दिल्ली सल्तनत के विघटन
भूमिका
- दिल्ली सल्तनत के विघटन का आरंभ मुहम्मद बिन तुगलक व फिरोजशाह तुगलक के समय ही प्रारंभ हो चुका था, आगे इन घटनाओं पर उनके अयोग्य उत्तराधिकारी और सैय्यद व लोदी शासकों के समय स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं आ सका। अंततः परिणाम यह हुआ कि उस समय दिल्ली सल्तनत के विभिन्न भागों में बहुत से स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। उत्तर भारत के राज्यों में जौनपुर, मालवा, कश्मीर, राजपूताना, गुजरात और उड़ीसा आदि प्रमुख थे, जबकि दक्षिण में विजयनगर और बहमनी साम्राज्य का अस्तित्व रहा।
उत्तर भारत के राज्य
जौनपुर
- अफीक के अनुसार, गोमती नदी के किनारे जौनपुर नगर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक द्वारा अपने चचेरे भाई मुहम्मद जौना खाँ की स्मृति में कराई गई थी, जो बाद में शर्की साम्राज्य की राजधानी बनी।
- स्वतंत्र जौनपुर राज्य की स्थापना का श्रेय जौनपुर के सूबेदार मलिक हुसैन सरवर को जाता है।
- 1389 ई. में मलिक सरवर, मुहम्मद शाह (फिरोज़ तुगलक का पुत्र) का वज़ीर बना।
- मलिक सरवर ने अपने राज्य की सीमाओं का कोल (अलीगढ़), संभल तथा मैनपुरी तक विस्तार किया। 1399 ई. इसकी मृत्यु हो गई।
- मलिक सरवर के उत्तराधिकारी मुबारक शाह शर्की (1399–1402 ई.) को अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन छोटे भाई एवं उत्तराधिकारी इब्राहिम शर्की (1402-1440 ई.) ने प्रभावशाली ढंग से अपने राज्य का विस्तार किया।
- इब्राहिम शर्की की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कन्नौज (1406 ई.) की थी। इस समय कन्नौज मुहम्मद शाह तुगलक के अधीन था।
- इब्राहिम के उत्तराधिकारी महमूद शर्की (1440-57 ई.), मुहम्मद शर्की (1457-58 ई.) तथा हुसैन शर्की (1458–1479 ई.) के शासनकाल में जौनपुर का दिल्ली सुल्तानों के साथ लगातार संघर्ष होता रहा।
- बहलोल लोदी ने जौनपुर पर आक्रमण किया। हुसैन शाह ने भागकर बिहार में शरण ली।
- बहलोल लोदी ने जौनपुर राज्य को अपने अधीन कर लिया और अपने पुत्र बरबक शाह को वहाँ का शासक नियुक्त किया।
- शर्की वंश की सबसे बड़ी व स्थायी उपलब्धि वास्तुकला मानी जाती है।
- अटाला मस्जिद, जो 1408 ई. में पूरी हुई थी, वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। अटाला मस्जिद को शर्की राजवंश के इब्राहिम शर्की ने बनवाया था।
- हुसैन शाह शर्की ने जामा मस्जिद (जौनपुर) का निर्माण 1470 ई. में कराया।
- शर्की शासक के अधीन यहाँ हुई सांस्कृतिक उन्नति के कारण जौनपुर को ‘भारत का शिराज’ कहा जाता है।
मालवा
- 1401 ई. में दिलावर खाँ ने स्वतंत्र राज्य के रूप में मालवा की स्थापना की तथा धार को अपनी राजधानी बनाया।
- 1405 ई. में दिलावर खाँ कि मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अल्प खाँ ‘हुशंगशाह’ की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसने मांडू को अपनी राजधानी घोषित किया।
- हुशंगशाह सूफ़ी संत शेख बुरहानुद्दीन का शिष्य था।
- उसने नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद नगर की स्थापना की।
- 1436 ई. में हुशंगशाह के पुत्र मुहम्मद शाह की उसके वज़ीर महमूद खिलजी ने हत्या कर दी और सत्तासीन होकर मालवा में ‘ख़िलजी वंश’ की नींव रखी।
- महमूद ख़िलजी मालवा का योग्यता शासक था। उसने गुजरात, बहमनी, मेवाड़ राज्यों से युद्ध किये।
- मेवाड़ के राणा कुंभा के साथ युद्ध के उपरांत महमूद खिलजी और राणा कुंभा दोनों ने जीत का दावा किया तथा इसके उपलक्ष्य में राणा कुंभा ने चित्तौड़ में ‘विजय स्तंभ’ तो महमूद ख़िलजी ने मांडू में ‘सात मंज़िलों वाले स्तंभ’ का निर्माण करवाया।
- महमूद ने मांडू में एक आवासीय महाविद्यालय एवं एक चिकित्सालय का निर्माण करवाया।
- 1469 ई. में महमूद ख़िलजी की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र गयासुद्दीन गद्दी पर बैठा। वह नितांत विलासी प्रवृत्ति का शासक सिद्ध हुआ।
- ऐसा माना जाता है कि गयासुद्दीन के महल में 16000 दासियाँ थीं जिनमें से कई हिंदू सरदारों की पुत्रियाँ थीं।
- उसने तुर्की और इथियोपियाई दासियों की एक अंगरक्षक सेना गठित की थी।
- कालांतर में महमूद शाह द्वितीय के शासनकाल के दौरान गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1531 ई. में मालवा पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया तथा महमूद शाह द्वितीय मारा गया।
- अंततः बादशाह अकबर ने 1561-62 ई. में अब्दुल्ला खाँ के नेतृत्व में मालवा पर विजय हेतु मुगल सेना भेजी। उस समय वहाँ का शासक बाजबहादुर था जिसे परास्त कर मालवा को अंतिम रूप से मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना
गुजरात
- 1297 ई. में राजा कर्णसिंह को परास्त कर अलाउद्दीन ख़िलजी ने गुजरात को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया और इसे एक सूबा (इक्ता) बना दिया।
- 1401 ई. तक यथास्थिति बरकरार रहने के पश्चात् 1391 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा नियुक्त किये गए यहाँ के सूबेदार ज़फर खाँ ने तैमूर के आक्रमण के कारण उपजी दिल्ली सल्तनत की कमज़ोर स्थिति का लाभ उठाकर स्वयं को यहाँ का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया तथा स्वतंत्र गुजरात राज्य की स्थापना की।
- 1407 ई. में ज़फर खाँ ने ‘सुल्तान मुज़फ्फरशाह‘ की उपाधि धारण की।
- 1411 ई. में मुज़फ्फरशाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पौत्र ‘अहमदशाह’ शासक बना। इसे ही ‘गुजरात का वास्तविक संस्थापक‘ माना जाता है।
- अहमदशाह ने साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद नगर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया।
- उसने अहमदाबाद में जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।
- 1459 ई. में महमूद बेगड़ा सिंहासन पर बैठा जो आगे चलकर गुजरात का महानतम शासक सिद्ध हुआ।
- उसने गिरिनार पहाड़ियों की तलहटी में ‘मुस्तफाबाद’ नामक नगर की स्थापना की।
- लोग उसे ‘जरबख्श’ (स्वर्ण दान करने वाला) के नाम से पुकारते थे।
- पुर्तगाली यात्री बारबोसा के अनुसार, “बचपन से ही महमूद बेगड़ा को किसी ज़हर का नियमित तौर पर सेवन कराया गया था। अत: यदि कोई मक्खी उसके हाथ पर बैठ जाती थी तो, वह तुरंत फूलकर मर जाती थी।”
- अपने शासनकाल के उत्तरवर्ती वर्षों में उसने द्वारका पर विजय प्राप्त की।
- 1526 ई. में गुजरात का अंतिम महान शासक बहादुर शाह सिंहासनारूढ़ हुआ। उसके शासनकाल में गुजरात अपने ऐश्वर्य और शक्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचा।
- 1537 ई. में पुर्तगालियों द्वारा बहादुर शाह की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् सत्तासीन हुए शासक बेहद कमज़ोर साबित हुए।
- अंततः 1573 ई. में अकबर ने अपने द्वितीय गुजरात अभियान द्वारा संपूर्ण राज्य को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया।
मेवाड़ (आधुनिक उदयपुर)
- अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
- दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर हम्मीर देव ने 1314 ई. में मेवाड़ राज्य की पुनः स्थापना कर वहाँ सिसोदिया वंश की नींव रखी।
- हम्मीर देव ने मुहम्मद बिन तुगलक के समय चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा लगभग 64 वर्षों तक मेवाड़ पर शासन किया।
- 1420 ई. में मोकल गद्दी पर बैठा। उसने अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया तथा एकलिंग मंदिर के चारों ओर परकोटे का निर्माण करवाया।
- 1433 ई. में मोकल की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र राणा कुंभा मेवाड़ का शासक बना। उसके काल में मेवाड़ की शक्ति में प्रभावी वृद्धि हुई।
- राणा कुंभा ने मारवाड़ के अधिकांश भाग को विजित कर अपने राज्य में शामिल कर लिया।
- मालवा पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में उसने 1448 ई. में चित्तौड़ में ‘कीर्ति स्तंभ’ का निर्माण करवाया जिसे ‘हिंदू देवशास्त्र का चित्रित कोश‘ कहा जाता है।
- राणा कुंभा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव द्वारा रचित ‘गीत गोविंद’ पर ‘रसिक प्रिया’ नामक टीका लिखी।
- राणा कुंभा की मृत्यु के पश्चात् रायमल ने और तदोपरांत राणा सांगा (1509-1528 ई.) ने शासन संभाला।
- 1517 ई. में खतोली के युद्ध में राणा सांगा ने दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया।
- 1527 ई. में खानवा के युद्ध में राणा सांगा मुगल बादशाह बाबर से पराजित हुआ।
- कालांतर में मेवाड़ की शक्ति क्षीण होती चली गई
- अंततः जहाँगीर के समय इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
मारवाड़ (आधुनिक जोधपुर)
- मारवाड़ के राठौर प्राचीन राष्ट्रकूटों के वंशज थे।
- चुन्द (1394-1421 ई.) ने मारवाड़ राज्य की नींव डाली तथा जोधपुर को राजधानी बनाई।
- चुन्द के पश्चात् कान्हा और कान्हा के पश्चात् सता मारवाड़ का शासक बना।
- रामनल ने सता को पदच्युत करके मारवाड़ को हड़प लिया।
- रामनल की मेवाड़ के सरदारों ने हत्या कर दी थी, जिससे मेवाड़ व मारवाड़ की शत्रुता प्रारंभ हुई।
- रामनल के पुत्र जोधा को मेवाड़ से संघर्ष करना पड़ा।
- बाद में राणा कुंभा ने जोधा के साथ समझौता कर लिया तथा जोधा ने मारवाड़ पर अधिकार कर लिया।
- जोधा ने जोधपुर के दुर्ग का निर्माण कराया तथा एक नगर की स्थापना की।
- जोधा के पुत्रों ने सातल, बीकानेर, मेड़ता आदि में अपने-अपने अर्द्ध-स्वतंत्र राज्य स्थापित किये।
- शेरशाह के समय मारवाड़ का शक्तिशाली शासक मालदेव था।
- अकबर ने मारवाड़ को अपने अधीन कर लिया था।
बंगाल
- भौगोलिक रूप से दिल्ली से दूर स्थित होने के कारण बंगाल पर दिल्ली के शासकों का नियंत्रण उतना मज़बूत नहीं रह पाता था जितना अन्य प्रांतों पर रहता था। अतः समय-समय पर वहाँ विद्रोह होते रहते थे।
- बलबन के काल में तुगरिल खाँ के विद्रोह के दमन के पश्चात् बलबन के पुत्र बुगरा खाँ को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया।
- बलबन की मृत्यु के पश्चात् बुगरा खाँ को ही वहाँ का स्वतंत्र शासक मान लिया गया और उसने नासिरुद्दीन की उपाधि धारण की।
- गयासद्दीन तुगलक ने भी बंगाल पर अभियान किया तथा बंगाल का कछ हिस्सा अपने अधीन कर लिया और शेष भाग नासिरुद्दीन को दे दिया।
- महम्मद बिन तुगलक के समय बंगाल पुनः स्वतंत्र राज्य बन गया और वहाँ 1340 ई. में फखरुद्दीन मुबारक शाह ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया।
- 1345 ई. में शम्सुद्दीन इलियास शाह ने संपूर्ण बंगाल को अपने अधिकार में ले लिया। उसके शासनकाल में फिरोजशाह तुगलक ने प्रथम बार बंगाल पर आक्रमण किया, किंतु विफल रहा।
- तत्पश्चात् सिकंदरशाह गद्दी पर बैठा जिसने 1368 ई. में पाण्डुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके काल में फिरोज़ तुगलक ने पुनः आक्रमण किया और पुनः विफल हुआ।
- कालांतर में गयासुद्दीन आजमशाहे (1389-1409 ई.) और अलाउद्दीन हुसैनशाह (1493-1518 ई.) नामक दो प्रसिद्ध शासक हुए। इनके शासनकाल में बंगाल शक्तिशाली राज्य बना रहा।
- अलाउद्दीन हुसैनशाह चैतन्य महाप्रभु का समकालीन था।
- हिंदुओं के प्रति उदारता के कारण उसे ‘कृष्ण का अवतार’, ‘नृपति तिलक’ और ‘जगत् भूषण‘ जैसी उपाधियों से नवाज़ा गया।
- 1518 ई. में हुसैनशाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र नुसरतशाह गद्दी पर बैठा।
- नुसरतशाह ने गौड़ में ‘सोना मस्जिद’ एवं ‘कदम रसूल मस्जिद’ का निर्माण करवाया।
- इस वंश के अंतिम शासक गयासुद्दीन महमूदशाह को शेरशाह ने 1538 ई. में बंगाल से भगाकर समूचे बंगाल पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
- तत्पश्चात् अकबर ने बंगाल को मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
उड़ीसा
- पूर्वी सागर तट पर गंगा एवं गोदावरी नदियों के मध्यवर्ती क्षेत्र में उड़ीसा राज्य था, जिस पर गजपति वंश का शासन था।
- तुर्क शासकों में गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में पहली बार इस पर आक्रमण हुआ।
- 1360 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने उड़ीसा पर आक्रमण करके धन लूटा और पुरी के जगन्नाथ मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया।
- जौनपुर, बहमनी राज्य, कोंडाविडु एवं विजयनगर साम्राज्य द्वारा भी उड़ीसा पर आक्रमण हुए।
- 1526 ई. में बाबर के आक्रमण के समय यह एक कमज़ोर राज्य बन चुका था।
- 1568 ई. तक बंगाल के अफगान शासकों ने इस पर पूर्ण अधिकार कर लिया।
कश्मीर
- 1301 ई. में सूहादेव ने कश्मीर में सुदृढ़ हिंदू राजवंश की नींव डाली। उत्तर भारत के राज्यों में कश्मीर अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण महत्त्वपूर्ण रहा है।
- 1339-40 ई. में शाहमीर ने सुल्तान शम्सुद्दीन की उपाधि धारण कर कश्मीर में शाहमीर वंश की स्थापना की। वह कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक था।
- सिकंदर शाह (1389-1413) के मंत्री सुहाभट्ट ने धर्म परिवर्तन कर सिकंदर शाह के सहयोग से कश्मीर में बलपूर्वक हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिये विवश किया।
- कश्मीर का सुप्रसिद्ध शासक सुल्तान जैन-उल-अबिदीन था, जिसने 1420-70 ई. के मध्य शांति और प्रजा हित में कार्य किया।
- अबिदीन ने जजिया और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया।
- सुल्तान अबिदीन ने हिंदुओं के प्रति उदार नीति का अनुसरण किया। उसने हिंदुओं को अपने शासनकाल में ऊँचे पदों पर बैठाया। निर्वासित ब्राह्मणों को वापस लौटने और पूजा-अर्चना आदि के लिये मंदिरों आदि के निर्माण की अनुमति दी।
- सुल्तान अबिदीन ने महाभारत एवं कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद कराया।
- व्यापार, वाणिज्य आदि के लिये उसने राज्य में उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
- ऐसा माना जाता है कि कागज़ निर्माण और जिल्दसाजी की कला सीखने के लिये उसने दो व्यक्तियों को समरकंद भेजा।
- अपने कल्याणकारी कार्यों और प्रजा के प्रति उदार नीति के कारण आज भी कश्मीर के लोग अबिदीन को ‘बड शाह’ (महान सुल्तान) कहते हैं।
- जैन-उल-अबिदीन को ‘कश्मीर का अकबर’ कहा जाता है।
दक्षिण भारत के राज्य
- मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत के विघटन के परिणामस्वरूप दक्षिण भारत में दो नए साम्राज्य-बहमनी और विजयनगर अस्तित्व में आए।