khortha For JSSC JPSC
KHORTHA PAPER-2 FOR JSSC
रइसका शब्द चित्र , खोरठा
( RAISKA SHABD CHITRA ),KHORTHA
रइसका
रइसका का मतलब – नाच गान(बजाने के साथ ) करने वाला
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रइसका शीर्षक से डॉ बी. एन. ओहदार ने एक शब्द चित्र लिखा है जिसे नौवीं क्लास की पुस्तकदु डायर पलाश फूल में शामिल किया गया है,हालांकि तितकी (रामगढ ) पत्रिका में छपा था
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यह शब्द चित्र लोक कथा पर आधारित है
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रईसका शब्द चित्र का मुख्य पात्र रईसका है जिस का अन्य नाम इसमें ऋझु के नाम से मिलता है
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उसका जन्म चारी नामक गांव में एक साधारण परिवार में भादो माह के अष्टमी को हुआ था
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जन्म के साथ उसके शरीर में ढोल एवं मांदर का छाप था.
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ढोल एवं मांदर का छाप देखकर गांव के पाहन ने कहा था कि यह बड़ा होकर रिझवार बनेगा
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बड़ा होकर वह ढोल एवं मांदर के धुन के साथ अपनी आवाज में लोगों को आकर्षित कर लेता था लड़कियां उसे प्यार से रिझू कहने लगी इस गुण के कारण कई लोग उसे नापसंद भी करते थे.
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रईसका प्रत्येक रात को नदी पार झूमर देखने के लिए जाता था नदी पार करने के लिए वह नदी के दो किनारों पर स्थित पेड़ों के बीच रस्सी बांधकर रस्सी के सहारे वह नदी पार करता था
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वहीं पास में स्थित गांव में प्रत्येक भादो पूर्णिमा को बोन तरिया गाँवक 12 गांव अखरा (बरगॅवांक आखरा) से लोग झूमर देखने आते थे
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एक दिन रईसका का नदी पार करते करने के दौरान रस्सी टूट जाता है और वह नदी में डूब कर मर जाता है उसका मृत शरीर बगल के गांव में मिलता है
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इसी कारण से उस नदी का नाम भी रईसका नदी रखा गया
नोट
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रइसका कहानी को बंशीलाल बंशी ने लिखा है
Q. डॉ. बी.एन. ओहदार कर लिखल ‘रइसका’ कोन विधाक रचना लागे? शब्द चित्र
Q.डॉ. बी.एन. ओहदार कर लिखल रइसका कोन किताब में सामिल हे? दु डाइर परास फूल
Q. रइसकाक जनम कइसन घारे हेल रहे? साधारन परिवारे
Q.’रइसका’ कर कोन तिथिञ हेल रहे? भादो अंधरिया अस्टमी
Q. ‘रइसकाक जनमेक संगे टिकासने की छापा रहइ? ढोल-मांदइर कर
Q.रइसकाक जनम गाँवेक नाम रहइ ? चारि
Q.टिकासनेक छापा देइख बेजोड़ रिझुवार हेवेक बात कोने कहल ? गाँवेक पाहन
Q. रइसका के बेटी छउवाञ प्यार से कोन नामे डाक हलथी ? रिझु
Q. भादी पूरनिमा के झीकाझोइर झुमइर कहाँ लाग हल ?बरगॅवांक आखरा में
Q. बाइढ़ अइले रइसका नदी पार कइसे हेव हल ? गाछे बांधल डोरा (बरही) से
दू डाइर परास फूल
डॉ० बी०एन० ओहदार
पूरा नाम– डॉ० भोगनाथ ओहदार
जनम– 02 सितम्बर 1952
जनम थान – ग्राम – चेटर, पो0 – गोसा, जिला – रामगढ़ (झारखण्ड)
माँयेक नाम – रूपा देवी
बापेक नाम – माधो ओहदार
सिक्छा
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बी0एस0सी0, एम0ए0 (खोरठा आर हिन्दी), डी०एच०एम०एस०, पीएच0डी0 (खोरठा के क्रियारूपों का विश्लेषणात्मक अध्ययन), राँची विश्वविद्यालय, राँची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागे, पहिल बैच, 1982-84 (खोरठा एम0ए0 के विद्यार्थी, प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान से पास।
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ओहदार जी खोरठाक एगो दमगर साहितकार, प्रोफेसर आर खोजी बिदुवान रूपें जानल जा हथ। खोरठा भासाक बिगिआनी रूप के खोजे आर खड़ा करे में ई लगस्तर जिरिंगजिट लागल हथ। इनखर कलम साहितेक कइएक गो बिधाञ साहित सिरजन करले लागल हइ । ई गइद आर पइद दुइयो रूपें सुपट रचना करो हथ । एकर छाड़ा ई एगो बेस होमियोपैथी डाक्टरो लागथ।
कृति
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खोरठा निबंध – (वैचारिक निबंध संग्रह), जनजातीय भाषा अकादमी, बिहार सरकार, 1990
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खोरठा भाषा एवं साहित्य (उद्भव एवं विकास) – शोधपरक किताब (तीन संस्करण 2007, 2011, 2017), खोरठा भाषा साहित्य-संस्कृति अकादमी, रामगढ़
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एकर छाड़ा दुष्यंत कुमार आर बहादुर शाह जफर के गजल के खोरठा अनुवाद ‘अनुदितांजली’ नाम से छपल हे।
सबद चित्र
रइसका
ताड़ धिड़तांग, ताडधिड़तांग, धिड़तांग, धिड़तांग, ताडधिड़तांग ऽऽऽ
संउसे राइत सिराइ गेलक। दिन आइल सेहो सिराइल । फइर राइत आइल ओहो सिराइल मकिन रइसका के ना मुहेंक गीत सिराइल आर न ओकर हा थ टटाइल । गीत चलते रहल, हाथों ढोल पर ताल देते रहल। ताडधिड़तांग-ताडधिड़तांग। सात राइत, सात दिन तक गीत-नाद चलते रहल। अइसन रहे रइसका। आइझ-काइल केकरो विसवास नाञ लाइंगतइ मकिन बात हे सच।
ढइर दिनेक बात लागे, एगो गाँव हल चारि। ओहे गाँवेंक रहवइया हल रइसका। लोक कह-हथ कि भादो अस्टमी राइत के ओकर जनम रहे आर आपन माइ के पेटे ले उ आपन टिकासने ढोल आर माँदइर के छापा लेले आइल हल । जब ओकर माइ-बाप आर टोला-टाटीक लोग इ चिन्हा-मुँदा देखला तो हइचोकें पइर गेला। गाँवेक पहान कहलक – बेटा तो हतउ बड़ा रिझवार। एक काम करिहें एकर मुँह जुट्टी ढोल माँदइर छुवाइ के करबे । एकर जोड़ के गीत-नाद गवइया, बजवइया दुनिआइएँ केउ नाञ हतउ।
ओकर की नाम हल सेटा केकरो बेस से मालूम नाञ हल। कोई कहे रिझु, तो कोई आर कोन्हों। मकिन ओकर नाम धाम से की काम । ओकर गुनेक नाम तो सबके आगा मुँहे हल – रइसका । मकिन ई बात सच रहे कि बेटी छउआ ओकरा प्यार से रिझु कह-हलथे।
जइसन ओकर नाम रहे तइसने रहे काया आर भुजा। लाँब लसर देही, अइठाइल-अइठाइल बाइह, चाकर छाती, अमोसा के राइत नियर गुज-गुज करिया रंग। घुघचल चुइल कंधा तक लटकल, तहीं बांसेक ककइ गबचावल आर पिंधना – ओठनाव रहे वइसने लबकवारी। मुड़े बांधल लाले लाल ललकवारी गमछा, तहीं खोसल मेंजुर पाँइख । एड़ी सहर लील गबावल धोती आर डडाँइ खोंसल बाँसी। सभे मिलाइ, रूप रहे अइसन कि एक नजइरें बेटी छउआ रीझ जाइ।
बिआरी खाइ के रइसका घार से निकल हलक आर राइत भइरें सात गाँवेक अखरा पुराइ दे हलक । पइत गाँवेक झुमराहा-झुमराही आर रिझवार गुला ओकर आसरा जोहइत रह-हलथ। जब भिनसरा झलफलिआ भइ जाए तो रइसका सोझइतलक आपन घर।
जे गाँवेक अखराञ रइसका घुइस जा हलक तो बड़का-बड़का बजनिआ आर गवइआ अखरा छोइड़ दे हलथ। नाचते-नाचते थाइक के जिराइ खातिर बइसल आर पटाइल नचवइआ गुला रइसका के अखरा के समाथीं ओइखनेक गातें बिजली समाइ जा हलइ आर ऊ सब रइसका के संग दिये ले तइआर भइ जा हलथ।
दुनिआइएक सब चीज सब के एके रकम पसिंद नाञ लागे। कतनो बेस से बेस गुनगर चीज हओ, केउ नी केउ दुसबे कर-हथ । रइसका तो अनेक लोक खातिर बड़ी बेस लोक आर बड़का रिझवार हल, बड़का गुनगर हल, मकिन कुछ लोकेक आँइखेक काँटा रहे रइसका। गोटे ठोठाक बेटी छउआ रीझ गेल हलथ रइसकाक उपर सेटा लोक के कटिको नाञ सोहाय । ऊ सभे दाव आर जोखा लगावइत रह-हलथ। मकिन संजोग भेंटान नाञ।
रइसका पइत दिन नदी पार कइरके झुमइर खेले जा हल आन गाँव । जब नदी भइर जाइ तो नदीक दुइओ धाइरेक गाछ के डोराञ बाँइध दे हल आर ओहे डोरा धइर क उ नदी पर कर-हलक। ओकर ई ‘रहस्य’ के सब लोग तो जानथ नाञ मकिन काट परजरूआ लोक एकर पता लगाइ लेल–हलथ।
पइत भादो पुर्णिमा के झिकाझोइर झुमइर लाग-हलक तखन। एकर खातिर बोनतरिया गाँवे एगो बारह गाँवा अखरा रह-हलक । से ठाँवे बारहो गाँवेक रइसका रइसकी जमा हव-हलथ आर रास रचाव-हलथ। इ रास के रसें चरइ-चिनगुनी, गाछ-पालो,
बोन-पतरा, टिल्हा-टुंगरी, सब माइत जा हलथे। हिंआ तइक कि हवा आर नदा मुला जा हलथ बोहे ले। इ रास देइख के मेंजुर के नजइर लाइग जा हल ।
एक बइर अइसने भादो पुर्णिमा के राइत रहे आर बेरा रहे बरगवाँ अखराञ रास लागेक। से बइर सुप उझला पानी बइरसल हल । आर नदी-नाला टाले–टिपे टलटलाय के भोरल हल । नदी धाइरेक काँसी-कुसी डुइब गेल हल आर अइसने में रइसका के आपन डहरें नदीक पार जाइक हलक । बेजान भोरल नदी पार करेक तो रहे बड़ी कठिन काम मकिन रइसका के रिझ आर ‘दृढ़ निश्चय’ ले बोड़ नदी के बाइढ़ रहे नाञ । रइसका सोझाइल घार ले नदी पार करे लाइ। नदी धाइर पहुँच के ऊ आगुवे ले बांधल डोरा के तलास करलक। आर ऊ डोरा भेटइबो करलक। रइसका गाइछ चइघ के डोरा धरलक आर नदी पार करेक सुरू करलक । मकिन जइसें ही ऊ माँझ नदी पहुँचल कि डोरा टुइट गेलइ आर रइसका नदीक धाराञ बोहाइ गेलक । भेलइ अइसन कि कुछ परजरूआ लोक ई बात जान-हलथ कि रइसका तो आइज नदी पार करबे करत, सइ से आगुवे डोरा के काइट के कटि अले-फुले बाँइध देल हलथ।
हिनें बरगवाँ अखराञ रइसका के सब लोग असरा देख-हलथ। ओकर आसराञ रास बेस से लागबो नाञ करल हल। रइसकाक असरा देखइते भइ गेल बिहान। हेउ बिहान, रइसकाक खोजाइर हवे लागलक । गोटा दिन खोजल कर पेछु पता लागलक, दूर गाँवें नदीक धाइरें रइसकाक लाइस मुर्दार काया भेटइलक। गोटे ठोठा चाँव-चाँव भइ गेलक । देखइते- देखइते गोटे ठोठाक लोग, रइसका, रइसकी जमा भइ गेलथ। पइत झन के ऑइखें एके सवाल पइर-हलक ! कइसे भेलइ ? कोन आपन अदउती निकालक। ई बेचारा केकर की हिनी उँची कइर देल हलइ । ओह रे! अइसन बेजाञ काम की लोक करे पारे ? अइसन केउ दुश्मनों से नाञ करे। जते मुँह तते कथा । आँइखें पइराइत सवाल क जबाब नाञ पाइ के आँइख ले ढरके लागल लोर।
रइसकाक मुर्दार काया के क्रिया करम करे हतइ। लोग के बुझाइ नाञ की करता का नाञ । कफन-तफन के जोगाड़ करेक चर्चा हवे लागलइ। मकिन ई कि ? रइसकी घटा छउआ आपन आँचरा फाइर के रइसकाक गातें डाले लागला। हुआँ तो रइसकी जमा हला थइ-थइ। देखते-देखते आँचरा के ढेरी लाइग गेलइ। फइर बेटी छउआ आपन मुंडे खोसाञ खोसल बाँसेक ककइ निकाइल के जमा कइर देला। देखते-देखते ककर क पर्वत लाइग गेलइ। पेछ आँचरा के कफन ओढ़वल गेल आर बाँसेक ककइ के सारा बनवल गेल । मुँहें आइग देवइआ के तो लाइन-लाइग गेलक । देखते-देखते रइसका काया हवाञ बिलीमान भइ गेलइ।
पेछु ऊ नदीक नामें पइर गेलइ रइसका नदी। एखनु रइसका नदीक धाराञ सबद राइतें गुजरइत ई उदासी गीत के केउ सुने पारे।
“काहे राजा काहे राजा हो ऽ ऽ ऽ रसिका मरावले,अखरा जे सुना भइये गेल । अखराही रे दइआ मकरा बिआइये गेलइ, मँदरा ही धुन लागि गेल ।”
SARKARI LIBRARY
AUTHOR : MANANJAY MAHATO