चाहे ओकर लाता-सुइंघ चाहे बिसेस गठन के देइख के कोनो उड़गुड़ सवाल कइर देलो! तो अब मेटवा तकर गियानेक पियास के! मानव बिगियानेक आपन गियान के संगे-संग इतिहासी गियान, भूगोली गियान, भूगर्भी गियान हेन-तेन कते बिसयेक गियान के मेसायके एगो गियान खिंचरी बनइभे तबे तो तइयार हतो अइसन सवालेक जबाबा
      • तो अइसने किसिम से सुरू भेलक बिदियारथी सबके लयके हमर दारजिलिंग आर गंगटोकेक जातरा 1983 आर 1984 इसवीं एक धुंव घाटसिला कॉलेज, घटसिला आर दोसर पँव गिरिडीह काँलेज, गिरिडीह ले।
      • तो घाटसिला कॉलेज से लगाइत 3. गो बिदियारथी के संगे दुरगा पुजा के छुटी में ‘शोध कार्य’ के चलते निकले के तय भेलका आरो तय भेलक जे फलना तारिक के सभे बिदियारथी के काँलेजेक अंइगना में जमा होवेक चाही। मकिन तय करल दिन 9 गो बिदियारथी हुँवा कमे जुमला। अब अलग फरदवाइ। ओखनिक घर खभइर भेजा। दोसर दिन ‘बैक’ बन्दी रहे, अब पइसा कइसे निकालबें। तेसर दिन तय भेलक कि हबड़ा-बंबइ ‘एक्सप्रेस’ गाड़ी से जरूर चलेक हे। ई तरी बिदियारथी आपन-आपन सुबिधाक मिलावे मोताबिक कोइ गालुडीह, तो कोइ चाकुलिया में चढ़ला। आर हामें सबके गनती कइर के पारली झाड़गरामे।
      • नवो छुटल लड़कवइन के पांयके हमर एते खुसी भेलक जे कुछ कहेक नियर नाँया जे नियर की जेखिन कभी गोरखी करल हा ओखिन के अनुभव हतो जे आपन गोंठेक कइगो गरू-डाँगर कईं भिड़इक गेल बाद जखन फइर सामने मोहइड़ जाय तखन की तरी आर कते खुसी होवे हे। मेनेक आगुवे कहल हियो जे पढुवा बिदियारथी सब के आपन संगे ड़िहरवे में कते कि-कि फरदवाय आवे पारे। ई तो अखन सुरूवाते है। हाँसते-खेलते, देखते-करते पोहोंचली। हियाँक चका चउँधी देइख के तो कते बिदियारथी हड़बड़ाय लागला। ओखिन खेंचबो नॉय करल हला कि अइसनों हड़बड़ाय के बतर मिलतका हेन-तेन करते-करते सांइझ तक तीन गो बिदियारथी आँखिर बँउड़ाये गेला।
      • अब ले, नावाँ फरदवाय आये जोहड़लया हमर धइर गेलक मुड़गड़ी जे अब हियाँ हाबड़ा में कहाँ खोजबइर रे बाप! आर कइसे खोजबइर-जदि ओखनिक खोजवेले भोभों से एनाउन्स करइबइ ताउ के जान सुने पइता कि नाँय? हाबड़ा तरी हुलमलिया जगहें तो भोभोक साड़ा नियर हाउ-हाउ, गुठल-गोहाइर चोबिसो घंटा लागले हे। मन्तुक कइसे-कइसे ऊ तीनों बँउड़ाइल लड़कवइन के सुमति भय गेलइन जे हामनिक खोजते ढसइम-बजइर के आर हरनठ हाय-निसार भयके सेसे एँगो होटलें कुछ खायले समडला-आर ओखिन हवें बइसलेहे हलथ तावले हामें जायके देखें पइलिअयइन। ले कोनो नियर तो जीव वाचलक!
      • मकिन एतनें मैं छुटी कहाँ! खोजा-खोजी में जे समयवा बरबाद भेलक तकर चलते कलकत्ता घुरेक बतरो बेंडाइल आर तकर उपरउति जे टरेनवाँ धरे गेलें दिनेक आलो में जतरा करेक सुभीता हतलक से टरेनवों ताउले फरफाँक! नाइर-पाइर के आखिर राता-राइत चलेवाला कामरूप एक्सप्रेस धइर के निउ जलपायगुडी गेली। हा पोहँचे पर पता चललक जे सप उझला पानी बइरसाक चलते, माटी, पाखना और चाटाइन भुंइस के पहरिया रेल लाइन गेले बेंडात्र हे: आर पहाड़ पर धुकुर-धुकर चढेवाला छोटका टरेन (टोवाय टरेन) तो बंद होय गल है। सेले निउजलपाय गडी आगु बाटे जाय खतिर छुछे बसेक आसरा बाँचल रहे। मनेके बसोक सड़क तो जगह-जगह, हियाँ-हुवाँ अँथोये गेल रहे। किलेना सिलिगुडी से दारजिलिंग तक गोटे डहर-सडक रेल लाइन आदा-बाइद करेक नियर अगले-बगल में बनल हे। फइर कहुँ लाइनवा काटहय रोडवाके तो कहीं रोडवा कारल हय लाइनवा के। एहे सबके चलते कुछ बसवइनो बन्दे रहय आर कमे बस चल हलय।
      • जब दरकार रहे टरेनेक टिकट के जगह बसेक टिकट बनेवेक काहेना घाटसिला से दारजिलिंग तक के गोटे डहरेक टरेन भाडा दइ के हामिन टिकट बनउले रही आर ई कमवा कम फझइतेक काम नाय रहे। तकरो में निउजलपायुडिक टिकट बाबू रहे बंगाली बाबू। ‘हिन्दी कमे बुझे-बइजके पारे। जब ओकरा कहलिअइ टरेन बन्द के साटिकफिटिक दिये ले तखन ऊ तो एकतरि से अकचकाय गेलक! केजन अइसन समइसिया से ओकर कभुं मुँहा-मुहिं भेल हलइ कि नाय! ऊ तो एक धाँव चसमवा जुतिआय के आर एक धाँव आपन चेड़रा मुड़ियाक ऊपर हंथवा राइख के कइह उठल ओरे बाबा! एमोन कोरेगा तो हामको चाकरी चोला जायगा। हाम तो गोरमेट का छोटो चाकर हाय। हाम कइसे ई साटिक-फिटिक देने पारेगा। सिलिगुड़ि में बोड़ो इसटिसन हाय। वहीं का टिकट बाबू साटिकफिटिक देने पारेगा। खइर कोनो नियर हामिन सिलिगुड़ी तक पोहोंचली। फइर हुँवा बंगाली बाबू से वोहेनियर के बतरस के बाद साटिकफिटिक मिललका
      • सिलिगुड़ी से आगुबटेक डहरवा के धाइरे-धाइरे बड़का-बड़का गाढ़ा-ढोढा हय आर खुब उँचा धसना सब काँथ लखे खड़ा हय। पहाड़ी सोभा देखेक रीझे कोरीटेक बिदियारथी तो बसेक छतवे उपर चइघ गेला तखन ओखनिक संग दिये ले हमरो से हे करे परलका मेनेक जइसी-जइसी बेसी घुरान सुरू भेलय आर धरहरा नियर बड़का-बड़का करछाही काँथ ठाढ़ भेलतरी सुख गाढ़ा-गाढ़ा धासना गुलइन देखाय लागलय जे बसवाक उपरसे देखे गेलें हेठेक कोनो जीव मानुस-तानुस एक मुठाक भुंइ नियर देखाय लागलथि आर कखनो-कखनो बुझाय जे गाडिया अब उलटलय तब उलटलय! अऽ…रे रे डिगवाजी देलय तान तो बिदियारथी सबके आय-आय ठेके लागलइन, आँइख-कान घुरे लागलइन, केउ-केउ तो ओछरो हो लागला आर तब गडिया डॅडवे कइहके डेराइल छउवइन के नाँभेक बतर देल गेलइन। ओखिन बसवा भीतरे ढुइक के बइसला आर जेखिन हमरे संग उपरे रइह गेल रहथ ओखिन कटि ढीठ छउवा रहथ आर जेखिन नाँइभ गेला सेखिन तरि डरे एखनिक हाड़ नाय काँप-हलइन। एखिन हमर से किसिम-किसिम के सवाल पुछे लागला। एगो बिदियारथी पुछलक बड़ी बीच बाटेक एगो बडका टुंगरिक उपरे बनल घरवइन देखाइके जे अइसन-अइसन बोने-झारे एते उँचा हुँगीक उपरें माडल लोक कि तरि जीय हथ आर ओखनिक कि आइझेक ई सइभ दुनियाँक हाल-चाइल कुछ मालुम हइन।
      • हामें आखिनिक बतउलियन जे मानुस तो एकरो ले कठिन हालइत में रहे पारे हे आर रहे है। जेतरि उतरी धुरुब चाहे दखिनि धुरुब बाटे चाहे एलासका बाटे चाहे गिरिनलइण्ड बाटे रहवइया आदमी सब घुरुब के आस-पास रहबइया आदमिअइन सबतो कइ-कइ महिना तक रउदेक मुँहो नाथ देखे पावथ! तो फइर कइ-कइ महिना तक राइतेक पते नाय, ना दिन सिराय, ना बिसियाम होवे न दुपहइर, ना राइत, महिना-महिना तक सगरघरी दुपहरे भेल नियर बूझाया तबे फइर आरो बताय देलिअइन जे टावान नाये बराबर राखथ आर हजार-हजार बछर अगुवेक मानुसेक जिनगी नियर एखनो हों बेचारा नियर जिनगी जीये पर हइन! एहे तरी चाइरो बाटे देखते-भालते बतिअइते-करते हामिन पंहुइच गेली करसियांगा इ हे एगो पहारि स्टेशन आर दारजिलिंगेक जिला के एगो सब-डिविजन। करसियांग के उँचाइ लगाइत 5… फीट हे आर ई दारजिलिंग से लगाइत 22 किलोमीटर पर बइसल है। हियें हामिन के राइत काटे परलक आर हे रतियें बिदियारथी सब के बुझायगेलइन जे हामें जे ओखिन के बेसी ओढ़ना-बिछना लियेले कहल हलियइन से किले? आर हामर बतिया नाय माइन के बबुवइनिक फेरा मे ओखिन भुल कइर बइसलहथा काहेना रातिक काल्हा हावाक कनकनी ओखिन के दारजिलिंग के पछान दियेक सुरू कइर देल हलइन।
      • हियेसे पता चललक जे ऊ छउवा टरेनवा अब दारजिलिंग तक चलेक सुरू करहलया से ओकरे पर हामिन चइघ गेली। बिदियारथी सब रिझ गाड़िया चलते-चलते कखने-कखने नाइँभ जा हलथ आर फइर कुइद के चघऽ हलथा केउ-केउ लगस्तर बढेवाला उँचाइ से डरइबो कर हलय। एहे किसिम से हामिन घुम स्टेशन नइजकइली। डहरें रेल लइनवाक उपर बाली गिरउते देइख के छउवइन के बड़ा अजगुल बुझइलइन। ओखिन हमरा पछे लागला जे ई लोहाक पटरी उपर बालिक बिछउना किले बिछवल जाय रहल हे? तनी भाइभ कुन ई सवालेक समाधान करे परलक जे कितरी से कहे गेले एखिन बुझो पारता। माने पटरिया आर चकवाक बीच के घरसन सकति के बढवेले जेमें गाड़ी पिछरे नाँइ।
      • घुस ‘स्टेशन’ पहुँइच के हामे ओखिन के बताय देलिअइन जे ई हे दुनियायेक सबले उँचा ‘स्टेशन’ जकर उँचाइ हे लगाइत 9000 फीट, माने लगाइत अठाइस किलो मीटर। पर बइसल हे। हिये हामनि के राइत काटे परलक आर एहे रतिये बिदियारषी सब के बुझाय गेलइन जे हामें जे ओखिन के बेसी ओढ़ना-बिछना लिचेले कहल हलिथइन से किले? आर हामर बतिया नाय माइन के बबुवइनिक फेरा में ओखिन भुल कइर बइसल हथ। काहेना रातिक काल्हा हावाक कनकनी ओखिन के दारजिलिंग के पछान दियेक सुरू कइर देल हलइन।
      • हिंयेसे पता चललक जे ऊ छउवा टरेनवा अब दारजिलिंग तक चलेक सुरू करहलया से ओकरे पर हामिन चइध गेली। बिदियारथी सब रिझे गड़िया चलते-चलते कखने-कखने नाईम जा हलथ आर फइर कुइद के चघइ हलथ। केउ-केउ लगस्तर बढ़ेवाला उँचाइ से डरइबो कर हलथा एहे किसिम से हमिन घुम-स्टेशन नइजकइली। डहरे रेल लइनवाक उपर बाली गिरउते देइख के छउवइन के बड़ा अजगुत बुझाइलइन। ओखिन हमरा पुछे लागला जेई लोहाक पटरी उपर बालिक बिछउना किले बिछवल जाय रहल है? तनी भाइभ कुन ई सवालेक समाधान करे परलक जे कितरी से कहे गेले एखिन बुझे सकति के बढ़वेले जेमें गाड़ी पिछरे नाँइ।
      • घुस ‘स्टेशन’ पहुँइच के हामे ओखिन के बताय देलिअइन जे ई हे दुनियायेक सबले उँचा ‘स्टेशन’ जकर उँचाइ हे लगाइत 8000 फिट, माने लगाइत अठाइस किलोमीटर।
      • घुम ‘स्टेशन’ के ई गुन सुइन के तो बिदियारथी सबेक सचे चकरी घुम होय गेलइन। घुम सहर में गउतम बुध के दुनियाय भरले बोड़ मुरती हे। ई बड़का मुरतीया देइख के तो कइगो छउवा अकचकाये गेल रहथ तखने हाम बताय देलिअइन जे गोटे दुनियाये बुधेक एतना बोड़ मुरती आर कहुँ नखे। एकर बादे हामिन वोहे छउवा टरेन से बतसिया(जिलेबिया) लुप देखते-देखते दारजिलिंग वाटे सोझइली। ई मोड़वा दुनियाय भइर में आपन बाँका-ढेका रूप खातिर नामजइजका हे। घुम से एहे मोड़ होयके आठ किलो मीटर चलल पर हामिन ठाढ़ वेरा लगायत दारजिलिंग पोहुँचली।
      • जइसन कि बहुते झन के मालुमो हतो दारजिलिंग के ‘चाय’ तो बड़ा नामजइजका चीज हे। छउवा सब अजगुत सवादी पाय के घरी-घरी चाटे सुरेपे लागला। ई किसिम से छउवइन तो आपन सँउख पुरवे में मताय गेला ‘चाय’ सुरपे में आर घुरे-धारे में। मेनेक हिन्दी हमर ठेइक गेलक फरदवाया किलेना हामनिक बड़का दल के लइखके पंडाजीक गुमस्तवइन नियर किसिम-किसिम के होटलेक ‘एजेण्ट’ आयके हमर चाइरो बटे गिध नियर लुभे लागला। ओखनिक मने के जन भेलइन जे आइज मोटका पोहुना मिलल हे। कइ हपताक कमाइ तो एके दिन माइर लेबइ। मेनेक होटल चारज सुइन के बिदियारथी हमरो मसकिल होय गेलका तकर बाद दारजिलिंग सरकारी कॉलेजें परिंसिपल से मिलेक रहेक जोगाड़ लगउली।।
      • जइसें राइत भेलय कि छउवइन के धरलइन छटपटी। कटठुवाय लागला जाड़ें। एक-एक ठिने तिनगो-चाइरगो छउवा सटा सइट सुतेक कोसिस करथा मेनेक जे माँझे पर-हल वोहे तनि कनकनि से बांचहल सेले सभे कोय मांझी सुतेले जिदे करथा तो अब धारिं रहे के?
      • खइर दोसरका दिन से आपन-आपन पसिंदेक मानव बिगियानी को छउवइन के हबड़ाय देलिअइन। केउ लेपचा, केउ भुटिया, केउ सारकी, केउ गोरखा तो केउ आन कोनो बिसय पर सोध करेक आपन काम ओसरउला।
      • तो सोध के काम कोनो नियर कइर पुरउला मंतुक ई जातरा से छउवा सब कम परेसान नाय भेला। एक बाटे दारजिलिंगेक जाड़ साध-हइन तो दोसर बटे हुवाँक रहवइयाक खान-पानेक तरिका। हमर बिदियारथी सब जे चिजवा सपनो में नाय सोचल हता बइसनेहे खान-पानेक रेवाज हुवाँक अदमिअइन में देइख के ओखिन एकदमे चोकाय गेला। भाला देख-हथ बड़का-बड़का डॉगर सब के काइट के रोड़वे धारी जहाँ-तहाँ उलटाय देले हथिन। कहिं गाय काटाइल हे, तो कहीं बरद! तो कहीं-कहीं काड़ा- भइसो! आर एहे नियर किसिम-किसिम के सिकार बेंचाय लागल हे, आर होटलो में मिलेहे ओहे सिकार। अब तो बिदियारथी सब होटलें खाय-पिये से भिडके लागला। मेनेक आखिर खइता कि? लाचारी में आखिर सुखुले रोटी चेबवे लागला चाहे बिसकुट-पावरोटी खायके कोनो नियर भुख मेटवे लागला। माने हियाँ कहल जाय सकेहे जे काल्हा हावा आर अधभोरवा पेट! ई दुयोक जालॉय दारजिलिंग जातराक जोस आर हिमालयेक एभरेस्ट, कंचनजंघा हेन-तेन चोटिअइन के देखे पावेक खुसी आर तकर छाड़ा परकीरतिक किसिम-किसिम मनहरवा रूप देखेक खुसी, ‘चाय’ बगान देइख के उपजल रिझ ई सभे बेड़य-भाँडाइ जा हलइन। जाड़ तो छउवइन के ई नियर काहिल कइर मारलइन जे कइगो के ठंढे माइर देलइन आर ओखिन बेजार पइर गेला आर हुवाँ बितवल दसो दिने सायदे केउ तनि बेसतरी नहला, बिचकुन बेसी छउवा तो नहइबे नाय करला।
      • दारजिंलिग के काम सिराय के हामिन सोझइली गंगटोक ईदें भारतेक नावा राइज सिकिम के राजधानी। दारजिलिंग से सिकिम जाय खातिर साँपेक डहर नियर बांका-ढेका बोहल तिसता नदिके धाइरें-धाइर हे गाढ़ा-ऊँचा पहाड़ी रोड़। सिकिम के कहल गेल हे फुलेक नगरी। से फुलेक नगरी तक जायवाला डहरवो में कते किसिम फुल, गाछ, पाल्हा, हुँगरी, पाहार आर रकम-रकमेक मनमोहवा सोभा। बिहान सात बजे दारजिलिग से बाहराय के साँइझ चाइर बजे हामिन सिकिम पोहँचा-पोहँची भेली। हुआँ पोहँचेक आगुवेहे एगो बड़का फेकटरी देइख के छउवइन पुछला उटा कथिक फेकटरी हलया हामे बताइ देलिअइन जे एहे हो भारतेक सियाडी छेतरे बनल नामजइंजका दवाइ फेकटरी जहाँ पेनिसिलिन दवाइ बने हे आर तकर आगु हे सिकिमेक रंगपो मद फेकटरी। से मद सुधे फलेक रस से बने है।
      • ई तरी हामिन कहे पारी जे दारजिलिंग जानरा से सिकिम जातरा छउवइन के तनी बेसे लागलइन। आर तकर बाद सब खुसी-खुसी घर घुरली 

      दारजिलिंग आर गंगटोक जातरा

      • यह यात्रा वृतांत डा. चतुर्भुज साहू के जीवन से संबंधित है 

      • यह यात्रा वृतांत खोरठा गइद पईद संग्रह किताब में संकलित है

      • डा. चतुर्भुज साहू घाटशिला कॉलेज एवं गिरिडीह कॉलेज में मानव शास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं 

      • इसी दौरान उन्होंने दार्जिलिंग एवं गंगतोक की यात्रा कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ की थी 

      • 1984(1983) में घाटशिला कॉलेज के 30 छात्रों को लेकर मानव शास्त्र पर शोध कार्य के लिएदार्जिलिंग और  गंगटोंक गए थे

      • घाटशिला से दार्जिलिंग जाने के क्रम में हावड़ा स्टेशन पर उनका ट्रेन छूट गया था

      • सिलीगुड़ी से हिमालय तराई की शुरुआत हो जाती है

      • दार्जिलिंग से 22 किलोमीटर पहले कर्सियांग नामक स्थान है जो की समुद्र तल से 5000 फीट ऊंचा है 

      • यह दार्जिलिंग का ही एक सबडिवीजन है 

      • कर्सियांग के बाद छोटी लाइन की ट्रेन का शुरुआत होता है उसी से वे दार्जिलिंग पहुंचे

      • दार्जिलिंग के पास में ही घूम स्टेशन है जो कि 8000 फीट ऊंचाई पर स्थित है इसे दुनिया का सबसे ऊंचा जगह पर स्थित स्टेशन माना जाता है

      • दार्जिलिंग में लेपचा, भुटिया, गोरखा लोग रहते हैं

      • दार्जिलिंग के बाद  सिक्किम की राजधानी गंगटोक गए,यहीं पर उन्होंने तीस्ता नदी के किनारों पर समय व्यतीत किया था

      • गंगतोक में ही उन्होंने रंगपो मद फैक्ट्री को देखा जहां पर शुद्ध फल के रस से शराब बनाया जाता था 

      • वहीं पर उन्होंने एक दवा का फैक्ट्री भी देखा जहां पर पेनिसिलिन दवा बनाई जाती थी 

      1. ‘दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा’पाठ केकर लिखल लागे ? चतुर्भुज साहु

      2. ‘दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा पाठ कइसन रचना लागे ? यात्रा वृतांत 

      3. ‘दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा लेखक कइ बेइर करल हथ ? दु बेइर 

      4. ‘दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा पहिल बेइर कोन बछरे गेल रहथ? 1983

      5. ‘दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा पहिल बेइर कोन कॉलेज कर छउवा के लेगल रहे ? चाईबासा कॉलेज

      6.हजारीबाग “दारजिलिंग आर गंगटोकक जातरा दुसर बेइर कोन कॉलेज कर छउवा के लेइके गेल रहथ ? गिरिडीह कॉलेज 

      7. ‘दारजिलिंग गंगटोकेक जातरा’ दूसर बेइर कोन बछरे गेल रहथ? 1984 

      8. ‘दारजिलिंग गंगटोकेक जातरा’ जे खोरटा गइद पइद संगरह में सामिल करल गेल हे, ऊकोन बेइर कर बरनन हे? पहिल बेइर

      9.दारजिलिंग कोन प्रान्त में है ? पष्चिम बंगाल

      10. पहिल बेइर कतना छउवा के लेइके गेल रहथ? 30 

      11.दारजिलिंग पोहचेक पहिले ओखिन कहाँ पोहचला? सिलगुडी

      12. करसियांग समुद्र तल से कतना ऊँचा हे? 5000 फीट 

      13. करसियांग से दारजिलिंग से कतना धूर हे? 22 किलोमीटर 

      14. करसियांग से दारजिलिंग कोन टेरेने गेल रहथ? छउवा टेरेन 

      15. दुनियायेक सोबले ऊँच जगहेक टीसन (हिल स्टेशन) केकरा बतउला? घुम 

      16. दारजिलिंग ओखिन की ले गेल रहथ ? शोध काम करे ले 

      17. दारजिलिंग लेखक कोन छउवा के लेगल रहथ ? कॉलेजेक छउवा के 

      18. दारजिलिंग में जातरी सब कहाँ रूकल रहथ ? सरकारी कॉलेजें

      19 . गंगटोक जाइ में कोन नदीक कछारे जाइ पड़ हे ? तिस्ता 

      20 . गंगटोक पोहचा-पोंहची में कोन फेक्टरी पावल रहथ ? 

      • पेंनसिलिंग दवाइ कर

      • फल रसेक शराब कर 

      21 . गंगटोक कहाँ पड़ हे ? सिक्किम में

       

      SARKARI LIBRARY

      AUTHOR : MANANJAY MAHATO

      Leave a Reply