भारत की लिपियाँ
भाषा और लिपि का संबंध
- भाषा ध्वनियों पर आधारित है, जबकि लिपि उन ध्वनियों को रेखाओं द्वारा व्यक्त करती है। दोनों में अन्तर केवल माध्यम का होता है।
- डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार “लिपि ने भाषा को देश और काल के बन्धन से मुक्त कर दिया और भाषा की क्षणस्थायिता को चिरस्थायिता में परिणत कर दिया।”
लिपि का विकास
- लिपि का विकास विभिन्न प्रकार की लिपियों से माना जाता है
- (1) चित्र लिपि
- (2) सूत्रलिपि
- (3) प्रतीकात्मक लिपि
- (4) भावमूलक लिपि
- (5) भाव-ध्वनिमूलक लिपि
- (6) ध्वनिमूलक लिपि।
- विद्वानों की यह मान्यता है कि चित्रलिपि के माध्यम से ही मनुष्यों ने लिखना आरम्भ किया।
- लिपि के विकास में ध्वन्यात्मक (ध्वनिमूलक) लिपि का विशेष महत्व है। इसके दो भेद है
- (1) अक्षरात्मक
- (2) वर्णनात्मक
1. अक्षरात्मक
- इस लिपि के चिह्न ‘अक्षर’ को व्यक्त करते है। जैसे- क = क्+अ =क । यह अक्षरात्मक लिपि का उदाहरण है। ‘देवनागरी’ लिपि, अरबी- फारसी लिपि, बँगला लिपि, गुजराती लिपि, उड़िया लिपि और तेलुगू लिपि अक्षरात्मक हैं।
2. वर्णनात्मक
- इस लिपि में प्रत्येक ‘वर्ण’ के लिए अलग-अलग चिह्न होता है। रोमन लिपि, वर्णनात्मक लिपि है। जैसे रोमन में ‘क’ के लिए ‘K’ लिखा जाता है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से इसे आदर्श लिपि भी माना जाता है।
लिपि की परिभाषा
- पाणिनि की अष्टाध्यायी में लिपि, लिपिकर, आदि शब्द का उल्लेख मिलता है। किसी भाषा की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए जो चिह्न संकेत रूप में प्रयुक्त होते हैं उसे लिपि कहते हैं।
- डॉ. सहस्र बुद्धे के अनुसार– “लिपि-रूप अक्षर विचार-रूप मानसिक क्रिया का ही एक बोध-चिहन हैं।”
- चितले के अनुसार– “ध्वनि और वर्ण-चिहन के सम्बन्धों का नाम ही लिपि है। एक ही चिह्न से यदि एक ध्वनि ज्ञात हो जाय तो लिपि का उद्देश्य सफल माना जा सकता है।”
भारत की प्राचीन लिपियाँ
- जैन साहित्य के ‘पन्नवणासूत्र’ में 18 लिपियों के नाम दिए गए है।
- बौद्ध साहित्य की संस्कृत पुस्तक ‘ललितविस्तार’ में 64 लिपियों के नाम हैं।
- हमारे देश के पुराने शिलालेखों और सिक्कों पर दो प्राचीन लिपियाँ मिलती हैं
- (1) ब्राह्मी, और (2) खरोष्ठी।
ब्राह्मी लिपि
- ब्राह्मी लिपि भारत की सबसे प्राचीन तथा सर्वश्रेष्ठ लिपि है।
- इस लिपि का प्राचीन रूप बस्ती जिले के ‘पिपरावा के स्तूप’ तथा अजमेर जिले के ‘बडली’ गाँव के शिलालेख से प्राप्त हुआ है।
- इस लिपि का समय 5वीं सदी ई. पू. से लेकर 350 ई. तक माना जाता है।
- यह लिपि अशोक के काल में राष्ट्रलिपि के रूप में प्रचलित थी।
- दक्षिण में पल्लव लिपि के रूप में विकसित होकर तेलुगू, कन्नड़, तमिल और मलयालम को जन्म दिया।
‘ब्राह्मी लिपि का नामकरण
- इस लिपि के नामकरण को लेकर अनेक मत प्रचलित हैं = पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार “ब्राह्मी लिपि आर्यो की अपनी खोज से उत्पन्न किया हुआ मौलिक आविष्कार है। इसकी प्राचीनता और सर्वांग सुन्दरता से इसका कर्ता ब्रह्मा देवता माना जाकर इसका नाम ब्राह्मी पड़ा। चाहे साक्षर ब्राह्मणों की लिपि होने से यह ब्राह्मी कहलाई हो, पर इसमें सन्देह नहीं कि इसका जन्म भारत में ही हुआ – था। इस लिपि के प्रणेता विद्वान ब्राह्मण ही होंगे।
- चीनी विश्वकोश ‘फा-वान-शु-लिन’ के अनुसार इसका निर्माता कोई ब्रह्म या ब्रह्मा नाम के आचार्य हैं, अतएव उनके नाम पर इसका नाम ब्राह्मी पड़ा।
- पं० राजबली पांडेय का मत है कि भारतीय आर्यों ने ब्रह्म (वेद अर्थात् ज्ञान) की रक्षा के लिए इसको बनाया। इसी आधार पर इसका नामकरण हुआ। इस लिपि का प्रयोग ब्राह्मण करते थे।
- पं० वासुदेव शरण अग्रवाल का मत है कि- ” ब्राह्मी लिपि के आविष्कारक विद्वान ब्राह्मण थे, जो ब्रह्मा से इसकी उत्पत्ति मानते थे। इसी आधार पर इस लिपि का नामकरण हुआ।
ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति
- ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति विवादित है। इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है- प्रथम मत ब्राह्मी की उत्पत्ति विदेशी लिपि से हुई है।
- फ्रांसीसी (फ्रेंच) विद्वान कुपेरी का मत है कि ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ‘चीनी लिपि’ से हुई है।
- डॉ० अल्फ्रेड मूलर, जेम्स प्रिंसेप और सेनार्ट का मत है कि ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ‘युनानी लिपि’ से हुई है।
- हलबे ने इसे ‘आर्मेइक लिपि’, खरोष्ठी लिपि और युनानी लिपि’ का मिश्रण कहा है।
- बेबर, कस्ट, बेनफे और जेनसन जैसे विद्वानों ने ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ‘सामी लिपि’ की फोनीशियन शाखा से माना हैं।
- सेथ तथा टेलर ने ब्राह्मी की उत्पत्ति ‘दक्षिणी सामी लिपि’ को माना है।
- डॉ० बूलर के अनुसार ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ‘उत्तरी सामी लिपि’ से हुई है। द्वितीय मत ब्राह्मी की उत्पत्ति भारत में हुई है
- एडवर्ड थॉमस के मतानुसार ब्राह्मी लिपि के आविष्कारक द्रविड़ थे।
- आर० शामशास्त्री ने पूजा में प्रयुक्त होने वाली सांकेतिक चिह्नों को ब्राह्मी लिपि की उपज कहा है।
- जगमोहन वर्मा के अनुसार ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ‘वैदिक चित्र लिपि या सांकेतिक लिपि’ से हुई है।
- डाउसन के अनुसार किसी प्राचीन ‘चित्रलिपि’ के आधार पर आर्यो ने ब्राह्मी लिपि को विकसित किया।
- डॉ० राजबली पाण्डेय का मानना है कि ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति सिंधु घाटी की लिपि से हुई
- डॉ० भोलानाथ तिवारी का भी मानना है कि हड़प्पा- मोहन जोदड़ों में प्राप्त लिपि से ही ब्राह्मी का विकास हुआ है।
ब्राह्मी लिपि का विकास
- ब्राह्मी लिपि का प्रयोग भारत में 5वी सदी ई. पू. से लेकर 350 ई. तक हुआ।
- 350 ई० के बाद यह दो शैलियों में बँट गया
- (1) उत्तरी शैली
- (2) दक्षिणी शैली
- जिस शैली का प्रचार उत्तर भारत में हुआ वह उत्तरी शैली कहलाई तथा जिसका प्रचार दक्षिण भारत में हुआ वह दक्षिणी शैली कहलाई।
- इन्हीं दोनों शैलियों से भारत की अन्य लिपियों का विकास हुआ है।
उत्तर भारत की लिपियाँ
गुप्त लिपि
- चौथी तथा पाँचवी सदी के समय गुप्त राजाओं के काल में इसका प्रचार होने के कारण यह गुप्त लिपि कहलाई।
कुटिल लिपि
- इसका विकास गुप्त लिपि से हुआ। इसमें वर्णों की आकृति टेढ़ी थी जिसके कारण इसे कुटिल लिपि कहा गया है।
प्राचीन नागरी लिपि
- कुटिल लिपि से 9वीं शताब्दी के लगभग प्राचीन नागरी का विकास हुआ।
- यह उत्तरी लिपि है।
- इसका प्रचार उत्तर भारत में 9वीं सदी के लगभग मिलता है। परन्तु दक्षिण में भी कुछ जगहों पर 8वीं सदी में यह लिपि मिलती है।
- दक्षिण में इसे ‘नंदीनागरी’ कहा गया।
- इसी प्राचीन नागरी के पूर्वी रूप से कैथी, मैथिली, तथा बँगला लिपियों का विकास हुआ तथा पश्चिमी रूप से देवनागरी, गुजराती, महाजनी, राजस्थानी तथा महाराष्ट्री आदि का।
शारदा लिपि
- कश्मीर की लिपि को ‘शारदा लिपि’ कहते हैं। इसका विकास कुटिल लिपि से 10वीं सदी में हुआ।
- आधुनिक काल में शारदा लिपि से अन्य लिपियों का विकास माना जाता है।
- जैसे – टाकरी, डोग्री, चमेआली, मंडेआली, जौनसारी, कोछी, कुल्लुई, कश्टवारी, लंडा, आदि ।
दक्षिण भारत की लिपियाँ
- पश्चिमी, मध्यप्रदेशी, तेलुगू, कन्नड़, ग्रन्थ, कलिंग, तमिल, बट्टेलुत्तु।
खरोष्ठी लिपि
- यह विदेशी लिपि थी, जो उर्दू की तरह दायें से बायें लिखी जाती थी। इसका विकास सामी आरमेइक लिपि से माना जाता है।
- यह वैज्ञानिक लिपि नहीं थी।
देवनागरी लिपि का नामकरण
- देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है।
- देवनागरी लिपि के नामकरण को लेकर विभिन्न मत प्रचलित हैं
- 1. कुछ विद्वानों के अनुसार ‘ललित विस्तार’ में वर्णित ‘नाग लिपि’ के आधार पर इसका नाम ‘नागरी’ पड़ा।
- 2. कुछ विद्वानों के अनुसार गुजरात में नागर ब्राह्मणों द्वारा प्रयोग किए जाने के कारण इसका नाम ‘नागरी’ पड़ा।
- 3. कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका प्रयोग नगरों में होता था, अतः इसका नाम नागरी पड़ा।
- 4. कुछ विद्वानों के अनुसार तान्त्रिक चिन्ह ‘देवनागर’ से समानता के कारण इसे पहले देवनागरी और बाद में नागरी कहा गया।
- 5. काशी को देवनगर कहा जाता है, वहाँ प्रचलित होने के कारण देवनागरी कहलाई।
- 6. पं० किशोरी दास वाजपेयी के अनुसार देश की राष्ट्रभाषा किसी समय जो प्राकृत थी, उसका नाम ‘नागर’ था। वह नागर भाषा या नागरी भाषा जिस लिपि में लिखी जाती थी, उसे भी लोग नागरी कहने लगे।
देवनागरी लिपि के भेद
- नागरी के चार भेद माने गए है
- (1) अर्द्धनागरी
- (2) पूर्वी नागरी
- (3) नन्दि नागरी
- (4) नागरी।
अर्द्धनागरी
- यह पश्चिम भारत में प्रचलित थी। इसी से लंडा, गुरूमुखी, टक्की लिपियों का विकास हुआ।
पूर्वी नागरी
- यह पूर्वी भारत में प्रचलित थी।
- नागरी के इस भेद से बंगला, उड़िया, कैथी लिपियों का जन्म हुआ।
नन्दि नागरी
- इसका प्रचलन दक्षिण में था।
- जहाँ संस्कृत के अनेक ग्रंथ लिखे गये।
नागरी
- इसका प्रचलन बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में रहा है। इसी रूप से हिन्दी तथा उसकी उपभाषाएँ निकली हैं।
- मराठी, नेपाली का भी विकास इसी से हुआ है।
- यह राष्ट्रीय लिपि के रूप में भी जानी जाती के है।
- नागरी लिपि का प्रथम उल्लेख जैन ग्रंथ ‘नन्दिसूत्र’ में मिलता है।
देवनागरी लिपि का प्रयोग
- देवनागरी का सबसे पहले प्रयोग (सातवीं आठवीं) शताब्दी में जयभट्ट के एक शिलालेख में हुआ है।
- आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजाओं द्वारा इसका प्रयोग किया गया।
- नवीं शताब्दी में इसका प्रयोग बड़ौदा के ध्रुवराज द्वारा किया गया।
- उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी में हर्षवर्द्धन के शासन काल में इसका प्रयोग हुआ।
- उत्तर एवं दक्षिण भारत में सातवीं शताब्दी में इसका प्रयोग एक साथ हुआ।
- दसवीं शताब्दी में देवनागरी का प्रयोग पंजाब से बंगाल, नेपाल से केरल तथा श्रीलंका में हुआ।
- अंग्रेजों के समय मदन मोहन मालवीय के प्रयत्न से उत्तर-प्रदेश की कचहरियों में देवनागरी का प्रयोग हुआ तो बिहार में अयोध्या प्रसाद खत्री के प्रयत्न से।
- कोलकता हाईकोर्ट के जस्टिस श्री शारदा-चरण मित्र ने सर्वप्रथम देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि के रूप में अपनाने को कहा था।
देवनागरी लिपि का विकास
- देवनागरी लिपि का विकास इस क्रम में हुआ है
- ब्राही लिपि — गुप्तलिपि – कुटिल लिपि – प्राचीन नागरी – देवनागरी।
भारत की लिपियाँ
- भारत में कल 22 लिपियों का प्रचलन है। जो इस प्रकार हैं ।
- 1.ब्राही 2. खोकी, 3.गुप्त , 4.कटिल, 5.देवनागरी 6.शारदा
- 7.बंगला 8.तेलुगू 9 .कन्नड़ ,10.ग्रन्थ ।।.कलिंग 12.तमिल
- 13. बटटेलुतु 14.मलयालम 15.गुरुमुखी 16.गुजराती 17. मैथिलि 18. मोडी
- 19. कैथी 20. महाजनी 21. उर्दू २२. रोमन