जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity)
- 1992 में रियो डि जेनेरियो (ब्राज़ील) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में जैव-विविधता की मानक परिभाषा अपनाई गई।
- जैव-विविधता समस्त स्रोतों, यथा-अंतर्क्षेत्रीय , स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिकी समूह जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएँ हैं। इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकी विविधता सम्मिलित हैं।
- जैव-विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वाल्टर जी. रोजेन द्वारा किया गया।
जैव-विविधता के प्रकार (Types of Biodiversity)
आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity):
- किसी समुदाय के एक ही प्रजाति के जीवों के जीन में होने वाला परिवर्तन ही आनुवंशिक विविधता है। उदाहरण- खरगोश की विभिन्न नस्लें।
प्रजातीय विविधता (Species Diversity):
- इसका आशय किसी पारिस्थितिकी तंत्र के जीव-जंतुओं के समुदायों की प्रजातियों में विविधता से है। उदाहरण- किसी समुदाय की विभिन्न प्रजातियाँ।
सामुदायिक या पारितंत्र विविधता (Community or Ecosystem Diversity):
- एक समुदाय के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों एवं दूसरे समुदाय के जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के बीच पाई जाने वाली विविधता सामुदायिक विविधता या पारितंत्र विविधता कहलाती है।
जैव-विविधता का मापन (Measurement of Biodiversity)
- इसका आशय प्रजाति की संख्या और उसकी समृद्धि के आकलन से है।
इस हेतु 3 विधियाँ प्रचलन में हैं
- APLHA-विविधताः यह किसी एक निश्चित क्षेत्र के समुदाय या पारितंत्र की जैव-विविधता है।
- BETA-विविधताः इसके अंतर्गत पर्यावरणीय प्रवणता के साथ परिवर्तन के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना की जाती है।
- GAMMA-विविधताः इसके द्वारा एक भौगोलिक क्षेत्र या आवासों की प्रजातियों की प्रचुरता का पता चलता है।
जैव-विविधता की प्रवणता (Gradient of Biodiversity)
- अक्षांशों में प्रायः उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर एवं पर्वतीय क्षेत्रों में ऊपर से नीचे की ओर आने पर प्रजातियों की संख्या में आने वाला अंतर, जैव-विविधता की प्रवणता कहलाता है।
- उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश (ध्रुवों से भूमध्य रेखा) की ओर पारिस्थितियाँ अनुकूल होने के कारण जैव-विविधता में वृद्धि होती है।
जैव-विविधता को ख़तरा (Risks for Biodiversity)
- प्राकृतिक वास का विनाश जैव-विविधता के ह्रास के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है। अन्य कारण-विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि एवं गरीबी, प्राकृतिक कारण, यथा- बाढ़, भूकंप, जलवायु परिवर्तन, कृषि क्षेत्रों का विस्तार, पशु-पक्षियों का अवैध शिकार इत्यादि।
- गौरतलब है कि प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा नामक पादप प्रायः समाचारों में बना रहता है क्योंकि यह जहाँ उगता है वहाँ की जैव विविधता को कम करने लगता है। इसके कारण इसके आस-पास के क्षेत्रों में वनस्पति को नुकसान होता है। साथ ही, यह जानवरों को भी नुकसान पहुँचाता है। इसके इस दुर्गुण के कारण मार्च 2017 में मद्रास हाईकोर्ट ने तथा मार्च 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे हटाने के निर्देश दिये हैं।
जैव-विविधता हॉटस्पॉट (Biodiversity Hotspots)
- विश्व के कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की अत्यधिक जैव-विविधता पाई जाती है, साथ ही निवास स्थान की हानि का गंभीर स्तर भी पाया जाता है, ऐसे क्षेत्रों को जैव-विविधता हॉटस्पॉट कहते हैं।
- जैव-विविधता हॉटस्पॉट की संकल्पना को पर्यावरणविद् नार्मन मायर्स ने 1988 में विकसित किया।
किसी स्थान को हॉटस्पॉट क्षेत्र घोषित करने हेतु मापदंड
- इस क्षेत्र में कम-से-कम 0.5% या 1500 से अधिक स्थानिक संवहनीय पौधों की प्रजातियाँ होनी चाहिये।
- इस क्षेत्र की प्राथमिक वनस्पतियों का कम-से-कम 70% नष्ट हो चुका हो।
उपर्युक्त कारकों को सम्मिलित करते हुए विश्व के जिन हॉटस्पाट क्षेत्रों में स्थानिक प्रजातियों की प्रचुरता पाई जाती है, वे क्षेत्र अत्यधिक हॉटस्पॉट (Hottest Hotspots) क्षेत्र कहलाते हैं। इनके विनाश का भी खतरा अधिक है।
भारत के प्रमुख हॉटस्पॉट क्षेत्र (Major Hotspot Region in India)
भारत के चार क्षेत्र विश्व के जैव-विविधता बाहुल्य क्षेत्र में आत है
हिमालय क्षेत्रः इसके अंतर्गत संपूर्ण हिमालय तथा पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, चीन, एवं म्यांमार में पड़ने वाले हिमालयी क्षेत्र आते हैं। यहाँ एक सींग वाला गैंडा, एशियाई जंगली भैंसा, सुनहरा लंगूर, हिमालय का ताहर, गंगा की डॉल्फिन, नामदफा उड़ने वाली गिलहरी आदि पाए जाते हैं।
इंडो-बर्मा क्षेत्रः यह बंदर, लंगूर, गिब्बन आदि कपियों का आवास क्षेत्र है। इसके अंतर्गत उत्तर-पूर्वी भारत का क्षेत्र, म्याँमार, थाइलैंड, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं दक्षिणी चीन आता है।
पश्चिमी घाट और श्रीलंकाः यह दक्षिण-पश्चिमी भारत एवं श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम के उच्च भूमि क्षेत्र तक फैला हुआ है। एशियाई हाथी, नीलगिरी ताहर, शेर पूंछ वाला बंदर (मकाक) आदि कुछ विशेष प्रजातियाँ हैं।
सुंडालैंड हॉटस्पॉटः दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित इंडो-मलाया द्वीप समूह के पश्चिमी भाग तक विस्तृत है। भारत का निकोबार द्वीप समूह इसके अंतर्गत आता है। प्रवाल, व्हेल, समुद्री गाय (ड्यूगॉन्ग) आदि विशेष प्रजातियाँ हैं।
- विश्व में कुल 36 जैव-विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र हैं। 36वें हॉटस्पॉट के रूप में नॉर्थ अमेरिकन कोस्टल प्लेन (NACP) को घोषित किया गया है।
होप स्पॉट (Hope Spot)
- ‘होप स्पॉट’ सागरों के ऐसे विशेष क्षेत्र हैं जो इनके स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। ये क्षेत्र जैव-विविधता से समृद्ध होने के अलावा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा किसी समुदाय के लिये आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
- इस अवधारणा का प्रतिपादन 2009 में ‘मिशनब्लू’ के तहत डॉ. सल्विया अर्ल ने किया तथा इसे IUCN के साथ संयुक्त रूप में प्रस्तुत किया।
- भारत के दो क्षेत्र अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्षद्वीप को 2013 में इसके अंतर्गत नामित किया गया है।
जैव-विविधता संरक्षण की विधियाँ (Methods of Biodiversity Conservation)
इस हेतु दो विधियाँ प्रचलित हैं
स्वस्थाने (इन-सिटू)
- प्रजातियों का उनके प्राकृतिक आवास में सरंक्षण।
- उदाहरण- राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र, आरक्षित वन, संरक्षित वन, पवित्र उपवन और झीलें।
बाह्य-स्थाने (एक्स-सिटू)
- चिड़ियाघर,वनस्पति उद्यान, जीन बैंक, बीज बैंक, जीन सफारी पार्क, ऊतकीय संवर्द्धन केंद्र, क्रायोप्रिजरवेशन।
राष्ट्रीय उद्यान
- इसमें किसी भी प्रकार के अधिवास और मानवीय गतिविधियों की अनुमति नहीं होती है।
- यहाँ तक की जानवरों को चराने या जंगली उत्पादों को इकट्ठा करने की मंजूरी भी नहीं है।
- राष्ट्रीय उद्यानों का गठन विशेष प्रकार की शरणस्थली के संरक्षण के लिये किया जाता है अर्थात् इस विशेष शरणस्थली क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों का संरक्षण समान रूप से किया जाता है।
वन्यजीव अभयारण्य
- जानवरों को चराने या लकड़ी आदि इकट्ठा करने एवं पर्यटन की अनुमति तो होती है, परंतु कुछ अपवादों को छोड़कर मनुष्यों का बसना प्रतिबंधित होता है।
- वन्यजीव अभयारण्यों का गठन किसी एक प्रजाति अथवा कुछ विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिये किया जाता है अर्थात् ये विशिष्ट प्रजाति आधारित संरक्षित क्षेत्र होते हैं।
- वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान दोनों की घोषणा राज्य सरकार केवल आदेश/निर्देश देकर कर सकती है, जबकि सीमा में परिवर्तन के लिये राज्य विधानमंडल को एक संकल्प पारित करना होता है।
- एक अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित किया जा सकता है, पर एक राष्ट्रीय उद्यान को अभयारण्य घोषित नहीं किया जा सकता।
जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve Zone)
- इसके अंतर्गत किसी भी पारितंत्र एवं प्राकृतिक आवास (यथा-स्थलीय एवं सागरीय) के अजैविक संघटकों (भूमि, मृदा, जल एवं वायु) तथा जैविक घटकों (जीव-जंतु एवं वनस्पतियाँ) की जैव-विविधता का संरक्षण किया जाता है।
- जैवमंडल आगार क्षेत्र की अवधारणा का विकास 1975 में यूनेस्को के MAB कार्यक्रम के अंतर्गत हुआ जिसका उद्देश्य पारितंत्र एवं इसके आनुवंशिक पदार्थों का संरक्षण करना है।
- जैवमंडल आगार की संरचना 3 क्षेत्रों में बँटी है
क्रोड क्षेत्र (Core Zone):
- सबसे अधिक संरक्षित क्षेत्र जहाँ सरकारी लोगों को छोड़कर अन्य सभी का प्रवेश वर्जित है। सिर्फ कुछ सुरक्षित अनुसंधान क्रियाओं की अनुमति है।
बफर क्षेत्र (Buffer Zone):
- क्रोड के चारों तरफ का क्षेत्र जो नियंत्रित एवं अविध्वंसक होता है। कृषि, मत्स्यपालन, पर्यटन, प्रशिक्षण, मनोरंजन आदि क्रियाएँ भी वनस्पति संरक्षण के साथ शामिल हैं परंत ये गतिविधियाँ संक्रमण क्षेत्र की तुलना में कम रहती हैं।
संक्रमण मंडल (Transition Zone):
- यह बफर मंडल के चारों तरफ का भाग है जहाँ विकासशील कार्य, शोधकार्य एवं स्थानिक लोगों के मध्य परस्पर सहयोग से पर्यावरण एवं विकास में घनिष्ठ संबंध स्थापित किया जाता है।
- इसके बाहरी क्षेत्र (Outer Zone) में मनुष्यों को बसने और परंपरागत कार्यों को करने की अनुमति होती है।
मानव एवं जैवमंडल कार्यक्रम (Man and the Biosphere Programme-MAB):
- यह 1971 में UNESCO द्वारा शुरू किया गया एक अंतर-सरकारी वैज्ञानिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य मानव एवं पर्यावरण के बीच संबंधों में सुधार के लिये एक वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है।
- भारत ने 1986 में राष्ट्रीय जैवमंडल कार्यक्रम शुरू किया।
विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Sites)
- यूनेस्को द्वारा पहली बार 1972 में इसकी रूपरेखा तैयार की गई जो 1975 में कार्यान्वित हुई।
- यह विश्व के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित है। इसके अंतर्गत सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं मिश्रित प्रकार के धरोहर स्थलों की घोषणा की जाती है।
- भारत में कुल 38 विश्व विरासत स्थल हैं जिनमें 30 सांस्कृतिक धरोहर, 7 प्राकृतिक धरोहर व 1 मिश्रित धरोहर स्थल श्रेणी में शामिल है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में जयपुर शहर (राजस्थान) को 38वाँ विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।
भारत के (UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त) प्राकृतिक धरोहर स्थलों में
- 1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
- 2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
- 3. मानस वन्यजीव अभयारण्य
- 4. सुंदरबन राष्ट्रीय पार्क
- 5. नंदा देवी एवं फलों की घाटी राष्टीय उद्यान
- 6. पश्चिमी घाट
- 7. ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क शामिल हैं
- जबकि कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित धरोहर स्थल हैं।
IUCN एवं रेड डाटा बुक
- IUCN ने प्रजातियों की स्थिति को दर्शाने एवं उनके संरक्षण के लिये आवश्यक उपायों को निर्दिष्ट करने हेतु, वैश्विक प्रजाति कार्यक्रम तथा प्रजाति उत्तरजीविता आयोग के साथ मिलकर रेड डाटा बुक का प्रकाशन शुरू किया।
- इसके अंतर्गत पादपों, कवक तथा जंतुओं का मूल्यांकन किया जाता है।
- यह प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे को उजागर करता है।
- IUCN की लाल सूची (Red List) में प्रजातियों को उनकी स्थिति के अनुसार कुल 9 श्रेणियों में रखा गया है
विलुप्त (Extinct-EX):
- जिस प्रजाति का कोई भी सदस्य जीवित न हो तथा विश्व के सभी आवासों में उनकी संख्या बिलकुल समाप्त हो चुकी हो, वह विलुप्त की श्रेणी में आता है।
- साइबेरियाई सारस (Siberian Crane) भारत में स्थानीय स्तर पर विलुप्त हो गए हैं।
वन से विलुप्त (Extinct in the Wild-EW):
- जिस प्रजाति की समस्त प्रजातियाँ उनके प्राकृतिक आवास से समाप्त हो गई हों एवं कुछ को संरक्षण हेतु चिड़ियाघरों आदि में रखा गया है।
गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered-CR):
- जब प्रजातियों का उनके प्राकृतिक आवासों से विलुप्त होने का गंभीर खतरा बना हो। इसमें वयस्क सदस्यों की संख्या केवल 50 या उससे कुछ कम शेष रहती है। यह विलोपन के अत्यधिक नज़दीक की स्थिति है।
- सफेद पेट वाले बगुले का अस्तित्व अत्यंत खतरे में है।
- कुछ गंभीर संकटग्रस्त प्राणियों के नामः ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, फॉरेस्ट ऑडलेट, गुलाबी सिर वाली बतख, हिमालयन बटेर, नामदफा उड़ने वाली गिलहरी, हॉक्सबिल कछुआ, घड़ियाल, बड़े दाँत वाली सॉफिश, पिग्मी हॉग, अंडमान सफेद दाँत वाली – छुडूंदर, मालाबार सिवेट, कश्मीरी स्टैग (हंगुल), गंगा शार्क।
संकटग्रस्त (Endangered-EN):
- ऐसी प्रजातियों का वनों से विलुप्त होने का खतरा बना होता है। इनमें वयस्क सदस्यों की संख्या केवल 250 या उससे कम शेष रहती है। ये IUCN के संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं।
- विलोपन की कगार पर सर्वाधिक संकटापन्न एशिया का परभक्षी ढोल (Dhole) या एशियाई जंगली कुत्ता या भारतीय जंगली कुत्ता है। |
सुभेद्य (Vulnerable-VU):
- जिस प्रजाति की वनों में संकटग्रस्त – हो जाने की संभावना हो एवं प्रजाति की संख्या में 10 वर्षों में 500M से अधिक की कमी दर्ज की गई हो तथा वयस्क सदस्यों की संख्या केवल 1000 या उससे कम बची हो।
निकट संकट (Near Threatened-NT):
- प्रजाति के निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना हो।
संकट मुक्त (Least Concern-LC):
- इस श्रेणी की प्रजातियों को बहुत कम खतरा होता है एवं ये अधिक संख्या में विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती हैं।
आँकड़ों का अभाव (Data Deficient):
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्याप्त आँकड़ों के अभाव के कारण प्रजातियों के विलोपन का खतरा आकलित नहीं किया जा सकता है।
अनाकलित (Not Evaluated):
- प्रजाति की संरक्षण स्थिति का IUCN के संरक्षण मापदंड पर आकलन नहीं किया जा सकता।
Wildlife Protection Act, 1972 के अनुसूचित जीव-जंतु
- वन्यजीव संरक्षण कानून, 1972 (WPA, 1972): में 6 अनुसूचियाँ हैं जो कई प्रकार की सुरक्षा प्रदान करती हैं
अनुसूची 1 एवं अनुसूची 2 के भाग II:
इस सूची में रखे गए जीव-जंतुओं को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होता है। इसके अंतर्गत किये गए जुर्म के लिये सर्वाधिक सज़ा का प्रावधान है।
- अनुसूची 1 का उदाहरण- शेर, पूँछ वाला मकाक, रायनोसोरस, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, ब्लैक बक
- अनुसूची 2 के भाग II का उदाहरण- रिसस मकाक, ढोल, किंग कोबरा, उड़ने वाली गिलहरी, हिमालयी भूरा भालू
अनुसूची 3 एवं अनुसूची 4:
इस सूची के जीवों को भी सुरक्षा प्राप्त है परंतु अनुसूची 1 एवं अनुसूची 2 के भाग II की अपेक्षा कम सज़ा का प्रावधान है।
- अनुसूची 3 का उदाहरण- हायना, नीलगाय, बार्किंग डियर
- अनुसूची 4 का उदाहरण- वल्चर
अनुसूची 5: इस सूची के जीवों का शिकार किया जा सकता है।
- उदाहरण- चूहा, फ्लाइंग फॉक्स, साधारण कौआ, माइस
अनुसूची 6: इस सूची में डाले गए पौधों को उगाना, जमा करना और निष्कर्षण मना है।
- उदाहरण- रेड वांडा, कुथ, पिचर प्लांट आदि।
लुप्त हो रहे महत्त्वपूर्ण जीवों हेतु भारत में संरक्षण के प्रयास
प्रोजेक्ट टाइगर
- 1973 में भारत सरकार द्वारा बाघ (जो एक संकटग्रस्त प्रजाति हा के संरक्षण हेतु इसे शुरू किया गया था। इसी के अंतर्गत टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई जो फिलहाल 50 हैं।
प्रोजेक्ट एलीफेंट
- 1992 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया जिसका उद्देश्य हाथिया के आवास संरक्षण द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि करना था।
- हाथियों को उनके वृहद् पर्यावास से जोड़ने वाला सँकरा रास्ता हाथी गलियारा (Elephant Corridor) कहलाता है। देश में फिलहाल 88 एलीफैंट कॉरीडोर हैं।
- हाथियों की अवैध हत्या को रोकने हेतु 2003 में साइट्स द्वारा दक्षिण एशिया में माइक (MIKE) कार्यक्रम शुरू किया गया। MoEF एवं WTI द्वारा ‘हाथी मेरे साथी’ कार्यक्रम शुरू किया गया।
गंगा डॉल्फिन
- इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में रखा गया है। ये भारत, नेपाल, बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना आदि नदी तंत्र में – पाई जाती हैं। यह मीठे जल की प्रजाति है।
हंगुल परियोजना
- हंगुल को कश्मीर स्टैग भी कहते हैं जो केवल कश्मीर के दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं। इस परियोजना को जम्मू-कश्मीर, IUCN तथा WWF ने मिलकर 1970 में शुरू किया।
मगरमच्छ संरक्षण परियोजना
- मगरमच्छ के संरक्षण हेतु 1975 में प्रारंभ किया गया।
गैंडा परियोजना
- एक सींग वाले गैंडे सिर्फ भारत में ही पाए जाते हैं। गैंडा परियोजना को 1987 में शुरू किया गया। तत्पश्चात् 2005 में ‘इंडियन राइनो विजन (IRV) 2020’ प्रारंभ किया गया।
अन्य
सेव (Saving Asia’s Vultures from Extinction-SAVE):
- गिद्धों की प्रमुख एशियाई प्रजातियों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयास, जिसकी शुरुआत वर्ष 2011 में हुई। ।
लाल पांडा परियोजना:
- पूर्वी हिमालय क्षेत्र के लाल पांडा के संरक्षण के लिये।
हिम तेंदुआ योजना:
- हिमालयी राज्यों में हिम तेंदुआ संरक्षण के लिये 2009 में प्रारंभ।
पक्षी अभयारण्य (Bird Sanctuaries)
- घाना पक्षी विहार – भरतपुर (राजस्थान)
- रंगन थिटू पक्षी विहार (मांड्या, कर्नाटक)
- वेदाथंगल पक्षी विहार (कांचीपुरम, तमिलनाडु)
- नीलापटू पक्षी विहार- (नेल्लौर, आंध्र प्रदेश)
- सुल्तानपुर पक्षी विहार – (गुरुग्राम, हरियाणा)
- सलिम अली पक्षी विहार – (चोराओ, मांडवी नदी के पास, गोवा)
- कौंडिन्या पक्षी विहार – (चित्तूर, आंध्र प्रदेश)
- चिल्का झील पक्षी विहार – (पुरी के पास, ओडिशा)
- कुमाराकॉम पक्षी विहार या वेबनाद पक्षी विहार-कोट्टायम (केरल)
- सिक्किम में खेचिओपलरी झील को लोगों द्वारा पवित्र माना जाता है, जिससे जलीय पौधों व जंतुओं को संरक्षण मिलता है।
सामाजिक वानिकी (Social Forestry)
- भारत सरकार के राष्ट्रीय कृषि आयोग (The National Commission on Agriculture) द्वारा 1976 में पहली बार ‘सामाजिक वानिकी’ शब्द का प्रयोग किया गया। यह कार्यक्रम पेड़ लगाने को प्रोत्साहन देता है तथा इसका लक्ष्य वनारोपण को जन-आंदोलन में परिणत करना तथा बेकार पड़ी भूमि को वृक्षारोपण के उपयोग में लाना है।
संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management) .
- राष्ट्रीय वन नीति 1988 तथा वन संसाधनों के प्रबंधन में स्थानीय लोगों के सहयोग के पूर्व अनुभव को ध्यान में रखते हुए वनों के बेहतर और प्रभावी संरक्षण हेतु 1990 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कुछ दिशानिर्देश बनाए गए। इसमें वन संसाधनों के प्रबंधन में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इसके अंतर्गत वन विभाग और स्थानीय समुदाय मिलकर एक समिति का निर्माण करते हैं और लागत तथा लाभ को आपस में साझा करते हुए वन प्रबंधन और संरक्षण का कार्य करते हैं।
वन संरक्षण आंदोलन
विश्नोई आंदोलन(1731)
- राजस्थान में अमृता देवी विश्नोई द्वारा वृक्षों के संरक्षण हेतु
चिपको आंदोलन (1973)
- गढ़वाल हिमालय (उत्तराखंड में) वनों व वृक्षों के संरक्षण हेतु सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में
साइलेंट वैली आंदोलन (1973)
- पलक्कड़ (केरल) के सदाबहार उष्ण कटिबंधीय वनों के संरक्षण हेतु
अप्पिको आंदोलन(1973)
- वनों के बचाने हेतु इसे कर्नाटक का चिपको आंदोलन कहा जाता है
नर्मदा बचाओ आंदोलन (1985)
- नर्मदा नदी पर बहुउद्देशीय बाँध परियोजना (सरदार सरोवर बाँध-गुजरात आदि) का मेधा पाटकर, बाबा आम्टे एवं अरुंधती रॉय जैसे आंदोलनकारियों द्वारा विरोध
नवदान्या आंदोलन (1987)
- वंदना शिवा द्वारा जैविक खेती व जैव-विविधता संरक्षण हेतु
भारत के जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र
नीलगिरि
- तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, (क्षेत्रफल की दृष्टि से घटते क्रम में)
- भारत का प्रथम जैवमंडल आगार (1986 में स्थापित)
- पश्चिमी घाट में अवस्थित (मालाबार वर्षा वन)
- इसकी परिधि में मुदुमलाई एवं वनाद वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्ती राष्ट्रीय उद्यान तथा मौन घाटी (Silent Valley) अवस्थित हैं।
- टोडा, कोटा, कुरुम्बा, अडियन, चेट्टी, अलार जनजातियाँ।
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
नंदा देवी
- उत्तराखंड
- क्रोड़ क्षेत्र में नंदा देवी नेशनल पार्क (1991 में प्राकतिक विश्व विरासत घोषित) एवं फूलों की घाटी
- भूटिया जनजाति
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
नोकरेक
- मेघालय
- सिमसंग, बूगी, दारेंग आदि नदियों का उद्गम स्थल।
- काफी हिस्सा झूम खेती के अंतर्गत (मृदा अपरदन एवं ऊपरी मृदा का क्षय)
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
मानस
- असम
- प्रोजेक्ट टाइगर, 1973 के तहत घोषित टाइगर रिज़र्व।
- यूनेस्को द्वारा 1985 में प्राकृतिक विश्व विरासत स्थल घोषित।
- ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी मानस यहाँ – बहती है।
सुंदरवन
- पश्चिम बंगाल
- गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा क्षेत्र ।
- इसकी परिधि में सुंदरवन नेशनल पार्क, सज्नाखली लोथियन एवं हलिडे वन्यजीव अभयारण्य अवस्थित।
- विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र एवं एकमात्र मैंग्रोव रिज़र्व जहाँ बाघ पाए जाते हैं।
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
मन्नार की खाड़ी
- तमिलनाडु
- भारत का प्रथम समुद्री बायोस्फीयर रिज़र्व
- मैंग्रोव (लाल, काला), कोरल रीफ एवं समुद्री घास बहुतायत में
- समुद्री गाय प्रमुख जीव
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
ग्रेट निकोबार
- अंडमान निकोबार द्वीप समूह (दक्षिणतम् द्वीप)
- सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजाति ‘मेगापोडे’ का निवास
- शोम्पेन जनजाति (भारत की प्राचीनतम् जनजाति)
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
सिमलीपाल
- ओडिशा
- खरिया, गोंड, भूमिजा जनजातियाँ
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
डिब्रू सैखोवा
- असम
- सबसे छोटा जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र
दिहांग-दिबांग
- मध्य प्रदेश –
- सतपुड़ा नेशनल पार्क अवस्थित
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
कंचनजंगा
- सिक्किम
- कंचनजंगा चोटी स्थित
अगस्त्यमाला
- तमिलनाडु, केरल
- 2016 में विश्व जैवमंडल आगार का दर्जा
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
अचानकमार-अमरकंटक
- मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़
- इन्हें यूनेस्को के Man and Biosphere programme (MAB) कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिजर्व की विश्व तंत्र सूची में शामिल किया गया है
कच्छ
- गुजरात
- सबसे बड़ा बायोस्फीयर रिजर्व
शीत मरुस्थल
- हिमाचल प्रदेश
- पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान अवस्थित
शेषाचलम
- आंध्र प्रदेश
पन्ना
- मध्य प्रदेश
- सबसे नवीन (2011 में बना)