बंगाल में राजनीतिक संस्थाएँ
लैंडहोल्डर्स सोसायटी या ज़मींदारी एसोसिएशन
- लैंडहोल्डर्स सोसायटी की स्थापना 1838 में द्वारकानाथ टैगोर द्वारा कलकत्ता में की गई थी।
- लैंडहोल्डर्स सोसायटी पहली राजनीतिक सभा थी, जिसने संगठित राजनीतिक प्रयासों का शुभारंभ किया।
- इस संस्था ने ज़मींदारों के हितों की सुरक्षा तथा उनकी शिकायतों को दूर करने के लिये संवैधानिक उपचारों का प्रयोग किया।
- कलकत्ता के ज़मींदारों की यह सभा इंग्लैंड की ‘ब्रिटिश इंडिया सोसायटी’ को भी सहयोग करती थी, जिसकी स्थापना विलियम एडम्स द्वारा की गई थी।
- लैंडहोल्डर्स सोसायटी के प्रमुख भारतीय नेता द्वारकानाथ टैगोर, राधाकांत देव, प्रसन्न कुमार ठाकुर,राजकमल सेन ,भवानी चरण मित्र आदि ज़मींदार थे। इसलिये इसे ‘ज़मींदारी एसोसिएशन‘ भी कहा जाता है।
नोट : भवानी चरण मित्र के द्वारा “धर्म सभा “ का गठन 17 JAN 1830 को किया गया था..
बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी
- 1843 में जॉर्ज थॉमसन की अध्यक्षता में ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी’ नामक राजनीतिक सभा की स्थापना हुई। यह भारतीय तथा गैर-सरकारी अंग्रेजों का सम्मिलित संगठन था।
- इस सभा का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी शासन में भारतीयों की वास्तविक अवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त कर उनका प्रचार-प्रसार करना तथा जनता की उन्नति व न्यायपूर्ण अधिकारों के लिये शांतिमय और कानूनी साधनों का प्रयोग करना था।
ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन
- अक्तूबर 1851 में ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की स्थापना कलकत्ता में राधाकांत देव की अध्यक्षता में की गई।
- इसके अन्य प्रमुख सदस्यों में देवेंद्रनाथ टैगोर, रामगोपाल घोष, प्यारी चंद्र मित्र, कृष्णदास पाल आदि थे।
- पूर्ववर्ती दोनों प्रमुख संस्थाओं (लैंडहोल्डर्स सोसायटी एवं बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी) की असफलताओं के कारण इन दोनों को मिलाकर ‘ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन’ का गठन किया गया।
- यह संस्था भूमिपतियों के हितों के लिये मुख्य रूप से कार्यरत थी।
- इसी के प्रयासों से 1853 में चार्टर के नवीकरण के समय ब्रिटिश संसद को प्रार्थना पत्र भेजा गया था। इस प्रार्थना पत्र में एक लोकप्रिय विधानसभा, न्यायिक एवं दंडनायक कार्य पृथक् किये जाने, अधिकारियों के वेतन कम किये जाने तथा नमक, आबकारी व स्टांप कर को समाप्त किये जाने आदि की मांग की गई।
- इसके परिणामस्वरूप 1853 के चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में 6 नए सदस्यों को कानून बनाने के लिये जोड़ लिया गया।
- इस संगठन ने नील विद्रोह की जाँच हेतु आयोग बैठाने की मांग की थी।
- ‘हिंदू पैट्रियट‘ इस संस्था का मुख्य पत्र था।
इंडियन लीग
- 25 सितंबर, 1875 को शिशिर कुमार घोष द्वारा इंडियन लीग की स्थापना कलकत्ता में की गई।
- इसके अस्थायी अध्यक्ष शंभू चंद्र मुखर्जी थे।
- इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास कर राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहन देना था।
इंडियन एसोसिएशन (भारत संघ )
- 26 जुलाई, 1876 को सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने आनंद मोहन बोस के सहयोग से कलकत्ता के अल्बर्ट हॉल में इसकी स्थापना की।
- सुरेंद्रनाथ बनर्जी इसके संस्थापक तथा आनंद मोहन बोस इसके सचिव थे।
- सुरेंद्रनाथ बनर्जी को ‘राष्ट्र गुरु’ के नाम से भी जाना जाता है।
- इंडियन एसोसिएशन की स्थापना, इंडियन लीग के स्थान पर की गई थी।
- इसका उद्देश्य मध्यम वर्ग के साथ-साथ साधारण वर्ग को भी इसमें सम्मिलित करना था. इस कारण इसका चंदा पाँच रुपये वाषिक रखा गया।
- इस एसोसिएशन में ज़मींदारों की जगह मध्यम वर्ग को प्राथामकता दी गई।
- इस संगठन ने सिविल सर्विसेज आंदोलन चलाया, जिसे ‘भारतीय जनपद सेवा आंदोलन’ (सिविल सर्विस मूवमेंट) भी कहा जाता है।
- इसके अतिरिक्त वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट तथा इल्बट बिल के विरोध में आंदोलन चलाया गया।
- 1883 में सुरेंद्रनाथ बनर्जी को अपने पत्र ‘बंगाली’ में कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश जे.एफ. नॉरिस की आलोचना करने के कारण 2 माह की सजा हुई।
- इंडियन एसोसिएशन ने दिसंबर 1883 में कलकत्ता के अल्बर्ट हॉल में आनंद मोहन बोस की अध्यक्षता में पहली इंडियन नेशनल कॉफ्रेंस का आयोजन किया।
- दूसरी इंडियन नेशनल कॉफ्रेंस कलकत्ता में दिसंबर 1885 में हुई। इसकी अध्यक्षता सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने की थी।
- 1886 में इसका विलय भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में हो गया।
कलकत्ता स्टूडेंट्स एसोसिएशन
- कलकत्ता स्टूडेटस एसोसिएशन की स्थापना 1875 में आनंद मोहन बोस ने की थी।
- आनंद मोहन बोस के साथ सुरेंद्रनाथ बनर्जी भी छात्रों के इस संगठन मामिल हए। कालांतर में सुरेंद्रनाथ बनर्जी छात्रों के नेता बनकर उभरे।
बंबई में राजनीतिक संस्थाएँ
बंबई एसोसिएशन
- 26 अगस्त, 1852 को दादाभाई नौरोजी ने कलकत्ता के ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की तर्ज पर ‘बंबई एसोसिएशन’ की स्थापना की।
- इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सरकार को समय-समय पर ज्ञापन देना था, ताकि भेदभावपूर्ण समझे जाने वाले नियमों तथा सरकारी नीतियों के लिये सुझाव दिये जा सकें।
- इस संस्था ने भी अंग्रेजी संसद को एक ज्ञापन भेजा जिसमें नई विधान परिषदों, जिनमें भारतीयों को भी प्रतिनिधित्व मिले, के बनाए जाने की बात की।
- उन्होंने भारतीयों की ऊँचे पदों पर नियुक्तियाँ न करने और अंग्रेज़ अधिकारियों को बड़े-बड़े वेतन देने की भी निंदा की।
- हालांकि, यह एसोसिएशन बहुत दिनों तक नहीं चल सका।
पूना सार्वजनिक सभा :
- 1867 (कुछ स्रोतों में 1870) में महादेव गोविंद रानाडे (एम.जी. रानाडे) एवं गणेश वासुदेव जोशी द्वारा पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की गई।
- सभा का उद्देश्य जनता को यह बताना था कि सरकार के वास्तविक उद्देश्य क्या हैं? अपने अधिकार कैसे प्राप्त किये जा सकते हैं।
- 1875 में इस संस्था ने ब्रिटिश संसद में भारतीयों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए हाउस ऑफ कॉमंस के समक्ष याचिका प्रस्तुत की।
- इस सभा के सक्रिय सदस्यों में एस.एच. साठे तथा एस.एच. चिपलूणकर थे।
- पूना सार्वजनिक सभा मुख्यत: नवोदित मध्यम वर्ग, ज़मींदारों और व्यापारियों के हितों का प्रतिनिधित्व करती थी।
- इसके अधिकांश सदस्य ब्राह्मण व वैश्य थे।
- इसी कारण यह संस्था किसानों तक अपनी पहुँच नहीं बना सकी।
बंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन
- 1885 में फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैय्यबजी व के.टी. तैलंग द्वारा बंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की गई।
- 1885 में बंबई में नागरिकों की एक सभा जमशेदजी जीजी भाई की अध्यक्षता में बुलाई गई। इसी सभा में इस संगठन के गठन की घोषणा की गई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लोगों के मध्य राजनीतिक विचारों को फैलाना था।
मद्रास में राजनीतिक संस्थाएँ
मद्रास नेटिव एसोसिएशन
- कलकत्ता के ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की शाखा 1852 में मद्रास में स्थापित की गई। इसकी स्थापना गजुलू लक्ष्मीनरसु चेट्टी ने की थी।
- इस संस्था ने अंग्रेजी संसद को 1853 के चार्टर से पूर्व एक ज्ञापन भेजा जो बंबई तथा कलकत्ता एसोसिएशन के नमूने पर आधारित था।
मद्रास महाजन सभा
- 1884 में एम. वीर राघवाचारी, जी. सुब्रह्मण्यम् अय्यर और पी. आनंद चार्लू ने मद्रास महाजन सभा की स्थापना की थी।
- इसका उद्देश्य स्थानीय संगठनों के कार्यों को समन्वित करना था।
- इसका पहला सम्मेलन 29 दिसंबर, 1884 से 2 जनवरी, 1885 तक मद्रास में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में विधान परिषदों के सुधार, कार्यपालिका से न्यायपालिका के अलगाव तथा खेतिहरों की हालातों पर विचार-विमर्श किया गया।
लंदन में राजनीतिक संस्थाएँ
लंदन इंडिया सोसायटी
- 1865 में गठित इस संस्था की स्थापना दादाभाई नौरोजी के नेतृत्व में की गई।
- इसमें फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैय्यबजी, डब्ल्यू.सी. बनर्जी एवं मनमोहन घोष आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।
- इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भारतीयों पर अंग्रेजों के गलत व्यवहार एवं नीतियों की शिकायत अंग्रेज़ी प्रेस के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना था।
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
- 1866 में दादाभाई नौरोजी द्वारा ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की गई।
- ईस्ट इंडिया एसोसिएशन का उद्देश्य ब्रिटिश जनता तथा संसद को भारतीय विषयों से अवगत कराना तथा भारतवासियों के पक्ष में इंग्लैंड में जनसमर्थन तैयार करना था।
- 1869 में बंबई में इसकी शाखा स्थापित हुई। कालांतर में भारत के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ खुल गईं।
- कॉन्ग्रेस की स्थापना से पूर्व यह एक ऐसी संस्था थी, जिसने युवा वर्ग को भारत में स्वाधीनता प्राप्त करने के लिये उत्साहित किया।
PART 02
प्रथम भारतीय आम चुनाव 1951-52
- अप्रैल 1950 में, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया गया, और इसके साथ ही भारतीय चुनाव आयोग, एक स्वायत्त निकाय, का गठन किया गया।
- सुकुमार सेन, भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी, भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए।
- लोगों को 489 लोकसभा सीटों के लिए और 3283 प्रांतीय विधानसभा सीटों के लिए वोट देना था।
चुनावों में भाग लेने वाले राजनीतिक दल
- प्रथम आम चुनाव अक्टूबर 1951-फरवरी 1952 के बीच (चार माह) में आयोजित हुआ
- चुनाव में कुल 53 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया, जिनमें 14 राष्ट्रीय दल भी शामिल थे।
- श्यामा प्रसाद मखर्जी और बी.आर. अम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी की सर्वोच्चता को चुनौती देने के लिए पृथक राजनीतिक दलों का गठन किया।
- जहां श्यामा प्रसाद मखर्जी ने अक्टूबर 1951 में जनसंघ का गठन किया, वहीं बी.आर. अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति फेडरेशन (बाद में इसका नाम रिपब्लिकन पार्टी रखा गया) को पुनर्जीवित किया।
- अन्य दलों में जिन्होंने सामने आना शुरू किया, किसान मजदूर प्रजा परिषद् (आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में); सोशलिस्ट पार्टी (राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में); भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं।
- निर्वाचन क्षेत्र प्रथम आम चुनाव (1951-1952), जो 401 निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा की 489 सीटों के लिए आयोजित किए गए, ने 26 भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व किया। उस समय, एकल सीट वाले 314 निर्वाचन क्षेत्र, दो सीट वाले 86 निर्वाचन क्षेत्र और तीन सीट वाला एक निर्वाचन क्षेत्र था।
- वर्ष 1960 में बहुल सीट वाले निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
- कांग्रेस के सम्मुख विपक्षी नेता के रूप में दलित नेता बी.आर. अम्बेडकर; श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी इत्यादि शामिल थे।
- नागालैंड में, नेशनल नागा कौंसिल ने इस चुनाव का सम्पूर्ण बहिष्कार किया और न तो कोई उम्मीदवार खड़ा किया और न ही एक भी मतदान किया।
चुनाव का परिणाम
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने 489 में से 364 लोकसभा सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
- 45.7 प्रतिशत मतदान किया गया।
- जवाहरलाल नेहरूलोकतांत्रिक रूप से देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने।
- प्रांतीय विधानमडल में कांग्रेस ने 2,248 सीटों पर विजय प्राप्त की।
- कांग्रेस ने केंद्र और सभी राज्यों में सरकार बनाई।
- कांग्रेस चार राज्यों-मद्रास, त्रावणकोर-कोचीन, उड़ीसा और पेप्सू में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी।
- इस चुनाव में एक बात अविस्मरणीय रही कि 40 प्रतिशत मतदान योग्य महिलाओं ने मतदान किया।
- इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ने लोकसभा में 23 सीटें प्राप्त की।
- राजाओं और जमींदारों की पार्टी ‘गणतंत्र परिषद्’ ने उड़ीसा में राज्य विधानमंडल की 31 सीटें प्राप्त की।
- चुनाव में बी.आर. अम्बेडकर बॉम्बे, (नॉर्थ सेंट्रल) जो कि आरक्षित सीट थी, निर्वाचन क्षेत्र से हार गए। तब अम्बेडकर ने राज्य सभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया।
- उन्होंने 1954 के बान्द्रा उपचुनाव में लड़कर लोकसभा में जाने का प्रयास किया, लेकिन वे कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए।
- आचार्य कृपलानी भी ‘किसान मजदूर प्रजा परिषद्‘ के उम्मीदवार के रूप में फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) से हार गए, लेकिन उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी ने दिल्ली में कांग्रेस उम्मीदवार मनमोहनी सहगल को हरा दिया।