महाजनपदों का उदय
- महाजनपदों की कुल संख्या 16 थी, जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रंथ ‘अंगुत्तर निकाय’, ‘महावस्तु’ एवं जैन ग्रंथ ‘भगवती सूत्र‘ में मिलता है।
- इसमें मगध, कौशल, वत्स और अवंति सर्वाधिक शक्तिशाली थे।
- सोलह महाजनपदों में अश्मक ही एक ऐसा जनपद था जो दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के किनारे स्थित था।
- इन 16 महाजनपदों में वज्जि एवं मल्ल में गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी, जबकि शेष में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी।
- महापरिनिर्वाणसुत्त में 6 महानगरों की सूचना मिलती है- चंपा, राजगृह, श्रावस्ती, काशी, कौशांबी तथा साकेत।
- वैशाली का लिच्छवी गणराज्य विश्व का प्रथम गणतंत्र माना जाता है जो वज्जि संघ की राजधानी थी। इसका गठन 500 ई.पू. में हुआ था।
- 4 शक्तिशाली महाजनपद थे- मगध, कोशल, वत्स तथा अवंति।

महाजनपदों का राजधानी
नोट: नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी।
- विश्व का सबसे प्राचीन वैभवशाली महानगर पाटलिपुत्र (221 ई.पू.) है।
काशी
- काशी महाजनपद की राजधानी वाराणसी थी। ‘सोननंद जातक’ से ज्ञात होता है कि मगध, कोशल तथा अंग के ऊपर काशी का अधिकार था। काशी का सबसे शक्तिशाली राजा ब्रह्मदत्त था जिसने कोशल के ऊपर विजय प्राप्त की थी।
कोशल
- कोशल महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती थी। रामायणकालीन कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी। यह राज्य उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में सई नदी तक तथा पश्चिम में पांचाल से लेकर पूर्व में गंडक नदी तक फैला हुआ था।
अंग
- अंग राज्य की राजधानी चंपा थी। बुद्ध के समय तक चंपा की गणना भारत के छः महानगरों में की जाती थी। ‘महापरिनिर्वाणसुत्त’ में चंपा के अतिरिक्त अन्य पाँच महानगरों के नाम-राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी तथा बनारस दिये गए हैं।
मगध
- मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह या गिरिब्रज थी। बाद में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र स्थानांतरित हुई। यह उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था
वज्जि
- यह आठ राज्यों का एक संघ था। इसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवि, मिथिला के विदेह तथा कंडग्राम के ज्ञातृक विशेष रूप से प्रसिद्ध थे।
मल्ल
- वज्जि संघ के समान यह भी एक संघ था, जिसमें पावा तथा कुशीनारा के मल्लों की शाखाएँ सम्मिलित थीं। ‘कुस जातक’ में ओक्काक को वहाँ का राजा बताया गया है
चेदि/चेति
- इसकी राजधानी ‘सुक्तिमति या सोत्थिवती’ थी। महाभारत काल में यहाँ का प्रसिद्ध शासक शिशुपाल था जिसका वध कृष्ण द्वारा किया गया। ‘चेतिय जातक’ में यहाँ के एक राजा का नाम ‘उपचर’ मिलता है।
वत्स
- इसकी राजधानी कौशांबी थी। बुद्ध काल में यहाँ पौरव वंश का शासन था जिसका शासक उदयन था। पुराणों के अनुसार उदयन के पिता परंतप ने अंग की राजधानी चंपा को जीता था।
कुरु
- इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी। बुद्ध के समय यहाँ का राजा कोरव्य था। पांचाल प्रारंभ में इसके दो भाग थे, उत्तरी पांचाल जिसकी राजधानी अहिच्छत्र तथा दक्षिणी पांचाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य थी।
मत्स्य (मच्छ)
- यहाँ की राजधानी विराटनगर थी जिसकी स्थापना विराट नामक राजा ने की थी।
शूरसेन
- इसकी राजधानी मथुरा थी।
- प्राचीन यूनानी लेखक इस राज्य को शूरसेनोई तथा इसकी राजधानी को ‘मेथोरा’ कहते थे। बुद्ध काल में यहाँ का राजा अवंतिपुत्र था जो बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक था।
अश्मक
- यह दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था, इसकी राजधानी पोतन या पोटली थी।
अवंति
- उत्तरी अवंति की राजधानी उज्जयिनी तथा दक्षिणी अवंति की राजधानी महिष्मती थी। यहाँ लोहे की खाने थी ।
गांधार
- इसकी राजधानी तक्षशिला थी। तक्षशिला प्रमुख व्यापारिक नगर होने के साथ-साथ शिक्षा का भी प्रमुख केंद्र था।
कंबोज
- इसकी राजधानी राजपुर अथवा हाटक थी। यह गांधार का पड़ोसी राज्य था। प्राचीन समय में कंबोज जनपद श्रेष्ठ घोड़ों के लिये विख्यात था।
बुद्ध के समय गणतंत्र
- बुद्ध के समय में 10 गणतंत्र थे, जो इस प्रकार हैं
- कपिलवस्तु के शाक्य
- सुमसुमारा के भग्ग (कुछ अन्य स्रोतों में इसका नाम सुसुभारगिरि एवं सुमसुमगिरि भी मिलता है।)
- अलकप्प के बुली
- केसपुत्त के कलाम (बुद्ध के गुरु अलार कलाम इसी से संबद्ध थे।)
- रामग्राम के कोलिय
- कुशीनारा के मल्ल
- पावा के मल्ल
- पिप्पलिवन के मोरिय
- वैशाली के लिच्छवि (सर्वाधिक शक्तिशाली गणराज्य)
- मिथिला के विदेह
कपिलवस्तु के शाक्य
- इसकी राजधानी कपिलवस्तु थी।
- इसे शाक्यवंशीय सुकीर्ति ने प्रतिस्थापित करवाया था।
- कपिलवस्तु के अतिरिक्त इस गणराज्य में अन्य अनेक नगर थे- चातुमा, सामगाम, खोमदुस्स, सिलावती, नगरक, देवदह आदि।
- गौतम बुद्ध का जन्म इसी गणराज्य में हुआ था। इस राज्य का विनाश कोशल नरेश बिडूडभ द्वारा किया गया।
सुमसुमारा के भग्ग
- इसकी स्थिति का अनुमान वर्तमान चुनार (मिर्जापुर जिला) से किया गया है। ऐसी मान्यता है कि भग्ग ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लिखित ‘भर्ग’ वंश से संबंधित थे।
अलकप्प के बुली
- इसकी राजधानी बेतिया (वेठद्वीप) थी। बुली लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। आधुनिक स्थानों की दृष्टि से यह राज्य बिहार प्रांत के शाहाबाद, आरा और मुज़फ्फरपुर जिलों के बीच स्थित था।
केसपुत्त के कलाम
- आचार्य अलार कलाम इसी राज्य से संबंधित थे।
- महात्मा बुद्ध ने गृह त्याग के बाद आचार्य अलार कलाम से सांख्य दर्शन की दीक्षा प्राप्त की थी।
रामग्राम के कोलिय
- कोलियों की राजधानी रामग्राम की पहचान वर्तमान गोरखपुर जिले में स्थित रामगढ़ ताल से की गई है।
- कोलिय गण के लोग अपनी पुलिस शक्ति के लिये प्रसिद्ध थे।
कुशीनारा के मल्ल
- वाल्मीकि रामायण में मल्लों को लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतुमल्ल का वंशज कहा गया है।
पावा के मल्ल
- पावा आधुनिक कुशीनगर जिले में स्थित पडरौना नामक स्थान था।
पिप्पलिवन के मोरिय
- चंद्रगुप्त मौर्य इसी वंश में उत्पन्न हुआ था।
वैशाली के लिच्छवि
- यह बुद्धकाल का सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली राज्य था।
- लिच्छवि वज्जिसंघ में सर्वप्रमुख था। इनकी राजधानी वैशाली मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ नामक स्थान में स्थित थी।
- ‘महावग्ग जातक’ में वैशाली को एक धनी, समृद्धशाली तथा घनी आबादी वाला नगर कहा गया है।
- लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवास के लिये महावन में प्रसिद्ध कूटाग्रशाला का निर्माण करवाया था, जहाँ रहकर बुद्ध ने अपने उपदेश दिये।
- लिच्छवि का राजा चेटक था। चेटक की पुत्री चेलना (छलना) का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार के साथ हुआ था।
- महावीर की माता त्रिशला चेटककी बहन थी।
मिथिला के विदेह
- यहाँ के राजा जनक अपनी शक्ति एवं दार्शनिक ज्ञान के लिये सुप्रसिद्ध थे।
- इनकी राजधानी मिथिला की पहचान वर्तमान जनकपुर से का जाती है।
मगध राज्य के प्रमुख वंश
मगध : एक परिचय
- मगध प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था।
- इसकी स्थिति मूलतः दक्षिण बिहार के क्षेत्र में थी। इसके अंतर्गत आधुनिक पटना एवं गया ज़िला शामिल थे।
- इसकी राजधानी गिरिब्रज थी। बाद में राजगृह बनी, जो पाँच पहाड़ियों से घिरी थी। ‘
- मगध की राजधानी कालांतर में पाटलिपुत्र स्थानांतरित हुई।
- भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंघ यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे।
हर्यक वंश (544 ई.पू.-412 ई.पू.)
- संस्थापक – बिम्बिसार
- राजधानी – राजगृह या गिरिब्रज (पाटलिपुत्र)
प्रमुख शासक
बिम्बिसार (544 ई.पू. से 492 ई.पू.)
- बिम्बिसार इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। उसे मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है।
- 15 वर्ष की आयु में मगध साम्राज्य की बागडोर संभालने वाले बिम्बिसार ने लगभग 52 वर्षों तक शासन किया।
- इसका अन्य नाम ‘ श्रेणिक‘ था। (जैन साहित्य में)
- उसने तीन विवाह किये,प्रथम पत्नी महाकोशला देवी थी, जो कोशलराज की पुत्री और प्रसेनजित की बहन थी। इनके साथ दहेज में काशी प्रांत मिला,दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेलना (छलना) थी, जिससे अजातशत्रु का जन्म हुआ,तीसरी पत्नी क्षेमा पंजाब के मद्र कुल की राजकुमारी थी।
- बिम्बिसार ने अंग राज्य को जीतकर मगध में मिला लिया तथा अपने पुत्र अजातशत्रु को वहाँ का शासक नियुक्त किया।
- बिम्बिसार ने अवंति के शासक चंडप्रद्योत से मित्रता कर ली तथा अपने राज्यवैद्यजीवक को उसके इलाज के लिये भेजा।
- बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और वह 492 . ई.पू. में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
- अजातशत्रु का कोशल नरेश प्रसेनजित से युद्ध हुआ। प्रसेनजित की पराजय हुई, परंतु बाद में दोनों में समझौता हो गया।
- प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से किया। अजातशत्रु का उपनाम ‘कुणिक’ था।
- अजातशत्रु जैन मतानुयायी था।
- अजातशत्रु का लिच्छवियों से युद्ध हुआ। अपने कूटनीतिक मित्र वस्सकार की सहायता से उसने लिच्छवियों पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध में अजातशत्रु ने रथमूसल तथा महाशिलाकंटक नामक हथियारों का प्रयोग किया। बाद में काशी व वैशाली दोनों मगध के अंग बन गए।
- अजातशत्रु के समय में ही राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
- अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया। (पुराणों के अनुसार 28 वर्ष)
- 32 वर्षों तक शासन करने के बाद अजातशत्रु अपने पुत्र उदायिन द्वारा मार डाला गया।
उदायिन (460 ई.पू. से 444 ई.पू.)
- पुराणों एवं जैन ग्रंथों के अनुसार उदायिन ने गंगा तथा सोन नदियों के संगम तट पर पाटलिपुत्र (कुसुमपुरा) नामक नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया। वह जैन मतानुयायी था।
- हर्यक वंश का अंतिम राजा उदायिन का पुत्र नागदशक था। इसको उसके आमत्य शिशुनाग ने पदच्युत कर मगध की गद्दी पर अधिकार कर लिया और ‘शिशुनाग’ नामक एक नए वंश की नींव रखी।
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
- इस वंश का संस्थापक शिशुनाग को माना जाता है। इसी के नाम पर इस वंश का नाम ‘शिशुनाग वंश’ पड़ा।
प्रमुख शासक
शिशुनाग (412 ई.पू. से 394 ई.पू.)
- इसने अवंति तथा वत्स राज्य पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया।
- इसने वैशाली को राजधानी बनाया।
- इसके शासन के समय मगध साम्राज्य के अंतर्गत बंगाल से लेकर मालवा तक का भू-भाग सम्मिलित था।
- महावंश के अनुसार, शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक गद्दी पर बैठा।
कालाशोक (394 ई.पू. से 366 ई.पू.)
- इसका नाम ‘पुराण’ तथा ‘दिव्यावदान’ में काकवर्ण मिलता है।
- इसने वैशाली के स्थान पर पुनः पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। इसने 28 वर्षों तक शासन किया।
- इसी के समय द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ। इसी समय बौद्ध संघ दो भागों (स्थविर तथा महासांघिक) में बँट गया।
- बाणभट्ट रचित ‘हर्षचरित’ के अनुसार काकवर्ण को राजधानी पाटलिपुत्र में घूमते समय महापद्मनंद नामक व्यक्ति ने चाकू मारकर हत्या कर दी।
- महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने कालाशोक की मृत्यु (366 ई.पू.) के बाद मगध पर 22 वर्षों तक (लगभग 344 ई.पू.) शासन किया।
नंद वंश (344 ई.पू. से 324-23 ई.पू.)
- संस्थापक – महापद्मनंद
प्रमुख शासक
महापद्मनंद
- पुराणों के अनुसार, इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद था। इसमें महापद्मनंद को ‘सर्वक्षत्रांतक’ (क्षत्रियों का नाश करने वाला)तथा ‘भार्गव’ (दूसरे परशुराम का अवतार)कहा गया है।
- इसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की तथा ‘एकराट’ एवं ‘एकक्षत्र’ की उपाधिधारण की।
- महापद्मनंद के आठ पुत्र थे। धनानंदभी इसका पुत्र था, जो नंद वंश का अंतिम शासकथा।
धनानंद
- यह सिकंदर का समकालीन था।
- इसके समय में 326 ई.पू. में सिकंदर ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था। ग्रीक (यूनानी) लेखकों ने इसे ‘अग्रमीज’कहा है।
- धनानंद के दरबार में चाणक्य (तक्षशिला का आचार्य) आया था। वह धनानंद के द्वारा अपमानित किया गया।
- 322 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से धनानंद की हत्या कर मौर्य वंश की नींव रखी।
- मौर्यों के शासन में मगध साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
मगध के उत्कर्ष के लिये उत्तरदायी कारक
- सुविधाजनक भौगोलिक स्थिति जिससे निम्न गंगा के मैदानों पर नियंत्रण संभव हो सका।
- तांबे और लोहे की खानों से निकटता जो बेहतर उपकरण और हथियारों के लिये आवश्यक थे।
- जलोढ़ मिट्टी का जमाव, जो कृषि के लिये मजबूत आधार प्रदान करता था।
- मगध की दोनों राजधानियाँ-राजगृह और पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थी। राजगृह पहाड़ियों से घिरी थी और शत्रुओं से पूरी तरह सुरक्षित थी। पाटलिपुत्र गंगा, सोन और गंडक नदी के संगम पर स्थित थी, अतः वह जलदुर्ग से सुरक्षित थी।
- दक्षिण बिहार में गया के घने जंगलों से इमारती लकड़ी और सेना के लिये हाथी प्राप्त होते थे। यही कारण था कि मगध ने पहली। बार युद्धों में हाथियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया।