चनफन मानुस
खोरठा काठे पइदेक खंडी – डॉ0 ए.के.झा
चनफन मानुस
रचना वर्ष -1968
घन-घन लउतन नित मानुस मन!
तोइर–छोइड़ जड़-मेढ़ा क्रम,
लइर-धइर के परकिरति संग!
धरल बाढ़ेक जो-ऽ लुइर-ढंग!
घन-घन लउतन नित मानुस मन!
नवाँ बानार नवाँ टावान,
भेउ टोमड़ा, जो-ऽ जुगुतें मन!
घन-घन लउतन नित मानुस मन!
चनफन मानुस (रचना वर्ष 1968)
शीर्षक का अर्थ –
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प्रत्येक पल बुद्धि से तेज मनुष्य हमेशा प्रत्येक दिन नवीनता के बारे में सोचता है
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गतिरोधकारी परंपराओं को तोड़कर और आलसी रवैया छोड़कर प्रकृति के साथ लड़कर, संघर्ष क,र मनुष्य को अग्रसर होना पड़ता है जिससे नई ओज नया उत्साह और नई पद्धति का उद्भव हो
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जैसे जैसे बुद्धि का विकास होता है वैसे वैसे मनुष्य प्रत्येक पल नई खोज नई जानकारी नया रहस्य का भेदन करता है
1. ‘चनफन मानुस’ कविता (क्षणिका) केकर लिखल लागे? ए. के. झा
2. ‘चनफन’ कर माने की हेवत? तेज
3. घन-घन मानुस मन की सोचे हे? नवीनता लउतन
4 . मानुस आपन उदेश्य पूरवे खातिर की खोज हे?
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नवाँ बनार (पता)
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नवां टावान
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नवां भेउ (रहस्य)