सिंधु घाटी सभ्यता का नामकरण
- बीसवीं सदी के द्वितीय दशक तक इस सभ्यता के बारे में अपरिचित थे ।
- धारणा थी कि सिकंदर के आक्रमण (326 ई.पू.) के भारत में कोई सभ्यता ही नहीं थी।
- दयाराम साहनी तथा राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा तथा मोहनजोदाड़ो के प्राचीन स्थलों से पुरावस्तुएँ प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया कि सिकंदर के आक्रमण के पूर्व भी एक सभ्यता थी, जो अपने समकालीन सभ्यताओं में सबसे विकसित थी।
- इस पूरी सभ्यता को ‘सिंधु घाटी सभ्यता’, अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर ‘हड़प्पा सभ्यता’ कहा जाता है।
- इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं,
- पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, बनावली, रंगपुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे।
- इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को ‘हड़प्पा की सभ्यता’ नाम देना उचित मानते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार
- उत्तरी सीमा– माडा, जम्मू-कश्मीर
- पश्चिमी सीमा– सुत्कागेंडोर, बलूचिस्तान
- पूर्वी सीमा– आलमगीरपुर,मेरठ उत्तर प्रदेश
- दक्षिणी सीमा-दैमाबाद ,महाराष्ट्र
- सिंधु घाटी सभ्यता कांस्ययगीन सभ्यता थी
- उद्धव – ताम्रपाषाण काल में
- भारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था
- विस्तार– भारत के अलावा पाकिस्तान तथा अफग़ानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में
- उत्तर से दक्षिण – लगभग 1100 किमी. तक
- पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किमी. तक
- स्वरूप – त्रिभुजाकार (क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किमी.)
- सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में सैंधव सभ्यता का पता लगाया
- जिसका सर्वप्रथम वर्णन उनके द्वारा 1842 में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है।
- प्रमुख नगर ‘हड़प्पा’ का पता लगाया।
- 1921 में
- खोजकरता – पुरातत्त्वविद् दयाराम साहनी ने
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में
- मोहनजोदड़ो की खोज
- सर जॉन मार्शल के दिशा निर्देश में
- खोजकरता –राखालदास बनर्जी द्वारा 1922 में
- हड़प्पा सभ्यता का काल – 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है।
- रेडियो कार्बन-14 (C14) जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा
- यह सभ्यता 400-500 वर्षों तक विद्यमान रही
- 2200 ई.पू. से 2000 ई.पू. के मध्य परिपक्व अवस्था में थी।
- नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8,000 साल पुरानी है।
- सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं।
- इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु एक सभ्यता में चार प्रजातियाँ निवास करती थीं-
- भूमध्यसागरीय
- प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड
- अल्पाइन तथा
- मंगोलॉयड।
- इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु एक सभ्यता में चार प्रजातियाँ निवास करती थीं-
- सबसे ज़्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना
- सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
- विशेषता
- पर्यावरण के अनुकूल नगर नियोजन
- जल निकास प्रणाली।
- विशेषता
- सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
- सभी नगर दो भागों में विभक्त थे-
- प्रथम भाग में ऊँचे दुर्ग – शासक वर्ग निवास करता था।
- दूसरे भाग में नगर या आवास क्षेत्र \- सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे।
- सड़कों के किनारे की नालियाँ ऊपर से ढकी होती थीं।
- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगा की नगर योजना लगभग एकसमान थी।
- कालीबंगा व रंगपुर को छोड़कर सभी में पकी हुई ईंटों का प्रयोग हुआ है।
- आमतौर पर प्रत्येक घर में एक आंगन, एक रसोई घर तथा एक स्नानागार होता था।
- अधिकांश घरों में कुओं के अवशेष भी मिले हैं।
- हड़प्पाकालीन नगरों के चारों ओर प्राचीर बनाकर किलेबंदी की गई थी
- जिसका उद्देश्य नगर को चोर, लुटेरों एवं पशु दस्युओं से बचाना था।
- मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सैंधव सभ्यता का अद्भुत निर्माण है.
- सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत – अन्नागार
- घरों के दरवाज़े एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क पर न खुलकर गलियों में खुलती थीं
- लेकिन लोथल इसका अपवाद है।
- लोथल के दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़कों की ओर खुलती थीं।
- लेकिन लोथल इसका अपवाद है।
- मकान बनाने में कई प्रकार की ईंटों का प्रयोग होता था
- 4 : 2 : 1 (लंबाई, चौड़ाई तथा मोटाई का अनुपात) के आकार की ईंटें ज़्यादा प्रचलित थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
हड़प्पा
- सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की खोज सर्वप्रथम 1921 ई. में हड़प्पा में की गई।
- हड़प्पा वर्तमान में रावी नदी के बायें तट पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
- स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे ‘अर्द्ध-औद्योगिक नगर‘ कहा है। उन्होंने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी‘ कहा था।
- नगर की रक्षा के लिये पश्चिम की ओर एक दुर्ग का निर्माण किया गया था। जिस टीले पर यह दुर्ग बना है उसे व्हीलर ने ‘माउंड ए-बी’ (Mound A-B) की संज्ञा प्रदान की है।
मोहनजोदड़ो
- इसका सिंधी भाषा में अर्थ ‘मृतकों का टीला’ होता है।
- यह सिंध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
- सर्वप्रथम इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी।
- मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक थी।
- वृहद् स्नानागार, मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है। इसके केंद्रीय खुले प्रांगण के बीच जलकुंड या जलाशय बना है।
- तांबे तथा टिन को मिलाकर हड़प्पावासी काँसे, का निर्माण करते थे।
- मोहनजोदड़ो से काँसे की एक नर्तकी की मूर्ति पायी गई है, जो द्रवी मोम विधि (Lost wax method) से बनी है।
चन्हूदड़ो
- यह सैंधव नगर सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में स्थित है।
- इसकी सर्वप्रथम खोज 1934 ई. में एन.गोपाल मजूमदार ने की थी तथा 1935 ई. में अर्नेस्ट मैके द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया।
- चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है, जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं।
- चन्हूदड़ो में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है। चन्हूदड़ो से पूर्वोत्तर हड़प्पाकालीन संस्कृति (झूकर-झाँगर) के अवशेष मिले हैं।
- ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक औद्योगिक केंद्र था जहाँ मणिकारी, मुहर बनाने, भार-माप के बटखरे बनाने का काम होता था।
- अर्नेस्ट मैके ने यहाँ से मनका बनाने का कारखाना तथा भट्टी की खोज की है।
लोथल
- यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है।
- इसकी खोज सर्वप्रथम डॉ. एस.आर. राव ने 1955 ई. में की थी।
- यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह था, जो पश्चिमी एशिया से व्यापार का प्रमुख स्थल था।
- लोथल में नगर को दो भागों में न बाँटकर एक ही रक्षा प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया था।
राखीगढ़ी
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित प्रमुख पुरातात्विक स्थल।
- यहाँ से अन्नागार एवं रक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं।
- मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे एशिया के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है।
कालीबंगा
- यह राजस्थान के गंगा नगर जिले में घग्घर नदी के बायें तट पर है।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काले रंग की चूड़ियाँ‘ हैं।
- इसकी खोज 1951 में अमलानंद घोष द्वारा की गई तथा 1961 ई. में बी.बी. लाल और बी.के. थापर के निर्देशन में व्यापक खुदाई की गई।
- यहाँ से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।
- यहाँ के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों द्वारा हुआ था
- यहाँ से अलंकृत ईंटों के साक्ष्य भी मिले हैं।
- कालीबंगा में शवों के अंत्येष्टि संस्कार हेतु तीन विधियों- पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह-संस्कार के प्रमाण मिले हैं।
बनावली
- हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973 ई. में आर.एस. बिष्ट ने की थी।
- इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
- यहाँ जल निकास प्रणाली का अभाव था।
- यहाँ से मिट्टी का बना हल मिला है।
- बनावली से अधिक मात्रा में जो मिला है।
धौलावीरा
- यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है।
- इसकी खोज 1967 ई. में जे.पी.जोशी ने की थी।
- यहाँ से प्राप्त होने वाली सिंधु लिपि के 10 बड़े चिह्नों से निर्मित शिलालेख महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- धौलावीरा के निवासी जल संरक्षण की तकनीक से परिचित थे।
- धौलावीरा से हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम ( खेल का मैदान ) मिला है।
सैंधव स्थलों से प्राप्त अवशेष एवं वस्तुएँ
सैंधव स्थलों के उत्खननकर्ता
हड़प्पाई लिपि
- हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं जो सेल खड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
- इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था परंतु अभी तक इसको पढ़ा नहीं जा सका है।
- इसकी लिपि पिक्टोग्राफ अर्थात् चित्रात्मक थी जो दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी। इस पद्धति को बूस्ट्रोफेडन (Boustrophedon) कहा गया है।
- सबसे ज़्यादा चित्र ‘U’ आकार तथा ‘मछली’ के प्राप्त हुए हैं।
सामाजिक जीवन
- मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह पता चलता है कि हड़प्पा समाज संभवतः मातृसत्तात्मक था।
- समाज में विद्वान (पुरोहित), योद्धा, व्यापारी और श्रमिक वर्ग की मौजूदगी थी।
- आवासों की संरचना समाज की आर्थिक विषमता को दर्शाती है।
- हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे।
- स्त्री एवं पुरुष दोनों आभूषण धारण करते थे। यहाँ से प्रसाधन मंजूषा मिली है।
- चन्हूदड़ो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले हैं।
- सिंधु सभ्यता के लोग सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
- इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।
- यहाँ के लोग मनोरंजन के लिये चौपड़ और पासा खेलते थे।
- अंत्येष्टि में पूर्ण समाधीकरण सर्वाधिक प्रचलित था, जबकि आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार का भी चलन था।
- यहाँ के लोग गणित, धातु निर्माण, माप-तौल प्रणाली, ग्रह-नक्षत्र, मौसम विज्ञान इत्यादि की जानकारी रखते थे।
- सैंधव सभ्यता के लोग युद्धप्रिय कम, शांतिप्रिय ज़्यादा थे।
- श्रमिकों की स्थिति का आकलन कर व्हीलर ने दास प्रथा को स्वीकार किया है।
राजनीतिक जीवन
- हंटर के अनुसार, “मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।”
- व्हीलर के अनुसार, “सिंधु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।”
आर्थिक जीवन
- सैंधव सभ्यता की उन्नति का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था।
- सैंधव सभ्यता का व्यापार केवल सिंधु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था अपितु मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया से भी व्यापार होता था।
- सैंधव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह- लोथल, रंगपुर, सुरकोटदा, प्रभासपाटन आदि थे।
- हड़प्पा सभ्यता में माप की दशमलव प्रणाली तथा माप-तौल की इकाई 16 के गुणक में होती थीं।
- इस सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ , राई, मटर , तिल, सरसों, कपास आदि की खेती किया करते थे।
- सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है। यूनानियों ने इसे ‘सिंडन'(सिडोन) नाम दिया है।
- ये लोग तरबूज, खरबूज़, नारियल, अनार, नींबू, केला जैसे फलों से भी परिचित थे।
- यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूँ तथा जौ थे।
- कृषि कार्य हेतु प्रस्तर (पत्थर) एवं काँसे के औज़ारों का प्रयोग किया जाता था।
- इस सभ्यता में फावड़ा या फाल नहीं मिला है। संभवतः ये लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे।
- सैंधव नगरों में कृषि पदार्थों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से होती थी, इसलिये अन्नागार नदियों के किनारे बनाए गए थे।
- कृषि उन्नति के साथ पशु पालन का भी विकास हुआ था। कृषि कार्यों एवं व्यापार तथा परिवहन में पशुओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
- पशुओं में कूबड़ वाले बैल, भेड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे, सुअर व कुत्ते आदि के होने का अनुमान है।
- गुजरात के निवासी हाथी पालते थे।
धार्मिक जीवन
- सैंधव निवासी ईश्वर की पूजा मानव, वृक्ष एवं पशु तीनों रूपों में करते थे।
- इस सभ्यता के लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करते थे।
- ताबीजों के आधार पर जादू-टोने में विश्वास करने तथा कुछ जगहों की मुहरों (जैसे-चन्हूदड़ो में) पर बलि प्रथा के दृश्य अंकित होने के आधार पर बलि प्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है।
- ये लोग मातृदेवी, रुद्र देवता (पशुपति नाथ), लिंग-योनि आदि की पूजा करते थे।
- इसके अलावा सैंधववासी वृक्ष, पशु, साँप, पक्षी इत्यादि की भी पूजा करते थे।
- विशाल स्नानागार का प्रयोग संभवतः धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्य पूजा में होता होगा।
- कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि तथा स्वास्तिक आदि की पूजा की जाती थी।
- स्वास्तिक और चक्र सूर्य पूजा के प्रतीक थे।
- सैंधववासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, इसलिये मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे
- पूर्ण शवाधान
- आंशिक शवाधान
- कलश शवाधान।
- मूर्ति पूजा का आरंभ संभवतः सैंधव सभ्यता से ही होता है।
- हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकला दिखाया गया है, जो उर्वरता की देवी का प्रतीक है।
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण
- द्वितीय सहस्राब्दी ई.पू. के मध्य इस सभ्यता का पूर्णतः विनाश हो गया। इस सभ्यता का क्रमिक पतन हुआ तथा यह नगरीय सभ्यता से ग्रामीण सभ्यता में पहुँच गयी।
सैंधव सभ्यता की देन
- दशमलव पद्धति पर आधारित माप-तौल प्रणाली
- नगर नियोजन
- सड़कें एवं नालियों की व्यवस्था
- बहुदेववाद का प्रचलन
- मातृदेवी की पूजा
- प्रकृति पूजा
- शिव पूजा
- लिंग एवं योनि पूजा
- योग का प्रचलन
- जल का धार्मिक महत्त्व
- स्वास्तिक, चक्र आदि प्रतीक के रूप में ताबीज
- तंत्र-मंत्र का प्रयोग
- आभूषणों का प्रयोग
- बहुफसली कृषि व्यवस्था
- अग्नि पूजा या यज्ञ
- मुहरों का उपयोग
- इक्का गाड़ी एवं बैलगाड़ी
- आंतरिक एवं बाह्य व्यापार आदि।
- सैंधव सभ्यता की एक प्रमुख देन नगरीय जीवन के क्षेत्र में है। पूर्ण विकसित नगरीय जीवन का सूत्रपात इसी सभ्यता से हुआ।