12. खड़िया जनजाति
- खड़िया नाम खड़खड़िया (पालकी) ढोने के कारण पड़ा।
- प्रजातीय संबंध – प्रोटो-आस्ट्रेलायड समूह
- खड़िया जनजाति की भाषा – खड़िया [मुण्डारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा परिवार]
- झारखण्ड में निवास – गुमला, सिमडेगा, राँची, लातेहार, सिंहभूम और हजारीबाग
- यह जनजाति तीन वर्गों में विभाजित है
-
- पहाड़ी खड़िया (सर्वाधिक पिछड़े)
- ढेलकी खड़िया
- दूध खड़िया (सर्वाधिक संपन्न)
- वधु मूल्य – ‘गिनिंग तह’
- पितृसत्तात्मक परिवार
- खड़िया समाज में बहुविवाह प्रचलित है।
- सर्वाधिक प्रचलित विवाह – ओलोलदाय (असल विवाह)
विवाह के अन्य रूप हैं:
-
- उधरा-उधारी विवाह – सह पलायन विवाह
- ढुकु चोलकी विवाह– अनाहूत विवाह
- तापा या तनिला विवाह – अपहरण विवाह
- राजी खुशी विवाह– प्रेम विवाह
- सगाई-विधवा / विधुर विवाह
- सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:
- प्रमुख पर्व
- जकोंर (बसंतोत्सव के रूप में)
- बंदई (कार्तिक पूर्णिमा को)
- करमा, कदलेटा, बंगारी, जोओडेम (नवाखानी),
- जिमतङ (गोशाला पूजा), गिडिड पूजा,
- पोनोमोसोर पूजा, भडनदा पूजा, दोरहो डुबोओ पूजा, पितरू पूजा आदि
- इस जनजाति द्वारा ‘फागु शिकार‘ मनाया जाता हैं
- इस अवसर पर ‘पाट’ और ‘बोराम‘ की पूजा
- यह जनजाति बीजारोपण के समय ‘बा बिडि‘,
- नया अन्न ग्रहण करने से पूर्व ‘नयोदेम‘ या ‘धाननुआ खिया‘ पर्व
- पेशा – कृषि ,शिकार
- प्रमुख भोजन – चावल
- प्रमुख देवता – बेला भगवान या ठाकुर (सूर्य का प्रतिरूप)
अन्य देवता
- पारदूबो – पहाड़ देवता
- बोराम – वन देवता
- गुमी – सरना देवी
- भगवान को गिरिंग बेरी या धर्मराजा कहते हैं।
- धार्मिक प्रधान – कालो या पाहन
- पहाड़ी खड़िया का धार्मिक प्रधान – दिहुरी व ढेलकी
- दूध खड़िया का धार्मिक प्रधान – पाहन