16 : करम परव  कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

आइज रे करमेक राती । आवा खेलब साँवरो , झुमइर झीकाझोरी ।। राइत के पहरिया , झुमझर झींगफुलिया जावा नाचब साँवरो , हाथे – हाथा जोरी । करमा के डइर साजे , आखराक मांझे – मांझे लागे सोहान साँवरो , राइत के इंजोरी । करबरी चिलूम फूल , महमह बेली फूल डाली सोभे साँवरो , मांझें बेलंदरी । संगी – जोरी मिली – मिसी , करम जगाइब हाँसी – खुसी कौन रसिका साँवरो , बजावे बांसुरी कुंजबोनेक कोना – कोना , नाचे लागल बीजूबोना चाँद हांसे साँवरो , धरती निहोरी । झारखण्डेक कोना – कोना , प्रकृतिक अराधना करम जोगाइब साँवरो , बाइर दिया बाती ।

भावार्थ-झारखण्ड के महापर्व करम का प्रकृति की अराधना का पर्व इस कविता में बताया गया है और झारखण्ड के जनमानस में इसके प्रभाव को बताया गया है।

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करम परव कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

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