- लेखक-डॉ0 विनोद कुमार
- प्रथम प्रकाशन -1990
- प्रकाशक – आदिवासी कल्याण अकैडमी बिहार सरकार,रांची
- (अन्य – जनजातीय भाषा अकैडमी, बिहार सरकार)
- दूसरा बार प्रकाशन – 2017
- कहानी -10 ,कविता – 31
कविता खंड – 31 कविता
1- उबार (उद्वार/उबारना )
अदमीक लसतंगा आदमीयत से हेवे हे। अदमी उदार हेवे तब देवता हे आर नीच हेवे तव सइतान एहे अदमीक बीरत्तियों है। मकिन का सहर का गाँव आइझ ईरसा-दोस, काल्हा-कुविचार तनी बेसी ले बाइढ़ गेलक, इनसानी जिनगी दइव रहल है। इकर पाछे जे कारन हेतक (मूदी आइझ जब सांइस वाढलक, बुझ्ध आर गियान अगुवालक तकर (ताताताही में गाँवेक रहवइयाक दसा में कोनो सुपट सुतार, नाय भेलको गाँवेक आगु-अगुवाइक में देस अगुवातक, मगुर का लखें? झबरू जइसन टूट पुंजिया किसान के ढाढ़स तोइर के? आरो नाय तो गरीब पढ़वइया छउवाक डहर काइट के?
गोटे गाँव में झवरू एक टूट पुंजिया किसान रहे। नाञ् कोनो वेस नियर हार-कोदार, डाँगरे-गोरू आर नाञ् कोनो (पीठपार असगरे हे झबरू मगुर करेजा सूप भइर। गाँवेक किसान परकीरतिक पहलवान हेकथ, केकर (कूबइत जे ओखनिक पछारता। पानी आर हावा साथ देलें किसानेक छाती (चाकर हो जाहइन। झबरू भिनसारे उइठ के हार-कोदार लइके टाइड-वारी जाहे। हुवें बिहारिक माय कलवा-पानी पइठा दे हथी। उगला से डूबला तइक दुइयो वेगइत) वारी झारीम ओझराइल रहे हथा घाम चुवाई रहल हथ, मृदा किले? विहारीक पढ़ावे खातिर, इंसान बनावे खातिर। जखन विहारीक आजी जीओ हलथी तखनहें असीस देले हेलिक कि झबरूक बेटा, बिहारी एक दिन पुलिस निसपिटर बनतक, जरूर बनतक।
झवरूक परिवार खाँट रहे। मोट पाँच गो बेगइत, दुइयो परानी आपने, एक बिहारी आर दुइयो बेटी परवतिया आर सुमियाँ। गाँवेक पुरूब पहटे छोटगर घार, घार के औसरा में जुवाठ टाँगेक जगहा, घारेक पीछुवाइर में दू कठाक बारी ई साव हलक झवरूक आपन दुनियाया आइझ बिहारीक मेटरिक पास करले दुगो बछर हइ गेल मुदा पइसाक दुखें ऊ नाञ् तो कोलेजे नाँव लिखावे पारे आर नाञ् कोनो नउकरियो खातिर कुदा-कुदी करे पारे। झवरूक मुंडे एग फिकिर रहे, सोंच हलक अवरो अगहनी के आरू बेंच के बिहारीक, नांव कौलेजे लिखाइ देवइ, रौन-महाजन तो लागले हथा कुंदा-माँड से गुजरो कइर लेब, मगुर जे तीहा करे ही सं दइब नाज राखे देहे। हाँ, आब बिहारियो कोनो चेंगा नखे. आठारह बरीस के हो गेलका
एक दिन झबरू बिहारीक अउरो बइसल देइख के हँकाय कहलक, बेटा ! बइसल से काम नाज, हिदें-हुदे रीरकलें काम नात्र चले बेटा! तनीकुन टरो-टिसनी करलें चाह-पकउड़ी भइर जोगाड़ हो जेतलउ। तखनी बिहारीक . मुंड तनी हेठ होइ गेला बिहारी मने सोचे कि राँची भागी जेतलक आर कोनो बाबू घरें आर ना तो कोनो होटलें मजुरी करतक। एहे सोंचेक माझे माय । कहलथिन वेटा! तोय किले एते मसोस करलें हैं, सोंचमत बेटा! हाम आपन हाड़ो बेंइच के तोर नाव कॉलेजें लिखाइ देवउ।
अवरी बछर झवरूक किसमइत चम-चमाइ लागलक। आरू अइसन उपजल कि गोटे परिवार के मन अहुलास भइर गेलका विहारी तो आरो अहुलासें अघाइ गेलक। मुदा गाँव में एक के बढ़ोत्तरी दोसरेक बड़का इरसाक) कारन हाइ जाहे तकरो पर गरीब के सोव दुसमने हवे हथा कहलो हथि, ‘माछी – खोजे घाव, आर बादी खोजे दाव’ एग जमाना हेल तखन घरे-घरे रमाइन, वेद, पुरानेक चोपाइ गावे-हलथ, ओकर सिक्छा पर धेयान दे हलथ, मकिन आइझ कहाँ गाँव में ऊ मिलतंक! हाँ, दु-चाइर गो. पोलटिस करवइया जरूर मिल जेइथु, जे सब के कामें रहइन गरीब के फंसाय के आपन उल्लु सीधा करना। झबरूक गाँवों आइझ इकरीन से बाँचल नखे। एक दिन जखन झबरू तिलका कुम्हार के छउवाक छठी में हजामइत बनवे हेल तखनहें गनेस बाबू आर महेस बाबू बाते उपचाइर बतिएलथ; अबरीक आरूक उपजा झबरूक किसमइत बदइल देलक। झबरू, आब झबरू नाज, मकिन झंवरू बाबू बइन गेलका कि झबरू, गलति कहे हियो कि? गनेस पुछले रहइ। झबरू कहलइ, ना हो गनु दा ई तरें किले कहलें, हाम तो एग गिरपरता किसान ही आर किसान रहब हमरा हरा जोतेक हे जोततहे रहब, के छोड़ातइ हमरा हार ठेलइ से? नांञ् झबरू तोय तो किसमइत वाला है, बिहारी जइसन सुपट बेटा; हर-हर ने पट-पट, सीधा आर पढ़हो में तेजा अइसन .छउवा गोटे गाँवे नाञ्। दुइयो अइसन बतिअइला जइसें झबरू एकदम अनारिए रहे. ई चुटकीक ना समझे पारे। गनेस वाबू बाढ़ल पेटें करूवा तेले माखलेहें कहलई, झबरू! तोय तो धनखेत बेंची-बैंची बिहारिक मेटरिक पास कराउने मुदा कि पउलें। ई. धंधा रहले तोय भीख-मँगा हो जइबें, गोइठाम घीव सुखवलें कि हेतउ। आरो आगु लं पढ़ोलें घरेक खपरा बिक जीतउ, आइझ-काइल नरो-नउकरिक कोनो ठेकान नाञ् जे पढ़लाक बारें टटका नउकरी. पकइर लेता हमरोन जाइन रहल ही कि तोर /उड़ा साइंस में बेसी मन-धेयान लगावे हे. मुदा साइंस आगु जाइके आरा सकत हो जाइ हे! टुटपुंजिया खातिर साइंस नखे, इंजीनियर; डाक्डर का कउडी में बने हथ?.लाखो-लाख के संपइत चाही। तोय तोएक कमाइवाला – आर सोब बइठुवा खाय वाला। जोदि बिहारी तनी दू-चाइर पइसाक मदइत करे पारतउ तब तोर अन्न आने खेतउ, सेले बिहारिक कोनो दउरी-दोकाने लगाइ दोहीं, हमरीन नाञ् चाही कि तोय तंगहाल हो जो
झवरूक हजामुइत बनवल पुरा हो गेलका खइटला से उठल, करूवा तेल के थापी लेके आपन डहर धारलका दिन भइर काम करइत-करइत थांकल फंझाइल झबरू सांइझ.बेरा खइटला। लाइन के बोर गाछेक छाहुर तरे विछावलक। हुवें अगारी करे आइल बुधना जेकर बारी झवरूक खेत से सटलहे रहे। राम-सलाम : लक, फ़िन डाँड़ें खोंसल खेनिक चुनउटी निकालला। एकरे मइधैं बुधन से रा-सलहा लियेक नेति झबरू टोकलक-एहो बुधन। बिहारिक नाँव कॉलेजें लिर वइलें सोंचले हेलँ, हिन्दे दुगो बेटियो छउवा हथ, बीहा-सादी करेक में कुछ मोगाड़ो चाही। तखने बुधन कहले हेल, तोय जोदि बिहारिक नाँव कालेजें लिराय देवहीं तो सोनाले सुगंध हेतउ काहे कि आइझ जे बुन से काइल काटवें। विहारिक जोड़ी-पाड़ी छउवा दिनेस, परेम, बिरजु कॉलेज जाहथ हुवें असगरे छंटाय के बिहारिए रहइ गेलक। गंवाती मइयाक किरपा – हेतइ तब जरूरे लिखाइ जितइ झवरू तनी देरी गुम रहल बादें कहलक हाँ रे बुधन! काइल हामर छउंडा घरेक हालइत देखी के कपइस-कपइस के काँदे हेल-मगुर हाम ढाढस देलिअइ, बेटा! धउर बाँध, अदमीक सदो आपन उपर बिसवास करेक चाही। हमरीन के एक अछर से भेंटनखे, मुदा जानो ही कि सवले बड़का धन हे सन्तोख, कहलो गेल हे ‘संतोख के डाइरें मेवा फरे हे’। बात फेर के कहला हाँ बुधन भाइ! एहे महीना जाइके ओकर नांव कालेजें लिखाइ देवइ। एहे बतिआइ-चितीआइ में राइत बाढ़े लागलका दुइयो आपन बियारी खेलका आर फाटल लेदरा डिसाइ के पटाई गेला। भला पुरवइयाक सिरहिरि, नींद अउते देरीनाज मुदा किसानेक नींद अधकचीए रहे है, धेयान रहे लागल फसिल पर, सुअर-तुवरेक डर, सेले कखनो हो हारियो दे-देहथ।
चाइर नींद सुतलाक बादें मुरगा वाँइग देलक। झवरू उठल, फरसा – कांधे लइके घार दने डिहर गेल, किले कि ओकरा तो मेलानो खोलेक रहे। आइझ पछिम, पहटें मेलान खोलल रहे। चराउत रहे बेसे, मुदा ओनहें रहइन (गनेसबाबूक) धन खेती। गहूम कर सीजन रहे, हरियरी गुंज मारे।
गनेश बाबू आर महेस बाबू गाँवेक मानीन अदमी रहथ, सगरे से भरल-पूरल, पुराना बी० ए० मकिन रहथ घुरपेंच दोसरेक बाइढ़ देखनहार नाञ्। बीरू रहे बोड़ साहुकार के बेटा। तिनिओं कते-कतेक फँसाइ के एक के चाइर बनवथ भुलथ। गाँवेक पोलटिस गाँवेक रंग उड़ाइ देहे। नरक बईन जाहे गाँवेक जिनगी। दोसर दिन झबरू पछिम पहटे मेलान खोललक। गनंस बाबू डंगइत-डेगइत आइ के झबरू से रागाइ कहलइ, झबरू। तोय तनि सँभाइर के मलान खोललकर, तोर बरदा काइल-खोइर हामर गहूम खा गेलउ। नाब चेतलें (कांजीहाउस दुकाइ देवउ आर एक के चाइर लेवउ। झबरू कहलइ नाञ् गनुदा हामर डांगर एते चोर नखा। काइल हाम आपनेहें मेलान खोललें हेलू सेले तनी वुइझ-समइझ के बात कर। गनेस बाबू एकदमे ढोढसल, मुँह मत लगाउ नाञ् तो बेकार हाइ जेतउ।
दोसर दिन बीरू आर महेस बाबूक कानें ई खभइर मिल गेल। ओख. निक छाती तो ऊँचा हो गेलइन। एगो मछरी अउरी उफइर के परल ओखनिक जाल पर। फिन का बीरू आर महेस अधरतिएँ उइठ के झवरूक गोहाइल से डांगर खोइल गनेस बाबूक गेहूम खेतें हाँइक देलथिन। बिहान भेलें गनेल बाबुक खभइर देलथी। गनेस तो दाव खोजलहे बुले हेल। मिल गेलक बेस दावा आपन खेतें कुदा-कुदी गेलक आर चरल देखी के मुंडे हाथ धरी ललक। हाय रे गहूम! झवरूक वरद गेहुम खाइ के अघाइ बइसल हथा ओने झवरू उठल तो बेरा सरे, गोहाइल गेल मुदा हुवाँ वरद नदारद। टुकुर-टुकूर देखे लागला बेचारा चले लागल ओनहें जने रोजे जाहेला। एक-एक डेग अइसन उठावे जाइसें कोनो अनाथ विधवा थाना फरियाद करे ले जाइ रहल है। गनेस बाबूक खेतें आंटते मातर झबरू हाइ-मुँह काठ बइन गेलक! गनेसक मुँह आइग कर बरिसा, मारे ले दउरल अइसन जइसे कोनो भुखल वाव आपन सिकार पर दउरे हे। झवरूवा! तोंय हामर गेहूम सद-सदे चाटाइ देलें, आइझ तो एकदमें उड़ाइ देलें। बेचारा झवरू माटीक मेंढ़ वइन ठाड) रहे। हजार गो गाइर सुनलक। आर तो आर आपन बरध के कंसाइ नियर. ढढ़वइत देखी आँखीम लोर लाइन झवरू ठेचारा सिसकी लिये लागला बरध आव काँगीहाउस के चउखट पर। झवरू पर पंचाइतोम केस कइर देलक। ओने झवरूक पारेक हालइत दिनों-दिन खराप होवे लागलक। विहारीक सपना खांटी सपना बड़न रइह गेल। मुदा चाइर दिन बीतल बादें बीरु माझा-माझी रही के ओखनिक, मइ) पंचाइतेक वेवस्था करा देलक। दुइयो दने से याह-बाही लुटे ले, मनक सांपो मईर जाइ आर लाठियो ना टूटे पारे; पंचाइत करावेक आर झबरूक निसाफ दिआवे में बीस गो रूपिया झबरू से धुसो लेलक।
घुइर एतवार, गाँवेक हेठ टोलें बोर गाछेक छांहर तरें पंचाइत चइतला पंच के मुइख रहे वीरू आर महेसा दुइयोक आपन-आपन आरजू सुनबेक मउका मिललका आखिर में गुनाह झबरू पर उतरला 200 रू० (दू सौ रूपिया) हरजाना लगाइ देल थिन, उपर से डाइट के कहलथिन कि झबरू आबसे मेलान नाज खोलतक। बेचारा गरीब झबरू दू-सो रूपिया नहाँ से लानतका गोडो मुंड परलक मुदा, कोनो लाभ नाञ्। झबरू मने कलपे, आर सोंचे, बिना कसूर के ऊ साभिन हमरा सतावे लागल हथी। भगवान तोंय कहाँ सुतल हा? जबर अदमीक जबर बात! कानो दोस करलें कोनो दोस नाञ्, आइझ नाञ् होतक पंच परमेश्वर।
झबरू आपन घरबारिक गँहकी लागाय के पांच सउ रूपिया में बेंच देलक। दू सउ रूपिया हरजाना दे के करिखा मेटालक। बाकी तीन सड रूपिया से सेहे बछर बिहारिक नांव कौलेजें लिखाइ देलका आइ० ए० के परिछा में बिहारी प्रथम आइल आर गुरूवो के लउ पालक।
सच कहल गेल हे विपत्ति जखन आवे. हे तर खने-खने आवे है। ई बात हियों भेलका कॉलेजें करल के तीन बछर बाद बिहारिक बाप झबरू आकचके सिराइ गेलका सुरुज लखें वाप बेटाक बिना पुलिस बरदी में देखलें डूइब गेलक। तले बिहारिक मांय आपन घेचाक हंसुली बेइच के ओकरा बी० ए० करालिका। सेहे वछर तीन महीना बादें पुलिस इनसपेक्टर खातिर परिछा में बिहारी चुनाइयो गेंलका आझ बिहारी पुलिस इन्सपेक्टर है, मुदा आपन बाप के नाञ् पावलें मने-मन कलपे हे; आइझ बाप रहतल! मुदा आबकि ? झबरूक सपना पूरा हो गेल हेला. औकर मोरलहों उबार हइ गेलइ। जेकर आँइखें. गड़े हेल ओकर आरो आँइख फूइटगेला आइझ दुसमनों सहिया में बदइल गेला
1. उबार(उद्वार/उबारना )
मुख्य पात्र – झबरू(किसान)
बच्चो का नाम – बिहारी, परबतिया ,सुमियाँ
अन्य पात्र – गणेश बाबू,तिलका कुम्हार,बुधना महेश एवं वीरू
उल्लेख – बिहारी अपने पिता एवं दादी के सपनों को पुलिस इंस्पेक्टर बनकर पूरा करता है,बिहारी जोकि झबरू का बेटा है पढ़ने में बहुत तेज होता है मैट्रिक फर्स्ट डिवीजन से पास करता है उसकी दादी का सपना है कि बिहारी बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनेगा लेकिन झबरू के पास उसे पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है तो अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं करवा पाता है लेकिन बिहारी को वह कहता है कि अगले साल एडमिशन हो जाएगा पैसे का जुगाड़ कर लेंगे। इससे गांव वाले सभी जलते हैं गांव वालों ने मिलकर झबरू को झूठे आरोप में फंसा दिया था कि झबरू ने गणेश बाबू के खेतों को चरा दिया और इस झूठे आरोप में पंचायत के द्वारा झबरू पर ₹200 का जुर्माना लगाया जाता है जुर्माना चुकाने के लिए झबरू अपने घर को बेच देता है जिससे उससे ₹500 मिलता है जिसमें से ₹200 जुर्माना चुकाता है और ₹300 बेटे की पढ़ाई के लिए देता है और उसका बेटा I.A की पढ़ाई प्रथम डिवीज़न से पास कर लेता है और बीए पास के 3 महीने बाद इंस्पेक्टर बन जाता है
1. उबार
1.Q. उबार कहनी केकर लिखल लागे? डा.विनोद कुमार
2Q. ‘उबार कहनी’ कोन किताबे संकलित हे? सोंध माटी
3Q. उबार कहनीक मुइख पात्र लागे? झबरू
4Q. झबरु को खेतों में खाना कौन पहुंचा देता था? बिहारी की मां
5Q. झबरु कैसा किसान था ? टूटपुँजिया किसान
6Q. झबरू का बेटा का क्या नाम था ? बिहारी
7Q. बिहारी एक दिन पुलिस इंस्पेक्टर बनतक, जरूर बनतक ई असीस कोन देल रहइ?
बिहारीक आजी
8Q. झबरू के परिवार में कुल कितने सदस्य थे ? 5
- 1 झबरू 2 झबरू की पत्नी 3. एक बेटा(बिहारी) 4. दो बेटी(परबतिया(बेटी ) सुगिया(बेटी )
9Q. झबरूक कइगो छउवा रहथी ? तीन गो
10Q. झबरूक छउवाक नाम रहे?
बिहारी(बेटा ) परबतिया(बेटी ) सुगिया(बेटी )
11Q. झबरू के पास कितना कट्ठा जमीन था? 2 कट्ठा
12Q. बिहारी का उम्र क्या है ? 18 वर्ष
13Q. झबरू बिहारी को कौन सा काम करने को कहता है जिससे कि कुछ थोड़ा आमदनी भी हो जाए ? ट्यूशन पढ़ाने के लिए
14Q. पिता की बात सुनकर बिहारी कहां भागना चाहता है ? रांची
15Q. झबरू बिहारी का कॉलेज में एडमिशन कौन सा बोये फसल को बेचकर करने की सोचता है ? आलू
16Q. ‘माछी खोजे घाव आर अदमी खोजे दाव, ई कामइत (लोकोक्ति) कोन कहनीञ आइल हे ? उबार
17Q. एक दिन झबरू किसके घर के बच्चे की छठी में हजामत बनवाने के लिए गया था ? तिलका कुम्हार
18Q. एक दिन झबरू तिलका कुम्हार के घर के बच्चे की छठी में हजामत बनवाने के लिए गया था,वहां किससे मिलता है ? गणेश बाबू एवं महेश बाबू
19Q. झबरूक खेत धारी केकर बारी हलइ जकर संगे ओगरा करे ? बुधना
20Q. झबरु खेत की रखवाली करने के लिए किस पेड़ के नीचे अपना खटिया बिछाया था ? बरगद का पेड़
21Q. बिहारी के ही उम्र के लगभग कौन-कौन से बच्चे जो कॉलेज जा रहे थे ? दिनेश, परेम, बिरजू
22Q.संतोस के डाइरे मेवा फरे हे यह कहावत कौन सी कहानी में प्रयोग हुआ है? उबार
23Q. गाँवेक मानीक लोक रहथ ? गनेस बाबू एवं महेस बाबू
24Q. गनेस बाबू एवं महेस बाबू कितने पढ़े लिखे थे ? बीए
25Q. वीरू के पिता पेशे से क्या थे ? साहूकार
26Q. झबरूक बरद के गनेस बाबूक गहुम खेते कोने खोली के हाइक देलथीन ? महेस आर बीरू
27Q.पचाइतेक केस मांझा-मांझी कोन करल? बीरू
28Q. पंचायत की व्यवस्था करने के लिए वीरू घुस के रूप में जबरू से कितना रुपया लेता है ₹20
29Q.पंचाइत कहाँ बइसल? हेठ टोले बोर गाछेक छाँहइरें
30Q.उबार कहानी में पंचायत की बैठक का आयोजन किस दिन किया गया था ? रविवार (एतवार)
31Q.पंच के प्रमुख कोने-कोने रहला? बीरू आर महेस
32Q. पंचाइत फइसला में की हेल?
ई सोभे – झबरू पर गुनाह उत्तरल ,200 रू हरजाना लगाइ देलथिन , मेलान खोले ले मना करलथीन
33Q.झबरू पर कितना रुपया का जुर्माना पंचायत के द्वारा लगाया गया था ? ₹200
34Q.झबरू अपना घरबारी कितने रुपए में बेच दिया ? ₹500
35Q.बिहारी के कॉलेज में नाम लिखवाने में झगरू ने कितना रुपया दिया था ? ₹300
36Q. बिहारी इन्टर(IA) कोन डिवीजने पास करल रहे? प्रथम
37Q.झबरू का मृत्यु बिहारी के कॉलेज के कितने वर्ष बाद हुआ था ? 3 वर्ष बाद
38Q. बिहारी पुलिस इन्सपेक्टर कते दिने बनल रहे?बी0 ए0 पास करल तीन महीनाक बादे
- बिहारी के पुलिस इंस्पेक्टर बनने के पहले ही (बेटे को बिना वर्दी में देखे बिना ही) झबरू का मृत्यु हो गया था