1857 का विद्रोह
1857 के विद्रोह का प्रतीक – कमल और रोटी
विद्रोह के प्रमुख कारण
- राजनीतिक कारण
- प्रशासनिक कारण
- सामाजिक एवं धार्मिक कारण
- आर्थिक कारण
- सैन्य कारण
- तात्कालिक कारण
राजनीतिक कारण
- लॉर्ड वेलेजली की ‘सहायक संधि‘
- लॉर्ड डलहौजी का ‘व्यपगत का सिद्धांत’
- पेशवा (नाना साहब) की पेंशन रोके जाने का विषय भी असंतोष का कारण बना।
प्रशासनिक कारण
- अंग्रेजों ने भेदभावपूर्ण नीति
- भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में सम्मिलित नहीं
- अंग्रेज़ द्वारा भारतीयों को उच्च सेवाओं हेतु अयोग्य मानना
- तंजौर तथा कर्नाटक के नवाबों की उपाधियाँ जब्त करना ,
- मुगल शासक बहादुरशाह को अपमानित करना
- प्रशासन संबंधी कार्यों में योग्यता की जगह धर्म को आधार बनाना
- अकालों की बारंबारता ने
सामाजिक एवं धार्मिक कारण
- पारंपरिक भारतीय संस्कृति को हीन मानना ।
- ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार(हिंदू समाज में असंतोष)
- 1850 में आये ‘धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम’ द्वारा ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल गया।
- ईसाई मिशनरियों के द्वारा धर्मांतरण
- 1813 के चार्टर एक्ट में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया।
- अंग्रेजों की नस्लवादी भेदभाव की नीतियों
- सती प्रथा, दास प्रथा व नर बलि प्रथा पर रोक के कारण सामाजिक तनाव
- पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार
आर्थिक कारण
- ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों द्वारा किसानों का शोषण ।
- पारंपरिक उद्योगों को समाप्त करना
सैन्य कारण
- सैन्य सेवा में नस्लीय भेदभाव
- सैनिकों को समुद्र पार भेजना (धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़)
- लॉर्ड कैनिंग के समय 1856 में ‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा सैनिकों सैनिकों को समुद्र पार भी जाना पड़ता था ।
- सैनिकों को भी पत्र पर स्टंप लगाना अनिवार्य
- 1854 में डाकघर अधिनियम द्वारा सैनिकों को भी पत्र पर स्टंप लगाना अनिवार्य हो गया। यह सैनिकों के विशेषाधिकारों का हनन था।
नोटः ध्यातव्य है कि 1857 के विद्रोह के दमन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय फौज के नव गठन के लिये ‘पील आयोग का गठन किया, जिसने सेना के रेजिमेंटों को जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर विभाजित किया।
तात्कालिक कारण
- दिसंबर 1856 में सरकार ने पुरानी बंदूक ‘ब्राउन बेस‘ के स्थान पर ‘न्यू इनफील्ड राइफल‘ के प्रयोग किया। कारतूस के ऊपरी भाग को दाँतों से खोलना पड़ता था।
- कारतूस की खोल में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है।
- इससे हिंदू और मुस्लिम सैनिकों को लगा कि चर्बीदार कारतूस का प्रयोग उनके धर्म को नष्ट कर देगा।
- सैनिकों का विश्वास था कि सरकार जान-बूझकर ऐसे कारतूसों का प्रयोग करके उनके धर्म को नष्ट करने तथा उन्हें ईसाई बनाने का प्रयास कर रही है। अतः सैनिकों ने अंगेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
1857 के विद्रोह का प्रारंभ
- विद्रोह का प्रारंभ29 मार्च, 1857 को 34वीं रेजिमेंट, बैरकपुर के सैनिक मंगल पांडेय ने किया ।
- उसने लेफ्टिनेंट बाग एवं मेजर सार्जेण्ट की गोली मारकर हत्या कर दी।
- 8 अप्रैल(29 मार्च), 1857 को मंगल पांडेय को फाँसी की सज़ा दे दी गई, जो कि 1857 की क्रांति का प्रथम शहीद माना गया।
- विद्रोह के दौरान बैरकपुर के कमांडिंग ऑफिसर हैरसे था।
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में तैनात भारतीय सेना विद्रोह प्रारंभ कर दिया।
- इस समय मेरठ में सैन्य छावनी के अधिकारी जनरल हेविड थे।
विद्रोह का विस्तार
दिल्ली
- विद्रोह का आरंभ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में हुआ।
- सिपाहियों ने दिल्ली की ओर कूच किया तथा 11 मई दिल्ली पहुंचे और 12 मई, 1857 को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया
- मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट व क्रांति का नेता घोषित किया।
- दिल्ली में वास्तविक नेतृत्व बख्त खां के पास था।
- बहादुर शाह जफर के द्वारा बखत खान को साहब ए आलम बहादुर की उपाधि दिया गया
- दिल्ली पर अंग्रेज़ों का पुनः अधिकार सितंबर 1857 को हो गया।
- इस संघर्ष को दबाने के लिये अंग्रेज़ अधिकारी जॉन निकोलसन, हडसन व लॉरेंस को भेजा गया जिसमें जॉन निकोलसन मारा गया।
- बहादुरशाह द्वितीय की गिरफ्तारी हुमायूँ के मकबरे से हुई थी। इसकी सूचना ज़ीनत महल ने दी थी।
- बहादुरशाह द्वितीय को रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 में उसकी मृत्यु हो गई।
लखनऊ
- जून 1857 में विद्रोह का प्रारंभ बेगम हज़रत महल (महक परी) के नेतृत्व में हुआ।
- उन्होंने अपने अल्पायु पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित कर दिया ।
- हेनरी लॉरेंस, लखनऊ में स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी की रक्षा करते हुए मारे गए।
- कैंपबेल ने मार्च 1858 में लखनऊ पर पुनः कब्जा कर लिया।
- तात्या टोपे ने ‘चिनहट’ के पास अंग्रेज़ी सेना को हराया गया और हेवलॉक मारा गया।
- कालांतर में कर्नल नील भी लखनऊ में मारा गया।
कानपुर
- 5 जून, 1857 को कानपुर में पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंदूपंत) ने विद्रोह शुरू किया।
- नाना साहब का कमांडर इन चीफ तात्या टोपे थे
- इसमें उनकी सहायता तात्या टोपे ने की थी, जिनका असली नाम रामचंद्र पांडुरंग था।
- दिसंबर 1857 में कैंपबेल ने कानपुर पर फिर से अधिकार कर लिया।
- नाना साहब अंत में नेपाल चले गए।
सती-चौरा घाट की घटना
- कानपुर में नाना साहब ने ‘सती-चौरा’ के पास अंग्रेजों जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं को धोखे से मारा ।
- नाना साहब ने अपने आपको ‘बादशाह का पेशवा’ घोषित कर दिया।
- ‘नाना साहब’ व ‘बेगम हजरत महल’ नेपाल चले गए।
झाँसी
- झाँसी में जून 1857 में रानी लक्ष्मीबाई (जन्म-वाराणसी, मृत्यु -ग्वालियर) के नेतृत्व में विद्रोह प्रारंभ हुआ।
- झाँसी में ह्यूरोज की सेना से पराजित होकर वे ग्वालियर पहुँची।
- तात्या टोपे को सिंधिया की अस्वीकृति के बावजूद ग्वालियर की सेना व जनता का सहयोग मिला।
- तात्या टोपेके विश्वासघाती मित्र मानसिंह ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया और 1859 में ग्वालियर में उन्हें फाँसी दे दी गई।
बिहार
- जगदीशपुर में विद्रोह कुँवर सिंह एवं अमर सिंह ने किया।
- विलियम टेलर एवं विसेंट आयर ने यहाँ विद्रोह को दबा दिया।
फैज़ाबाद
- फैज़ाबाद में विद्रोह का नेतृत्व अहमदुल्लाह ने किया।
- कैंपबेल ने यहाँ के विद्रोह को दबाया।
इलाहाबाद
- इलाहाबाद में विद्रोह का कमान मौलवी लियाकत अली ने संभाली।
- जनरल नील ने यहाँ के विद्रोह को दबा दिया।
- विद्रोह के दौरान तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कैंनिंग ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था।
बनारस
- सामान्य जनता का विद्रोह।
- कर्नल नील द्वारा दमन।
- यहाँ बच्चों व स्त्रियों को भी मृत्युदंड दे दिया गया।
बरेली
- बरेली में खान बहादुर खाँ ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया
- कैंपबेल ने यहाँ के विद्रोह को भी दबा दिया
- खान बहादुर खान को फाँसी की सज़ा दी गई।
राजस्थान
- राजस्थान में कोटा विरोधियों का प्रमुख केंद्र था।
- यहाँ जयदयाल और हरदयाल ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया।
असम
- असम में विद्रोह की शुरुआत मनीराम दत्त ने की
- अंतिम राजा के पोते कंदर्पेश्वर सिंघा को राजा घोषित कर दिया।
- मनीराम को पकड़कर कलकत्ता में फाँसी दे दी गई।
उड़ीसा
- उड़ीसा में संबलपुर के राजकुमार सुरेंद्र साई विद्रोहियों के नेता बना
- 1862 में सुरेंद्र साई ने आत्मसमर्पण कर दिया। इन्हें देश से निकाल दिया गया।
फैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह
- अहमदुल्लाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध फतवा जारी किया और जिहाद का नारा दिया। अंग्रेजों ने इनके ऊपर 50 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया था।
- अहमदुल्लाह मूलतः मद्रास के रहने वाले थे।
- विद्रोह के समय एक झंडा गीत की रचना हुई, जिसे अजीमुल्लाह ने लिखा था।
- लंदन टाइम्स के पत्रकार ‘माइकल रसेल‘ ने इस विद्रोह का सजीव वर्णन किया।
- बंगाल, पंजाब, राजपूताना, पटियाला, जींद, हैदराबाद, मद्रास आदि ऐसे क्षेत्र थे, जहाँ पर विद्रोह पनप नहीं सका।
- ज़मींदार वर्ग//शिक्षित लोगों/साहूकार ने विद्रोह को कुचलने में ब्रिटिशों की सहायता भी की।
- 1857 के संघर्ष में भाग लेने वाले सिपाहियों की सर्वाधिक संख्या अवध से थी
- 1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कैनिंग था
- 1857 के विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन था
- विस्टन चर्चिलदूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था।
- भारत की आजादी के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री क्लिमेण्ट एट्ली था
- भारतीय स्वाधीनता आंदोलन 1857 का सरकारी इतिहासकार एस.एन. सेन थे
- पील आयोग का संबंध 1857 के विद्रोह के दमन के बाद भारतीय फौज के नव गठन से संबंधित है
- 1857 के विद्रोह को उर्दू कवि मिर्जा गालिब ने देखा था
विद्रोह की असफलता का कारण
- ज़मींदारों व शिक्षित लोगों का साथ न मिलना।
- ठोस योजना/सामूहिक योजना का आभाव ।
- पंजाब, गोरखा व मद्रास के सैनिकों का शामिल न होना
- योग्य नेतृत्व का न होना था।
- आधुनिक हथियारों की कमी
- नेताओं की गुटबंदी
जॉन लॉरेंस तो यह कहता है कि “यदि विद्रोहियों में कोई एक भी योग्य नेता होता तो हम सदा के लिये हार जाते।”
- 1 नवंबर, 1858 से भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा भारत राज्य सचिव के पद का प्रावधान किया गया तथा उसकी सहायता के लिये 15 सदस्यीय इंडिया काउंसिल (मंत्रणा समिति) की स्थापना की गई। इन सदस्यों में 8 की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा तथा 7 की नियुक्ति ‘कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स’ द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया गया।
- भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और इस प्रकार ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।
- 1858 के अधिनियम के तहत भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। इस तरह लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।
- अंग्रेज़ों की सेना का पुनर्गठन किया गया।
1857 के विद्रोह के बारे में इतिहासकारों के मत
- यह पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सिपाही विद्रोह था। – सीले
- यह सिपाही विद्रोह के अतिरिक्त कुछ नहीं था – जॉन लॉरेंस
- यह राष्ट्रीय विद्रोह था, न कि सिपाही विद्रोह – बेंजामिन डिजरैली
- 1857 का विद्रोह न तो प्रथम था, न ही राष्ट्रीय था और यह न ही स्वतंत्रता संग्राम था। – आर. सी. मजूमदार
- यह ईसाईयों के विरुद्ध एक धर्मयुद्ध था- एल.ई.आर. रीज
- यह सभ्यता एवं बर्बरता का संघर्ष था। – टी.आर. होम्स
- यह विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिये लड़ा गया सुनियोजित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। वी.डी. सावरकर
- यह अंग्रेजों के विरुद्ध हिंदू व मुसलमानों का षड्यंत्र था। जेम्स आउट्रम व डब्ल्यू. टेलर ।
1857 के विद्रोह से संबंधित प्रमुख पुस्तकें एवं उनके लेखक
- The Indian War of Independence 1857‘ – वी. डी. सावरकर
- The Sipoy Mutiny and Revolt of 1857′ – आर. सी. मजूमदार
- The Causes of the Indian Revolt (1858) – सर सैय्यद अहमद खाँ
- ‘The First Indian War of Independence’1857-1859 – कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स
- 1857 The Great Revolt’ – अशोक मेहता
- ‘The Sipoy Mutiny of 1857’ A Social Analysis – एच.पी. चट्टोपाध्याय
- ‘1857’ – एस.एन.सेन
प्रमुख विचार
- ‘वर्ष सत्तावन का विद्रोह सिपाही विद्रोह मात्र था।’- झेड राबर्ट्स
- ‘1857 की घटना सिर्फ गाय की चर्बी से उत्पन्न सैनिक उत्पात थी।’ सर जॉन लॉरेंस
- ‘1857 के विद्रोह को या तो सिपाही विद्रोह या अनधिकृत राजाओं तथा जमींदारों का अनियोजित प्रयत्न अथवा सीमित किसान-युद्ध कहा जा सकता है।’ –एडवर्ड टॉम्पसन तथा जी.टी. गैरेट
- ‘1857 का विद्रोह स्वतंत्रता संघर्ष नहीं धार्मिक युद्ध था।’ –विलियम हॉवर्ड रसेल
- 1857 के विद्रोह में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था और यह सैनिक विद्रोह से बढ़कर और कुछ भी नहीं था। –आर.सी. मजुमदार
- ‘सन सत्तावन का विद्रोह सिपाही विद्रोह नहीं, अपितु स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त भारतीय जनता का संगठित संग्राम था। -जवाहरलाल नेहरू
- 1857 का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था, अपितु यह भारतवासियों का अंग्रजों केविरुद्ध धार्मिक, सैनिक शक्तियों के साथ राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए लड़ा गया युद्ध था।’ – जस्टिस मेकार्की
- 1857 का विद्रोह स्वधर्म और राजस्व के लिए लड़ा गया राष्ट्रीय संघर्ष था।-विनायक दामोदर सावरकर
- ‘1857 का विद्रोह मुसलमानों के षड्यंत्र का परिणाम था।’ –सर जेम्स आउट्रम
- 1857 ई. की क्रांति भारत की पवित्र भूमि से विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास थी। – डॉ. सैय्यद अतहर अब्बास रिजवी
- 1857 का विद्रोह विदेशी शासन से राष्ट्र को मुक्त कराने का देशभक्तिपूर्ण प्रयास था। –बिपिन चन्द्र
- 1857 का विद्रोह सचेत संयोग से उपजा राष्ट्रीय विद्रोह था।’ –बेंजामिन डिजरैली
- 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह न होकर नागरिक विद्रोह था।’ -जान ब्रूस नार्टन
- 1857 के विद्रोह का आरंभिक स्वरूप सैनिक विद्रोह का ही था, किन्तु बाद में इसने राजनीतिक स्वरूप ग्रहण कर लिया। –एस.एस. सेन