जगन्नाथ मंदिर, रांची
Jagannath Temple, Ranchi
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जगन्नाथ मंदिर राँची से दक्षिण—पश्चिम 10 कि.मी. दूर बड़कागढ़ क्षेत्र में 250 फीट की ऊँची पहाड़ी पर स्थित है।
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मंदिर की ऊँचाई करीब सौ फीट है।
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बड़कागढ़ के ठाकुर महाराजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने 25 दिसंबर, 1691 में मराठी राजगुरु हरिनाथ चारि के तत्वाधान में इसका निर्माण करवाया था। प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है।
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मंदिर का जो वर्तमान रूप दिखाई देता है, इसका निर्माण करीब एक करोड़ की लागत से 1991 में कराया गया। हालाँकि मंदिर का निर्माण अब भी जारी है।
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आषाढ़ द्वितीया का शुक्ल पक्ष का दिन यात्रा रथ यात्रा (गाड़ी त्यौहार ) का दिन होता है।
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मुख्य मंदिर से आधा कि.मी. दूर मौसीबाड़ी है। नौ दिनों तक यहाँ मेला लगता है।
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इस मेले में लोग भगवान् जगन्नाथ स्वामी, भाई बलदेव एवं बहन सुभद्रा का दर्शन करते हैं।
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आठ दिनों तक भगवान् जगन्नाथ स्वामी मौसीबाड़ी में निवास करते हैं।
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इन विशाल देव प्रतिमाओं के आसपास धातु से बनी वंशीधर की मूर्तियाँ भी है जो मराठाओ से यहां के नागवंशी राजा ने विजय चिन्ह के रूप में प्राप्त किए थे।
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रांची का जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर की स्थापत्य की तर्ज पर ही बनाया गया है .
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गर्भ गृह के आगे भोग गृह है, भोगगृह के पहले गरुड मंदिर है जहां बीच में गरुड जी विराजमान है गरुड मंदिर के आगे चौकीदार मंदिर है यह चारों मंदिर एक साथ बने हुए हैं इनके आगे वर्तमान जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति की देखरेख में 1987 में एक विशाल छज्जे का निर्माण हुआ था भगवान की रथ यात्रा हर साल आषाढ़ द्वितीय शुक्ल पक्ष को आयोजित होती है
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9वे दिन भगवान जगन्नाथ बड़े भाई व बहन के साथ मुख्य मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं इस वापसी रथ को घूरती रथ भी कहा जाता है।
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विलियम हंटर ने 1877 में यहां रथयात्रा का मेला देखा था, जिसका वर्णन उसने अपनी पुस्तक “स्टैटिसटिक्स अकाउंट ऑफ़ बंगाल(Statistics Account of Bengal)“ में किया है।
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भगवान बिरसा मुंडा ने अपने पैतृक स्थानों की यात्राओं के दौरान सबसे पहले चुटिया स्थित राम मंदिर की यात्रा की थी, इसके बाद भगवान जगन्नाथ की यात्रा की थी।
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ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने मंदिर की व्यवस्था के लिए अपने 194 मौजों में से जगन्नाथपुर, आनी एवं भूसूर नामक 3 गांव मंदिर के नाम देबोतर सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर किया था। इन तीन मौजों के लगान एवं उपज से मंदिर का खर्च चलता था।
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अंग्रेजों ने पंडित गंगाराम तिवारी को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था। बाद में गंगाराम तिवारी का भेंट हटिया में मध्य प्रदेश से आए पंडित लेदुराम तिवारी से हुआ था। जब गंगाराम तिवारी बेटियों की शादी के लिए अपने गांव पियरी चले गए थे तब लेदुराम तिवारी मंदिर के पुजारी हो गए थे।
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1964 में धार्मिक न्यास परिषद की ओर से मंदिर को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दिया गया था।
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इसके बाद मंदिर का देखरेख करने के लिए 1977 में जगन्नाथपुर न्यास समिति का गठन किया गया। जिसके प्रथम अध्यक्ष रामरतन राम थे।
ठाकुर एनीनाथ शाहदेव (Thakur Aenenath Shahdeo)
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ठाकुर एनीनाथ शाहदेव केमाता का नाम – मुक्ता देवी था।
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ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के पिता का नाम – राजा रामशाह था ,जो की बड़कागांव के ठाकुर थे।
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बड़कागांव के ठाकुर राजाराम की बड़ी रानी मुक्ता देवी थी।
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मुक्ता देवी के 4 पुत्र थे जिनमें बड़े पुत्र का नाम रघुनाथ शाह था।
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राजा रामशाह के शासनकाल में नागेश्वर नामक राजा ने आक्रमण किया था, इन्हें रीवा के राजा बघेल से 12 साल तक जूझना पड़ा था। अंततः दोनों में संधि हो गया था, संधि के बाद एनी नाथ शाहदेव का विवाह रीवा के राजा की पुत्री से हुआ।
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राजा रामसाह को सिंघभूम के राजा जगन्नाथ से भी युद्ध करना पड़ा था राजा जगन्नाथ ने नागवंशी राजा को डोला देना बंद कर दिया था।
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परिणाम स्वरूप राजा रामसाह ने जगन्नाथ सिंह की राजधानी को 7 बार जलाया था और इस युद्ध में करीब 2200 लोग मारे गए थे।
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अंत में जगन्नाथ सिंह को संधि करनी पड़ी थी
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रामसाह ने अपनी दो बहनों का विवाह उनके यहां किया था और स्वयं उस राज्य को पोड़ाहाट राजा की संज्ञा दी।
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रघुनाथ शाह पिता के निधन के बाद राजा बने और नागवंशी परंपरा के अनुसार एनीनाथ ठाकुर कहलाए। रामशाह के बाद रघुनाथ शाह ने नागवंशी साम्राज्य का नीव संभाला, उन्होंने मराठा गुरु हरीनाथ के सहयोग से अपने क्षेत्र में कई सारे मंदिरों का निर्माण करवाया। इनके राज्य काल में पलामू के रंजीत राय एवं रामगढ़ के दलेल सिंह नामक राजाओं ने किसी खानजादा के साथ दोयसा पर आक्रमण किया था, जिसमें खानजादा युद्ध में मारा गया था , इसके बाद दोनों राजाओं में संधि हो गई थी।
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ठाकुर एनीनाथ शाहदेव की 5 पत्नियां थी, इनसे 21 पुत्र थे।
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ठाकुर एनीनाथ शाहदेव को 97 गांव मिले थे।
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उन्होंने दोयसागढ़ स्थित राजधानी को छोड़कर स्वर्णरेखा नदी के समीप सतरंजी को अपना नया राजधानी बनाया था।
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वहीं पर उन्होंने एक गढ़ का निर्माण भी करवाया था।
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जहां पहले उनका राजधानी सतरंजी हुआ करता था, आज वहां HEC कंपनी का फाउंड रिचार्ज प्लांट स्थापित हो गया है।
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उनके द्वारा रांची का हटिया बाजार बसाया गया था।
ठाकुर विश्वनाथ सहदेव
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1857 की क्रांति में बड़कागांव के ठाकुर विश्वनाथ सहदेव ने छोटानागपुर में नेतृत्व प्रदान किया था।
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बाद में 16 अप्रैल 1858 को उन्हें पकड़ कर फांसी दे दी गई थी।
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उनके सभी 97 गांव सरकार ने जप्त कर लिए थे।
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बड़कागांव का नाम बदलकर खास महल कर दिया गया था।
मंदिर निर्माण के बारे में कहानी :
एक बार एनीनाथ शाहदेव अपने बुढ़ापे के समय में भगवान जगन्नाथ स्वामी का दर्शन करने के लिए पूरी की यात्रा पर गए थे, उनके साथ उनका निजी नौकर जो आदिवासी उड़ाओ था उसे भी साथ ले गए थे। इस यात्रा के दौरान उनका सेवक लगातार सात दिनों तक उपवास करता रहा ,सातवी रात वह भूख से जब तड़प रहा था, तब भगवान ने ब्राह्मण के भेष में सोने की थाली में उसके सेवक को पका हुआ चावल दिया था। ठाकुर एनी नाथ शाहदेव को जब यह बात पता चला तो उन्हें बहुत अपमानित महसूस हुआ। उनके मन में आया कि वह इतनी श्रद्धा से भगवान की सेवा करते हैं, फिर भी भगवान ने उन्हें दर्शन क्यों नहीं दिया। उसी रात उन्हें भी यह सपना आया, कि वह वापस लौट आए और रांची में ही जगन्नाथ स्वामी की स्थापना करें। वही उन्हें भगवान जगन्नाथ स्वामी के दर्शन होंगे। इस स्वप्न को आदेश मानकर वे रांची लौट आए और 1691 में जगनाथ मंदिर रांची का निर्माण करवाया। रथ यात्रा आरंभ होने से पहले यहां स्नान यात्रा का आयोजन ज्येष्ठ पूर्णिमा को होता है। भगवान को उस दिन 108 बर्तनों में सुगंधित जल द्वारा स्नान कराया जाता है। स्नान यात्रा के बाद भगवान एकांतवास करते हैं इस एकांतवास के दिनों में आम लोगों को भगवान के दर्शन नहीं होते इसलिए इस अवधि को अवसर नीति कहते हैं। रथयात्रा के पूर्व संध्या में नेत्रदान का अवसर होता है जिसके बाद पुनः प्रभु का दर्शन सर्व सुलभ हो जाता है।
जगन्नाथ मंदिर सरायकेला
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झारखंड में दूसरा जगन्नाथ मंदिर सरायकेला में भी स्थित है. इसका निर्माण सरायकेला के राजाओं ने 17वीं शताब्दी में करवाया था।
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इस मंदिर का निर्माण उड़ीसा के ढेंकानाल से महापात्र परिवार द्वारा प्रतिमा लाकर यहां स्थापना की गई थी।
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वर्तमान में महापात्र परिवार की आठवीं पीढ़ी ब्रह्मानंद महापात्र यहां पूजा अर्चना कर रहे हैं।
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1882 के आसपास सरायकेला के राजा उदित नारायण ने अपने 48 वर्ष के शासनकाल में भव्य मंदिर का निर्माण कराया तथा रथ यात्रा उत्सव को पूरे क्षेत्र में पहचान दिलाया।
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सरायकेला का जगन्नाथ मंदिर कलिंग शिल्प कला का उदाहरण है।
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उड़िया पंचांग के अनुसार 1317 में यहां रथ यात्रा प्रारंभ हुई थी।